Newslaundry Hindi
सीज़फायर: जम्मू और कश्मीर की रक्तरंजित सीमाएं
भारत और पाकिस्तान के बीच राजनीतिक दांवपेंच और तनातनी के नतीजतन सीमा पर हर रोज़ गोलाबारी होती है. लेकिन एक समुदाय जिस पर कोई बात नहीं होती, वह हैं सीमा के आस-पास रहने वाले आम लोग- जिन्हें गोलीबारी से सबसे ज्यादा जानमाल का नुकसान हो रहा है.
हालांकि, रोज़ाना की गोलाबारी के बाद उन्हें ही अपना बिखरा घरौंदा समेटना पड़ता है. सैन्य और राजनीतिक वर्ग इसे “कोलैटरल डैमेज” कह कर खारिज करना चाहता है. इसके साथ ही मीडिया अपना फर्ज इन मुद्दों से नज़र फेरकर पूरा करता है.
मुंहतोड़ जबाव जिसका प्राइम टाइम टीवी पर दोनों ही तरफ की आर्मी की ओर से दावा किया जाता है, वे दरअसल सीमा पर गोलीबारी से प्रभावित होने वाले आम लोगों की समस्या की गंभीरता को कम कर देते हैं.
सीमा पर गोलीबारी न नई बात है, न ही निकट भविष्य में इसके रुकने की कोई संभावना दिखती है. बदलती है सिर्फ मामले की गंभीरता और इस्लामाबाद और नई दिल्ली में उसका असर. मोर्टार और गोले दागे जाना आम हो गया है. पाकिस्तान की ओर से एकतरफा सीज़फायर का उल्लंघन, जिसका जबाव भारत द्वारा 2003 में दिया गया था, तब से यह उल्लंघन जारी है. 2017 में इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान की ओर से 100 से भी ज्यादा सीज़फायर उल्लंघन किए गए.
लेकिन हम इस शोरगुल में हम यह नहीं सुन पाते कि आसपास के गांवों पर, उनकी संपत्ति, उनके परिवार और मवेशियों पर इन उल्लंघनों का क्या प्रभाव पड़ता है.
दुनिया भर की सीमाओं में सबसे ज्यादा तनावपूर्ण और टकराव वाली सीमा जम्मू-कश्मीर की है. यह भौगोलिक-राजनीतिक दृष्टिकोण से बेहद अहम मानी जाती है. भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए यह गले की हड्डी जैसी स्थिति है. और जब कभी भी सीमा पार से गोलीबारी होती है, यह चौतरफा विमर्श का मुद्दा बन जाता है.
बुद्धिजीवियों, नीति निर्माताओं और मीडिया के बीच इसे लेकर तरह-तरह की बहसें शुरू हो जाती है. हालांकि, इसके बाद भी अबतक न तो सीमा पर रहने वालों की तकलीफों का कोई हल निकला है न ही तनातनी में घिरे लोग विमर्श का केंद्र बन सके हैं.
सीज़फायर उल्लंघनों की दिनोंदिन बढ़ती संख्या के पीछे हैं वे इंसानी चेहरे- जिन्होंने न ये परिस्थितियां चुनी, न ही वे इस लड़ाई का हिस्सा है. ऐसे ही एक गांव की यात्रा मुझे लोगों के भीतर मृत्यु और नुकसान के भय की भयावह सच्चाई से रूबरू कराता है. सेना की ओर से सीमा पर हथियारों का जखीरा जमा करना इन गांववालों के लिए न तो गौरव का विषय है न ही यह उन्हें सुरक्षा का बोध करवाता है.
इसके बिल्कुल विपरीत, न्यूज़रूम में जिस तरह के ज़हर उगले जाते हैं, ये नियमित हथियार से दूर बैठे लोगों के लिए किसी दुस्वपन की तरह होगा.
विजयपुर जिले का नांगा गांव एक ऐसा ही गांव है. यह जिला जम्मू से करीब 50 किलोमीटर दूर है. इस गांव में रहने वाले ज्यादातर सिख हैं (डोगरी बोलने वाले हिंदुओं की भी थोड़ी जनसंख्या है) जो 1947 के बाद पश्चिमी पाकिस्तान की तरफ चले गए. और यह जमीन उन्हें तब की सरकार से मिली थी.
मकान के लिए ज़मीन के अलावा, उन्हें खेती के लिए उपजाऊ जमीन भी दी गई. यह उन परिवारों के कमाने का एकमात्र स्रोत बना. नौकरी के अवसरों के लिहाज से, भारतीय सेना सबसे ज्यादा नौकरियां देने में सक्षम है.
सीमा पर गोलीबारी का नतीजा होता है कि सीमा से सटे घरों पर गोलियों के निशान पड़ जाते हैं. इसकी वजह से कई लोग अपने घरों की मरम्मत करवाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते. गांव का गुरुद्वारा, गोलीबारी के दौरान जो लोगों का ठिकाना बनता है, हाल में वह भी निशाने पर आ गया है.
सिर्फ मोर्टार या गोलीबारी ही गांव वालों को प्रभावित नहीं करती. जब भी दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता है, गांव के साथ बहने वाली नहर जो लाइन ऑफ कंट्रोल के पास से बहती है, उसमें बिजली का करंट छोड़ दिया जाता है. ताकि सीमा पार से देश में घुसपैठ रोका जा सके. इससे गांव के लोग पानी से भी वंचित हो जाते हैं.
सीमा से सटे नांगा गांव की रहने वाली बीर कौर अपने रोज़ाना के संघर्ष को संक्षेप में बताती हैं, “हमलोग सरकार के शुक्रगुजार हैं जिन्होंने हमें ज़मीन और पहचान दी है, लेकिन उन्होंने हमें विस्थापित कहां किया. एक नरक से दूसरे नरक में. हमने अपनी पुस्तैनी घरों को पाकिस्तान में छोड़ दिया, जहां हमारी जान खतरे में थी, लेकिन यह कौन सी सुरक्षित जगह है- सीमा से महज एक किलोमीटर दूर.”
22 सितंबर, 2017 को हुए गोलीबारी में बीर कौर का क्षतिग्रस्त मकान.
नांगा गांव निवासी प्रशांत का घर
Also Read
-
TV Newsance 315: Amit Shah reveals why PM Modi is great. Truly non-biological?
-
Shops shut, at least 50 lose jobs, but cops silent on Indore BJP leader’s ultimatum on Muslim workers
-
Vijay’s Karur rally tragedy leaves at least 39 dead, TVK functionaries booked
-
इथेनॉल विवाद: गडकरी के बेटों ने की कमाई या बीजेपी की अंदरूनी जंग?
-
South Central 45: Karnataka’s socio-educational survey, producers vs govt on Rs 200 movie ticket cap