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कौन बड़ा हिंदू?

पिछले साल नवंबर महीने में कमल हासन ने दक्षिणपंथी अतिवादी समूहों की कड़ी आलोचना की थी. उन्होंने आरोप लगाया था कि ये लोग ताकत के बल पर हिंसा फैला रहे हैं. इस बयान के विरोध में उनके खिलाफ भाजपा समर्थित एक हिंदू समूह ने पुलिस में शिकायत दर्ज की. हासन ने अपनी तरफ से सफाई पेश की कि वो सिर्फ धर्म के नाम पर हो रही हिंसा का विरोध कर रहे थे.

यह बात जगजाहिर है कि हासन उदार चरित वाले माने जाते हैं. ऐसे में अभिनेता से नेता बनने की उनकी इच्छा उन्हें हिंदू पहचान मजबूत करने को मजबूर कर रही है. “मैं हिंदुओं का दुश्मन कैसे हो सकता रहूं जब मेरे सगे भाई-बहन समर्पित हिंदू हैं?” उन्होंने एक तमिल पत्रिका के अपने साप्ताहिक लेख में यह बात लिखी.

बोस्टन में सप्ताहांत में रहे कमल हासन संतोष कर सकते हैं कि उनके समर्थक उन्हें हिंदू विरोधी के रूप में नहीं देख रहे हैं. उनके एक प्रशंसक ने तो भगवान मुरुगन के रूप में उनकी तस्वीर बना दी, जिसमें उनके हाथ में अस्त्र की जगह माइक दिखाया गया है. हालांकि हासन पूर्व में एक फिल्म काथला-काथला में एक कॉमेडी सीन में भगवान मुरुगन के रूप में दिख चुके हैं लेकिन एक प्रशंसक द्वारा उन्हें राजनीतिक अवतार में मुरुगन दिखाना निश्चित रूप से उन्हें पसंद आया होगा.

कमल हासन को अपनी हिंदू पहचान साबित करने की जरूरत क्यों पड़ी? क्या उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि हिंदू बहुल तमिलनाडु में राजनीतिक रूप से सफल होने के लिए उनकी हिंदू आस्था और जीवन पद्धति पर किसी तरह का संशय नहीं होना चाहिए. अन्यथा सफलता की संभावना क्षीण हो जाती है.

हासन अकेले नहीं हैं. उनके साथी कलाकार प्रकाश राज ने भी स्पष्ट किया कि वो हिंदू-विरोधी नहीं हैं. उनके ऊपर जब इस तरह के आरोपों की बौछार हुई तो राज ने स्पष्ट किया कि वो मोदी विरोधी और शाह विरोधी हैं, और इसके लिए किसी को हिंदू विरोधी तो नहीं कहा जा सकता. यह प्रकाश राज का तरीका था उन लोगों को जवाब देने का जिन्होंने हिंदू धर्म की ठेकेदारी ले ली है और दक्षिणपंथियों के किसी भी विरोध को हिंदू विरोध से जोड़ने के काम में लगे हैं.

एक साल पहले तक हर उस व्यक्ति को जो भाजपा की बुराई करता था, उसे देशद्रोही घोषित कर पाकिस्तान जाने की सलाह दे दी जाती थी. अब तरीका थोड़ा बदल गया है. अब तो भाजपा नेताओं पर भी मतदाताओं को हिंदू-मुस्लिम आधार पर बांटने के आरोप लग चुके हैं.

राजस्थान के अलवर जिले में पिछले महीने हुए उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार रहे जसवंत सिंह पर आरोप लगे कि उन्होंने एक जनसभा में कहा जो हिंदू हैं वो भाजपा के वोट देंगे और मुस्लिम हैं वो कांग्रेस को. उनके बयान का एक वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हो गया लेकिन बाद में वे सफाई देते हुए बोले की उन्होंने ऐसा कोई बयान ही नहीं दिया. हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण कर जीतने के तमाम हथकंडे अपनाने के बाद भी वो हार गए.

मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज़ में प्रोफेसर सी लक्ष्मणन इसे कमल हासन और प्रकाश राज द्वारा भाजपा को दी जा रही सीधी चुनौती के रूप में देखते हैं. 

“भाजपा इसका राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश कर रही थी. हिंदू होने पर मानो इनका कोई विशेषाधिकार था. यह कहना सही नहीं होगा कि जो भाजपा का समर्थन कर रहे हैं सिर्फ वही हिंदू हैं. हासन ने उसी ओर इशारा किया है. इसी तरह प्रकाश राज भी कह रहे हैं कि वे खुद धार्मिक व्यक्ति हैं लेकिन धर्मांध हिंदू नहीं हैं,” लक्ष्मणन कहते हैं.

तो फिर यह कोशिश खुद को सनातन हिंदु धर्म से जोड़ने की है न कि भाजपा के हिंदुत्व से. यह भी दिलचस्प है कि ये सब पेरियार के तमिलनाडु में हो रहा है जहां लंबे समय से सफलतापूर्वक करुणानिधि ने राजनीति को अधार्मिक बनाए रखा. हालांकि जयललिता ने काफी हद तक धर्म का इस्तेमाल करने और उससे राजनीतिक फायदा उठाने में सफल रही. तमिलनाडु की बदलती संरचना में सबको एआईएडीएमके वोटों में ही सेंध लगानी है. शायद इसी सोच से हासन ने इस बात पर जोर दिया कि वे तर्कवादी हैं, नास्तिक नहीं.

चेन्नई में रहने वाले एक्टर और फिल्म इतिहासकार मोहन रमन ने बताया कि दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा आक्रामक प्रचार से उन हिंदुओं के मन में भी यह बात घर कर गई है, कि मुस्लिम तुष्टिकरण के नाम पर उनके साथ भेदभाव हुआ, जो अपनी धार्मिक पहचान को लेकर पहले बहुत कट्टर नहीं थे.

“असल में इन दिनों हर कोई उदार हिंदू वोटों के पीछे भाग रहा है, क्योंकि कट्टर हिंदू वोट तो सिर्फ एक ही पार्टी को मिलना है. सभी नकाब ओढ़े हुए हैं ताकि उदारवादी हिंदुओं को उल्लू बनाया जा सके,” रमन ने कहा.

हैदराबाद में रहने वाले लेखक और विचारक कांचा इल्लैया इस बदलाव (धर्म निरपेक्ष हिंदू) के पीछे मोदी द्वारा अपनी पिछड़ी जाति को बार-बार प्रचारित करने की नीति को मानते हैं. तमिलनाडु में एआईएएडीएमके को थेवर, गुंडर प्रभुत्व वाली पार्टी के रूप में देखा जाता है. इन दोनों पिछड़ी जातियों की बड़ी भूमिका रही उसे 2016 में दोबारा से तमिलनाडु की सत्ता दिलाने में.

“यह अहसास बढ़ रहा है कि पिछड़ी जातियां अपनी धार्मिक पहचान को लेकर बेहद सतर्क हो गई हैं. मोदी अपने बारी-भरकम वोटबेस को अपनी पिछड़ी जाति और हिंदुत्व के सहारे बांधे रख पाने में सफल रहे हैं. इससे पहले यह वोटबेस कभी इतना एकरूप नहीं था, लेकिन धार्मिक धागे से मोदी ने इन सबको आपस में सिल दिया है,” इल्लैया कहते हैं.

धर्म निरपेक्षता को मुस्लिम परस्ती से जोड़ दिया गया है. ऐसे में राहुल गांधी भी गुजरात चुनाव के दौरान मंदिर-मंदिर यात्रा करते रहे ताकि हिंदू वोटों को वापस खींचा जा सके. कर्नाटक में जब योगी आदित्यनाथ ने सिद्धरमैय्या को बीफ बैन करने की चेतावनी दी तो जवाब में उन्होंने अपने नाम में सिद्ध और राम के नाम का जिक्र किया अपनी हिंदू पहचान साबित करने के लिए.

इसका दूसरा पहलु यह देखने को मिल रहा है कि, कुछ समय पहले तक जो अल्पसंख्यक वोट गेम चेंजर हुआ करते थे, अब उन्हें लुभाने की कोशिश कोई नहीं कर रहा. गैर भाजपाई नेता अब खुद को उदार हिंदू के रूप में पेश कर रहे हैं. 2018 और 2019 में साफ हो जाएगा कि इस दांव के खरीददार हैं या नहीं.