सात साल से मोदी सरकार अखबारों में सिर्फ डॉ. आंबेडकर पुरस्कार का इश्तेहार दे रही है, वास्तविक पुरस्कार नहीं दे रही, ऐसा क्यों?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार इस वर्ष (2022) भी प्रतिष्ठित डॉक्टर आंबेडकर अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार और डॉक्टर आंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार नहीं देगी. हर साल14 अप्रैल को डा. आंबेडकर जयंती के मौके पर इसे देने का प्रचलन रहा है. मौजूदा सरकार के कार्यकाल में 2015 से डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के नाम पर हर वर्ष दिया जाने वाला राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार नहीं दिया गया है.
डॉ. भीमराव आंबेडकर मौजूदा दौर में राजनीतिक दलों के सबसे लोकप्रिय ऐतिहासिक नेता बनकर निकले हैं. उनसे करीबी जताने में कोई भी दल पीछे नहीं रहना चाहता. आम आदमी पार्टी की पंजाब में बनी सरकार ने ज़ोर-शोर से सरकारी दफ्तरों में आंबेडकर की तस्वीर लगाने का ऐलान किया. हमेशा आज़ादी के नायकों के अभाव से जूझती रही भाजपा ने भी आंबेडकर पर अपना दावा पेश किया था. 2018 में दिल्ली के अलीपुर रोड पर आंबेडकर मेमोरियल का उद्घाटन करते समय कहा था, "कांग्रेस ने देश को भ्रमित किया. डॉ साहब को सच्ची श्रद्धांजलि हमने दी है."
इसके एक साल पहले 2017 में आंबेडकर इंटरनेशलन सेंटर का उद्धाटन करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था, "डॉ. आंबेडकर के जीवन से संबंधित महत्वपूर्ण जगहों को तीर्थस्थल के रूप में विकसित किया गया है." इस संदर्भ में उन्होंने दिल्ली के अलीपुर, मध्य प्रदेश के महू, मुंबई की इंदु मिल, नागपुर में दीक्षा भूमि और लंदन के उनके मकान का उल्लेख किया था.
तो डॉक्टर आंबेडकर की विरासत पर कब्जे की इस होड़ में बीते सात सालों से एक गड़बड़ी हर साल की जा रही है. उनके नाम पर दिया जाने वाला पुरस्कार नहीं दिया जा रहा. दिलचस्प यह है कि सरकार हर साल अखबारों में पुरस्कार के लिए विज्ञापन निकलवा रही है लेकिन पुरस्कार नहीं दे रही है. डॉ. आंबेडकर पुरस्कार की शुरुआत साल 1992 में हुई थी. तब यह केवल राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार था लेकिन 1995 में डॉक्टर आंबेडकर के नाम से एक नए पुरस्कार की घोषणा की गई जिसे डॉक्टर आंबेडकर इंटरनेशनल अवार्ड के नाम से जाना जाता है.
2022 में डॉ आंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार और डॉक्टर आंबेडकर अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार देने का एक विज्ञापन आंबेडकर फाउंडेशन की तरफ से 9 मार्च, 2022 को दिया गया. इसी तरह का एक विज्ञापन अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार के लिए भी 9 मार्च को ही दिया गया था.
डॉक्टर आंबेडकर के नाम से दिया जाने वाला राष्ट्रीय पुरस्कार 10 लाख रुपए का होता है और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार 15 लाख रुपए का होता है. साथ में एक प्रशस्ति पत्र भी दिया जाता है. राष्ट्रीय पुरस्कार उन्हें दिया जाता है जो कि भारत में डॉक्टर आंबेडकर के विचारों को समाज में आगे बढ़ाने के लिए काम करते हैं. इसी तरह अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार उन्हें दिया जाता है जो कि दुनिया भर में गैर बराबरी, सामाजिक न्याय और अन्याय के खिलाफ संघर्ष करके या रचनात्मक काम करके अपनी पहचान बनाते हैं.
यह दोनों ही पुरस्कार डॉ आंबेडकर फाउंडेशन की तरफ से दिए जाते हैं. इसकी तारीख 14 अप्रैल होती है. 2022 में भी यह पुरस्कार 14 अप्रैल को दिया जाना था लेकिन आंबेडकर इटरनेशनल सेंटर के निदेशक विकास त्रिवेदी का कहना है, "इस वर्ष भी पुरस्कार प्रशासनिक कारणों से टाल दिया गया है."
इंटरनेशनल सेंटर डा. आंबेडकर फाउंडेशन का हिस्सा है. यदि सरकारी दस्तावेजों का अध्ययन करें तो उसमें यह बात पाई जाती है कि वर्ष 2015 से 2021 तक डॉ आंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार “प्रशासनिक कारणों” से ही तय नहीं किए जा सके. साथ ही इस योजना पर सरकार द्वारा पुनर्विचार किया जा रहा था. इसी तरह अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी 2001 से नहीं दिए गए और उनके न दिए जाने की वजह भी “प्रशासनिक” बताई गई.
हैरानी की बात यह है कि 9 मार्च, 2022 को राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार के लिए लोगों एवं संस्थाओं से नाम तो मांगे गए लेकिन यह पुरस्कार नहीं दिया जा रहा है. जिन लोगों ने आवेदन किया या जिनके नाम प्रस्तावित किए गए उनकी कोई सूची उपलब्ध नहीं है. इसकी सूचना इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के या उनके संगठनों की किसी भी वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है. काफी कोशिश करने के बावजूद इस मसले पर कोई जानकारी देने को तैयार नहीं है. सबने चुप्पी साथ रखी है. इस बात की पुष्टि भी बहुत मुश्किल से विकास त्रिवेदी ने की कि इस साल 14 अप्रैल, 2022 में भी यह पुरस्कार नहीं दिए जा रहे हैं.
बताया जाता है कि मार्च महीने में पुरस्कारों के लिए विज्ञापन के बाद पुरस्कारों से संबंधित जानकारी प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा मांगी गई लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय से इसे हरी झंडी नहीं मिली. डॉ आंबेडकर फाउंडेशन की नियमावली यह बताती है कि पुरस्कारों के लिए व्यक्तियों या संस्थाओं के नाम हर वर्ष नवंबर महीने में मांगे जाएंगे और 31 दिसंबर तक यह नाम भेजे जा सकते थे. लेकिन 2022 में व्यक्तियों या संस्थाओं के नाम मार्च महीने में मांगे गए और इसके लिए लगभग 15 दिन का यानी 27 मार्च तक का समय दिया गया. पुरस्कार दिए जाने की एक लंबी प्रक्रिया होती है. पुरस्कार के लिए नाम मांगे जाने के बाद उसकी एक समिति द्वारा जांच पड़ताल की जाती है. इसके बाद भारत के राष्ट्रपति द्वारा जूरी सदस्यों को मनोनीत किया जाता है.
2022 में इस जूरी के अध्यक्ष देश के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू को बनाया गया था. इसके बाद 14 अप्रैल को आंबेडकर जयंती के अवसर पर एक समारोह में राष्ट्रपति द्वारा यह दोनों पुरस्कार दिए जाते हैं. उपराष्ट्रपति के रूप में वैंकेया नायडू का और राष्ट्रपति के रूप में रामनाथ कोविद के लिए इस कार्यकाल में संभवत: अपने हाथों डा. आंबेडकर के नाम पर स्थापित पुरस्कार देने के लिए यह आखिरी मौका था.
1992 में डॉ आंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार दिए जाने की घोषणा के बाद से अब तक महज सात बार यह पुरस्कार दिया गया है. जबकि अब तक यह पुरस्कार 30 बार दिए जाने चाहिए थे. इसी तरह अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार के लिए हर वर्ष एक जुलाई को विज्ञापन प्रकाशित करने का नियम है और 30 नवंबर तक पूरी दुनिया से इस पुरस्कार के लिए व्यक्तियों और संस्थाओं के नाम मांगे जाने का नियम है. लेकिन 2022 में अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों के लिए भी 9 मार्च को विज्ञापन दिया गया. अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार अब तक केवल दो बार दिया गया है. 1999 में यह पुरस्कार मुरलीधर देवीदास उर्फ बाबा आमटे को दिया गया था और इसके बाद सन 2000 में यह पुरस्कार स्पेन के रेमी फर्नाड क्लाउडे को दिया गया.
मजेदार बात यह है की इन पुरस्कारों के लिए विज्ञापन धड़ल्ले से आ जाते हैं. 2015 के विज्ञापन पर एक नजर डाली जा सकती है. इस पुरस्कार का एक दिलचस्प पहलू है कि विज्ञापन के लिए पुरस्कार देने की कवायद शुरू होती है या फिर पुरस्कार देने के लिए विज्ञापन निकाले जाते हैं. एक अनुमान के अनुसार इस वर्ष भी विज्ञापन में 50 लाख रुपए से ज्यादा का खर्च आया है. दूसरी दिलचस्प बात यह है कि “प्रशासनिक” कारणों से यह पुरस्कार नहीं दिया जा रहा है लेकिन प्रशासनिक कारणों के रहस्य को आज तक खोला नहीं जा सका.
दरअसल डॉ आंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार और डॉक्टर आंबेडकर अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार नियमित रूप से हर साल नहीं दिए जाने का कारण राजनीतिक होता है. यह भी कम दिलचस्प नहीं है कि डॉक्टर आंबेडकर के नाम की राजनीति सभी संसदीय पार्टियां करती हैं. इन दिनों तो होड़ लगी है उनकी विरासत से जुड़ने की, लेकिन इतने वर्षों से इन पुरस्कारों को नहीं दिए जाने पर ये कोई सवाल तक खड़ा नहीं करते.
9 मार्च को जब विज्ञापन आया तो इस वर्ष यह भरोसा बना कि शायद इस वर्ष डॉ आंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार दिए जा सकेंगे. डा. आंबेडकर के विचारों के लिए काम करने वालों को प्रोत्साहित होने का एक अवसर होगा. लेकिन पिछले वर्षों की तरह इस वर्ष भी यह पुरस्कार आंबेडकर जयंती 14 अप्रैल को नहीं दिए जा रहे हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री हिन्दी के साप्ताहिक संपादकीय, चुनिंदा बेहतरीन रिपोर्ट्स, टिप्पणियां और मीडिया की स्वस्थ आलोचनाएं.