इंडिया टुडे समूह ही सुधीर चौधरी का ‘स्वाभाविक ठिकाना’ है

वे कोई हंसी-ठिठोली नहीं कर रहे.

WrittenBy:अभिनंदन सेखरी
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इंडिया टुडे समूह के कर्मचारियों को भेजे गए एक मेल में समूह की उपाध्यक्ष कली पुरी ने बड़े उत्साह से सुधीर चौधरी की सलाहकार संपादक के रूप में जुड़ाव की मुनादी की. हमें इस बात का पूरा भरोसा है की न्यूज़रूम में भी उतना ही जोश पैदा हुआ होगा. जैसा कि स्टाफ को उनकी बॉस ने याद दिलाया कि चौधरी ज़ी न्यूज़ के अपने पिछले शो डीएनए का अनुभव और प्रशंसकों का हुजूम लेकर आ रहे हैं. इनकी "सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा फॉलोइंग है" और जिसे "हर सम्मानित संस्था से ढेरों पुरस्कार मिल चुके हैं."

पुरी ने हमें यह भी याद दिलाया (किसी दुस्वप्न की तरह) - कि "खबरों की दुनिया में घर-घर पहचाने जाने वाले नाम का स्वाभाविक ठिकाना आज तक ही है!"

वैसे अगर साफगोई से कहें तो इंडिया टुडे समूह देश की पत्रकारिता में कई नए प्रयोगों के लिए जाना जाता है: मधु त्रेहान भारत में वीडियो न्यूज़ की दुनिया में क्रांति ले आईं तो एसपी सिंह ने निजी तौर पर प्रोड्यूस होने वाले रोजाना हिंदी न्यूज़ बुलेटिन की शुरुआत की थी. लेकिन वो एक अलग समय था, एक अलग पीढ़ी थी. आज इंडिया टुडे समूह, "पत्रकारिता का गोल्ड स्टैंडर्ड" है. शायद इसीलिए पुरी को, चौधरी के इस गोल्ड स्टैंडर्ड टीम का हिस्सा बनने के बाद आने वाले संभावित बदलावों को बताने की कोई खास जरूरत महसूस नहीं हुई. टीम तो अंदर की बात खुद ही समझ जाएगी?

फिर भी, हमारे और आप जैसे, जिनके स्टैंडर्ड कुछ खास चमकीले नहीं हैं उनके लिए बता ही देते हैं.

अपराध का कवरेज

चौधरी का आना इंडिया टुडे समूह के लिए अपने अपराध की कवरेज के गोल्ड स्टैंडर्ड को और ऊंचा उठाने का स्वर्णिम अवसर है, क्योंकि कथित ब्लैकमेल के लिए तिहाड़ में बिताए अपने सारे अनुभवों से वो इसमें चार चांद लगा सकते हैं. उनके आगमन से आज तक के दर्शकों को अपराध और जेल का कहीं ज्यादा रोमांचक, व्यक्तिगत दृष्टिकोण मिल सकता है.

और ये जो पत्रकार और एक्टिविस्ट के भेष कुकुरमुत्ते की तरह उग रहे छुट्टा राष्ट्रविरोधी आए दिन जेलों में डाले जा रहे हैं, ये मनहूस एयर टाइम दिए जाने के काबिल ही नहीं हैं. अब आपको ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य भी चाहिए? क्या आप नहीं जानते कि स्वतंत्रता सेनानियों को बिना कुछ किए-धरे ही जेल में डाल दिया जाता था, सही में? वैसे भी धैर्यपूर्ण प्रतिरोध और असहयोग तो कितना नीरस है! सबसे तेज़ अपराध की कवरेज धैर्य से नहीं हो सकती. आज तक से नफरत करने वाले इसकी पत्रकारिता को भले ही विवेक और समझदारी के खिलाफ अपराध मानते हों, लेकिन वे नौटंकी के मामले में बिग बॉस से ज्यादा महत्वाकांक्षाएं रखते हैं. वैसे भी कर्कश आवाज़ में चीख-पुकार, अपने ख्याली पुलावों की कमांडो एक्टिंग और नौसिखिए ग्राफिक्स वाले युद्ध नीति कक्ष के बिना टेलीविज़न न्यूज़ में मज़ा कहां आता है?

अब अगर आप कल्पना कर सकते हैं तो कीजिए, कि इस धमाकेदार फॉर्मूले में आप एक तिहाड़ के कैदी के असली अनुभवों को मिला दें?

वह ऐसी पत्रकारिता होगी, जो दुनिया बदल देने का सपना रखने वाले युवा पत्रकारों को प्रेरित करेगी.

ऐसा भी हो सकता है कि हमें न्यूज़ट्रैक और एक समय में भारत की सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली समाचार मैगज़ीन देने वाले मीडिया घराने का, यह युग प्रवर्तक आविष्कार सिद्ध हो.

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विज्ञान कवरेज

चौधरी को उनके नैनो तकनीक पर क्रांतिकारी दृष्टिकोण के लिए भी जाना जाता है. (अरे मूढ़मतियों, क्या तुम अभी भी पत्रकारिता को जनहित के औजार की तरह देख रहे हो? अब न्यूज़ का उद्देश्य मशहूर होना भर रह गया है.) तो यहां नैनो तकनीक का मतलब कुछ साल पहले रतन टाटा की सबको रोमांचित करने वाली छोटी सी गाड़ी का इंजन नहीं, बल्कि यह बहुत सूक्ष्म तकनीक का नाम है, जैसे कि मच्छर के गाल पर मुंहासा. मीडिया के मालिकों की अंतरात्मा और टेलीविज़न न्यूज़ में पत्रकारिता बस इतनी ही बची है. चौधरी के आ जाने से आज तक के विज्ञान कवरेज में डबल इंजन की ताकत आ जाएगी.

आप अभी भी नहीं समझे? श्वेता सिंह भाई, नाम ही काफी है.

2000 रुपए के नोट के बनने पर चौधरी ने जो कार्यक्रम किया था वह इस जगत से परे था, और यह बात मैं चलते-फिरते नहीं कह रहा. बतौर ज़ी न्यूज़ एंकर चौधरी के उस शो से नोट पर छपी बापू की भौहें भी तनकर नोट से बाहर निकल आई थीं. साबरमती के उस भौंचक्के संत को उस गुलाबी रंग के नोट में बस विज्ञान ने ही रोके रखा था. उम्मीद है कि चौधरी उस रहस्य से परदा आज तक पर आने वाले नए कार्यक्रम में उठाएंगे. हम तो बस इंतजार कर सकते हैं, उम्मीद के साथ.

छतनार वृक्ष की छाया में नवजीवन के अंकुर

एक के बाद एक शाम, बेनागा गजब की बेशर्मी और बिना किसी अपराधबोध के धर्मांधता और कट्टरता से सने कार्यक्रम करने की प्रतिभा रखने वाले चौधरी, इंडिया टुडे समूह में ऐसे विशाल, छतनार वृक्ष की भूमिका अदा कर सकते हैं, जिसकी छाया में कई छोटे-छोटे नफरती अंकुर पनप कर नफरत की सीमाओं को और विस्तार दे सकें. मौजूदा गोल्ड स्टैंडर्ड वाले ऐसा नहीं कर पाए हैं. इसके कई कारणों में से एक यह भी है कि वहां कुछ छद्म सेकुलरवादी भी घुसे हुए हैं. उनके संतुलनकारी कारनामों को ये नए नट प्रतिसंतुलित कर सकते हैं. चौधरी इन नए रंगरूटों को नई कलाबाजियां और करतब सिखा सकते हैं, बशर्ते वो खुद बाढ़ और थूक के बाद कोई नया जिहाद ईजाद करने की गहन सोच में न पड़े हों.

और बोनस के तौर पर पत्रकार बनने की चाह रखने वालों युवाओं को मुफ्त का पाठ भी मिल सकता हैं बशर्ते वो इंडिया टुडे को देखने की जहमत उठाएं. वो पाठ यह होगा कि गोल्ड स्टैंडर्ड वाले मीडिया घराने में स्टार एंकर बनने के लिए क्या-क्या करना पड़ता है. तो देखिए और दिखाइए.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद शार्दूल कात्यायन)

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