बड़ी टेक कंपनियों के अलावा मीडिया जगत में भी लोगों की नौकरियां जा रही हैं.
वैश्विक मंदी की आहट भले ही भारत में अभी न हो, लेकिन छंटनी का दौर शुरू हो चुका है. बड़ी टेक कंपनियों के अलावा मीडिया जगत में लोगों की नौकरियां जा रही हैं. वैसे भारत सरकार की मानें तो हमारी अर्थव्यवस्था की स्थिति अन्य देशों के मुकाबले अच्छी है. आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी एक कार्यक्रम में कहा कि वैश्विक मंदी का हम पर बहुत कम असर होगा.
वैश्विक स्तर पर सीएनएन, बजफीड, गैनेट जैसे मीडिया संस्थानों में आर्थिक अस्थिरता और अनिश्चितता के नाम पर बड़ी संख्या में पत्रकारों को निकाला जा रहा है. वैसे नौकरी से निकाले जाने की शुरुआत बड़ी टेक कंपनियां गूगल, फेसबुक और अमेज़ॉन के बाद से शुरू हुई है.
भारत में ज़ी न्यूज़ के दो चैनल (ज़ी हिंदुस्तान और ज़ी उड़िया) के बंद होने के अलावा ग्रुप के अन्य चैनलों में भी कटौती की गई. इस छंटनी में डिजिटल और टीवी दोनों के कर्मचारी शामिल हैं. ज़ी न्यूज़ के अलावा ग्रुप के क्षेत्रीय टीवी चैनलों जैसे ज़ी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़, ज़ी बिहार-झारखंड, ज़ी राजस्थान, ज़ी दिल्ली-एनसीआर हरियाणा चैनलों व अन्य चैनलों में पत्रकारों को निकाला गया. चैनल बंद होने के कारण करीब 300 और ग्रुप के अन्य चैनलों में छंटनी में करीब 350 कर्मचारी शामिल हैं. इस तरह पूरे ग्रुप में करीब 650 लोगों को नौकरी से निकाला गया है.
कंपनी में हो रही छंटनी पर ग्रुप के एक कर्मचारी कहते हैं, “इस छंटनी में कई ऐसे लोगों को निकाला जा रहा है जहां एक काम के लिए कई लोग थे, साथ ही कुछ कर्मचारियों का प्रदर्शन अच्छा नहीं था और साथ-साथ कंपनी अपने घाटे को कम करना चाहती है.”
बता दें कि ज़ी मीडिया कॉरपोरेशन लिमिटेड कंपनी को जुलाई-सितंबर की तिमाही में 12 करोड़ का घाटा हुआ है. कंपनी ने बताया कि उसके राजस्व में पिछले साल की इसी तिमाही की तुलना में 5.51 प्रतिशत की गिरावट आई है.
इससे पहले 31 मार्च 2022 को चौथी तिमाही में कंपनी ने बताया था कि ज़ी मीडिया कॉरपोरेशन लिमिटेड कंपनी को 51.45 करोड़ रुपए का घाटा हुआ था.
वहीं एबीपी न्यूज़ में काम करने वाले करीब 20 से ज्यादा लोगों को निकाला गया. निकाले गए कर्मचारी संपादकीय के साथ-साथ मैनेजमेंट से जुड़े हुए भी हैं. चैनलों ने नवंबर के आखिरी सप्ताह में यह छंटनी की है.
कंपनी के एक कर्मचारी के मुताबिक, “यहां भी निकालने का कारण आर्थिक हालात ठीक नहीं होना कहा गया. निकाले जाने में कई ऐसे कर्मचारी हैं जो कई सालों से काम कर रहे थे.”
ऐसे ही कई अन्य न्यूज़ चैनलों में भी निकाले जाने की बात कही जा रही है, लेकिन अभी इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है.
क्या वैश्विक मंदी का असर भारतीय मीडिया पर भी?
क्या वैश्विक मंदी का असर भारतीय मीडिया पर पड़ रहा है? इस बात से आईआईएमसी के प्रोफेसर आनंद प्रधान इंकार करते हैं. वह कहते हैं, “भारत सरकार के मुताबिक हमारी अर्थव्यवस्था कोविड के समय के बाद रिकवरी कर रही है, इसके बावजूद छंटनी होना हैरान करने वाली बात है.”
वे छंटनी को लेकर कहते हैं, “टेक कंपनियों द्वारा की गई छंटनी से मीडिया कंपनियों में घबराहट है, इसलिए वह एहतियातन कदम उठाते हुए यह कर रहे हैं.”
नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष राजीव कुमार कहते हैं कि मंदी का भारत पर असर नहीं पड़ेगा. हमारी अर्थव्यवस्था 6-7 प्रतिशत के बीच रहेगी. यूरोप, यूएस, जापान, यूके, चीन आदि देशों में अर्थव्यवस्था में गिरावट, आने वाले दिनों में मंदी का रूप ले लेगी. यही बात प्रधान भी कहते हैं, "मंदी और सुस्ती में फर्क होता है. भारतीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती आ सकती है लेकिन मंदी के आसार नजर नहीं आ रहे हैं. फिर भी मीडिया संस्थान छंटनी कर रहे हैं."
वह आगे कहते हैं, “मीडिया संस्थान अपने मुनाफे को बनाए रखना चाहती है. वह मुनाफे में कटौती नहीं करके छंटनी करती है. इसमें भी शीर्ष पदों पर बैठे लोगों को नहीं निकाला जाता. छंटनी का असर खबर की गुणवत्ता पर भी पड़ता है और वह आने वाले दिनों में पाठकों और दर्शकों को भी दिखाई देता है."
फाइनेंसियल और बिजनेस एडवाइजरी कंपनी केपीएमजी ने हाल में 1300 चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर (सीईओ) के बीच मंदी को लेकर एक सर्वे किया था. जिसमें 58 प्रतिशत सीईओ ने कहा कि मंदी हल्की और छोटी होगी.
मीडिया मॉडल और टीवी चैनलों की संख्या
मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार मीडिया में हो रही छंटनी को लेकर कहते हैं, “ सरकार के समर्थन में जिस विचारधारा को मीडिया चैनल इतने सालों से चला रहे थे, वह विचारधारा बिजनेस मॉडल नहीं बना पाई. बिजनेस भी गया और पत्रकारिता भी.”
वह आगे बताते हैं कि जब 2008 में वैश्विक मंदी आई थी, उस समय मीडिया क्षेत्र में 6.2 प्रतिशत की वृद्धि थी. इसकी वजह 2009 के चुनाव थे, जब बड़े स्तर पर राजनीतिक पार्टियों ने मीडिया को विज्ञापन दिया था. अभी तो 2024 तक मीडिया चैनलों को सरकार की तरफ से बूस्टर डोज मिलेंगे, लेकिन आगे चलकर मीडिया की हालत खराब होगी."
जी मीडिया में छंटनी पर वह कहते हैं, “ज़ी ने अपनी पूरी विश्वसनीयता एक विचारधारा को लेकर खत्म कर दी. अब सबसे ज्यादा असर उसी मीडिया ग्रुप पर है. तारीफ करके भी वह अपना बिजनेस नहीं बचा पाए.”
आनंद प्रधान कहते हैं, “भारत में बहुत से मीडिया चैनल हो गए हैं. सभी का कंटेंट एक ही है लेकिन चैनल अलग-अलग. जब चैनलों को विज्ञापन मिलना कम हो जाएगा तो उसका असर कर्मचारियों के निकाले जाने पर दिखेगा.”
मीडिया इंडस्ट्री को लेकर विनीत कुमार बताते हैं, “यह इंडस्ट्री सच में बहुत खतरे में जा रही है. यह इंडस्ट्री अभी तक अपना बिजनेस मॉडल नहीं बना पाई है जिससे यह खतरा और बढ़ गया है.”
कुमार के मुताबिक सब्सक्रिप्शन का एक मॉडल है, जो मीडिया इंडस्ट्री को बचा सकता है. यह एक ऐसा बिजनेस मॉडल है जो मीडिया इंडस्ट्री को आत्मनिर्भर बना सकता है. बड़े मीडिया समूहों के कई अलग-अलग बिजनेस हैं. जब मंदी आएगी तो उनके बिजनेस पर असर पड़ेगा और उसका सीधा असर मीडिया चैनलों पर दिखेगा.
बता दें कि इससे पहले कोविड के दौरान मीडिया में बड़े स्तर पर कर्मचारियों की छंटनी की गई थी. उस दौरान वेतन कटने, नौकरी से निकालने से जुड़ी कई याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की थी. यह सब 2020-21 में हुआ.
इसको एक साल हुआ है, लेकिन फिर से मीडिया में छंटनी का दौर शुरू हो गया है.
***
न्यूज़लॉन्ड्री एक विज्ञापन मुक्त मीडिया प्लेटफॉर्म है. जहां हम किसी भी प्रकार का कोई विज्ञापन नहीं लेते हैं. हम सिर्फ अपने सब्सक्राइबर्स के सहयोग से चलते हैं. ऐसा मीडिया किसी भी विचारधारा में नहीं पड़कर सिर्फ जनता के हित की बात करता है. ऐसे में बहुत जरूरी है आप पाठक और दर्शक न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करें ताकि हम मजबूती के साथ आप तक हर जरूरी खबर पहुंचा सकें.
The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.
ContributeThe media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.
ContributeGeneral elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.
Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?