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गोरखपुर उपचुनाव: शहर में ध्यान, अधिक मतदान भाजपा की प्रमुख रणनीति

गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा-बसपा की दोस्ती से पैदा हुए विरोधी मतों के ध्रुवीकरण की संभावना को देखते हुए भाजपा ने अपनी निगाहें गोरखपुर शहर विधानसभा सीट पर गड़ा दी हैं. गोरखपुर लोकसभा की पांच विधानसभा सीटों में से गोरखपुर शहर विधानसभा सीट ऐसी है जहां से भाजपा को हर चुनाव में निर्णायक बढ़त मिलती रही है. इस बार भी भाजपा के रणनीतिकार यहीं से निर्णायक बढ़त बनाने का प्रयास कर रहे हैं.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गुरुवार की शाम टाउनहाल की सभा में इस रणनीति का तफ्सील से संकेत दिया. उन्होंने बीजेपी कार्यकर्ताओं से शहर विधानसभा में मत प्रतिशत बढ़ाने का आह्वान किया और कहा कि यदि शहर विधानसभा क्षेत्र में 60 फीसदी मतदान हुआ तो यहां से बीजेपी को ढाई लाख मतों की बढ़त मिल जाएगी. इसके पहले पांच मार्च को राप्तीनगर की सभा में भी योगी आदित्यनाथ ने यही बात कही थी.

योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गोरखपुर शहर विधानसभा में मतदान एक प्रतिशत अधिक होने का मतलब है कि भाजपा को दस हजार वोटों की बढ़त.

योगी आदित्यनाथ यह कहना चाहते थे कि यदि शहरी विधानसभा क्षेत्र में मतदान प्रतिशत 60 फीसदी गया तो यह बढ़त ढाई लाख की हो जाएगी और दूसरे विधानसभा क्षेत्रों में यदि विरोधी अधिक मत पा भी जाते हैं तो उनके लिए इस बढ़त को लांघ पाना असंभव हो जाएगा.

आंकड़ों की कसौटी पर योगी आदित्यनाथ की बातें काफी हद तक सही हैं. पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव का परिणाम अगर देखें तो गोरखपुर शहर विधानसभा सीट ही भाजपा का अभेद्य किला रहा है. वर्ष 1999 में भी जब योगी आदित्यनाथ 7,339 मतों के मामूली अंतर से जीते थे तब शहर विधानसभा की लीड ने ही उनकी जीत का रास्ता खोला था.

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र की सभी पांच सीटों पर भाजपा विजयी हुई थी. इस लोकसभा क्षेत्र की गोरखपुर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र की सीट से भाजपा प्रत्याशी 4,410 मतों से विजयी हुआ. सहजनवां में 15,377, पिपराइच में 12,809, कैम्पियरगंज में 32,854 मतों से भाजपा प्रत्याशी की विजय हुई. गोरखपुर शहर विधानसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी की जीत का अंतर था 60,370 वोट. सभी पांच विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक अंतर से यहीं पर भाजपा की जीत हुई.

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ को सबसे अधिक मत गोरखपुर शहर विधानसभा क्षेत्र से ही मिला था. उन्हें 1,33,892 मत मिले थे और उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वद्वी सपा प्रत्याशी से 1,02,837 मतों से बढ़त बनायी थी. शेष चार विधानसभाओं में से कैम्पियरगंज से उन्हें 42,041, पिपराइच से 77,479, गोरखपुर ग्रामीण से 43,670 तथा सहजनवां से 46,354 मतों की बढ़त मिली थी.

वर्ष 2009 में योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर शहर सीट से 52,086 मत की बढ़त मिली थी. सहजनवां से 28,819, कैम्पियरगंज से 41,184, पिपराइच से 59,065 और गोरखपुर ग्रामीण से 42,106 मत की बढ़त मिली थी.

इस तरह से गोरखपुर शहर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा को परंपरागत रूप से बड़ी बढ़त मिलती रही है. इसलिए इस चुनाव में विरोधी मतों के ध्रुवीकरण के कारण भाजपा को सहजनवां, गोरखपुर ग्रामीण, कैम्पियरगंज और पिपराइच से बहुत ज्यादा बढ़त मिलने की उम्मीद नहीं की जा रही है. 2017 के विधानसभा चुनाव में इन सभी सीटों पर सपा-बसपा का सम्मिलित वोट भाजपा के वोट से ज्यादा था.

इन चारों विधानसभाओं में निषाद वोटों की बहुलता है. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा दोनों ने निषाद प्रत्याशी खड़ा किया था. तब निषाद पार्टी अस्तित्व में नहीं आई थी. इस कारण निषाद मत बंटे थे. इस बार ऐसा होता प्रतीत नहीं हो रहा है.

भाजपा के लिए दूसरी बड़ी चिंता का विषय है वर्ष 2017 में बड़ी लहर होने के बावजूद पांचों विधानसभा में उसे कुल मिलाकर 1,25,820 की बढ़त हासिल हुई जो 2014 के लोकसभा में 3,12,783 थी. यानी लोकसभा चुनाव के मुकाबले भाजपा की बढ़त आधे से कम हो गई, वह भी तब विपक्ष तीन हिस्सों में बंटा हुआ था.

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में 54.67 फीसदी मतदान हुआ था लेकिन गोरखपुर शहर विधानसभा क्षेत्र में सबसे कम 48.80 फीसदी ही मतदान हुआ था जबकि वोटों की बढ़त उसे 60 हजार से ज्यादा मिली थी. इसलिए भाजपा अपने सबसे मजबूत किले शहर विधानसभा में अधिक मतदान और अधिक बढ़त की रणनीति पर चल रही है ताकि वह यहां से निर्णायक बढ़त बना सके.

भाजपा की रणनीति है कि पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार वह गोरखपुर शहर सीट में 12 फीसद अधिक मतदान करवाए. शहरी विधानसभा की जनसंख्या में सवर्ण मतों की बहुलता है और वे भाजपा के परम्परागत मत हैं. ब्राह्मण उम्मीदवार देने से ब्राह्मण मतों का भाजपा में आना तय है. परिसीमन के बाद यहां के अल्पसंख्यक मतदाताओं का बड़ा हिस्सा गोरखपुर ग्रामीण विधानसभा में चला गया है. इसलिए यहां विपक्ष कमजोर है और शहरी मतों को अपने पक्ष में करने का वह अब तक कोई ठोस उपाय नहीं कर पाया है.

अगर भाजपा शहर विधानसभा में 60 फीसदी मतदान का लक्ष्य हासिल कर लेती है तो बाकी विधानसभा सीटों पर उसकी पतली हालत को कम कर सकती है. जाहिर शहरी मतों का रुझान इस बार भी हार-जीत में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा.