दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
इस देश की सवा अरब आबादी में लगभग 30 फीसद लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं. लगभग 25 फीसद लोग निरक्षर हैं. जो 75 फीसद साक्षर हैं उसका बड़ा हिस्सा नवसाक्षर है. नवसाक्षर यानी वह समाज जिसके पास पढ़ाई-लिखाई से संबंधित कोई डिग्री है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि वह बौद्धिक रूप से भी संपन्न हो चुका है. इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि भारत की 15.94 यानी लगभग 16 फीसद आबादी गंभीर रूप से गलत सूचनाओं यानी मिस इन्फॉरमेशन की शिकार है. इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि पूरी दुनिया का 18 फीसद मिस इन्फॉरमेशन और फेक न्यूज़ का उत्पादन भारत में हो रहा है. भूमिका लंबी हो जाए उससे पहले बता दूं कि नवसाक्षरों का जिक्र आज क्यों हो रहा है.
बीते कुछ दिनों में बहुत कुछ ऐसा हुआ है जिससे बनाना रिपब्लिक की याद आ गई. एक ही तरह के आरोप में एक व्यक्ति को जेल में दूसरे को आज़ादी, अदालतें तथ्यों की बजाय कथ्यों पर यकीन करने लगें, पुलिस सरकार की निजी मिलीशिया बन जाए, सरकारी एंजेंसियां सरकार का हथियार बन जाएं, जनता यानी नागरिक की परिभाषा सिर्फ भक्त हो जाए, तब लोकतंत्र को पिलपिले लोकतंत्र बोले तो बनाना रिपब्लिक में बदलते देर नहीं लगती. देखिए बनाना रिपब्लिक के प्राथमिक लक्षण इस हफ्ते की टिप्पणी में.
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