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आठ साल बासी टाइम्स नाउ का ‘एक्सक्लूसिव’

इस हफ्ते की शुरुआत में सबकुछ आम दिनों जैसा ही था. टाइम्स नाउ और रिपब्लिक टीवी आपस में अपने “एक्सक्लूसिव” को लेकर गुत्थम-गुत्था थे. दोनों चैनल बुलन्द आवाज में अपने “एक्सक्लूसिव” यानी खुलासे के साथ दर्शकों को बता रहे थे कि कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी ने 2004 में तहलका डॉट कॉम की फाइनेंसर कम्पनी फर्स्ट ग्लोबल के खिलाफ चल रहे मामलों को हल करने के लिए उस समय के यूपीए के वित्तमंत्री पी चिदंबरम को पत्र लिखा था.

6 नवंबर को टाइम्स नाउ यह दावा करते हुए अपने कार्यक्रम चला रहा था: “यह टाइम्स नाउ की एक्सक्लूसिव खबर है.” टाइम्स नाउ ने सोनिया गांधी द्वारा 2004 में लिखा एक पत्र लीक कर दिया है जो उन्होंने तत्कालीन वित्तमंत्री चिदंबरम को लिखा था. यह पत्र आपके चैनल के पास मौजूद है. यह टाइम्स नाउ की एक्सक्लूसिव ख़बर है. यह पहली बार था जब सोनिया गांधी ने एक निजी कंपनी फर्स्ट ग्लोबल के लिए पैरवी की. सोनिया गांधी ने 2004 के उस पत्र में फर्स्ट ग्लोबल को विभिन्न एजेंसियों द्वारा परेशान करने की बात लिखी थी.

हालांकि टाइम्स नाउ ने शुरू से अंत तक तहलका के पूर्व संपादक तरुण तेजपाल की तस्वीरों को फ्लैश किया और दावा किया कि तेजपाल और कांग्रेस पार्टी के बीच आपसी गठजोड़ था. यह पत्र तेजपाल का नहीं था. यह पत्र तहलका के निवेशक फर्स्ट ग्लोबल के शंकर शर्मा और देविना मेहरा के थे जो उन्होंने उस दौर में हर किसी को भेजा था. यह पत्र राष्ट्रपति, तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और अन्य महत्वपूर्ण लोगों को भी भेजा गया था.

टाइम्स नाउ पर नविका कुमार दावा करती हैं: “यह सही है. सोनिया गांधी द्वारा चिदंबरम को लिखा गया पत्र मेरे हाथ में है. यह पत्र इस तरह के अनगिनत मामलों को सामने लाता है जिसमें उस समय की यूपीए सरकार ने आयकर विभाग में लंबित मुद्दों पर निर्देश जारी किए थे. नविका जिस कैन ऑफ वर्म (बिलबिलाते असंख्य कीड़ों से भरा डिब्बा) को आज खोलने का दावा कर रही हैं वह डब्बा आज से लगभग एक दशक पहले खोला जा चुके है. अब तो वह सड़कर खाद बन चुका है, उसपर नए दौर के समाचार प्लेटफॉर्म पत्रकारिता के बुनियादी सिद्धांतों की तिलांजलि देकर पुष्पित-पल्लवित हो रहे हैं.

देर शाम के अपने कार्यक्रम में टाइम्स नाउ ने तरुण तेजपाल का मनमोहन सिंह को लिखा पत्र भी दिखाया. रिपब्लिक टीवी ने भी ऐसा ही किया था.

यह पत्र कितना “एक्सक्लूसिव” हो सकता है? यह पत्र मेरी किताब “प्रिज्म मी ए लाई, टैल मी अ ट्रुथ – तहलका एज़ मेटाफॉर” में 2009 में प्रकाशित हुआ था. इसके अंश इस तरह हैं:

जाहिर है, अरुण जेटली और सोली सोराबजी दोनों जॉर्ज फर्नांडिज़ को पसंद करते थे और उनके साथ दोनों के अच्छे रिश्ते थे. जेटली और सोराबजी का मानना ​​था कि फर्नांडीस को गलत तरीके से फंसाया गया है. यह सच्चाई कि फर्नांडीस को रक्षा मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और संसद का कामकाज बाधित रहा, दोनों के मुताबिक न्याय के साथ विश्वासघात था. जॉर्ज फर्नांडीस की ईमानदारी को साबित करने वाले सभी संदर्भों को हटाने से तहलका की विश्वसनीयता को नुकसान हुआ. मेरा आकलन है कि यह एक कमजोर पत्रकारीय निर्णय था ना कि कोई गहरी राजनीतिक साजिश. इस तरह की प्रवृत्ति हम पत्रकारों के बीच एक आम समस्या है: अक्सर कहानी का मूल दृष्टिकोण हमारे ऊपर इतना हावी हो जाता है कि हमारे अवचेतन में यह अंतिम मकसद बनकर बैठ जाता है.

शंकर शर्मा ने जो पत्र सोनिया गांधी को लिखा था, वह वही पत्र था जो उन्होंने भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी समेत भाजपा के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार के अन्य मंत्रियों को भी लिखा था. अंतर केवल यह रहा कि सोनिया गांधी ने इस पत्र को अपने कवरिंग लेटर के साथ तत्कालीन वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम को आगे बढ़ा दिया. यह पत्र इस तरह था-

प्रिय श्री चिदम्बरम,

मैं इस पत्र के साथ फर्स्ट ग्लोबल के निदेशकों द्वारा लिखे पत्र की एक प्रति भेज रही हूं. निदेशकों ने वित्त मंत्रालय के तहत काम करने वाली कुछ एजेंसियों द्वारा उत्पीड़न किए जाने का आरोप लगाया है. मुझे यह बताया गया है कि इस मामले में उच्च स्तर पर विचार-विमर्श किया गया है और कुछ मुद्दों पर सुधारात्मक उपायों पर सहमति भी बनी है. मैं चाहती हूं कि इन मुद्दों को प्राथमिकता के आधार पर देखें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रार्थियों के साथ कुछ अनुचित और गलत न हो.

शुभकामनाओं के साथ

भवदीय

सोनिया गांधी

सोनिया गांधी का यही पत्र भाजपा द्वारा सबूत के रूप में कथित तौर पर दिखाया जा रहा है कि वेस्ट एंड के नाम पर जो भंडाफोड़ हुआ था उसमें कांग्रेस पार्टी का हाथ तहलका के साथ मिला हुआ था.

यह पत्र 25 सितम्बर, 2004 का है. दो साल बाद भी, शंकर और देविना निर्बाध रूप से विदेश यात्रा नहीं कर सकते है. उनके सामने जीवन-यापन की समस्या आ गई, क्योंकि उनकी कम्पनियां विदेश में थीं जहां उनकी अनुपस्थिति में सबकुछ रुक गया था. सितम्बर 2004 में, जब कांग्रेस की केंद्र में सरकार थी, आयकर विभाग ने उनके सभी व्यवसाय और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में जमा सभी जमानतों को जब्त कर लिया. प्रवर्तन निदेशालय ने छापे के दौरान जब्त की गई उनकी जमानत की अतिरिक्त राशि को भी नहीं लौटाया. उन्होंने उनके कम्पयूटर तक नहीं लौटाए, शंकर ने बताया.

हालांकि सरकार बदल गई थी. लेकिन जमीनी स्थितियां वही रही. उन्हें एक गलती का खुलासा करना था लेकिन इसके लिए उन्हें अब यह स्वीकार करना था कि वे खुद गलत थे. वे ऐसा कर नहीं सकते थे. अपने खुद के कृत्य को स्वीकार करना उनके लिए असंभव था.

आंकलन आदेश की समय सीमा तलाशी अभियान के बाद से दो साल थी. हालांकि शंकर और देविना को आकलन आदेश 25 सितम्बर, 2003 को मिल गया था. उसमें लिखा थाः कोई अघोषित आय, कोई अघोषित सम्पत्ति नहीं मिली, ना ही कोई अनुचित सामग्री मिली. इसके बाद भी नवम्बर 2005 तक, एक साल से ज्यादा समय के बाद तक भी शंकर शर्मा और उनकी पत्नी देविना मेहरा आयकर के अनगिनत मामलों से जूझते रहे.

(तहलका एज़ मेटाफर पुस्तक में शंकर शर्मा और देविना मेहरा से संबंधित पूरा चैप्टर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

आज, 13 साल बाद, शंकर शर्मा और देविना मेहरा सफलतापूर्वक लड़ते हुए अपने खिलाफ दर्ज ज्यादातर मामले जीत लिए हैं. यह बात उल्लेखनीय है कि उनके खिलाफ दर्ज एक भी मामले को वापस नहीं लिया गया. कुछ मामले अभी भी कम्पनी मामलात विभाग में लम्बित हैं. स्टॉक मार्केट घोटाले की जांच के लिए बनी भाजपा नेता प्रकाश मणि त्रिपाठी के नेतृत्व वाली संयुक्त संसदीय समिति ने फर्स्ट ग्लोबल को दोषमुक्त करार दिया. इसका मकसद यह जांचना था कि तत्कालीन एनडीए सरकार को बदनाम करने के लिए शेयर बाजार में जानबूझकर मंदी पैदा करने की साजिश रची गई थी. यह रिपोर्ट 19 दिसम्बर, 2002 को संसद में पेश की गई.उस समय भाजपा सत्ता में थी.

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कांग्रेस पार्टी ने उनकी मदद के लिए कुछ भी नहीं किया. हालांकि सोनिया गांधी ने अपने पत्र में इसके लिए लिखा भी था. क्या सचमुच में कांग्रेस पार्टी और तरुण तेजपाल में कुछ आपसी संबंध था? यह सम्भव है. अरुण जेटली भी यह मानते थे और उन्होंने एक साक्षात्कार में स्वीकार किया. साक्षात्कार के अंशः

जेटलीः मैं मानता हूं कि जितने भी खुलासे सामने आए उनमें कुछ सम्भवतः जनहित में थे. मुझे यह भी लगता है कि कुछ मामलों के पीछे उनका निश्चित राजनीतिक एजेण्डा था. उनके आपसी संबंध, सोनिया गांधी द्वारा उनको और उनकी फंडिंग कंपनी को दिया गया संरक्षण, जिस तरह से उन्होंने राहुल गांधी के साक्षात्कार पर समर्पण किया, जिस तरह से सोनिया गांधी ने उनकी फंडिंग कम्पनी को टैक्स से छूट दिलाने में मदद की.

सितम्बर 2005 में तहलका ने राहुल गांधी का एक इंटरव्यू प्रकाशित किया. इस इंटरव्यू पर कांग्रेस पार्टी ने कड़ी आपत्ति जाहिर की. कांग्रेस का कहना था कि राहुल गांधी यह मानकर तहलका संवाददाता से बातचीत कर रहे थे कि यह “अनौपचारिक” बातचीत थ. तहलका ने शुरउआत में इस कथन को खारिज किया और बार-बार दोहराया कि ‘इसमें कुछ भी अनौपचारिक नहीं था और यह एक औपचारिक साक्षात्कार था’. कुछ दिनों के बाद ही तहलका ने चौंकाते हुए अपने पिछले बयान से पल्ला झाड़ लिया और बयान जारी किया कि यह गलतफहमी थी जिसकी वजह से असावधानीवश गलती हुई. हमें इसके लिए उसे खेद है.

तहलका ने अपने ग्राउंडब्रेकिंग खुलासे ऑपरेशन वेस्ट एंड के दौरान कई और पत्रकारीय गलतियां की. कुछ अंशः

जरूरी तथ्यों को छोड़ दिया गया. जार्ज फर्नाडीस की ईमानदारी की गवाही देने वाला आरके जैन का बयान संपादित कर पूरी तरह से हटा दिया गया. तहलका ने रक्षा मंत्रालय में एक ईमानदार नौकरशाह मि. डूडानी से बातचीत को भी काट दिया. वह मैथ्यू सैमुअल से बुरी तरह नाराज़ हो गए थे, क्योंकि मैथ्यू ने उन्हें पैसे देने का प्रस्ताव किया था. डूडानी ने सैमुअल को धमकी दी थी कि यदि वे तुरन्त ही उनके घर से नहीं निकले तो वे सीबीआई को बुला लेंगे.

वेस्ट एंड टेप के असम्पादित अंश, जिसमें मैथ्यू सैमुअल ने डूडानी को रुपयों का पैकेट देने का प्रस्ताव किया:

डूडानीः नो, नो, नो, माफ कीजिएगा.

सैमुअलः ओके, ओके, मैं मापी चाहता हूं. शशि ने मुझे कहा था.

डूडानीः कृपया ऐसा कभी मत कीजिएगा. कभी नहीं. बिल्कुल नहीं.

सैमुअलः मैं माफी चाहता हूं.

डूडानीः मैं शशि को देखता हूं.

सैमुअलः शशि ने मुझसे कहा था.

डूडानीः नहीं, मैंने शशि को बता दिया था.

सैमुअलः शशि ने मुझसे कहा  था.

डूडानीः नहीं, मैंने शशि से कह दिया था.

सैमुअलः मैं माफी चाहता हूं. मैं वास्तव में माफी चाहता हूं.

डूडानीः मैं यह सब कभी नहीं करता. उसने सिर्फ इतना कहा था कि आप कुछ सलाह लेना चाहते हैं, मैंने कह दिया, ठीक है. मित्र होने के नाते मैं सलाह दे सकता हूं. लेकिन आप ऐसा करेंगे. माफ कीजिएगा!

सैमुअलः शशि ने मुझे कहा था.

डूडानीः मैं अभी शशि को फोन करता हूं.

सैमुअलः शशि, मैं मि. डूडानी के घर से फोन कर रहा हूं. तुमने मुझसे कहा था- मि. डूडानी को पैसे दे देना. मैंने वही किया… एक मिनट.

डूडानीः हैलो? शशि? तुम ये क्या कर रहे हों. यह क्या बेहूदगी है? नहीं, उस दिन जब तुमने मुझसे बात की थी तो मैंने तुमसे साफ कह दिया था कि यदि वह मित्रवत सलाह चाहता है तो ठीक है, स्वागत है. लेकिन तब क्या तुम सोचते हो कि कोई पैसा लेकर आएगा और मेरे सामने रख देगा इस तरह? क्या मैं इस तरह का आदमी हूं? नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, मैं कुछ सुनना नहीं चाहता.

सैमुअलः उसने मुझसे देने के लिए कहा था.

डूडानीः हां, मैं बहुत ही डिस्टर्ब हूं.

सैमुअलः आई एम रिरिरियली वेरी सॉरी.

यह निष्पक्ष पत्रकारीय मूल्यों का खुला उल्लंघन था. तहलका का कहना था कि वे जनता को भ्रष्ट व्यवस्था के बारे में बताना चाहते थे. वही जनता यह जानने की अधिकारी है कि हमारी व्यवस्था में ईमानदार अधिकारी भी हैं. इस स्थिति में किसी भी समूह के वरिष्ठ सम्पादक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. वे स्टोरी का अन्य पक्ष भी जानना चाहते हैं ताकि सभी पक्षों के प्रति सुनिश्चित हो सकें और उन तथ्यों के प्रति पूरी तरह से मुतमइन हुआ जा सके ताकी कोई पत्रकार अपना निजी एजेण्डा आगे न बढ़ा सके.

तरुण तेजपाल अपनी वेबसाइट को आगे ले जाने की व्यस्तता में थे, अनिरुद्ध बहल इंवेस्टिगेशन सेल के इंचार्ज थे. बहल ही ऑपरेशन वेस्ट एंड का संचलन भी कर रहे थे. वहां सम्पादकीय स्तर पर कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं था जो इस पर तटस्थ तरीके से नज़र रखता. पत्रकार आदतन अपनी स्टोरी के उस कोण के प्रति मुग्ध हो जाते हैं जिस पर वे काम कर रहे होते हैं और इस प्रक्रिया के दौरान कोई भी व्यक्ति अगर कोई नया सवाल खड़ा करता है तो वे उसे नज़रअंदाज कर आगे बढ़ जाते हैं. जार्ज फर्नाडीज और डूडानी की ईमानदारी उनके भ्रष्टाचार खुलासे के अभियान से अलग ले जाती थी. यह अहम बिंदु था. इससे यह संदेह मजबूत हुआ कि रिपोर्ट पक्षपात पूर्ण थी.

लेकिन क्या उस समय कांग्रेस पार्टी और शंकर शर्मा-देविना मेहरा के बीच किसी तरह का गठजोड़ था? मैं ऐसा नहीं मानती, अन्यता जो दुख उन्होंने झेला वह उन्हें नहीं झेलना पड़ता, कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद भी. पुस्तक अंश:

सुबह के लगभग 10.00 बजे का समय रहा होगा जब तरुण ने मुम्बई में फर्स्ट ग्लोबल के अपने निवेशक शंकर सर्मा को फोन किया. तरुण ने उनसे कहा कि तहलका एक बड़ी स्टोरी का खुलासा करने जा रहा है. उन्होंने कोई और जानकारी नहीं दी. शंकर को केवल यह बताया कि वे रक्षा मामलों से जुड़ा खुलासा करने जा रहे हैं. शंकर ने अपने जवाब में कहा, ‘अभी ऐसा मत करो’. उन्होंने तरुण से यह भी कहा कि वे सुभाष चन्द्रा के जी टेलीफिल्मस के  साथ निवेश की प्रक्रिया में है लिहाजा यह स्टोरी के लिए गलत समय है.

शंकरः देखो बॉस, इस समय कोई भी विवादित काम, विशेषकर जिसका लेनादेना राजनीति से हो, न करो. यह तुम्हारे निवेश की सभी योजनाओं को ध्वस्त कर देगा.

तरुणः मैं अब इसे रोक नहीं सकता क्योंकि यह बहुत खतरनाक स्तर पर जा चुका है. हम जो करने जा रहे हैं, उसमें वाकई में जोखिम है. अगर वो इसे हासिल कर लेंगे तो फिर हम भारी संकट में पड़ जाएंगे. मैं इसे रोक नहीं सकता.

शंकरः यदि आप इसे रोक नहीं सकते हैं, तो कोई बात ही नहीं.

शंकर की किताब में उनके सभी व्यापारिक फैसलों का आधार एक ही होता था, उससे लाभ होगा या नहीं. लिहाजा जब तरुण ने स्टोरी ब्रेक करने की बात कही तो शंकर ने कोई उत्साह नहीं दिखाया. शंकर को भविष्य में होने वाले निवेश का नुकसान दिख रहा था. शंकर एकदम अलग दुनिया में रहते थे. मुम्बई की अर्थ आधारित दुनिया, दिल्ली की पेंचीदा राजनीति और पत्रकारिता से कोसों दूर है. दोनों कभी आपस में नहीं मिल सकते. खुद शंकर को भी यह अहसास नहीं था कि उसकी अपनी जिन्दगी इस तरह से बदल जाएगी.

तहलका के ऑपरेशन वेस्ट एंड खुलासे के बाद शंकर शर्मा और देविना मेहरा के साथ क्या हुआ? पुस्तक अंश:

शंकर शर्मा और देविना मेहरा ने तहलका में निवेश कर बहुत बड़ी गलती कर दी. तहलका में उनका छोटा सा निवेश उनके जीवन में भारी संकट ले आया. पुलिस के छापे, पूछताछ, अंतहीन मुकदमेबाजी, अदालतों का चक्कर और जेल की यात्रा. यह कोई आसान दौर नहीं था. शंकर शर्मा और देविना मेहरा का जीवन उलट-पुलट गया. उनके सभी ब्रांच आफिस बंद हो गए, उनकी सम्पत्तियां जब्त कर ली गईं, उनके घर और दफ्तर पर 26 बार छापे मारे गए, उनके कम्प्यूटर की हार्ड डिस्क और सर्वर सीज कर दिया गया. उन पर स्टाक एक्सचेंज में कारोबार करने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया. उनका रोजी-रोटी पूरी तरह से इसी पर निर्भर थी. य़हां तक कि उनका बैंक एकाउंट भी फ्रीज कर दिया गया. उन्हें तीन बार हिरासत में भी लिया गया. शंकर को एक ऐसे क़ानून के तहत बिना जमानत के नौ हफ्तों के लिए जेल भेज दिया गया जिस कानून को डेढ़ साल पहले संसद ने रद्द कर दिया था. एक साल के भीतर उन्हें सरकार की विभिन्न एजेंसियों और विभागों की ओर से व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए 300 से ज्यादा सम्मन भेजे गए. आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय, एक्साइज डिपार्टमेन्ट, कम्पनी मामलात के विभाग और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, सब मिलकर शंकर और देविना के खिलाफ तरह-तरह की जांच करते रहे. आयकर विभाग ने तो उन पर 25 बार छापे डाले. कम्पनीज़ एक्ट के तहत उन पर 22 मामले, फेरा का एक मामला और फेरा सिविल प्रोसीडिंग्स के तहत पांच मामले दर्ज किए गए. शंकर का पासपोर्ट जब्त कर लिया गया जिसे वापस लेने में उन्हें एक साल लग गया. देविना ने अपना पासपोर्ट जब्त किए जाने से पहले स्टे आर्डर ले लिया जिसके लिए उन्हें कई बार कोर्ट के चक्कर काटने पड़े.

13 मार्च, 2001 को तहलका ने ऑपरेशन वेस्ट एंड का खुलासा कर तहलका मचा दिया था. तहलका टीम ने भारतीय सेना के लिए होने वाले रक्षा सौदों में लोगों की संलिप्तता जानने, संवेदनशील सूचनाएं और गोपनीय दस्तावेज हासिल करने के लिए अपने ब्रीफकेस, हैंडबैग और टाई में तीन कैमरे छिपाकर रखे और रिश्वत दी. रिपोर्टर्स ने सेक्स वर्कर्स के साथ सैन्य अधिकारियों की फिल्में बनाई जिसे उन्होंने ने ही भेजा था. पत्रकारिता के इस स्टिंग को ऑपरेशन वेस्ट एंड का नाम दिया गया. एक काल्पनिक कम्पनी के जरिए तहलका के इस ऑपरेशन से सरकार, सेना और रक्षा मंत्रालय में व्याप्त भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ. सोलह लोगों ने वेस्ट एंड के तथाकथित प्रतिनिधियों से कथित रूप से धन लेना स्वीकार किया. पत्रकारों ने खुद को आर्म्स डीलर्स की तरह पेश किया और उन्हें एक अस्तित्वहीन कम्पनी के माध्यम से खुफिया कैमरे में कैद कर लिया. तहलका ने चार महीने तक उन्हें टेप किया जो सितम्बर 2000 से शुरू हुआ था. भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण और समता पार्टी की तत्कालीन अध्यक्षा जया जेटली, जो कि भाजपा सरकार की सहयोगी थी, भी कैमरे में पकड़े गए.

यह साहसिक पत्रकारिता थी और विवादित भी क्योंकि कुछ मीडिया संगठनों ने इसे धोखे से फंसाने की चाल कहा. यह विस्फोटक साबित था और तहलका के पत्रकारों को उम्मीद थी की सरकार गिर जाएगी. यह तो हुआ नहीं उल्टे उनके ऊपर सरकार की गाज गिरी. दुर्भाग्यवश, तहलका की वह हिम्मतवर पत्रकारिता आज तरुण तेजपाल पर लगे बलात्कार के आरोपों के कारण खारिज हो गई है.

एक दर्शक और एक नागरिक के नाते हमें पूछना चाहिए कि, 13 साल पुरानी यह स्टोरी अब क्यों परोसी जा रही है? यह भी गजब संयोग है कि इन दिनों दस्तावेजों और रिकॉर्डिंग्स के आधार पर सामने आ रही इस तरह की सभी स्टोरी में विपक्षी दल ही निशाने पर हैं. कौन है जिसके पास इन रिकॉर्डिंग्स और दस्तावेज तक पहुंच है? ये सभी स्टोरी लीक या फिर प्लांट की जा रही हैं. हमें पूछना चाहिए कि कौन इन्हें लीक कर रहा है और उसका मकसद क्या है? फर्जी ख़बरों की सच्चाई वाले इस दौर में हमें परोसी जा रही ख़बरों की सही परख होना बहुत जरूरी है. तीन चैनल अचानक ही क्यों बोफोर्स की कहानी (गांधी परिवार), चारा घोटाला (लालू प्रसाद यादव), सुनन्दा थरूर की मौत और अरविन्द केजरीवाल के भ्रष्टाचार के मुद्दे को झाड़ पोछकर नए सिरे से चलाने लगते हैं. क्यों फिर से चलाने लगते हैं? क्या इनकी ताज़ा खबरों का स्रोत सूख गया है?

जेस सी. स्कॉट ने कहा थाः

“जनता भेड़ है. टीवी चरवाहा”