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पैराडाइज़ पेपर्स: जिनके पास काला धन और उजला तन है
उनके पास काला धन और उजला तन है. देश के बैंक में समाता नहीं है और टैक्स के रूप में दिया जाता नहीं. देश जिसका ब्यौरा नहीं जानता, उसके कागजात स्वर्गीले कागजात हैं, वह स्वर्गीला धन है. क्या कमाल है, धन पशुओं का! वे जीते–जी, खुद भले स्वर्ग जा न सकें पर धन जहां पहुंचा देते हैं, वे कर से मुक्त स्वर्ग हैं. स्वर्ग की सबकी अपनी–अपनी कल्पना है. कामुकों के लिए स्वर्ग, शहद टपकाते होंठो वाली अप्सरा को बेरोकटोक भोगने का स्थल है! सुअर के स्वर्ग की कल्पना होगी तो वहां अथाह कीचड़ होगा, लोटने को. इसी तरह धन पशुओं के स्वर्ग की कल्पना है कि अकूत दौलत हो और टैक्स न देने की खुली छूट हो.
इसलिए जिन छोटे–छोटे देशों में वे अकूत संपदा छुपा के रखते हैं, उन्हें टैक्स हैवन कहते हैं. घनघोर राष्ट्रवादियों का पैसा भी इन टैक्स हैवेन्स में जमा है. इस मामले में “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” का जाप लागू नहीं होता. यह शास्त्रों की चीज है, शास्त्रों में शोभा देती है. जहां पैदा हुए, वह भूमि स्वर्ग जैसी हो न हो पर टैक्स जो बचा दे, वह भूमि स्वर्ग जैसी या स्वर्ग से सुंदर है! या फिर पैसा रखने की सहूलियत के मद्देनजर राष्ट्रवादी बंधुओं ने जन्मभूमि को मां समझते हुए, पैसा संभाल कर रखने की भूमि को मौसी समझ लिया होगा. पैसा संभाल के रखने के मामले मां के बजाय मौसी के घर को उन्होंने ज्यादा मुफीद पाया होगा. अब मौसी के घर पैसा रखना, मे के साथ गद्दारी समझना तो ठीक नहीं है भाई!
कांग्रेस हो या भाजपा दोनों के लिए मंजिल इसी स्वर्ग की प्राप्ति है. देश में भाजपा का नारा कांग्रेस से मुक्त भारत भले हो पर टैक्स मुक्त स्वर्ग में दोनों साथ हैं. झगड़ा तो धरती पर है, स्वर्ग में तो दोनों साथ–साथ ही रहेंगे और धन के स्वर्ग में तो बिना साथ रहे, कारोबार चलेगा कैसे?
अमिताभ बच्चन साहब का नाम भी सुनते हैं कि रुपया, धन के स्वर्ग भेजने वालों की सूची में है. शीशा, कंघी, तेल, शैम्पू, मसाला, चटनी, अचार बेचते–बेचते इतना धन तो हो ही जायेगा कि इस धरती पर न समाए. इसलिए भेज दिया होगा धन के स्वर्ग में. वैसे भी अमिताभ बच्चन “स्वच्छ भारत” के ब्रांड अम्बेसडर हैं. इसलिए देश से अपना सारा काला धन उन्होंने साफ कर दिया होगा!
प्रधानमंत्री जी ठीक कहते थे कि देश से काला धन साफ कर देना है. उनके ताबेदारों ने सारा काला धन अच्छी तरह से साफ किया और टैक्स मुक्ति के स्वर्गों में पहुंचा दिया. इसमें विपक्षियों ने भी उनकी खूब मदद की. नारा तो था– “न खाऊंगा, न खाने दूंगा.” ऐसा थोड़ी कहा था कि “टैक्स हैवेन्स में भी नहीं ले जाने दूंगा“. जो कहा, उसी की कौन सी प्रधानमंत्रीजी की जिम्मेदारी है कि जो नहीं कहा, उसकी जिम्मेदारी, उनकी हो जाएगी?
कुछ ही दिन पहले दुनिया के भूख सूचकांक में हम 100वें नम्बर पर आये थे. अब टैक्स का पैसा हजम करने वालों में हम 18वें नम्बर पर आ गए हैं. क्या अद्भुत उपलब्धि है. एक तरफ हम सर्वाधिक भूखों की श्रेणी में हैं और दूसरी तरफ सर्वाधिक धन हजम करने वालों में भी ऊंचा रसूख रखते हैं!
जय हो, भारत के भाग्य विधाता, देश में बही न खाता, सारा माल टैक्स मुक्त स्वर्ग पहुंच जाता!
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