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इरफ़ान… मीडिया की इस क्रूरता के लिए उसे माफ करना
इरफ़ान ख़ान हमारे दौर के कुछेक बेहद प्रतिभाशाली अभिनेताओं में से एक हैं. इरफ़ान ने इस दौर की कुछ बेहद असाधारण अभिनय से सजी फिल्में हमें दी हैं. एक अरसे से इरफान देश और विदेश के प्रशंसकों का मनोरंजन अपनी फिल्मों से करते आए हैं. लेकिन जब इरफ़ान खान को मीडिया के समर्थन और संवेदना की जरूरत थी तब उसने सिर्फ मनोरंजन और सनसनी का रास्ता चुना.
इरफान ने अपने ट्विटर हैंडल पर एक ट्वीट कर जानकारी दी कि वे किसी “दुर्लभ बीमारी” से पीड़ित हैं. बीते कुछ दिन उनके लिए दु:स्वप्न सरीखे रहे हैं. रेयर कहानियों में अभिनय की उनकी खोज अंतत: उनके सामने एक रेयर बीमारी ले आई है. उन्होंने यह भी लिखा कि उनके स्वास्थ्य को लेकर कोई अटकलें न लगाई जाएं. वे खुद कुछ दिनों में इसकी पूरी जानकारी देंगे.
इस ट्वीट के बाद बॉलीवुड के कलाकारों की ओर से उनके जल्द स्वस्थ होने की कामना वाले संदेश दिया जाने लगा. लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण रहा कि इतने स्पष्ट संदेश के बावजूद भी भारतीय मीडिया का एक हिस्सा एक फिल्मी कलाकार के जीवन से जुड़ी एक दुखद घटना का रस लेने के लोभ से बच नहीं पाया. उसके लिए यह व्यवसायिक संभावनाओं का अवसर बन गया.
भारतीय मीडिया के ब्रेकिंग और एक्सक्लूसिव बनने की होड़ ने इरफान खान के दुर्लभ बीमारी को अपनी ही कल्पना में ब्रेन कैंसर बना दिया. यह खुराफात कैसे मीडिया को सुझा, यह अपने आप में हैरान करने वाला है. हिंदी की तमाम वेबसाइट्स जो हिट्स और यूवी-पीवी के खेल में उस्ताद हैं, उन्होंने अभिनेता के ब्रेन कैंसर की घोषणा कर दी.
जानकारों के मुताबिक मुंबई के पत्रकारों के वाट्सएप ग्रुप में कहीं से यह संदेश आया था कि इरफान खान को शायद ब्रेन कैंसर हुआ है. इस दावे की कोई पुष्टि नहीं की गई थी, इसके बावजूद यही व्हाट्सएप संदेश जंगल की आग की तरह फैल गया.
कुछ ख़बरिया चैनलों और वेबसाइटों ने इस संदेश की सत्यता प्रमाणित किए बेगैर धड़ल्ले इरफान को ब्रेन कैंसर होने की घोषणा कर दी. कुछ ने उन्हें मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में भर्ती करवा दिया. बाद में यह ख़बर ग़लत निकली.
हालांकि, बाद में न्यूज़ एक्स ने ख़बर हटा ली थी लेकिन डिजिटल मीडिया में जितनी तेजी से अफवाह फैलती है, उस तेजी से उसे वापस नहीं लिया जा सकता.
ज्यादातर वेबसइट्स की खबर बनाने की शैली में संवेदनशीलता बस इतनी ही बची कि उन्होंने कैप्शन अथवा हेडलाइन में प्रश्नवाचक चिन्ह लगा दिया. कइयों ने यह काम बाद में स्टोरी अपडेट करके किया. डिजिटल मीडिया की क्लिकबेट स्पर्धा में इरफान खान की अपील हवा हो गई. कुछ एक वेबसाइट तो इरफान के डायगनोसिस तक की बातें लिखने लगे तो कोई किमोथेरेपी की बात करने लगा.
मामला यही नहीं रुका. विभिन्न मीडिया संस्थानों के सोशल मीडिया हैंडल से इरफान को टैग किया जाने लगा. टैगिंग का मूल मकसद अपनी तरफ ध्यान दिलाना था. महज कुछ हिट पाने की गरज में मीडिया संस्थानों ने इरफान के लिए वह माध्यम भी नहीं छोड़ा जहां इरफान से अटकलें न लगाने की अपील की थी.
सोशल मीडिया में भी इरफान के लिए दुआएं मांगीं जाने लगीं.
मीडिया विश्लेषक और ‘मंडी में मीडिया’ के लेखक विनीत कुमार कहते हैं, “यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है. विनीत इसे न्यूज़ मीडिया बिजनेस के लिहाज से समझाते हैं, यहां खबर का प्रोडक्शन कॉस्ट नहीं है. कोई सोर्स नहीं है. मतलब कि एक न्यूनतम लागत में बनाई जा रही ख़बर से मीडिया रेवेन्यू जेनेरेट करने की कोशिश कर रहा है.”
उनके मुताबिक इससे दो स्तरों पर नुकसान होने की संभावना है. पहला, मीडिया ने इरफान को मौत के नजदीक पहुंचा दिया है जिससे पाठक कथित तौर पर मानसिक रूप से इरफान की मौत के लिए तैयार हो जाएंगें. और दूसरा आर्थिक हो सकता है. चंद क्लिक्स के चक्कर में बनाई गई ख़बर से इरफान को लाखों करोड़ों का नुकसान हो सकता है. उनकी कई फिल्में जो आने वाली होंगी, हो सकता है कि प्रोड्युसर पैसे ही न लगाए.
यह सच है कि इरफान खान पब्लिक फिगर हैं. उनसे जुड़ी बातें उनके फैन्स के लिए महत्वपूर्ण हैं. लेकिन बतौर मीडिया उनकी अपील का सम्मान भी जरूरी है. विशेषकर तब जब उन्हें सहारे, हिम्मत और सहानुभूति की जरूरत है.
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