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रजनीकांत: नेता या अभी भी अभिनेता?
तामिलनाडु में सुशासन बस एक क्लिक भर दूर है. आपको सिर्फ अपना नाम और वोटर कार्ड नंबर रजनीकांत के वेबसाइट rajinimandram.org के साथ पंजीकृत करवाने की आवश्यकता है. राजनीति से जुड़ने के एक दिन बाद ही जो संदेश रजनीकांत ने दिया, वह यही था. उन्होंने कहा, “तामिलनाडु में सुशासन लाने की प्रक्रिया में, मैंने पंजीकृत फैन क्लब्स, अपंजीकृत फैन क्लब्स और तामिलनाडु के लोगों के लिए rajinimandram.org नाम के पेज की शुरूआत की है.”
यह उनके 31 दिसंबर के संबोधन के बाद आया है जब रजनीकांत ने कहा था कि उनकी सबसे पहली वरीयता अपंजीकृत फैन क्लब्स को पंजीकृत करने की है.
“मेरे गांवों, शहरों में कई हजार फैन क्लब हैं. अपंजीकृत की संख्या पंजीकृत से दुगनी है, हमें अपंजीकृत वालों को पंजीकृत कर इकट्ठा करना है. यह महत्वपूर्ण और पहला कार्य है,” उन्होंने कहा.
एक अनुमान के मुताबिक, तामिलनाडु में लगभग 50,000 से भी ज्यादा अपंजीकृत रजनी फैन क्लब हैं, जबकि वास्तविक रजनीकांत फैन क्लब ने 1997 के बाद से नए सदस्य जोड़ने बंद कर दिए थे. उनके पहले दो संदेश ऐसे लगते हैं जैसे वे सेंट जॉर्ज का किला यानि चेन्नई में सत्ता के केंद्र तक अपनी लोकप्रियता के सहारे ही पहुंचना चाहते हैं.
किसी लोकप्रिय सितारे का अपने फैन बेस को भुनाना कोई ग़ैरकानूनी या ग़लत नहीं है. लेकिन इसमें एक बुनियादी फ़र्क है- किसी सितारे का अपने फैन के साथ रिश्ता और राजनेता का अपने नागिरकों से रिश्ता ये दो अअलग-अलग चीजें हैं. फैन सिर्फ वाहवाही करता है, हीरो के लार्जर दैन लाइफ छवि से प्रभावित रहता है. वह असहज प्रश्न नहीं करता, सवालों के जबाव नहीं ढूंढ़ता. वो सितारों के लोकप्रिय व्यवहार जैसे फोटो खिंचवाने या हाथ मिलाने मात्र से प्रभावित हो जाता है. यह ग़ैरबराबरी का रिश्ता है जहां हीरो की फैन के समक्ष देवता के समान छवि होती है.
इसके उलट राजनेता को वोटर की स्वीकृति तभी मिलती है जब वो कुछ स्थापित नियमों का पालन करता है. नागरिक अपने वोट की कीमत समझता है और किसी पर भी अपना वोट यूं ही नहीं बर्बाद करता. एक पारंपरिक राजनेता को बताना होता है कि वह अपने क्षेत्र, राज्य, देश के लिए क्या करेंगे. तब नागरिक यह तय करता है कि उसके साथ जाना है या नहीं.
रजनीकांत की राजनैतिक विचारधारा के बारे में कुछ नहीं मालूम है. भविष्य में क्या करने की उनकी योजना है या वे अलग-अलग मुद्दों पर क्या राय रखते हैं, किसी को नहीं पता. उन्होंने एक पत्रकार द्वारा यह पूछे जाने पर उसका मजाक बना दिया कि आपकी नीतियां क्या हैं? पर वास्तविकता में इसमें हंसने जैसा कुछ नहीं था. तामिलनाडु का ये हक़ है कि उसे रजनीकांत के बारे में मालूम हो कि उनके लिए राजनेता होने के क्या मायने हैं. रजनीकांत के नाम पर पंजीकृत करवाने का मतलब है कि हीरो भीड़ को अंधकार में धकेल रहा है.
पिछले पचास वर्षों से तमिलनाहु में दो द्रविड़ियन राजनीतिक दलों का ही बोलबाला रहा है. यहां की राजनीति में द्रविड़ियन विचारधारा की प्रमुखता रही है, ऐसा कहना गलत नहीं होगा. वर्षों से कॉलीवुड से कैंपस बहाली होने का मतलब रहा है कि राज्य की राजनीति बहुत हद तक व्यक्ति केंद्रित हो चुकी है. व्यक्तिकेंद्रित राजनीति का परचम लहराने वाली जयललिता ने अपने नाम पर वोट मांगें थे. उनके पार्टी के उम्मीदवार स्टेज के पीछे दूसरी और हाथ जोड़े खड़े रहते थे.
जयललिता की मृत्यु के एक साल बाद भी उनके दल से कोई भी व्यक्ति राजनेता के तौर पर उभर नहीं सका है. इससे साबित होता है कि एआईडीएमके एक पार्टी तो जरूर है लेकिन जयललिता ही थी जो इसे चलाती थीं. इसी तरह बीमार करूणानिधि की राजनीतिक सक्रियता कम होने के बाद उनके बेटे स्टालिन डीएमके को अपने इर्द-गिर्द खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन न तो वे अच्छे वक्ता हैं न ही अपने पिता की तरह चतुर हैं. जिस राजनीतिक शून्यता की बात तामिलनाडु की राजनीति में इस वक्त हो रही है, दरअसल वह व्यक्तित्व की शून्यता है.
यही कारण है कि राजनीति में उतरने के लिए रजनीकांत के लिए इससे बेहतर वक्त हो नहीं सकता था. लेकिन रजनीकांत के राजनीति में आने की स्थिति में एक और ख़तरे की आशंका पैदा हो गई है, जहां ‘काम ही पूजा है’ का ध्येय बदलकर ‘काम ही हीरो की पूजा है’ न हो जाए.
लेकिन रजनीकांत के पास राजनीतिक मौके का फायदा उठाने का बेहतरीन मौका है क्योंकि वह ऐसे वक्त पर राजनीति में एंट्री ले रहे हैं जब भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों में रोष है. खासकर जिस तरह से आरकेनगर उपचुनाव कराये गए. उनके ऊपर किसी तरह के निजी भ्रष्टाचार के आरोप भी नहीं लगे हैं. लेकिन फिर भी उनपर खुद को बाकियों से अलग साबित करना का जिम्मा होगा. तामिलनाडु महज सत्यनिष्ठ समाज और सुशासन से ज्यादा का हकदार है.
यह दिलचस्प है कि उनके पोर्टल के लोगो के साथ-साथ उसका बैकग्राउंड संगीत भी 2002 में आई उनकी फिल्म बाबा का है. उस वक्त यह फिल्म रजनी के करियर की सबसे बड़ी फ्लॉप फिल्म थी. इस फिल्म के बाद रजनीकांत को अपने डिस्ट्रीब्यूटर्स के पैसे वापस करने पड़े थे.
रजनीकांत को रजनीकांत बनने के लिए बहुत कुछ अलग करना पड़ा था.
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