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प्रशांत भूषण: मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ जांच के लिए पर्याप्त आधार है

सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के इर्द-गिर्द विवाद गहराता जा रहा है. मंगलवार को वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने मुख्य न्यायाधीश मिश्रा के खिलाफ चार गंभीर आरोपों की सूची के साथ सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठ जजों को एक शिकायत पत्र सौंपा. उन्होंने मुख्य न्यायाधीश के ऊपर जो चार आरोप लगाएं, जिसमें से तीन प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट (मेडिकल कॉलेज) से जुड़ी हुई हैं. चौथी शिकायत उड़ीसा में अवैध तरीके से ज़मीन हासिल करने को लेकर है.

भूषण ने पत्रकारों से कहा, “पहला आरोप प्रसाद मेडिकल कॉलेज (पीआइएमएस) में उनकी भूमिका को लेकर है, जहां प्रथम दृष्ट्या साजिश में उनकी संलिप्तता की जांच जरूरी लगती है.”

पीआइएमएस उन 46 कॉलेजों में से एक था जिसमें नए दाखिले पर रोक लगा दी गई थी. ऐसा इसलिए क्योंकि ये कॉलेज मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआइ) के मानकों के अनुरूप नहीं थे. उनके बैंक खाते भी संशय के घेरे में हैं. सीबीआई ने एक स्वतंत्र जांच में पाया कि प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट ने एमसीआई से प्रतिबंध हटवाने के लिए कथित बिचौलियों की मदद ली. सितंबर 2017 में, सीबीआई ने हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज आइएम कुद्दूसी, ट्रस्ट के दो प्रोमोटर- बीपी यादव और पलाश यादव, कथित बिचौलिए विश्वनाथ अग्रवाल और दो अन्य को गिरफ्तार किया था.

भूषण ने जो प्रेस रिलीज जारी की उसमें कॉलेज के पदाधिकारी बीपी यादव, बिचौलिए विश्वनाथ अग्रवाल और जज कुद्दूसी की बातचीत की ट्रांसक्रिप्ट भी शामिल है. इस बातचीत में तीनों कोर्ट का फैसला अपने पक्ष में देने को लेकर पैसे के लेनदेन की बात कर रहे हैं.

“प्रथमदृष्ट्या तीन तरह के सुबूत हैं- पहला कि कितने जटिल तरीके से केस को आगे बढ़ाया गया. पहले सुप्रीम कोर्ट से खारिज करवा कर इसे हाईकोर्ट में रिट पीटिशन दायर करने को कहा गया,” भूषण ने प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में मीडिया को संबोधित करते हुए कहा. उन्होंने आगे कहा, “हाई कोर्ट ने मेडिकल कॉलेज के पक्ष में फैसला दिया, जिसमें सीबीआई का दावा है कि हाईकोर्ट के जज को एक करोड़ रूपए दिए गए.”

हालांकि प्रशांत भूषण ने यह साफ कहा कि इस मामले में चीफ जस्टिस द्वारा भ्रष्टाचार करने के कोई स्पष्ट सबूत नहीं है लेकिन उपलब्ध सबूत और परिस्थितियां इसकी स्वतंत्र ईकाई से जांच की मांग करती हैं.

उनकी संस्था कैंपेन फॉर जुडीशियल एकाउंटविलिटी एंड रिफॉर्म द्वारा लगाए गए अन्य आरोप थे-

कि मुख्य न्यायाधिश ने रिट पीटिशन के निपटारे में अपनी न्यायिक व प्रशासकीय शक्तियां का मनमाना इस्तेमाल किया वो भी ऐसे मामलों में जिसमें कि जांच की गुंजाइश थी. ये ऐसे मामले थे जिसमें खुद मुख्य न्यायाधीश का नाम भी संदेह के दायरे में था. भूषण ने कहा, “ऐसा प्रतीत होता है कि 6 नवंबर को मेडिकल कॉलेज की सुनवाई संबंधी बेंच को बदलने का प्रशासकीय फैसला रजिस्ट्री से बैक डेट में तैयार करवा कर भेजा गया और चीफ जस्टिस ने मामले को खुद अपनी बेंच को अलॉट कर दिया. यह गड़बड़ी की ओर इशारा करता है.”

मिश्रा पर चौथा आरोप है कि वकील रहते हुए उन्होंने फर्जी हलफनामे के आधार पर ओडिशा में जमीन का अधिग्रहण किया. यह बात सामने आने पर उस जमीन का आवंटन 1985 में रद्द कर दिया गया. उसके बावजूद उन्होंने जमीन पर कब्जा बनाए रखा. अंतत: 2012 में उन्होंने जमीन छोड़ी- जब वे सुप्रीम कोर्ट के जज बने.

यह पूछे जाने पर कि क्या चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग चलाने के प्रयास करेंगे, उन्होंने कहा इसकी प्रक्रिया बहुत जटिल है और इसमें 100 सांसदों की सहमति आदि जुटानी पड़ती है. यह काम सरकार का है. मैंने अपनी शिकायत सुप्रीम कोर्ट के उन पांच वरिष्ठतम जजों के सामने रखी है जो चीफ जस्टिस के बाद क्रम में वरीयता पर आते हैं.

दिलचस्प है कि प्रशांत भूषण ने जिन पांच जजों को अपनी शिकायत भेजी है उनमें जस्टिस जे चेलामेश्वर, रंजन गोगोई, मदन बी लोकुर, कुरियन जोसेफ और एके सीकरी शामिल हैं. इन पांच में से चार जज वही हैं जिन्होंने बीते शुक्रवार को चीफ जस्टिस के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपनी नाराजगी दर्ज करवाई थी.

क्या आप मुख्य न्यायाधीश के इस्तीफे की मांग करेंगे, इस सवाल पर प्रशांत भूषण ने कहा, “जब देश के वरिष्ठतम जजों ने मुख्य न्यायाधीश में अविश्वास जताया है और उनकी प्रशासकीय भूमिका और क्षमता पर सवाल उठाया है, उनकी कार्यप्रणाली को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है. ऐसी परिस्थिति में मुख्य न्यायाधीश को इस्तीफा दे देना चाहिए.”