मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने सीतापुर मामले में जुबैर की जमानत बढ़ा दी थी, लेकिन अन्य मामलों में उन्हें राहत नहीं मिली थी. जुबैर 27 जून को गिरफ्तारी के बाद से हिरासत में ही हैं.
एफसीआरए उल्लंघन के आरोपों से इनकार करते हुए ग्रोवर ने ऑल्ट न्यूज़ वेबसाइट के डोनेट सेक्शन का हवाला देते हुए कहा कि वह विदेशी चंदा स्वीकार नहीं करते क्योंकि वह एफसीआरए के तहत पंजीकृत नहीं हैं.
ग्रोवर ने रेजरपे के सीईओ के एक बयान का भी जिक्र किया जिसमें उन्होंने कहा था कि उनके प्लेटफार्म पर केवल घरेलू भुगतान किया जा सकता है.
ग्रोवर ने कहा कि उन्होंने एसपीपी का वक्तव्य सुना जिसमें वह कह रहे थे कि ऑल्ट न्यूज़ फंड की एक्सेल शीट में पाकिस्तानी अंतरराष्ट्रीय फोन कोड +92 पाया गया है. उन्होंने बताया कि कोई कोड नहीं बल्कि माइक्रोसॉफ्ट एक्सेल का एक फॉर्मूला है. उन्होंने यह भी कहा कि अगर एफसीआरए प्रावधानों का उल्लंघन हुआ है, तो इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि पैसा अमेरिका से आया है या पाकिस्तान से, और न्यायालय में इस तरह किसी देश का नाम लेना दुर्भाग्यपूर्ण है.
इसके पहले एसपीपी ने कहा था कि जुबैर को पाकिस्तान, सऊदी अरब और ईरान जैसे देशों से विदेशी चंदा मिल रहा था. गुरुवार को उन्होंने कहा कि रेजरपे के जरिए जुबैर के खाते में 56 लाख रुपए जमा हुए थे.
दलीलों के अंत में जब अदालत ने पूछा कि जुबैर की हिरासत क्यों जरूरी है तो एसपीपी ने कहा कि ऑल्ट न्यूज़ को चंदा देने वाले कुछ लोग गुमनाम हैं और जुबैर को रिहा करने पर उनके बारे में पता नहीं चल सकेगा.
गुरुवार को अदालत में ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म किसी से ना कहना भी चलाई गई, जिसके एक दृश्य का प्रयोग ज़ुबैर ने कथित रूप से आपत्तिजनक ट्वीट में किया था. ग्रोवर ने कहा कि सरकारें आती-जाती रहती हैं लेकिन नागरिकों के कुछ अधिकार होते हैं जिनमें उपहास करने की आजादी भी शामिल है. उन्होंने कहा कि मुखर्जी उसी अधिकार का प्रयोग कर रहे थे.
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