मध्य प्रदेश चुनाव: कांग्रेस और भाजपा ने 33 प्रतिशत महिला आरक्षण का क्यों नहीं रखा ख्याल?

बीजेपी महिला आरक्षण कानून को लोकसभा में पारित कराकर यह बताने में लगी है कि वह महिलाओं की सबसे बड़ी हितैषी है. वहीं, कांग्रेस जितनी आबादी उतने हक की बात कर रही है, लेकिन दोनों ही पार्टियों ने टिकट बंटवारे में महिलाओं की उपेक्षा की है.

WrittenBy:अवधेश कुमार
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महिला आरक्षण बिल और कांग्रेस एवं भाजपा के प्रतीकात्मक शख्स महिलाओं को लुभाते हुए.

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की शुरुआत मिजोरम और छत्तीसगढ़ में हुए मतदान के साथ हो गई है. चुनावों में इस बार सभी पार्टियों का महिलाओं पर विशेष ध्यान है, फिर चाहे वह महिला मतदाता हों या महिला उम्मीदवार. मध्य प्रदेश की बात करें तो राज्य की 230 विधानसभा सीटों पर इस बार सभी पार्टियों से कुल 252 महिला उम्मीदवार मैदान में हैं. 

प्रदेश में सत्तारूढ़ दल भाजपा और प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की बात करें तो दोनों पार्टियों ने क्रमशः 27 और 30 महिलाओं को अपना उम्मीदवार बनाया है. यानी बीजेपी ने मात्र 11 प्रतिशत और कांग्रेस ने मात्र 13 प्रतिशत महिलाओं को टिकट दिया है जो कि 33 प्रतिशत से बहुत कम संख्या है. 

एक तरफ भाजपा महिला आरक्षण कानून को लोकसभा में पारित कराकर यह बताने में लगी है कि वह महिलाओं की सबसे बड़ी हितैषी है. वहीं कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी हर प्रदेश में जाकर “जिसकी जितनी आबादी उसका उतना हक” की बात करते हैं, लेकिन जब असलियत में महिलाओं को टिकट देने की बारी आई तो दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियां अपने वादे से मुंह मोड़ती नजर आती हैं. जबकि इसके इतर दोनों ही पार्टियां महिला मतदाताओं को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं. 

जिस भाजपा को जिताऊ महिला उम्मीदवार नहीं मिल रही हैं, वह ‘लाडली बहना योजना’ के जरिए सत्ता में बने रहने की आस लगाए बैठी है. कांग्रेस भी प्रियंका गांधी से लगातार रैलियां करवा रही है और सत्ता में आने के बाद महिलाओं को 1500 रूपये देने का वादा कर रही है. लेकिन टिकट बंटवारे में यहां भी महिलाओं की उपेक्षा दिखती है.

मध्यप्रदेश में इस बार कुल 2533 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं. इनमें 252 महिला हैं. प्रदेश में 2,88,25,607 पुरुष, 2,72,33,945 महिला और 1373 थर्ड जेंडर मतदाता हैं. मतदाताओं में महिला और पुरुष के अंतर की बात करें तो यह संख्या 15,91,662 है. 

राजनीति में बढ़ रही महिलाओं की भागीदारी 

प्रदेश की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी साल दर साल बढ़ती जा रही है. आंकड़े बताते हैं कि 1962 में महिलाओं का मतदान प्रतिशत जहां मात्र 29.1 प्रतिशत था, वह 2018 में बढ़कर 74 प्रतिशत हो गया यानी की 154.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. वहीं, 56 सालों में पुरुष वोटिंग प्रतिशत में मात्र 26 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. 

राजनीति में महिलाओं की भागीदारी दर्शाता चार्ट

ये आंकड़े बताते हैं कि राजनीति में महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़ रही है लेकिन फिर भी पार्टियां महिलाओं को टिकट देने से कतरा रही हैं. 

वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं, “अगर देश में कोई राजनीतिक दल अपना वोट बैंक किसी को समझता है तो वह महिलाएं ही हैं. पुरुष प्रधान देश में एक ऐसी सोच है जहां महिलाओं को संगठित तरीके से वंचित रखा जाता है, जिसमें ये तमाम राजनीतिक दल शामिल हैं. महिलाओं का राजनीति में सिर्फ इस्तेमाल होता है. वे राजनीतिक पार्टियां जिन्होंने छाती चौड़ा करके कहा कि वे महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण चाहते हैं वो केवल कहने की बात है. वो तो जब लोकसभा में सीटें बढ़ेंगी और तमाम चीजें होंगी तब होगा.” 

महिलाओं के आशीर्वाद से होती है जीत!

दोनो पार्टियां भले ही टिकट देने में महिलाओं की अनदेखी कर रही हैं लेकिन आंकड़े बताते हैं कि चुनावों में जीत की कुंजी महिलाओं के पास ही है. मध्य प्रदेश में 15 साल बाद साल 2018 में सत्ता में कांग्रेस की वापसी में सबसे बड़ा योगदान महिलाओं का ही रहा है. 

लोकनीति-सीएसडीएस के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2018 में 43 प्रतिशत महिलाओं ने कांग्रेस को वोट किया था. जबकि 2013 में जब कांग्रेस पार्टी बुरी तरह से हार गई थी तब सिर्फ 37 प्रतिशत महिलाओं ने कांग्रेस को वोट किया था. ये आंकड़े बताते हैं कि सत्ता में वापसी के लिए किसी पार्टी का महिला मदताओं को अपने पक्ष में करना कितना जरूरी है. 

इसी तरह कांग्रेस पार्टी को लेकर पुरुषों के मतदान में साल 2013 से 2018 में 3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. साल 2013 में 36 प्रतिशत पुरुषों ने वोट किया था जो 2018 में बढ़कर 39 प्रतिशत हो गया.  

बीजेपी को महिला और पुरुष मतदातों ने कैसे वोट किया

2018 की बात करें तो मध्य प्रदेश में भाजपा को 40 प्रतिशत पुरुष और 43 प्रतिशत महिलाओं ने मतदान किया था. इसके मुकाबले कांग्रेस को 39 प्रतिशत पुरुष और 43 प्रतिशत महिलाओं ने वोट किया था. इसी साल बहुजन समाज पार्टी मतदान प्रतिशत के मामले में तीसरे स्थान पर रही. पार्टी को राज्य में 5 प्रतिशत पुरुष और 6 प्रतिशत महिलाओं ने वोट किया. वहीं, अन्य पार्टियों या उम्मीदवारों को 16 फीसदी पुरुष तो 8 प्रतिशत महिलाओं ने मतदान किया. 

ऐसे ही अगर हम 2013 का आंकड़ा देखें तो भारतीय जनता पार्टी को 44 फीसदी पुरुष और 46 फीसदी महिलाओं ने मतदान किया. कांग्रेस को 36 प्रतिशत पुरुष तो 37 प्रतिशत महिलाओं ने वोट किया. जबकि बहुजन समाज पार्टी को 6 प्रतिशत पुरुष तो 6 प्रतिशत महिलाओं ने मतदान किया. वहीं इस साल 12 प्रतिशत पुरुषों और 13 प्रतिशत महिलाओं ने अन्य प्रत्याशियों को उम्मीदवार चुना.

महिलाओं का जीत प्रतिशत

साल 2018 की बात करें तो भाजपा ने 28 महिलाओं को टिकट दिया था. जिनमें 11 महिलाएं चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंची थीं. यानी की 39 फीसदी से ज्यादा महिलाओं को जीत मिली.  

कांग्रेस ने साल 2023 के मुकाबले 2018 में 24 महिलाओं को टिकट दिया था जिनमें 9 महिलाएं जीतकर विधानसभा पहुंची थीं. यहां 37 फीसदी से ज्यादा महिला उम्मीदवारों ने जीत हासिल की.

जबकि अन्य पार्टियों ने कुल 198 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था. जिनमें सिर्फ एक महिला उम्मीदवार को ही चुनाव में जीत मिली. इस तरह मध्य प्रदेश की कुल 250 महिला उम्मीदवारों में से मात्र 21 यानी 8 प्रतिशत को ही जीत मिली.

चुनावी जीत के मामले में पुरुषों से आगे हैं महिला

2013 में महिलाओं की स्थिति

2013 में भारतीय जनता पार्टी ने 28 महिलाओं को अपना उम्मीदवार बनाया था, जिनमें से 22 यानी 78 फीसदी से ज्यादा ने जीत हासिल की. वहीं, कांग्रेस ने 23 महिला उम्मीदवारों को अपना प्रत्याशी बनाया था, जिनमें से 6 यानि 26 प्रतिशत को ही जीत मिली.  

इसके अलावा अन्य की बात करें तो 149 महिला उम्मीदवारों को प्रत्याशी बनाया था जिनमें से दो ने जीत दर्ज की थी. यानी देखा जाए तो मध्य प्रदेश में 2013 में कुल 200 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया जिनमें से 30 को चुनकर जनता ने विधानसभा भेजा था. (15% स्ट्राइक रेट).

2008 में महिलाओं की स्थिति 

2008 में भाजपा ने 23 महिलाओं को अपना प्रत्याशी बनाया. जिनमें से 15 यानी 65 फीसदी से ज्यादा ने जीत दर्ज की. वहीं, कांग्रेस ने 29 महिलाओं को अपना प्रत्याशी बनाया. इनमें से 8 यानी 27 फीसदी से ज्यादा ने जीत दर्ज की. अन्य ने 174 महिलाओं को अपने प्रत्याशियों के रूप में चुना था, इनमें से 2 ने जीत दर्ज की थी. 

इस तरह मध्य प्रदेश में 226 महिलाओं को उम्मीदवार बनाया गया था जिनमें से 25 यानि 11 फीसदी से ज्यादा उम्मीदवारों को जनता ने विधानसभा पहुंचाया.

बीते दिनों लोकसभा में महिला आरक्षण बिल पास हुआ. भाजपा ने चुनाव से पहले आनन-फानन में यह बिल संसद में पास तो करा लिया लेकिन सब जानते हैं कि इसे अभी अमलीजामा पहनाने में टाइम लगेगा. सत्ताधारी पार्टी ने इसे चुनाव में बड़ा मुद्दा बनाने की भी कोशिश की लेकिन ऐसा नहीं हो सका क्योंकि अगर यह बड़ा मुद्दा बनता तो पार्टियों को महिला उम्मीदवारों को ज्यादा टिकट देने पड़ते. खुद भाजपा ने ही इस बार महिलाओं को पिछले बार के मुकाबले से भी कम महिला उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं.   

बता दें कि पांच राज्यों में जारी विधानसभा चुनावों में तीन राज्य राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और भाजपा आमने सामने की लड़ाई में हैं. वहीं तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) और कांग्रेस मुख्य लड़ाई में नज़र आ रही हैं.

पूर्वोतर के राज्य मिज़ोरम की बात करें तो वहां दो क्षेत्रीय पार्टियों ज़ोराम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) और मिज़ो नेशनल फ़्रंट (एमएनएफ़) आमने-सामने हैं.

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