चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश की किस्मत का रोड़ा कहां अटका?

उत्तर प्रदेश की बड़ी आबादी बाहर से आने वाले पैसों पर जी रही है. लोग गांव छोड़कर शहर की तरफ भाग रहे हैं और शहरी झुग्गी-झोपड़ियों वाली बस्ती में बढ़ोतरी हो रही है. एक बड़े मध्यवर्ग का उदय हुआ है और शहर में गरीबी भी बढ़ी है.

WrittenBy:विवेक मिश्रा
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उत्तर प्रदेश में गुजरात और दक्षिण के राज्यों की तरह सहकारिता वाली खेती के भी प्रयास नहीं किए गए. न ही खेती पर निर्भर रहने वाले लघु व कुटीर उद्योगों को पनपने वाली कोई योजना ही प्रशस्त की गई.

इसके अलावा उत्तर प्रदेश के विघटन की योजना बनी और फिर समय-समय इस पर सवाल भी उठता रहा. यदि पूर्वी भाग के छह करोड़ और मध्य भाग के छह करोड़ आबादी वाले हिस्सों को स्पष्ट तौर पर अलग करके योजनाएं बने तो विकास का लाभ जरूर इन हिस्सों को मिल सकता है.

उत्तर प्रदेश में ग्रामीण स्तर पर कृषि और खाद्य से जुड़े उद्योग-धंधों को पनपने के लिए जब सरकारी संस्थाएं नाकाम साबित हुईं, तब 1980 में गैर सरकारी संस्थाओं का आगमन हुआ, लेकिन भ्रष्टाचार ने इन्हें निष्प्रभावी बना दिया.

इसके बाद 1990 स्वयं सहायता समूहों का उदय हुआ, यह भी उद्देश्यों से भटककर एक दबाव समूह की तरह फंड जुटाने का जरिया बन गए.

भ्रष्टाचार के खात्मे को लेकर प्रदेश में राजनीति ने कोई ठोस प्रयास नहीं किए, जिसने आमजन में एक बड़ी हताशा पैदा कर दी है और उनमें प्रगति की भावना को हतोत्साहित कर दिया.

हताशा की पैठ

जाति और समुदाय आधारित पूर्वाग्रहों ने राज्य को काफी पीछे धकेला है. खासतौर से पूर्वजों की रुढ़ियों को पकड़े रहने की जिद उत्तर प्रदेश के तमाम हिस्सों में अब भी बनी हुई है. पर्दा प्रथा इनमें से एक है. इनोवेशन (नवोन्मेष) की भावना यहां टूट जाती है, क्योंकि या तो तमाम लोग शिक्षा से वंचित है या फिर जिनके पास शिक्षा है वह बहुत ही खराब गुणवत्ता वाली है.

दक्ष मानवश्रम का अभाव इस राज्य के प्रगति की बड़ी बाधा है. इसके अलावा रोजगार का एक ज्वलंत सवाल है जो कई दशकों से इस राज्य में बना हुआ है, लेकिन लोगों के भीतर पैठ कर गई गहरी हताशा और निराशा के कारण यह प्रमुख मुद्दा नहीं बन पाता.

लगातार कई दशकों से गरीबी की मार झेल रहा यह प्रदेश कुपोषण के मामले में भी पीछे नहीं है, लेकिन आमजन के बीच कुछ नहीं बदलेगा की भावना इतनी पुख्ता हो चुकी है कि वह मायूसी में तब्दील हो जाती है.

प्रदेश में बदलाव का रास्ता टिकाऊ विकास की ओर कदम बढाए जाने से निकल सकता है. लोगों में प्रगति का विश्वास लौट सकता है, लेकिन यह एक धीमी प्रक्रिया है और प्रदेश इसके लिए भी सही से तैयार नहीं हो पाया है.

साभार- डाउन टू अर्थ

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