Newslaundry Hindi
आरटीआई पार्ट-4: जगदंबिका पाल ने भी बहती गंगा में स्नान किया
न्यूज़लॉन्ड्री की आरटीआई पड़ताल श्रृंखला का चौथा हिस्सा भारतीय जनता पार्टी के सांसद जगदंबिका पाल के द्वारा गंभीर भ्रष्टाचार का इशारा करता है. पाल 1998 में 48 घंटे के लिए उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के लिए ज्यादा जाने जाते हैं.
पाल और ऑयल एंड नेचुरल गैस कोऑपरेशन (ओएनजीसी) के पूर्व प्रमुख सुधीर वासुदेव के साथ चार अन्य लोगों के ऊपर पीएसयू के कॉर्पोरेट सोशल रिस्पोंसिबिलिटी यानि सीएसआर के मद का लाखों रुपया गबन करने का आरोप है.
पाल पिछले साल की शुरुआत (2013) तक कांग्रेस के साथ थे, और पीएसयू पर संसदीय समिति के पूर्व अध्यक्ष थे.
2013 में, जब पाल कांग्रेस के सांसद और पब्लिक अंडरटेकिंग्स समिति के अध्यक्ष थे, तो उन्होंने रवि इंजीनियरिंग और केमिकल वर्क्स (आरईसीडब्ल्यू), (जो बायो–मास कुकिंग स्टोव का निर्माण करती है) और इसकी मार्केटिंग और डिस्ट्रीब्युटिंग कंपनी श्रुतिश्री कलरिंग प्राइवेट लिमिटेड की तरफदारी की थी.
पाल ने पीएसयू को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि वे झारखंड और उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में सीएसआर के तहत बांटने के लिए श्रुतिश्री कलरिंग प्राइवेट लिमिटेड के माध्यम से आरईसीडब्ल्यू से खाना पकाने के स्टोव खरीदें.
हर पीएसयू अपने लाभ का कम से कम दो प्रतिशत सीएसआर गतिविधियों पर खर्च करता है. आमतौर पर, पीएसयू इन पैसों को उन क्षेत्रों के विकास में खर्च करते हैं जहां वे किसी ऑपरेशन को चलाते हैं.
झारखंड की श्रुतश्री कलरिंग प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक और इस कंपनी के 50 फ़ीसदी शेयरधारक संतोष मिश्रा ने बोकारो अदालत में दाखिल एक हलफनामे में दावा किया है कि उसके सहित आरईसीडब्ल्यू के चार अन्य पार्टनर्स पाल, वासुदेव, रवि राय और आर बाबू ने निजी फायदे के लिए सरकारी पैसे को हड़पने की साजिश रची.
23 नवम्बर 2013 को दाखिल अपने हलफनामे में मिश्रा ने कहा, “…जनता के पैसे ठगने के लिए, जगदंबिका पालजी ने सीएसआर के नाम पर फंड्स निकालने की योजना बनाई थी. पाल के साथ ओएनजीसी के अध्यक्ष सुधीर वासुदेव और वित्त निदेशक ने पाल के सरकारी आवास, 12 तीन मूर्ति मार्ग, पर एक योजना बनाई. इसके तहत ओएनजीसी अपनी सीएसआर फंड्स का इस्तेमाल करके 1000 स्टोव खरीदेगी और 23.39 लाख रुपये का भुगतान करेगी. योजना के मुताबिक उस पर अमल भी हुआ. अक्टूबर 2013 में, आरटीजीएस का इस्तेमाल करते हुए ओएनजीसी ने मेरी कंपनी के अकाउंट नंबर 499120110000307 में 11,69,500 रुपये ट्रान्सफर किये थे. हमने जगदंबिका पाल के सरकारी आवास, 12, तीन मूर्ति मार्ग, में इस पैसे को छह हिस्सों में बांटा और प्रत्येक को 1,90,000 रुपये मिले...”
मिश्रा के दावे की जांच करने के लिए, न्यूज़लॉन्ड्री ने ओएनजीसी से आरटीआई के तहत कुछ जानकारियां मांगी, जिसमें पाल ने ओएनजीसी को लिखे गये पत्र की कॉपी और श्रुतिश्री कलरिंग प्राइवेट लिमिटेड को सीएसआर के तहत दिए गये फंड्स के ब्योरे मांगे गए. आरटीआई के जवाब में कहा गया, “ओएनजीसी ने श्री जगदंबिका पाल, माननीय सदस्य (लोकसभा) की सिफारिश पर कार्यान्वन एजेंसी, एम/एस श्रुतिश्री कलरिंग प्राइवेट लिमिटेड (झारखंड) के माध्यम से सिद्धार्थ नगर (यूपी) में 1000 की संख्या में धातुयुक्त ठोस बायो–मास चूल्हे के वितरण के लिए सीएसआर परियोजना के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. और इस परियोजना की कुल लागत 23,39,000 रुपये है.”
मिश्रा अपने हलफनामे में आगे भी आरोप लगाते हैं, “…ओएनजीसी से पैसा लेने के बाद, हमें और लालच आ गया और जगदंबिका पाल ने एक योजना बनाई और उसने एक दिन में 33 कंपनियों को रवि इंजीनियरिंग एंड केमिकल वर्क्स और मेरी कंपनी को सीएसआर के तहत पैसा देने को कहा.”
न्यूज़लॉन्ड्री को आरटीआई के तहत पाल द्वारा दूसरे पीएसयू को लिखे गये पत्रों में से एक की प्रति हासिल हुई है. पाल ने संसदीय समिति के अध्यक्ष के रूप में इन पीएसयू को पत्र लिखकर धातु से बने ठोस बायो–मास स्टोव खरीदने और वितरित करने का अनुरोध किया. उन्होंने उनसे अनुरोध किया कि वे स्टोव की खरीद आरईसीडब्ल्यू से करें जिनके कुकिंग स्टोव को बेचने और बांटने का काम श्रुतिश्री कलरिंग प्राइवेट लिमिटेड करती है.
17 दिसम्बर, 2013 के अपने पत्र में, पाल ने बीईएमएल के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक को लिखा, “मैं आपका ध्यान भारत के सबसे पिछड़े जिलों में से एक उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर, की तरफ खींचना चाहता हूं. यह इलाका घनी आबादी वाला है और यहां पूरे जिले की ज़रूरत को पूरा करने के लिए कोई गैस एजेंसी नहीं है. इसलिए, मैंने श्रुतिश्री कलरिंग प्राइवेट लिमिटेड को इसकी बिक्री व वितरण करने तथा एम/एस रवि इंजीनियरिंग एंड केमिकल वर्क्स के बनाये हुए धातु के ठोस बायो–मास चूल्हे (फायरेंजल) का ब्यौरा और कोटेशन साथ भेजा है.”
पाल ने इस पत्र में आगे लिखा है: “आपसे निवेदन है कि सिद्धार्थनगर जिले में सीएसआर योजना के तहत तत्काल प्रभाव से कम से कम 2000 स्टोव वितरित करें. मैं आपका आभारी रहूंगा.”
मिश्रा के हलफनामे में गुस्से का भाव है: “बोकारो की जिला अदालत, रांची हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और अन्य सभी एजेंसियां कृपया इस हलफनामें एक-एक पंक्ति को सच मानें और इसे सबूत मानें, कि कैसे हम छह लोगों ने सरकार और जनता के पैसों को हड़पने का षडयंत्र किया,” मिश्रा ने हलफनामे में अंत में लिखा है. “अगर मैं कभी भी इस शपथ पत्र से मुकरता हूं, तब भी बोकारो जिला अदालत, रांची उच्च न्यायलय, सुप्रीम कोर्ट इस हलफनामे को सच माने और हमारे खिलाफ कानूनी कार्रवाई करे.”
यह साफ नहीं हो सका है कि मिश्रा ने यह बात सार्वजनिक क्यों किया. (न्यूज़लॉन्ड्री को शपथ पत्र जरूर हासिल हुए लेकिन मिश्रा से संपर्क करने की कोशिश नाकामयाब रही.)
न्यूज़लॉन्ड्री ने जगदंबिका पाल से भी इस संबंध में बातचीत की, उनसे मिश्रा के हलफनामे के बारे में पूछा कि क्या उन्हें इस बारे में पता है और क्या उन्होंने पीएसयू को बायोमास स्टोव खरीदने के लिए कहा था?
उनका जवाब नीचे दिया गया है:
मैं निजी तौर पर श्री संतोष मिश्रा को नहीं जानता, लेकिन मुझे याद है कि संतोष नाम के एक आदमी ने मुझे 2013 में अपनी कंपनी (नाम याद नहीं है) के एक उत्पाद (धुआं रहित बायो–मास चूल्हा) के साथ संपर्क किया था, वो चूल्हा मुझे मेरे निर्वाचन क्षेत्र जिला सिद्धार्थनगर के दूरदराज क्षेत्र में गरीब ग्रामीणों की जरुरत के हिसाब से व पर्यावरण के बेहद अनुकूल और सस्ता लगा था. मेरा निर्वाचन जिला उत्तर प्रदेश के बहुत ही पिछड़े जिलों में से एक है और बहुत से इलाके सड़कें न होने और लगातार बाढ़ के कारण बाकि दुनिया से कटे रहते हैं. उन इलाकों में एलपीजी (गैस) और एलपीजी स्टोव की सुविधा नहीं है, मुझे ये चूल्हा (धुआंरहित बायोमास चूल्हा) गैस चूल्हे के एक सस्ते और बेहतर विकल्प के रूप में दिखा. इसलिए, सीएसआर एक्टिविटी के तहत मेरे निर्वाचन क्षेत्र (सिद्धार्थनगर) में उन पर्यावरण–अनुकूल और सस्ते चूल्हों के वितरण के लिए मैंने कुछ पीएसयू (नाम याद नहीं) से सिफारिश की.
श्री संतोष मिश्रा के किसी भी हलफनामें या उनके ठिकाने के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है. मेरा उनसे संपर्क टूट चुका है और जैसा कि मुझे याद है कि किसी भी पीएसयू ने मेरे निर्वाचन क्षेत्र में गरीब लोगों में वितरण के लिए इस तरह के चूल्हे नहीं भेजे थे.
हां, मैंने अपने निर्वाचन क्षेत्र में उन पर्यावरण अनुकूल बायो–मास चूल्हों के बंटवारे की सुविधा के लिए कुछ पीएसयू (नाम याद नहीं) से सिफारिश करते हुए कुछ पत्र लिखे थे और मुझे नहीं लगता कि इसमें मैंने कुछ गलत किया. मुझे उत्पाद पसंद आया और मुझे लगा कि यह दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों में जहां एलपीजी नहीं है, वहां रहने वाली गरीब महिलाओं के लिए बेहद उपयोगी है, क्योंकि इससे उन्हें बहुत राहत मिलेगी और वे लकड़ी के ईंधन से चलने वाले अपने घरों में मौजूद परंपरागत चूल्हों से निकलने वाले धूएं और राख से बचेंगी. मैंने श्री संतोष मिश्रा के साथ कोई संपर्क नहीं रखा था. श्री संतोष मिश्रा के साथ 2013 में हुई एक या दो बैठकों से पहले मेरी उनसे कभी कोई बातचीत नहीं हुई थी और उसके बाद भी मुझे उनके साथ बातचीत करने का कोई मौका नहीं मिला.
बोकारो कोर्ट में श्री संतोष मिश्रा द्वारा लगाए गये आरोपों के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है. मैं पूरे भरोसे के साथ इससे इनकार कर रहा हूं, और मैं उन पीएसयू की जांच करूंगा जिन्हें मैंने पत्र लिखे थे, और अगर कहीं भी किसी भी प्रकार की गड़बड़ी हुई होगी, तो मैं उस आदमी या वह जिस कंपनी को चलाता है, उसके खिलाफ मजबूत कानूनी कार्रवाई करने के लिए पीएसयू से सिफारिश करने वाला पहला इन्सान रहूंगा.
एक बहुत ही खास जानकारी जिसे मैं साझा करना चाहूंगा कि किसी भी पीएसयू ने सीएसआर एक्टिविटी के तहत गरीब ग्रामीणों के लिए कोई बायो–मास चूल्हा नहीं भेजा. दूसरी खास बात जिसे मैं आपकी नज़रों में लाना चाहूंगा, वह यह कि यदि मैं लोगों के प्रतिनिधि (एमपी) के रूप में अपने निर्वाचन क्षेत्र में गरीब/ज़रूरतमंद लोगों को सीएसआर गतिविधि के तहत किसी भी पीएसयू द्वारा वितरित किया जाने वाला कोई भी उत्पाद सुझाता हूँ, तो इसमें कुछ भी गलत या अवैध नहीं है. हर पीएसयू के पास अपने सीएसआर एक्टिविटी के लिए दिशानिर्देश है और पीएसयू में किसी चीज की खरीद–फरोख्त के लिए कुछ स्थापित वित्तीय नियम और विनियम के साथ साथ सीवीसी (केन्द्रीय सतर्कता आयोग) के दिशानिर्देश हैं. मेरी सिफारिशें मेरे निर्वाचन क्षेत्र में निश्चित संख्या के चूल्हों के वितरण के लिए थीं, और ये किसी कंपनी या किसी इन्सान के पक्ष में नहीं थी. इतना ही नहीं, कोई भी पीएसयू सीएसआर एक्टिविटी के तहत चीजों को खरीदने या हासिल करने में किसी भी तरह के वित्तीय दिशानिर्देशों को नहीं भूलेगा और ना ही उसे भूलना चाहिए. यदि किसी भी पीएसयू में उन चूल्हों की खरीद में कोई गड़बड़ी हुई है, तो मैं सीवीसी से भी एक निष्पक्ष जांच की सिफारिश करूंगा.
साथ में मनीषा पांडे.
Also Read
-
How Muslims struggle to buy property in Gujarat
-
A flurry of new voters? The curious case of Kamthi, where the Maha BJP chief won
-
I&B proposes to amend TV rating rules, invite more players besides BARC
-
Scapegoat vs systemic change: Why governments can’t just blame a top cop after a crisis
-
Delhi’s war on old cars: Great for headlines, not so much for anything else