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बेल्लारी: रेड्डी रियासत भाग-1
बात सन 2007 की है, उस वक्त मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री थे, लेकिन दिल्ली से बहुत दूर, उत्तरी कर्नाटक में एक वन अधिकारी ने मजदूर का वेश बनाकर बेल्लारी के लौह अयस्क से भरपूर खदानों में जारी अवैध खनन की जांच की. अपने सात भाई बहनों में यूवी सिंह, सबसे छोटे थे उनके पिता राजस्थान के छोटे से किसान थे. तकनीकी रूप से यूवी सिंह स्थानीय नहीं थे. लिहाजा कर्नाटक सरकार की तरफ से मिली सुविधाओं का त्याग करते हुए सिंह आसानी से एक मजदूर के रूप में वहां घुल मिल गए. “मैं (स्थानीय) अधिकारियों और ठेकेदारों की निगाह में आए बिना खुद अपनी आंखों से असल स्थिति को देखना और समझना चाहता था,” सिंह ने न्यूज़लॉन्ड्री को अपनी सच्चाई बतायी.
उस इलाके में छिपी पहचान के साथ जाना ज़रूरी था क्योंकि उस वक्त पूरे बेल्लारी में यह चर्चा आम थी कि पूरा जिला गली जनार्धन रेड्डी और उसके लोगों के पैरों तले दबा हुआ है. जो रेड्डी बंधुओं को नज़दीक से जानते वाले बताते हैं कि रेड्डी बंधुओं को यह भरोसा था कि वे 16वीं सदी के महान शासक कृष्णदेव राय के अवतार हैं जो कि एक समय में विजयनगर साम्राज्य के राजा हुआ करते थे. जैसा की राजाओं के साथ होता है रेड्डी का भी अपना एक सोने का सिंहासन था. ऐसी अफवाहें भी थी कि उसने हम्पी में गुप्तरूप से अपना राज्याभिषेक भी करवाया था. लेकिन उसे इस बात का बिलकुल अंदाज़ा नहीं था कि जल्दी ही उसकी रियासत धराशायी होने जा रही है, एक राजस्थानी किसान के बेटे की वजह से.
शुरू से ही बेल्लारी की लाल धरती अपनी खनिज सम्पदा के लिए जानी जाती है. इस क्षेत्र में खनन काफ़ी पहले, औपनिवेशिक दौर में ही शुरू हो गया था, लेकिन अवैध खनन बिल्कुल नई परिघटना है. 1957 में बने खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम में 1994 में हुए संशोधन ने निजी निवेश के लिए खनन के रास्ते खोल दिए, इसने 2002 के ‘चाइना बूम’ के लिए बेल्लारी को दूहना शुरू कर दिया.
2008 में बीजिंग में ओलिंपिक करीब आने का सीधा मतलब था निर्माण कार्यों की गति में तेजी आना. इसका नतीजा यह हुआ कि स्टील के उत्पादन की मांग एकाएक बढ़ गई, और स्टील उत्पादन बढ़ाने का मतलब था लौह अयस्क की भारी मांग. सन 2000 में लौह अयस्क की कीमत करीब 1200 रुपये प्रति टन थी. अगले तीन वर्षों में दरें बढ़कर 5000 रुपये प्रति टन तक पहुंच गईं. लोहे की कीमतों में गर्मी आने का इंतजार जिन लोगों को था उनमें रेड्डी भी थे. 2001 और 2006 के बीच लौह अयस्क के उत्पादन में 237 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई.
उत्पादन में तेज वृद्धि के बावजूद 2011 की जनगणना के अनुसार, जिले में 33 प्रतिशत परिवार गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं. बेल्लारी कर्नाटक के उन आठ जिलों में से एक था जिसमें महिला साक्षरता 60 प्रतिशत से भी कम थी. संस्थागत (चिकित्साविशेषज्ञों की निगरानी में) प्रसव के मामले में भी यह राज्य में 45 प्रतिशत के साथ दूसरे सबसे कम संख्या वाले जिलों में से एक था. कर्नाटक मानव विकास सूचंकांक- 2005 में बेल्लारी को 27 जिलों में से 18वां स्थान मिला. बेतहाशा खनन ने भी बेल्लारी के वन आवरण पर कहर बरपाया. बेल्लारी में दर्ज किये गये वन क्षेत्र खनन से पूर्व के समय में 1,38,000 हेक्टेयर में खड़े थे लेकिन 2009 तक यह 77,200 हेक्टेयर में सिमट कर रह गये. बेल्लारी के पास भारत के किसी भी जिले में जाने के लिए निजी स्वामित्व वाली विमान की सबसे अधिक सेवाएं थी, इतना कामयाब जिला होने के बावजूद बेल्लारी व्यवस्थित रूप से तबाह हो रहा था.
रेड्डी की रियासत
कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के रिकॉर्ड के अनुसार 2002 में, गली जनार्दन रेड्डी ने ओबुलापुरम माइनिंग कंपनी (ओएमसी) को आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में ओबुलापुरम नामक गांव में खनन का ठेका दिया था. अनंतपुर और बेल्लारी की सीमा आपस में मिलती हैं. यह रेड्डी की पहली खान थी जिससे एक छोटे साम्राज्य की शुरुआत हुई. बेल्लारी के रामगढ़ में उसने धीरे धीरे एसोसिएटेड माइनिंग कंपनी (एएमसी) द्वारा नियंत्रित खनन का एक ठेका हासिल किया.
स्रोत: लोकायुक्त रिपोर्ट, 27 जुलाई, 2011
एएमसी के कम्पनी के रिकॉर्ड से पता चलता है कि रेड्डी और उसकी पत्नी गली लक्ष्मी अरुणा 31 जुलाई, 2009 को फर्म के चार पार्टनर्स में से दो पार्टनर बन गये थे. चौबीस घंटे बाद सिर्फ यही दोनों पार्टनर्स रह गए.
10 हेक्टेयर के आसपास की ज़मीन पर बनी एएमसी की छोटी सी खदान अब बंद हो चुकी है और वीरान पड़ी है. कभी इस क्षेत्र में एक छोटी पहाड़ी थी जिसके ऊपर एक चर्च था, लेकिन ब्लास्टिंग और खनन की वजह से अब ज़मीन पर सिर्फ लाल रंग वाली खाइयां ही बची हैं.
फिलहाल बंद पड़ी एएमसी की खदान
सन 2009 में जब रेड्डी के खिलाफ अवैध खनन की केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने जांच शुरू की, तो रेड्डी की दूसरी ओएमसी खानें, 2010 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बंद कर दी गई गईं. सन 2011 में एएमसी को भी कुछ ऐसे ही नतीजे भुगतने पड़े, सुप्रीम कोर्ट ने उसे भी बंद करने के आदेश दे दिए.
कागज़ पर, रेड्डी सिर्फ ओएमसी और एएमसी के मालिक थे, लेकिन उनकी पकड़ इस इलाके की लगभग हर खान पर थी. अपने दो भाइयों के साथ, रेड्डी ने परिवहन और खनन माफिया का गठजोड़ खड़ा किया और रेड्डी के पेरोल पर अधिकारियों की नियुक्ति की, जिसका खुलासा आगे चलकर यूवी सिंह की जांच से होगा जो उसने 2011 में लोकायुक्त को रिपोर्ट करने के लिए बनाई थी. अपने वफादारों और कर्मचारियों जैसे की वी अन्जनेया (जो बाद में रेड्डी के खिलाफ सीबीआई की जांच में सहयोगी बन गया) और मेहफूज़ अली खान के माध्यम से रेड्डी बन्धु विशाल और एक कड़े-नियंत्रण वाला सिस्टम चलाते थे जिसमें रेड्डी के लिए बड़ी संख्या में खेतों को खानों में बदलने का काम किया गया. हालांकि रेड्डी परिवार अपराजेय था फिर भी कुछ लोगों ने उनका विरोध किया. राजनीतिक संरक्षण होने के बावजूद, जिला पंचायत और ग्राम पंचायत के नेताओं को उनकी चुप्पी और सहयोग के लिए हर महीने 10,000 रूपये का भुगतान किया जाता था. और जो लोग रेड्डी की बात नहीं मानते थे उनका अक्सर या तो अपहरण कर लिया जाता था या फिर उन्हें मारा पीटा जाता था. जैसा कि एक पूर्व कर्मचारी कई सालों बाद सीबीआई को बताया, “सरकार जीजेआर (गली जनार्धन रेड्डी) की ही थी.”
एक दशक से भी कम समय में, किस्मत ने रेड्डीज़ का चमत्कारिक तरीके से साथ दिया जबकि उनका जिला ‘बेल्लारी गणराज्य’ इस दौरान सूखता गया. रेड्डी भाइयों के नाम का दूसरा मतलब था हेलिकॉप्टर और सोना– एक ठोस सोने से बना सिंहासन, सोने के धागे से बनी हुई शर्ट्स, एक गोल्ड-प्लेटेड ब्लैकबेरी, कटलरी और सोने से बनी बाथरूम फिटिंग्स– यह बिल्कुल ऐसा था जैसा की रेड्डी कोई आधुनिक समय का राजा हो. लेकिन धन के साथ उनमें अभिमान भी आ गया था. यह भी अजब विडंबना है कि रेड्डी के अपने घर में बम से बचने की व्यवस्था है जबकि पूरे इलाके में हुए विस्फोटक तबाही के लिए वे खुद ही जिम्मेदार हैं.
इस दौर में भी कुछ ऐसे लोग थे जिन्होंने विरोध किया. आंध्र प्रदेश की सीमा में ठेकेदारों ने ओएमसी द्वारा खदानों के अवैध अतिक्रमण के साथ ही राज्य की सीमाओं में छेड़छाड़ का आरोप भी लगाया. बाद में अन्जनेया ने इसकी पुष्टि की, “कर्नाटक सरकार के निरीक्षण करने से पहले ही हम सीमा को अपनी जरूरत के हिसाब से बदल लेते थे.” अपनी जांच के दौरान, सीमा को निर्धारित करने वाले पत्थरों के निशानों को भी छेड़ा गया था. राज्य की सीमाओं के बारे में लोकायुक्त जांच अधिकारी का कहना है, “ये (पत्थरों के चिन्ह) प्रतीक थे कि सीमा कहां से जाती है,” सिंह ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया. “चूंकि उस समय खनन चल रहा था, इसलिए यह सब नष्ट हो गया.”
बेल्लारी को अपने निजी फायदे के लिए इस्तेमाल करना रेड्डी ब्रदर्स के लिये दो-धारी तलवार साबित हुआ. रेड्डीज़ के पास इकठ्ठा किया हुआ धन और ताकत थी, लेकिन, जब जांच शुरू हुई तो हर शक और सबूत रेड्डी की तरफ ही लेकर गया. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त केन्द्रीय अधिकारिता समिति से लेकर कर्नाटक लोकायुक्त तक, और सीबीआई ने भी, सब ने उन्हीं पर उंगली उठायी. अप्रैल 2011 में सीईसी की रिपोर्ट के कारण सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बेल्लारी में खनन कार्यों को रोक दिया गया. तीन महीने बाद, तीन साल की पड़ताल के आधार पर तैयार किया गया लोकायुक्त रिपोर्ट का दूसरा भाग प्रस्तुत किया गया था.
लोकायुक्त की पहली रिपोर्ट के लिए की गई सिंह की जांच ने उन्हें एहसास कराया कि रेड्डीज़ की अवैध गतिविधियों का दायरा कितना व्यापक था. उन्होंने कहा कि उन्हें “दो-तीन काफ़ी गंभीर (मौत की) धमकियों का सामना करना पड़ा था.” पहली धमकी के बारे में वे याद करते हैं, जो चित्रदुर्गा जिले में 2009 में मिली थी, जब एक अर्थ मूवर ने तक़रीबन उन्हें मार ही डाला था. “मैंने अपनी गाड़ी को एक अर्थ मूवर के सामने खड़ा किया था और इन लोगों ने मेरी गाड़ी को बिल्कुल कुचल दिया था,” उन्होंने बिना किसी भूमिका के इस घटना के बारे में बताया. “यह सब बस एक ही सेकंड में हो गया, मैंने ड्राईवर को एक तरफ धकेल दिया था और खुद दूसरी तरफ से बाहर निकलकर भागा.”
लोकायुक्त रिपोर्ट
2008 और 2011 की लोकायुक्त रिपोर्ट बेल्लारी में रेड्डीज़ की गतिविधियों पर एक विस्तृत दस्तावेज है. कर्नाटक लोकायुक्त (लोकपाल) और सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश, न्यायमूर्ति संतोष हेगड़े के नेतृत्व में, रिपोर्ट के निष्कर्षों का व्यापक रूप से सिंह को श्रेय दिया जाता है. हेगड़े ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “असल में, जांच वही (सिंह) कर रहे थे.” पहली रिपोर्ट में रेड्डी ऑपरेशन में नौ सरकारी अधिकारी, एक भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी और एक मुख्यमंत्री का नाम शामिल था. हेगड़े ने आगे बताया दूसरी रिपोर्ट में “700 से ज्यादा सरकारी अधिकारी, तीन मुख्यमंत्रियों, और सात अन्य मंत्रियों (कर्नाटक सरकार में) का पर्दाफाश किया गया.”.
सिंह ने पाया कि रेड्डीज़ ने इस इलाके में खानों की पहचान की है जिसमें वे लोग गुपचुप तरीके से काम को आगे बढाने वाले हैं. रेड्डी के विश्वासपात्र (उनके साले बीवी श्रीनिवास रेड्डी सहित) की फ्रंट कम्पनियां इन खानों में काम करेंगी. इसे ‘रेजिंग कॉन्ट्रैक्ट’ के रूप में जाना जाता था और यह अवैध है. अलग से तलाश की गयीं इन खानों से निकलने वाले अयस्क की ढुलाई और निर्यात करेंगे रेड्डी बंधु करेंगे. इसे बेचने और निर्यात करने से जो मुनाफा मिलेगा वो रेड्डी भाइयों की जेब में जायेगा. इस धंधे में होने वाली गड़बड़ियों को नज़रंदाज़ करने की ऐवज में सरकारी अधिकारियों को रिश्वत दी गयी थी या फिर उन्हें धमकाया गया था.
रिपोर्ट में यह भी पता चला है कि गोवा में, “कर्नाटक मूल के लौह अयस्क गोवा मूल के लौह अयस्क के साथ मिलाये गये हैं, ताकि निर्यात करने से पहले इसके ऍफ़ई कंटेंट को सुधारा जा सके.” ‘गोवा अयस्क’ गुणवत्ता में बेल्लारी के लौह अयस्क से कमतर होता है, यह संभव था कि अवैध रूप से खनन किया हुआ बेल्लारी अयस्क के लाखों टन का निर्यात गोवा अयस्क के रूप में किया जा सके ताकि बेल्लारी अयस्क के निर्यात पर लगे प्रतिबन्ध से बचा जा सके. सिंह ने कहा “उनकी (रेड्डीज़) सहमति के बिना, उनकी जानकारी के बिना, कोई भी कुछ करने में सक्षम नहीं था”
लोकायुक्त रिपोर्ट कर्नाटक की राजनीति में भूकम्प की तरह थी और इस दुर्घटना का पहला शिकार हुए थे मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा. रिपोर्ट प्रस्तुत होने के पांच दिन बाद उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया. सुषमा स्वराज ने रेड्डीज़ से खुद को दूर कर लिया. सिर्फ एक महीने बाद ही, रेड्डी को सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया था. हालांकि रेड्डी की गिरफ्तारी लोकायुक्त रिपोर्ट का सीधा नतीजा नहीं था, पर सिंह ने रेड्डी का इस तरह पर्दाफाश कर दिया था जैसा पहले कोई नहीं कर पाया.
यह स्टोरी एनएल सेना प्रोजेक्ट का हिस्सा है. इसे संभव बनाने में अर्नब चटर्जी, राहुल पांडे, नरसिम्हा एम, विकास सिंह, सुभाष सुब्रमण्या, एस चटोपाध्याय, अमिया आप्टे, और एनएल सेना के अन्य सदस्यों का योगदान रहा है. हम इस तरह की ढेरों स्टोरी करना चाहते हैं जिसमें आपके सहयोग की अपेक्षा है. आप भी एनएल सेना का हिस्सा बनें और खबरों को स्वतंत्र और निर्भीक बनाए रखने में योगदान करें.
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