Newslaundry Hindi
नक्कारखाने में ग़ुम हो गई हादिया की आवाज़!
तीन बजने को है, भारत के सुप्रीम कोर्ट का कमरा नंबर एक हादिया मामले की सुनवाई का गवाह बनने को तैयार है. इस मामले को मुख्यधारा के कुछ समाचार चैनलों ने कथित ‘लव जिहाद’ के रूप में पेश किया.
कोर्ट की कार्यवाही शुरू होने के पहले, वहां दर्शक दीर्घा में मौजूद पत्रकार मुकदमे के निहितार्थ और संभावित नतीजे पर चर्चा कर रहे हैं. एक महिला रिपोर्टर ने बड़े गंभीर स्वर में कहा कि राज्य इसमें क्यों हस्तक्षेप कर रहा है, यह समझना बहुत आसान है. चुंकि हादिया एक महिला है और अपनी मर्जी से तय नहीं कर सकती कि उसे क्या चाहिए. दूसरे ने कहा, “यह साल की ‘प्रेम कथा’ है और कोर्ट को मुगल-ए-आजम का चर्चित गाना ए मोहब्बत जिंदाबाद गुनगुना चाहिए, अगर हादिया को अपने पति के पास वापस भेज दिया जाता है.”
कुछ समय बाद, एक दूसरा रिपोर्टर पूरे मामले पर मजाक करते हुए कहता है, “मूल तौर पर मुसलमानों की हमारी गायों और महिलाओं तक पहुंच नहीं होनी चाहिए.” यहां ‘हमारे’ का मतलब है बहुसंख्यक हिंदू आबादी से है.
इस सबके दौरान ही हादिया ने कोर्ट में प्रवेश किया और बातचीत रुक गई, सारी नजरें उसकी ओर मुड़ गई. चटक लाल रंग के स्कार्फ से अपना सिर ढंके हादिया पुलिस वालों की निगरानी में कोर्ट रूम में दाखिल हुई. 30 अक्टूबर को सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि हादिया को खुले कोर्ट में अपनी बात रखने का अवसर दिया जाए.
दो घंटे से ज्यादा की कोर्ट की कार्यवाही में हादिया बमुश्किल 30 मिनट बोलीं- वो भी जजों के बीच करीब एक घंटे, 45 मिनट तक उससे बातचीत को लेकर चली उहापोह और झिझक के बाद.
बहलावा और घर वापसी की दलील
कार्यवाही की शुरुआत मुख्य न्यायाधिश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ ने प्रतिपक्ष के वकील की दलील सुनी.
हादिया के पिता केएम अशोकन की तरफ से वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने बेंच से खुले कोर्ट में सुनवाई के फैसले पर पुनर्विचार की अपील की.
दीवान ने जिरह किया कि बेहतर होगा अगर जजों के चैंबर में कैमरों की निगरानी के बीच सुनवाई की जाए, इससे उन ‘ताकतों’ को दूर रखने में आसानी होगी जो हादिया के निर्णयों को प्रभावित कर रहे हैं. उन्होंने केरल में चल रही एक संगठित व्यवस्था का जिक्र करते हुए कहा कि वे मासूमों को बर्गलाते हैं. यह केरल में सांप्रदायिक माहौल बनाने की कोशिश है. उन्होंने इंडिया टुडे चैनल द्वारा कराए गए एक स्टिंग ऑपरेशन का हवाला देते हुए कहा कि कैसे सांस्कृतिक संगठन धर्म परिवर्तन का अड्डा बन रहे हैं. बंद दरवाजे के भीतर हादिया की कार्यवाही ज्यादा बेहतर होगी, यह तर्क पेश किया गया.
एनआईए के तरफ से एडिशनल सोलिसिटर जनरल मनिंदर सिंह ने दीवान के तर्क को सिरे से खारिज कर दिया और सलाह दिया कि बेंच एक ‘मनोवैज्ञानिक अपहरण’ के मुकदमे की सुनवाई कर रहा है.
हादिया को नियोजित तरीके से, बहकाया गया, उसका ब्रेनवाश किया गया, फिर उसे रूढ़िवादी बनाया गया जिसे ठीक कर पाना मुश्किल है. “वो कहेगी कि उसने बिना किसी दबाव के धर्म परिवर्तन किया है क्योंकि उसके दिमाग को पूरी तरह से भर दिया गया है,” उन्होंने तर्क दिया. साथ ही यह भी जोड़ा कि इसी तरह के लगभग 11 मामले केरल पुलिस ने एनआईए के संज्ञान में लाया है.
इन तर्कों ने बेंच के लिए उलझन पैदा कर दी- कोर्ट एक “बर्गलाए” व्यक्ति से बातचीत को लेकर सहमत कैसे होगा?
सिंह ने अपना बयान जारी रखते हुए कहा कि एनआईए के पास हादिया को बर्गलाए जाने के पुख्ता सुबूत हैं. कोर्ट को हादिया से बातचीत करने के पहले उन्हें देखना चाहिए.
अगले एक घंटे या ज्यादा समय तक जजों का असमंजस बना रहा की उन्हें हादिया से संवाद करने के पहले एनआईए के सुबूतों को देखना चाहिए या नहीं.
हादिया के पति शफिन जहां के तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, ने कोर्ट से अपील किया कि वे हादिया से बात करें क्योंकि वो उनके आदेश पर ही केरल से यहां तक आई है.
इस कहासुनी में मामला स्टॉकहोम सिंड्रोम तक पहुंच गया जिसके मुताबिक एक स्वस्थ मष्तिष्क का वयस्क अपने को बंधक बनाने वाले के खिलाफ अपील कर सकता है. बर्गलाए हुए व्यक्ति की डी प्रोग्रामिंग यानी घर वापसी भी हो सकती है और साथ ही यह भी कि एक व्यक्ति की स्वायत्तता में घुसने की कोर्ट की सीमा क्या है. इस पूरे दौरान हादिया कोर्ट में अपनी बात कहने का इंतजार करती रही.
वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने स्त्री विमर्श के सवाल खड़े किए. उन्होंने कहा “हादिया अगर मर्द होती तो उसके साथ इस तरह का बर्ताव नहीं होता.” बेंच ने उनके इस तर्क को खारिज कर दिया कि- “यह कैसे लैंगिक न्याय का विषय है?” मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा.
बीच बहस के दौरान केरल महिला आयोग की तरफ से वकील पीवी दिनेश ने बेंच को चेताया कि हादिया की मानसिक स्थिति के बारे में उसके सामने बात करना असंवेदनशील है, वो अंग्रेजी समझती है, उन्होंने कहा. इसने बेंच को हादिया को सुनने के लिए विवश कर दिया- पूरे दिन की कवायद का यही मकसद था. वरिष्ठ वकील वीवी गिरी ने अंग्रेजी से मलयालम अनुवादक की भूमिका अदा की.
मैं आजादी चाहती हूं
बेंच ने हादिया से न तो इस्लाम में धर्म परिवर्तन, ना मुस्लिम युवक से शादी करने और ना ही उसकी सहमति से जुड़े सवाल पूछे. इसके बजाय उनके सवाल बेहद बचकाने विषयों पर रहे मसलन उसके शौक क्या हैं, शिक्षा और भविष्य को लेकर उम्मीदें क्या हैं आदि. जबाव में हादिया कहती रही कि वो अपनी मौजूदा आस्था के प्रति निष्ठावान बनी रहना चाहती है और अपनी खोई हुई आजादी वापस चाहती है.
जब मुख्य न्यायाधीश ने उससे पूछा क्या वो अपनी पढ़ाई राज्य के खर्चे पर जारी रखना चाहती हैं, उन्होंने कहा कि उनके पति उनका खर्च उठाने के काबिल हैं. वे बोलती गई कि वो अपने पति को अपना स्थानीय अभिभावक बनाना चाहती हैं, वे सलेम स्थित शिवराज होमियोपैथी मेडिकल कॉलेज वापस जाना चाहती हैं.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस पर कहा कि पति, पत्नी का अभिभावक नहीं हो सकता. पत्नी का जीवन और समाज में अपनी पहचान है. बेंच ने तय किया कि 11 महीने तक हादिया के सर्जन का इंटर्नशिप जारी रहने तक कॉलेज के डीन हादिया के स्थानीय संरक्षक रहेंगे. किसी भी तरह की दिक्कत होने पर वे कोर्ट का रुख कर सकते हैं.
कोर्ट ने अंतत: हादिया को उनके मां-बाप की निगरानी से मुक्त कर दिया और उन्हें वापस पढ़ाई खत्म करने की इजाजत भी दे दी. उनकी शादी, मुस्लिम धर्म में परिवर्तन और बर्गलाने का सवाल, यह सब विचाराधीन रहेगा. एनआईए मामले की जांच जारी रखेगी.
हादिया ने बेंच से संवाद के दौरान कहा कि वे अपने पति से बातचीत करना चाहती है, उसके साथ रहने की इच्छा भी जाहिर की. कोर्ट के आखिरी आदेश में इस इच्छा का कोई जिक्र नहीं आया.
हादिया बोली लेकिन क्या किसी ने उन्हें सुना?
इलस्ट्रेशन: अनीश दाओलागुपु
Also Read
-
How Muslims struggle to buy property in Gujarat
-
A flurry of new voters? The curious case of Kamthi, where the Maha BJP chief won
-
I&B proposes to amend TV rating rules, invite more players besides BARC
-
Scapegoat vs systemic change: Why governments can’t just blame a top cop after a crisis
-
Delhi’s war on old cars: Great for headlines, not so much for anything else