Newslaundry Hindi
अगर कला समाज का आईना है तो तैयार रहिये, खतरा सामने है
क्या सच में साहित्य और कला समाज का आईना होते हैं? अगर हां तो सचेत हो जाने की जरूरत है. अब जो खतरे हैं वह सास-बहु के झगड़े नहीं बल्कि विश्वस्तरीय राजनीति है.
इसको समझने के लिए पहले मनोरंजन क्षेत्र में बदलते ट्रेंड पर बात करनी होगी.
हाल तक सास-बहु और बिग बॉस जैसे मनोरंजन करने वाले धारावाहिक ही छाये रहते थे पर पिछले कुछ सालों में भारतीय समुदाय में एक बहुत बड़ा तबका वजूद में आया है जो मनोरंजन के लिए भी ऐसे विषय तलाश करता है जिसमें किफायती ज्ञान परोसा जा रहा है.
ऐसे पाठकों के ज्ञान, समझ और मनोरंजन को ध्यान में रखते हुए नेटफ्लिक्स, अमेज़न वीडियो, एचबीओ जैसे बहुत सारे ऐसे ब्रांड हैं जो एकदम नए-नए विषय लेकर आ रहे हैं. ये कम्पनियां उस समुदाय के लिए मनोरंजन तैयार करती हैं, जिनकी सजगता व्यापक है.
यहां से मनोरंजन, कला और समाज का आईना वाली कहानी में ट्विस्ट आता है. ये चैनल ऐसा सत्य दिखा रहे हैं जो आप अगर एक बार सोच लें कि यह सही हो सकता है तो आपके पैरों के नीचे की ज़मीन खिसक जाए.
नेटफ्लिक्स के ऐसे ही एक हिट कार्यक्रम ‘हाउस ऑफ़ कार्ड्स’ को देखते वक़्त आप भूल जाते हैं कि आप धारावाहिक देख रहे हैं. बल्कि यकीन हो जाता है कि सचमुच 2016 के अमेरिकी चुनाव के भीतरी राज आपके सामने परत-दर-परत खुल रहे हैं. कैसे ट्विटर और नागरिक टैग कोड (भारत में आधार कार्ड) का दुरूपयोग करके अंडरवुड-दम्पत्ति अमेरिका के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति बनते हैं.
कहानी में ये खुद ब खुद बयां होता है कि इराक और इज़राइल अमेरिका की घरेलू राजनीति में प्यादे हैं या उससे भी छोटे मोहरे मात्र हैं. कहानी साबित करती है कि कैसे रूस और अमेरिका अपनी-अपनी जनता को एक दूसरे से लड़ने का ढोंग करके खुश रखते हैं.
यह सबकुछ किसी रोमांचित झूठ की तरह दर्शक को सच लगता है और कहानीकार मनोरंजन परोसते हुए सभी जंजाल से मुक्त रहता है. रोमांच और आश्चर्य में जब विश्व दर्शन घुल रहा होता है तो मनोरंजन अपने चरम पर आ पसरता है.
नील फर्ग्यूसन की किताब ‘वर्चुअल हिस्ट्री’ से प्रेरित इसी तरह का एक धारावाहिक ‘द मैन इन द हाई कासल’ है. इसमें कल्पना की गयी है कि दूसरे विश्व युद्ध में जर्मनी और जापान जीत चुके हैं. और उन्होंने पूरी दुनिया को आधा-आधा बांट लिया है. ‘द ग्रेट नाज़ी रीख’ (रीख जर्मन में राईट को कहते हैं) जिसमें धर्म, नस्ल, रंग और लिंग भेद किसी दोजख की हक़ीकत की तरह महसूस हो उठते हैं.
कहानी की भूमिका अमेरिकी ही है लेकिन कल्पना इतनी जीवंत है कि दुनिया के किसी भी नागरिक के हिटलर का नाम सुनते ही पसीने छूट जाएं. नाज़ी रीख का जिक्र आते ही, यूं समझिये हक़ीकत और कहानी के बीच की अकल्पनीय महीन परत भी ध्वस्त हो जाती है.
इन सारे उदाहरणों के साथ एक तथ्य भी जान लीजिये. द कारवां मैगज़ीन का जनवरी 2018 का 8वां वार्षिक संस्करण दुनिया भर में चल रहे एक ऐसे ट्रेंड को उजागर करता है, जो भयावह है. कारवां की स्टोरी से मिलती-जुलती बातें होती रही हैं पर जो लोग भी ऐसा कहा करते थे उन्हें शक्की और अड़ियल करार दिया जाता था.
इस संस्करण की कवर स्टोरी का शीर्षक है ‘ऑल्ट रीख.’ इसने बताया है कि दक्षिणपंथी ताकतों नें किस तरह 2014 के भारतीय चुनाव और उसके बाद हुए लगभग सभी मुख्य चुनाव जैसे ग्रीक, फ़्रांस, नीदरलैंड, कनाडा, ब्रिटेन, जर्मनी और अमेरिका के चुनावों की मदद से ‘श्वेत और ईसाई’ एवं ‘आर्य और हिन्दू’ शक्तियों ने एकजुट होकर लोकतंत्र को अपना गुलाम बना लिया है.
वर्चुअल हिस्ट्री अब रियल वर्तमान बन रही है. ये घटनाएं मनोरंजन तो कर रहीं होंगी लेकिन तब क्या होगा जब पता चले कि जो भूतिया फिल्म आप देख रहे हैं वो फिल्म नहीं हक़ीकत है और हज़ारों साल के संघर्ष से कमाया गया आपका लोकतंत्र ही उसका शिकार हो गया?
(सौतुक डॉट कॉम से साभार)
Also Read
-
2 convoys, narrow road, a ‘murder’: Bihar’s politics of muscle and fear is back in focus
-
Argument over seats to hate campaign: The story behind the Mumbai Press Club row
-
Delhi AQI ‘fraud’: Water sprinklers cleaning the data, not the air?
-
How a $20 million yacht for Tina Ambani became a case study in ‘corporate sleight’
-
TV Newsance 319: Bihar dramebaazi and Yamuna PR wash