कच्छ कथा: ‘कच्छ को दिखाकर गुजरात को चमकाया गया, लेकिन वहां के लोगों को क्या मिला’

कच्छ कथा किताब के लेखक अभिषेक श्रीवास्तव से बातचीत.

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गुजरात भारतीय राजनीति का केंद्र बना हुआ है, उसी का एक जिला कच्छ सालों से अनजाना है. खासकर हिंदी प्रदेशों में.

कच्छ का नाम आते ही जहन में भूकंप और नमक के खेत की तस्वीरें उभरती हैं, लेकिन इस सबके इतर भी कच्छ में बहुत कुछ है. समृद्ध इतिहास, धार्मिक एकता वाली संस्कृति और उनकी परेशानियां. भूकंप ने जहां कच्छ का भूगोल बदल दिया वहीं राजनीतिक और धार्मिक संगठनों ने वहां की संस्कृति बदलने की कोशिश की. भूकंप के बाद वहां पहुंचे ‘विकास’ ने लोगों का जीवन कितना बदला? यह बदलाव कैसा है? इन सब सवालों का जवाब तलाश करती नजर आती है हाल ही प्रकाशित पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव की किताब, कच्छ कथा.

न्यूज़लॉन्ड्री ने इसको लेकर अभिषेक श्रीवास्तव से बात की. आप विस्तृत शैली में रिपोर्ट लिखने वाले पत्रकार हैं. ऐसे में आपकी किताब से उम्मीद की जा रही थी कि यह कच्छ में 2001 में आए भूकंप के बाद हुए बदलाव पर रिपोर्ताज होगी, लेकिन इसमें संस्कृति, इतिहास और वर्तमान सबका जिक्र है.

इस सवाल के जवाब में श्रीवास्तव कहते हैं, ‘‘मैंने अपनी रिपोर्टिंग में हमेशा कोशिश की है कि घटना के हरेक पहलू को अपनी रिपोर्ट में शामिल करूं. मैंने हमेशा मामले को 360 डिग्री के एंगल से देखने का प्रयास किया है. देश-गांव में मेरे छपे मेरे सारे रिपोर्ताज कहानी की ही शैली में हैं. जहां तक कच्छ की बात है, वह हमेशा से भारत और खासकर हिंदी भाषा से कटकर रहा है. मीडिया में गुजरात तो हमेशा केंद्र में रहा पर कच्छ हमेशा सबसे दूर रहा है.’’

वे आगे कहते हैं, ‘‘ये गौर करने की बात है कि एक राज्य से प्रधानमंत्री चुनकर निकलता है, जिसके बाद उस राज्य को हर क्षेत्र में प्रमुखता मिलती है पर कच्छ जैसे क्षेत्र पर कभी बात नहीं होती. हालांकि अब कच्छ को बेचा जा रहा है. टूरिज्म के नाम पर, नमक के नाम पर, संस्कृति के नाम पर जिससे गुजरात और गुजरात में मौजूद सत्ता को चमकाया गया है. और ऐसे देश के कई हिस्सों के साथ किया गया है. आज जब आप कच्छ में जाएंगे तो सब कुछ गुजराती संस्कृति में बदलते हुए देख पाएंगे. कच्छ की अपनी जो संस्कृति और खानपान था, वो धुंधला हो गया है. इसीलिए अपनी किताब के जरिए उस कच्छ को लोगो तक पहुंचने का प्रयास किया है.

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कच्छ गए थे. वहां उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी कच्छ का कायाकल्प विश्व के लिए अनुसंधान का विषय. श्रीवास्तव इसको लेकर व्यंग्य में कहते हैं, ‘‘हम भी तो कह रहे हैं कि अनुसंधान होना चाहिए. इस किताब में वहां भूकंप के बाद हुए ‘विकास’ पर मैंने कुछ नहीं कहा है. वहां के लोग कह रहे हैं.’’

भूकंप के बाद धार्मिक संगठन कच्छ में लोगों की मदद करने पहुंचे लेकिन उनके इरादे नेक नहीं थे. कैसे उन्होंने अपनी मान्यता के मुताबिक इलाकों के नाम बदल दिए. साथ ही आने वाले दिनों में गुजरात में विधानसभा चुनाव है. एक तरफ गुजरात मॉडल है. जिसके नाम पर नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री बन गए. वहीं अपना दिल्ली मॉडल लेकर अरविंद केजरीवाल वहां पहुंचे हुए हैं. क्या यह दोनों मॉडल अलग हैं? इसमें से बेहतर कौन है? इन तमाम सवालों का जवाब सुनने के लिए यह इंटरव्यू देखें.

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