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केरल की बाढ़ में बजबजाती दक्षिणपंथी राजनीति
नफरत फैलाने वाले चौतरफा हावी हो चुके हैं. केरल जब सौ साल में आई सबसे बड़ी आपदा से उबरने की कोशिश में लड़खड़ा रहा है तब संकट की इस घड़ी में अमेरिका में रहने वाले एक कथित बुद्धिजीवी राजीव मल्होत्रा ट्विटर पर लिखते हैं-
“कृपया केरल में हिन्दुओं की सहायता के लिए दान करें. पूरी दुनिया में इसाईयों और मुस्लिमों ने खूब पैसा अपने लोगों की मदद और अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने में लगाया है.”
मल्होत्रा ने बाद में अपना ट्वीट डिलीट कर दिया लेकिन तब तक इसे 1000 से अधिक लोग रीट्वीट कर चुके थे. इसे मोहनदास पाई जैसे मीडिया जनित चेहरों ने भी लाइक किया जो इन दिनों जब-तब अपनी सांप्रदायिक और विभाजनकारी सोच को जाहिर करते रहते हैं.
बाढ़ पीड़ितों के लिए राहत की बात यह है कि उनके बचाव में भारतीय नौसेना के कमांडर विजय वर्मा जैसे जुझारू और समर्पित लोग लगे हुए थे न कि राजीव मल्होत्रा जैसे अमेरिका में बैठे कथित बुद्धिजीवी. नौसेना हेलिकॉप्टर के द्वारा ही एक गर्भवती महिला को बचाया गया था. बचाव करते समय उस महिला की पानी की थैली फट गई थी. शुक्रवार को उस महिला को कोच्चि अस्पताल ले जाया गया. उनका नाम था साजिदा जबील. उनको बचाये जाने के दो घंटे के भीतर ही उन्होंने अपने बच्चे को जन्म दिया. सोचिए अगर मल्होत्रा और उस तरह की सोच वाले लोगों को बचाव का कार्य सौंपा गया होता तो वे ऐसे मजबूर लोगों का क्या करते.
इस सड़ियल सोच वाले समूह को इस बात का एहसास भी नहीं होता कि केरल का सबसे बड़ा त्यौहार ओणम जो दस दिनों तक चलता है, इस बार नहीं मनाया जाएगा. ओणम किसी धर्म विशेष से संबंधित त्यौहार नहीं बल्कि राजकीय त्यौहार है. इसमें सभी धर्मो के लोग शामिल होते हैं. राज्य के लोग इन नफरत की पैदावारों के बीच भी त्यौहार मना सकने में सक्षम हैं.
खास विचार के ऐसे भी लोग हैं जिन्हें लगता है कि यह आपदा तो केरल में आनी ही थी क्योंकि मलयाली लोग गोमांस खाते हैं. दक्षिणपंथी समूहों ने इस स्थिति को हिंदुओं और गाय से जोड़ दिया है.
उदाहरण के लिए प्रशांत पटेल उमराव के ट्वीट पर गौर करें जिसने 1924 और 2018 की बाढ़ को आपस में जोड़ते हुए लिखा, “1924 में मोपलाह में हिंदुओं के नरसंहार के बाद प्राकृतिक आपदा आई और अब 2018 में गायों की हत्या और देवताओं के अपमान के बाद प्राकृतिक आपदा आई है.”
मोपलाह और 1921 के मालाबार विद्रोह का संर्दभ यह है कि यह उत्तरी केरल के मुसलमानों का ब्रिटिश उच्चाधिकारियों और उनके हिंदू सहयोगियों के खिलाफ किया गया विद्रोह था. विद्रोह छह महीने तक चला जिसमें 10,000 से ज्यादा लोग मारे गए. इतिहास में यह विद्रोह दक्षिण भारत में अंग्रेजों के खिलाफ पहले बड़े राष्ट्रवादी विद्रोह के रूप में दर्ज है. उमराव जैसों के ट्वीट पढ़कर मैं सोचता हूं कि दिसंबर 2016 में चेन्नई या 2014 में विशाखापट्नम में हुदहुद के वक्त कौन से देवी-देवता नाराज हो गए थे. 2013 में खुद देवता के घर केदारनाथ में आपदा आई थी तब देवता क्यों कुपित हुए थे.
भगवान अयप्पा जिनकी यहां चर्चा हो रही है वह केरल के सबरीमाला में पूजनीय हैं. सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सुनवाई कर रही है कि वहां 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी जाय अथवा नहीं. अंधश्रद्धा और छद्म राजनीति के वशीभूत यह बात फैलाया जा रहा है कि माहवारी में महिलाएं सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करना चाहती हैं, इसलिए अयप्पा ने यह सजा दी है लोगों को.
हाल ही में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के निदेशक बोर्ड में शामिल किए गए एस गुरुमूर्ति भी सबरीमाला मामले में अपनी धार्मिक तर्क लेकर कूद पड़े. उन्होंने ट्वीट किया कि सुप्रीम कोर्ट को अपने फैसले से पहले विचार करना चाहिए कि केरल में बाढ़ का रिश्ता सबरीमाला मंदिर से जुड़ा है. कहीं इसलिए तो नहीं सबरीमाला ने खुद को बाकी केरल से काट लिया है!
“अगर हजारों में एक प्रतिशत भी ऐसा होने की संभावना है, तो लोग कभी भी अयप्पा की मर्जी के खिलाफ कोई फैसला (सुप्रीम कोर्ट का) नहीं चाहेंगे,” गुरुमूर्ति ने ट्वीट किया.
एस गुरुमूर्ति क्या इस बात की व्याख्या कर सकते हैं कि भारतीय कानून किस तरीके से केरल की बाढ़ का रिश्ता सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश के मसले स्थापित कर पाएगा? और अगर यह भगवान अयप्पा की नाराजगी का नतीजा है तो सिर्फ 10 से 50 साल की उम्र वाली महिलाओं को ही पीड़ित होना चाहिए था. वे पुरुष इस बाढ़ में क्यों पीड़ित हुए हैं जो सबरीमाला में यथास्थिति बने रहने देना चाहते हैं. उन बच्चों का क्या दोष है जो 10 साल से छोटे हैं.
क्या गुरुमूर्ति और उन जैसे लोग इस देश को विश्वास दिलाना चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाहियों को भगवान देख रहे हैं और वह इतने नाराज हैं कि उन्होंने लाखों केरलवासियों को बाढ़ में बहाकर इसकी सजा दी है? यह मौजूदा दौर के घाघ दक्षिणपंथियों की देन ही है कि उन्होंने पूज्य देवी-देवताओं को भी अपनी नफरत और ओछी राजनीति का औजार बना लिया है. इससे बुरा और क्या होगा.
भाजपा से जुड़े वैभव अग्रवाल ने एक अलग ही कहानी हवा में उछाल दिया. सुरक्षाबलों की आपदा प्रबंधन में सक्रिय भूमिका और केन्द्र सरकार द्वारा दिए गए 600 करोड़ की मदद पर इतराते हुए अग्रवाल ने केरल की वाम सरकार को 300 मौतों का जिम्मेदार ठहराया. स्पष्ट रूप से यह राजनीतिक फायदा उठाने और केंद्र की भाजपा सरकार को केरल का मसीहा दिखाने की कोशिश थी, जिससे ऐसा लगे कि पिन्नारयी विजयन हाथ पर हाथ डाले बैठे थे. इस टिप्पणीकार को यह पता भी नहीं है कि आपदा के समय केरल के लोग मुख्यमंत्री की आलोचना नहीं कर रहे हैं.
इसके ठीक विपरीत दुबई के शासक उपराष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन रशीद अल मकदूम ने मलयालम, अंग्रेजी और अरबी में ट्वीट कर बताया कि उनके देश की विकास गाथा में केरल के लोगों का बहुत बड़ा योगदान है. साथ ही उन्होंने मदद का भी ऐलान किया. उन्होंने धर्म के आधार पर केरल की जनता में भेद नहीं किया.
यही दक्षिणपंथी राजनीति की नैतिकता का धरातल है, जहां मानवता शर्मसार है.
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