पेगासस स्पाइवेयर से की जा रही थी 40 भारतीय पत्रकारों के फोन की जासूसी

लीक डेटाबेस को पेरिस स्थित गैर-लाभकारी मीडिया फॉरबिडन स्टोरीज़ और एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा एक्सेस किया गया था. इन दो समूहों के पास 50,000 से अधिक फोन नंबरों की सूची थी.

Article image
  • Share this article on whatsapp

द वायर के अनुसार भारत में कई पत्रकारों पर निगरानी रखने के लिए पेगासस का इस्तेमाल किया गया. इस सूची में पूर्व ब्यूरो चीफ प्रशांत झा, रक्षा संवाददाता राहुल सिंह, कांग्रेस कवर करने वाले पूर्व राजनीतिक संवाददाता औरंगजेब नक्शबंदी और इसी समूह के अख़बार मिंट के एक रिपोर्टर शामिल हैं. इनके अलावा कई बड़े नाम भी इस सूची का हिस्सा हैं. इंडियन एक्सप्रेस की ऋतिका चोपड़ा (जो शिक्षा और चुनाव आयोग कवर करती हैं), इंडिया टुडे के संदीप उन्नीथन (जो रक्षा और सेना संबंधी रिपोर्टिंग करते हैं), टीवी 18 के मनोज गुप्ता (इन्वेस्टिगेशन और सुरक्षा मामलों के संपादक हैं), द हिंदू की विजेता सिंह (गृह मंत्रालय कवर करती हैं), वरिष्ठ पत्रकार प्रेमशंकर झा का नंबर भी रिकॉर्ड्स में मिला है. इन लोगों के फोन में पेगासस डालने की कोशिश की गई ऐसे सबूत मिले हैं. द वायर के स्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और एमके वेणु के फोन की फॉरेंसिक जांच में पेगासस होने के प्रमाण मिले हैं.

स्वंतत्र पत्रकारों को भी निशाना बनाया गया. स्वाति चतुर्वेदी और रोहिणी सिंह का नाम भी इनमे शामिल है. टू-जी घोटाले का भंडाफोड़ करने वाले द पायनियर के इनवेस्टिगेटिव रिपोर्टर जे. गोपीकृष्णन का नाम भी शामिल है. पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा रिपोर्टर सैकत दत्ता, ईपीडब्ल्यू के पूर्व संपादक परंजॉय गुहा ठाकुरता, टीवी 18 की पूर्व एंकर और द ट्रिब्यून की डिप्लोमैटिक रिपोर्टर स्मिता शर्मा, आउटलुक के पूर्व पत्रकार एसएनएम अब्दी और पूर्व डीएनए रिपोर्टर इफ्तिखार गिलानी का नाम शामिल है.

केवल बड़े शहरों के पत्रकार ही नहीं बल्कि देश के अलग- अलग राज्यों में काम कर रहे पत्रकारों पर निगरानी रखी गई. द वायर की माने तो उत्तर-पूर्व की मनोरंजना गुप्ता, जो फ्रंटियर टीवी की प्रधान संपादक हैं, बिहार के संजय श्याम,पंजाबी दैनिक रोज़ाना पहरेदार के प्रधान संपादक हेरन लुधियाना और जसपाल सिंह हेरन के नाम शामिल हैं.

क्या कहता है एनएसओ

द वायर में प्रकाशित एनएसओ के बयान में इस दावे का खंडन किया है. रिपोर्ट में लिखा गया, "द वायर और पेगासस प्रोजेक्ट के साझेदारों को भेजे गए पत्र में कंपनी ने शुरुआत में कहा कि उसके पास इस बात पर ‘यकीन करने की पर्याप्त वजह है’ कि लीक हुआ डेटा ‘पेगासस का उपयोग करने वाली सरकारों द्वारा निशाना बनाए गए नंबरों की सूची नहीं’ है, बल्कि ‘एक बड़ी लिस्ट का हिस्सा हो सकता है, जिसे एनएसओ के ग्राहकों द्वारा किसी अन्य उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया गया.”

यह पूछे जाने पर कि ये "अन्य उद्देश्य" क्या हो सकते हैं, कंपनी ने रुख बदल दिया और दावा किया कि लीक हुए रिकॉर्ड "सार्वजनिक रूप से सुलभ, एचएलआर लुकअप सेवा जैसे खुले स्रोतों" पर आधारित थे - और इसका "ग्राहकों की सूची पर कोई असर नहीं था."

क्या कहता है भारत का कानून?

भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी एक्ट) उन प्रक्रियाओं और कानूनों को निर्धारित करता है जिनका वैध अवरोधन के लिए पालन किया जाना चाहिए. अलग-अलग देशों में अलग-अलग कानून हैं लेकिन भारत में किसी भी व्यक्ति, निजी या अधिकारी पर निगरानी के लिए स्पाइवेयर से हैकिंग का उपयोग आईटी अधिनियम के तहत अपराध है.

द वायर के अनुसार डेटाबेस में 40 से अधिक पत्रकार, तीन प्रमुख विपक्षी हस्तियां, सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा जज, नरेंद्र मोदी सरकार में दो सेवारत मंत्री, सुरक्षा संगठनों के वर्तमान और पूर्व प्रमुख और अधिकारी और कई उद्योगपति शामिल हैं जिन पर पेगासस द्वारा निगरानी रखी गई. इन सभी नामों का खुलासा अगले चार दिन में हो सकता है.

इस इन्वेस्टीगेशन में भारत सरकार की भूमिका को समझने की आवश्यकता है. क्योंकि एनएसओ सरकार के लिए काम करती है, संभावना है कि भारतीय सरकार ने निगरानी के आदेश दिए हों. यदि ऐसा नहीं है, तो भारत सरकार को एनएसओ के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए.

सरकार ने क्या जवाब दिया?

इस हफ्ते की शुरुआत में पेगासस प्रोजेक्ट पार्टनर्स द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजे गए विस्तृत सवालों के जवाब में, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने कहा, "भारत एक मजबूत लोकतंत्र है जो अपने सभी नागरिकों को निजता का अधिकार सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है. विशिष्ट लोगों पर सरकारी निगरानी के आरोपों का कोई ठोस आधार या इससे जुड़ा कोई आरोप सच नहीं है.

विशेष रूप से इनकार किए बिना कि सरकार द्वारा पेगासस का उपयोग किया जा रहा है, मंत्रालय ने कहा, "अवरोधन, निगरानी और डिक्रिप्शन के प्रत्येक मामले को सक्षम प्राधिकारी द्वारा अनुमोदित किया जाता है. इसलिए ऐसी कोई भी गतिविधि किसी भी कंप्यूटर संसाधन से कानून की उचित प्रक्रिया के साथ ही की जाती है."

Also see
article imageविज्ञापनों पर संसद के आंकड़ों की न्यूजलॉन्ड्री की रिपोर्ट पर पीआईबी का जवाब
article imageऑनलाइन मीडिया संस्थान को प्रेस और किताब कानून के तहत भेजा नोटिस
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like