एनएल चर्चा के इस अंक में पांच राज्यों का विधानसभा चुनाव परिणाम मुख्य विषय रहा. उत्तर प्रदेश में भाजपा की वापसी, समाजवादी पार्टी के प्रदर्शन में सुधार, बसपा और कांग्रेस का बुरा हाल, पंजाब में आम आदमी पार्टी की बड़ी जीत, उत्तराखंड में भाजपा लगातार दूसरी बार बनाने जा रही सरकार, वहीं मणिपुर और गोवा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में भाजपा की वापसी.
चर्चा में इस हफ्ते एनडीटीवी के पत्रकार मोहम्मद गजाली, वरिष्ठ पत्रकार एमएन पार्थ, विदेश मामलों की विशेषज्ञ पत्रकार स्मिता शर्मा, न्यूज़लॉन्ड्री के स्तम्भकार आनंदवर्धन शामिल हुए. साथ ही न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस ने भी चर्चा में हिस्सा लिया. चर्चा का संचालन कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
चर्चा की शुरुआत अतुल विधानसभा चुनाव और उसके नतीजों से करते हैं. अतुल कहते हैं, “कई लिहाज से यह नतीजे कुछ चौंकाने वाले हैं और जो विपक्षी पार्टियों का दायरा है उस लिहाज से देखा जाए तो एक लोकतांत्रिक देश में उनके लिए चिंता भी पैदा करने वाला है. विपक्षी पार्टियां तमाम कोशिशों के बाद भी मतदाताओं तक नहीं पहुंच पा रही हैं. वहीं भारतीय जनता पार्टी की सफलता तारीफ के काबिल है. विरोधी लहर जैसी धारणा को वह मात देने में कामयाब रही है. पंजाब चुनावों में आम आदमी पार्टी की जीत का आंकड़ा भी चौंकाने वाला है.
पंजाब विधानसभा चुनाव के बारे में बात करते हुए अतुल मोहम्मद गजाली से सवाल करते हैं, क्या अकाली दल और कांग्रेस जैसी ट्रेडिशनल पार्टियों से लोग ऊब गए थे इसलिए आम आदमी पार्टी को मौका मिला, हालांकि किसान आंदोलन के बाद एक दौर आया था निकाय चुनावों का जिसमें कांग्रेस पार्टी को जबरदस्त समर्थन मिला था. उस चीज की कमी नजर आई इन विधानसभा चुनावों में, आप इस बदलाव को किस तरह देखते हैं कि कांग्रेस किसान आंदोलन की सवारी से उतर गई और आम आदमी पार्टी उस पर सवार हो गई?
इस सवाल के जवाब में गजाली कहते हैं, “अगर हम 2017 के चुनावों को देखेंगे तो आम आदमी पार्टी की रणनीति उनकी कैंपेन बिल्कुल वही थी. 2017 में कैप्टन अमरिंदर सिंह को जो बहुमत मिला वो भी बदलाव के लिए ही था, क्योंकि 10 साल अकाली दल ने राज किया था तो बदलाव की जो राजनीति है वह पंजाब में शुरू से नहीं है. 2014 में आम आदमी पार्टी को चार सांसद नहीं मिलते, तो यह कहना कि बदलाव सिर्फ अभी हुआ है, बिल्कुल हुआ है लेकिन 10 साल अकाली दल की सरकार के बाद भी लोग इतना त्रस्त थे तभी अमरिंदर सिंह को बहुमत मिला. अमरिंदर सिंह 77 सीटों के साथ आए थे उस समय भी लग रहा था कि विपक्ष बिल्कुल खत्म हो गया है.
वे आगे कहते हैं, “अगर बात करें निकाय चुनावों में मिले समर्थन और किसान आंदोलन की तो किसान आंदोलन से एक दूसरा ही फेज पंजाब में शुरू हो गया. वह यह था कि जब किसान संघर्ष कर रहे थे तो उस वक्त हर गांव में यह कहा गया था कि आप कैंपेनिंग के लिए न जाएं क्योंकि गांव के लोग नेताओं को पकड़-पकड़ के सवाल पूछ रहे थे. जिन पार्टियों को सबसे ज्यादा खामियाजा भुगतना पड़ा वह कांग्रेस और अकाली दल थे क्योंकि वही ट्रेडिशनल थीं. उसी वक्त यह जहनियत बननी शुरू हो गई थी कि सवाल किससे पूछा जाए तो ट्रेडिशनल पार्टी से पूछा जाए और उसका विकल्प कौन है तो वह आम आदमी पार्टी है क्योंकि उनके लिए पंजाब में उनके ऊपर कोई बैगेज नहीं था. उनके पास परफॉर्मेंस दिखाने के लिए दिल्ली था दूसरी पार्टियों के पास दिखाने के लिए कुछ नहीं, अकाली दल खुद 2017 में हारी हुई पार्टी थी. कांग्रेस राज कर रही थी तो उनसे भी सवाल हो रहे थे तो जो किसान आंदोलन से फायदा मिलना था उस फायदे को कैप्चर आम आदमी पार्टी ने बहुत अच्छी तरह किया.”
गोवा के चुनाव परिणामों पर चर्चा में अतुल कहते हैं, “पर्यटकों का केंद्र गोवा जो है उससे हटकर भी एक गोवा है जिसका हमने दौरा किया था और हमने पाया कि जमीन पर लोगों के भीतर भारतीय जनता पार्टी के प्रति एक आक्रोश है इसलिए सबसे ज्यादा चौंकाने वाला जो नतीजा रहा है वह गोवा का है, और इससे एक बात साफ हुई है कि गोवा के लोगों के लिए किसी भी नेता की विचारधारा या उसका किसी पार्टी से जुड़ाव मायने नहीं रखता है. व्यक्तिगत रूप से प्रत्याशी और जो स्थानीय मुद्दे हैं वह वहां की जनता के लिए महत्वपूर्ण हैं.”
मणिपुर के सवाल पर स्मिता कहती हैं, “मणिपुर के नतीजे काफी दिलचस्प हैं. कुछ सालों पहले तक आप जब-जब उत्तर पूर्व की बात करते थे तो उसमें कांग्रेस का दबदबा ही होता था और वहां हम सोच भी नहीं सकते थे कि इस तरह धीरे धीरे कमल खिलने लगेगा. आज हम अगर मणिपुर के नतीजे देखें तो जो सरे क्षेत्र हैं केवल नागा हिल्स क्षेत्र को छोड़ दें तो सभी जगह बीजेपी ने अपनी बढ़त बना ली है.”
टाइमकोड्स :
00 - 04:50 परिचय
05:00 - 27:20 पंजाब चुनाव
27:25 - 50:41 गोवा, मणिपुर और उत्तराखंड चुनाव
50:55 - 1:14:21 यूक्रेन - रूस विवाद
1:14:56 - 1:41:40 उत्तर प्रदेश चुनाव
1:41:40 - सलाह और सुझाव
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एडिटिंग - उमराव सिंह
ट्रांसक्राइब - तस्नीम फातिमा