Newslaundry Hindi
फूलपुर उपचुनाव: पहले भाई (अतीक अहमद), फिर सपाई
रात के पौने नौ बजे थे. करीब 2500 लोग इलाहाबाद के अटाला इस्लामिया कॉलेज चौराहे पर चुनावी रैली में इकट्ठा हुए हैं. कुर्सियां भरी थी. सैकड़ों लोग स्टेज के आसपास और पास की गलियों में जमा हुए थे. ये सभी भाषण सुनने आए थे. और इससे भी ज्यादा, वे स्टेज पर मौजूद उस 19 वर्षीय लड़के की झलक लेने आए थे जिसका नाम है उमर अतीक अहमद. उमर उत्तर प्रदेश के फूलपुर से पांच बार विधायक रहे बाहुबली अतीक अहमद के पुत्र हैं. समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता अतीक इस उपचुनाव में स्वतंत्र उम्मीदवार हैं. वे अभी देवरिया की जेल में बंद हैं, फिर भी वे समाजवादी पार्टी के लिए सिरदर्द बने हुए हैं.
अखिलेश यादव की पार्टी के लिए चिंता का विषय है अतीक की रैलियों में उमड़ रही भारी भीड़. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अटाला चौराहा से महज कुछ ही दूरी पर चल रही यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष राज बब्बर की रैली में महज 700 के करीब लोग इकट्ठा हुए थे. मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने फूलपुर और गोरखपुर उपचुनावों में समाजवादी पार्टी (सपा) को अपना समर्थन दिया है. यह महत्वपूर्ण है कि 2017 विधानसभा चुनावों में दोनों दलों- सपा और बसपा- ने मुस्लिम वोटरों को लुभाने की भरपूर कोशिश की थी. जिसका नतीजा मुस्लिम वोटरों के बंटवारे के रूप में हुआ.
फुलपूर लोकसभा सीट पर मुस्लिम वोटरों की निर्णायक संख्या है. सपा-बसपा गठबंधन के बाद, उम्मीद की जा रही थी कि सपा उम्मीदवार नागेन्द्र सिंह पटेल के पक्ष में मुस्लिम समुदाय एकजुट होकर वोट करेगा. हालांकि, 55 वर्षीय अतीक की चुनावी रैली में भीड़ की मौजूदगी सपा-बसपा का खेल खराब कर सकती है और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को फायदा पहुंचा सकती है.
“अगर अतीक मुस्लिम वोट को बांटने में सफल रहते हैं तो हम आराम से जीत जाएंगें या, यह नजदीकी मुकाबला हो जाएगा,” नाम न छापने की शर्त पर भाजपा नेता ने कहा. “मुस्लिम वोटर निर्णायक साबित हो सकते हैं, क्योंकि बाकी सभी समुदायों में हमारा आधार मजबूत है.”
समाजवादी पार्टी के नेता अतीक अहमद को “सरकारी उम्मीदवार (सरकार द्वारा खड़ा किया गया)” कह रहे हैं. बदायूं से सपा सांसद धर्मेन्द्र यादव ने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा, “भाजपा अल्पसंख्यक वोट बांटने का खेल खेल रही है.” उन्होंने जोर देकर कहा, “जितना समाजवादियों ने अतीक अहमद को बढ़ाया है, उनका साथ दिया है, कोई और नहीं दे सकता.”
जब वे स्टेज पर चढ़ें- उन्होंने न सिर्फ भाजपा पर हमला बोला बल्कि अहमद को भाजपा के चाल का हिस्सा भी बताया.
फूलपुर और गोरखपुर में उपचुनाव की जरूरत इसलिए आ पड़ी क्योंकि भाजपा सांसद केशव प्रसाद मौर्य और योगी आदित्यनाथ को सांसद पद से इस्तीफा देना पड़ा. योगी ने मुख्यमंत्री और मौर्य ने उपमुख्यमंत्री का पद ग्रहण किया है. 2014 में, केशव प्रसाद मौर्य ने बहुत बड़ी जीत हासिल की थी- उन्हें 52 फीसदी वोट मिले थे. जबकि सपा को 20 फीसदी और बसपा को 17 फीसदी वोट मिले थे. कांग्रेस 6 फीसदी वोटों पर सिमट गई थी.
फूलपुर संसदीय क्षेत्र में करीब 19 लाख वोटर हैं और पांच विधानसभा सीटें इसके तहत आती हैं. 2017 में भाजपा ने पांचों विधानसभा सीटें जीती थी. ओबीसी समुदाय- जिसमें यादव, पटेल और मौर्य बड़ी संख्या में हैं- फूलपुर लोकसभा का मुख्य वोटर है. दलितों का वोट प्रतिशत भी 25 फीसदी के करीब है. मुसलमानों का वोट प्रतिशत लगभग 10 फीसदी है. चूंकि उनका वोटिंग पैटर्न एकमुश्त रहा है इसलिए उनका वोट निर्णायक हो जाता है.
दोनों सपा और बसपा इस उपचुनाव को 2019 की तैयारी के रूप में देखते हैं. यहां तक कि कांग्रेस भी भाजपा को हराना चाहती है. यूपी कांग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर ने, बुधवार को, यूपी में मुसलमानों के प्रति असुरक्षा का माहौल बनाने के लिए भाजपा पर निशाना साधा. हाल में ही कांग्रेस में शामिल हुए और यूपी की राजनीति का बड़ा नाम माने जाने वाले नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने अटाला में मुस्लिम वोटरों से “कांग्रेस की तरफ लौटने की गुजारिश की. जब से हमने कांग्रेस को वोट करना छोड़ दिया सांप्रदायिक ताकतें मजबूत हो गई हैं. देश में हमारी स्थिति बहुत खराब है.”
बहरहाल, अहमद का चुनाव प्रचार भाजपा के खिलाफ कम बल्कि समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव के खिलाफ ज्यादा है. ऐसा प्रतीत होता है अहमद के परिवार ने यादव परिवार के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया है और फूलपुर का चुनाव सपा की उम्मीदों पर पानी फेरने का अवसर है. मर्डर, हत्या की कोशिश, अत्याचार और धमकाने के लगभग 40 से अधिक मामले अतीक पर चल रहे हैं, बावजूद इसके वे मुस्लिम वोटरों के बीच लोकप्रिय हैं.
इलाहाबाद कृषि संस्थान के अध्यापकों के साथ बदतमीजी की शिकायत पर उन्हें 2016 में जेल भेजा गया था. उनकी पत्नी शाइस्ता परवीन ने बुधवार को वोटरों से अपील की, इस उपचुनाव में सपा को हराकर अखिलेश यादव के अंहकार को कुचल दीजिए. परवीन ने बेहद भावनात्मक भाषण दिया जिसे जनता ने भी बेहद शांति से सुना.
उन्होंने कहा, “उन्हें (अतीक अहमद) अखिलेश यादव की सरकार ने जेल भेजा, अखिलेश सरकार के दौरान ही पुराने केसों में जमानत रद्द हुई, हथियारों के लाइसेंस रद्द किए गए.” परिवार के अनुसार, अहमद ने “अपनी कौम के लिए समाजवादियों को सबकुछ दे दिया,” लेकिन बदले में अंहकारी अखिलेश ने उनका साथ छोड़ दिया.
अतीक के बेटे उमर ने आत्मविश्वास से भरा उग्र भाषण दिया. उन्होंने कहा, “सपा के नेता भाजपा का डर दिखा रहे हैं. वे भाजपा को हराने का दावा कर रहे हैं लेकिन हकीकत यह है कि वे हमारे अपने ही नेता अतीक अहमद से हारने वाले हैं.” भाजपा और सेकुलर ताकतों पर हमला बोलते हुए, उन्होंने कहा, “एक सांप्रदायिक नेता एक सेकुलर माफिया से बेहतर है.”
ये भावनात्मक संबोधन वोट में तब्दील होंगे या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन इतना तय है यह सपा के समीकरणों को खराब कर सकता है. अटाला, मऊ आइमा, गद्दोपुर, नबावगंज- जैसे क्षेत्रों में अहमद की अच्छी पकड़ है. ये मुस्लिम बहुल इलाके हैं.
अटाला निवासी फैज़ गौहर, 26, ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “हर नेता के खिलाफ आरोप और मुकदमे हैं. अतीक अहमद हमारे कौम का प्रतिनिधित्व करने वाले एकमात्र नेता हैं.” ज़ैद अंसारी नाम के एक अन्य समर्थक ने कहा, “मुस्लिम वोट बैंक बंटेगा. और इसका श्रेय भाजपा को जाता है- क्योंकि फायदा भाजपा को ही होगा.” अहमद के समर्थक उऩ्हें “रहनुमा” के रूप में देखते हैं. यह मानते हुए भी कि मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगने से भाजपा को फायदा पहुंचेगा, लोगों का नारा है “पहले भाई, फिर सपाई.”
Also Read
-
Two years on, ‘peace’ in Gaza is at the price of dignity and freedom
-
4 ml of poison, four times a day: Inside the Coldrif tragedy that claimed 17 children
-
Delhi shut its thermal plants, but chokes from neighbouring ones
-
Hafta x South Central feat. Josy Joseph: A crossover episode on the future of media
-
Encroachment menace in Bengaluru locality leaves pavements unusable for pedestrians