छतीसगढ़ की राज्य सरकार वरिष्ठ पत्रकारों को पेंशन देती है, लेकिन सरकारी नियमों की वजह से राज्य के कई वरिष्ठ पत्रकारों को कोई मदद नहीं मिल रही है.
छत्तीसगढ़ के स्टील सिटी प्रेस क्लब भिलाई ने 60 साल से अधिक उम्र के पत्रकारों को हर महीने एक हजार रुपए देने की घोषणा की है. हाल ही में अस्तित्व में आए प्रेस क्लब ने यह फैसला अपनी पहली बैठक में लिया है.
यह देश और छत्तीसगढ़ राज्य का शायद पहला ऐसा क्लब होगा जो 60 साल से अधिक उम्र में काम कर रहे वरिष्ठ पत्रकारों को हर महीने मानदेय देगा. यह राशि प्रेस क्लब अपने स्तर पर देगा और इसमें सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं है. भिलाई में पहले से ही प्रेस क्लब हैं, लेकिन यह नया क्लब गठित किया गया है. क्लब के कोषाध्यक्ष निलेश त्रिपाठी कहते हैं, “अभी तक 116 लोगों ने सदस्यता के लिए आवेदन किया है. अभी 20 लोगों की कार्यकारिणी है.”
छतीसगढ़ की राज्य सरकार भी वरिष्ठ पत्रकारों को पेंशन देती है,लेकिन नीतियों में खामियां होने की वजह से राज्य के वरिष्ठ पत्रकारों को कोई मदद नहीं मिल रही है. नियमों में बदलाव की बात भी हुई लेकिन कोई फैसला नहीं हो पाया. जिसके कारण कई पत्रकारों को कोई मदद नहीं मिल पा रही हैं, जबकि उन्हें मदद की जरूरत है.
जब राज्य सरकार मदद दे ही रही तो एक प्रेस क्लब को वरिष्ठ पत्रकारों को मदद देने की जरूरत क्यों पड़ी? इस पर प्रेस क्लब के कोषाध्यक्ष निलेश त्रिपाठी न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, “हमारे यहां भिलाई में 60 साल से ज्यादा उम्र के कई ऐसे पत्रकार हैं जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी शहर की भलाई और सकारात्मक पत्रकारिता के लिए दे दी. ऐसे पत्रकारों की मदद के लिए क्लब की ओर से ये निर्णय लिया गया है.”
पत्रकारों को मानदेय एक अप्रैल 2022 से दिया जाएगा. कुल कितने पत्रकारों को इसका लाभ मिलेगा, इस पर निलेश कहते हैं कि अभी तक कुल 15-16 वरिष्ठ पत्रकारों का आवेदन हमें मिला है. जैसे-जैसे और लोग जुड़ेगें यह नंबर बढ़ता जाएगा. यह मदद क्लब के सदस्यों ने की है. क्लब को कोई भी सरकारी मदद नहीं मिली है.
यह पूछे जाने पर कि जब सरकार भी वरिष्ठ पत्रकारों की मदद करती है, तो फिर अलग से मदद क्यों? इस पर त्रिपाठी कहते हैं, ”इस मदद का सरकार से कोई लेना-देना नहीं है. दूसरी बात सरकार उनकी मदद करती है जिनके पास राज्य अधिमान्यता कार्ड हो. जिसके कारण बहुत कम पत्रकारों को मदद मिल पाती है.”
सरकारी अधिमान्यता के कारण कई वरिष्ठ पत्रकार, सरकार की तरफ से दी जाने वाली ‘वरिष्ठ पत्रकार सम्मान निधि योजना’ से बाहर हैं. यह राशि 60 साल से अधिक उम्र के पत्रकारों को दी जाती है. पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के दौरान पत्रकारों को पांच हजार रुपए दिए जाते थे लेकिन कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार ने उसे बढ़ाकर 10 हजार रुपए कर दिया साथ ही 62 साल की उम्र को घटाकर 60 साल कर दिया, जिससे की ज्यादा से ज्यादा पत्रकारों को इसका लाभ मिले.
सरकार ने पेंशन राशि तो बढ़ा दी, लेकिन पेंशन के नियमों के कारण कई पत्रकार इस योजना से बाहर हैं. छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार सतीश जायसवाल न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, “राज्य सरकार द्वारा दी जाने वाले पेंशन के लिए अप्लाई किया था, लेकिन आवेदन रिजक्ट हो गया”.
वरिष्ठ पत्रकार का आवेदन इसलिए रिजेक्ट कर दिया गया क्योंकि उनके पास 10 साल का लगातार अधिमान्यता कार्ड नहीं था. जबकि वह कई दशकों से पत्रकारिता क्षेत्र में काम कर रहे हैं. ऐसे और भी कई पत्रकार हैं जो सरकार के इस नियम के कारण सरकार से मिलने वाली पेंशन से बाहर हैं.
बता दें कि अधिमान्याता कार्ड एक तरह का परिचय पत्र है. जो राज्य सरकार पत्रकारों के लिए जारी करती है. इसी कार्ड के जरिए पत्रकार सरकारी कार्यक्रम में प्रवेश पाते है.
सतीश जायसवाल को हाल ही में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने वसुंधरा सम्मान भी दिया था जो साहित्य और पत्रकारिता में योगदान के लिए दिया जाता है. वह दिनमान, धर्मयुग, जनसत्ता, प्रेस ट्रस्ट आफ इंडिया समेत कई अन्य समाचार पत्रों से जुड़े रहे.
नवभारत दुर्ग में काम करने वाले वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र ठाकुर को छत्तीसगढ़ सरकार की तरफ से पेंशन स्कीम के तहत 10 हजार रूपए मिलते हैं. अधिमान्यता कार्ड न होने की बात बताते हुए वह कहते हैं,”अधिमान्यता हर संस्थान में सीमित पत्रकारों को मिलता है. इसलिए बहुत से पत्रकारों के पास यह कार्ड नहीं होता, लेकिन वह भी पत्रकार हैं. हालांकि वे सरकार की पेंशन स्कीम से बाहर हैं”.
10 साल अधिमान्यता के अलावा पेंशन लेने की शर्त हैं कि बतौर मीडियाकर्मी 20 साल काम का अनुभव होना चाहिए और कोई आपराधिक प्रकरण दर्ज नहीं होना चाहिए.
एक और वरिष्ठ पत्रकार जिया उल हुसैनी, जिन्हें सरकार की तरफ से पेंशन मिलती है वह भी कड़े नियमों की वजह से कई योग्य पत्रकारों को पेंशन नहीं मिलने की बात कहते हैं. वह बताते हैं, “पत्रकारों के पास 20 साल का अनुभव तो है लेकिन अधिमान्यता के नियम की वजह से वह पेंशन से बाहर हो जाते हैं. अगर हर जिले से जिन पत्रकारों को पेंशन मिल रही है उनकी संख्या देखें तो बहुत कम है.”
पेंशन नियमों के कारण कई पत्रकारों को न मिलने वाले सरकारी मदद को लेकर हमने छत्तीसगढ़ के जनसंपर्क विभाग से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन संपर्क नहीं हो सका.
The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.
ContributeGeneral elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.
Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?