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विनोद कुमार शुक्ल: साहित्यकार का सिनेमा बनना
क्या साहित्यकार भी फिल्म का विषय हो सकता है, खासकर हिंदी का साहित्यकार? जवाब है, हां. विनोद कुमार शुक्ल नाम के ऊपर एक फिल्म बन रही है. इस फिल्म का ट्रेलर रविवार को रिलीज़ किया गया.
इस फिल्म का आधार वही विनोद कुमार शुक्ल हैं जिन्होंने ‘दीवार में खिड़की रहती थी’, ‘नौकर की कमीज’ और ‘खिलेगा तो देखेंगे’ जैसा अद्भुत उपन्यास हिंदी साहित्य को सुलभ कराया है. उनको चाहने वाले लाखों में हैं.
इस फिल्म के साथ दिग्गज लोग जुड़े हैं. महेश वर्मा, प्रशासन मल्तियार और अनामिका वर्मा ने इस फिल्म में अभिनय किया है. इस फिल्म की पटकथा और संवाद हिंदी के स्थापित कवि अम्बर पांडे ने लिखी है और निर्देशन शशांक त्रिपाठी का है.
फिल्म का विषय साहित्यकार और उसकी निजी जिंदगी के बीच की गहराई नापता एक पाठक है जो विनोद कुमार शुक्ल पर फिल्म बनाना चाहता है. विमल नाम का वह चरित्र इस सिलसिले में विनोद कुमार शुक्ल से मिलता है और धीरे-धीरे मुक्तिबोध को पढ़ना शुरू करता है. अपनी फिल्म के सिलसिले में वह एक और रचनाकार (महेश वर्मा) के घर जाता है. वहां विमल के अजीबो-गरीब व्यवहार से साहित्यकार की पत्नी परेशान रहती है. उसको विमल का उसके घर पर रहना पसंद नहीं आता.
विमल उस साहित्यकार के घर से निकलकर उसी शहर के एक धर्मशाला में ठहर जाता है. एक दिन वह अपने साहित्यकार साथी को एक पत्र लिखता है कि अब वह फिल्म नहीं बनाएगा. साहित्यकारों का जीवन अजीब है और उनकी लिखी दुनिया और निजी जीवन में बड़ा फ़र्क है. वह पत्र में आगे लिखता है कि अब वह अपने घर लौट जाएगा.
साहित्यकार मित्र को लगता है कि विमल आत्महत्या करने की बात कर रहा है. उसे खोजता हुआ साहित्यकार उस धर्मशाला में जाता है जहां विमल ठहरा हुआ है. विमल वास्तव में वहां से अपने सामान के साथ गायब है.
विमल ने आत्महत्या नहीं की है. वह अपने घर भी नहीं जाता. एक ऐसी जगह जाता है जो उसकी नज़र में उसका वास्तविक घर है.
साभार सौतुक डॉट कॉम
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