श्योपुर जिले के विजयपुर ब्लॉक में 10,285 क्विंटल बाजरे की खरीद की गई. इसमें से सात हजार क्विंटल को ‘खराब’ बताकर वापस कर दिया गया है.
सरकारी दबाव में की खरीदारी?
एक तरफ जहां किसानों का दावा है कि उनका बाजरा खराब नहीं था, वहीं खरीद करने वाली सहकारी संस्था के प्रबंधक की मानें तो फसल खराब होने के कारण वे खरीदारी नहीं करना चाह रहे थे लेकिन सरकारी दबाव में उन्हें खरीदनी पड़ी.
मुन्नालाल धाकड़ न्यूज़लॉन्ड्री से एक पत्र साझा करते हैं, जो मध्य प्रदेश स्टेट सिविल सप्लाईज कॉर्पोरेशन श्योपुर के जिला प्रबंधक (डीएमओ) को लिखा गया है. 9 दिसंबर 2021 को लिखे गए इस पत्र का विषय, ‘बाजरा के गुणवत्ता के संबंध में’ है. पत्र में लिखा है, ‘‘खरीदी केंद्र में कुछ-कुछ किसानों का बाजरा गुणवत्ताहीन है, जिसके कारण हम खरीदारी रोक रहे हैं.’’
इससे एक दिन पहले, 8 दिसंबर 2021 को भी एक पत्र सोसायटी द्वारा जिला प्रबंधक को भेजा गया जिसमें बाजरे की गुणवत्ता मापने के लिए यंत्र की मांग की गई थी.
न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए मुन्नालाल धाकड़ कहते हैं, ‘‘गुणवत्ता मापने के लिए संयंत्र तो शासन ने नहीं दिया. ऐसे में हमने खरीद पर रोक लगा दी. इसी बीच एक दिन डीएमओ श्योपुर यहां खरीद केंद्र पर आए. किसानों ने उनके सामने अपनी बात रखी तो वे मौखिक रूप से मुझे खरीद का आदेश देकर चले गए. लिखित में कुछ नहीं दिया. उनके जाने के बाद मुझे मजबूरी में किसानों की फसल खरीदनी पड़ी.’’
धाकड़ आगे कहते हैं, ‘‘सवाल यह है कि डीएमओ साहब के कहने पर मैंने खरीदारी की. इसके अलावा 10 हजार क्विंटल में से सात हजार तो वापस ही कर दिया. यानी हमारे यहां से जो बाजरा गया उसमें से ज्यादातर खराब था, तो पहले ट्रक के पहुंचने के साथ ही मना क्यों नहीं कर दिया? अब मैं दोनों ही तरफ से पीसा जा रहा हूं. किसान वापस ले जाने को तैयार नहीं हैं, फोन करने पर वे उल्टा सीधा बोलते हैं. दूसरी तरफ सरकार ले नहीं रही है.’’
श्योपुर के डीएमओ एके द्विवेदी, धाकड़ के आरोपों से इंकार करते हैं. वह कहते हैं, ‘‘नहीं-नहीं, मैं खराब फसल खरीदने के लिए क्यों कहूंगा? सोसायटी वाले सालों से गेहूं, बाजरा समेत दूसरी फसलों की खरीद कर रहे हैं. ऐसे में उन्हें मालूम है कि मानक और अमानक फसल कौन सी है.’’
एके द्विवेदी की मानें तो इस बार प्रदेश के दूसरे कई और जिलों में भी कॉर्पोरेशन ने खराब गुणवत्ता के कारण फसल को वापस कर दिया है. वे कहते हैं, ‘‘ग्वालियर, भिंड, मुरैना समेत कई जिलों में भी बाजरा वापस किया गया. एफसीआई से रिटायर व्यक्ति को हमारे यहां गुणवत्ता जांच अधिकारी बनाया गया. उन्होंने जांच कर बताया, उसके बाद ही फसल वापस की गई है. इन्हें वापस करने का प्रदेश के प्रमुख सचिव और जिलाधिकारी महोदय का आदेश है.’’
मध्य प्रदेश के किसान नेता, राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ के अध्यक्ष शिवकुमार कक्काजी की मानें तो मध्य प्रदेश में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब सोसाइटी द्वारा अनाज की खरीद करने के बाद वापस कर दिया गया हो.
न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कक्काजी कहते हैं, ‘‘मैं ऐसा महसूस करता हूं कि मध्य प्रदेश में सरकार है ही नहीं. गुणवत्ता जांच अपनी जगह ठीक है लेकिन बाजरे को खरीदना और फिर वापस करना, यह किसानों के साथ मज़ाक है. इसी प्रकार इन्होंने पिछली बार रायसेन जिले में चना खरीदा था और इसके लिए किसानों से प्रति क्विंटल घूस तक लिया गया, क्योंकि सोसायटी वालों के मुताबिक पोर्टल बंद हो गया था और इसके बाद भी वे चना खरीद रहे थे. उस चने को रखे आठ महीने हो गए. अब कह रहे हैं चना वापस ले जाओ. पोर्टल बंद हो गया था. सरकार चने नहीं ले रही है. यह कितना बड़ा मजाक है.’’
आंदोलन को लेकर कक्काजी कहते हैं, ‘‘हम तो यहां दिल्ली में केंद्र सरकार से उनकी वादाखिलाफी के खिलाफ लड़ रहे हैं. वहां संगठन के लोग जरूर बात रखेंगे. किसानों के साथ हो रहे इस मज़ाक को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. अगर किसानों की फसल खराब है तो उन्हें फसल बीमा का लाभ या मुआवजा दिया जाए. खाद दोगे नहीं, फसल खरीदोगे नहीं तो किसान क्या करेगा? अफसोस की बात यह है कि यह सब उस प्रदेश में हो रहा है, जहां से केंद्रीय कृषि मंत्री आते हैं.’’
इस पूरे मामले पर बात करने के लिए हमने प्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल को फोन किया. उनके निजी सचिव ने हमें बताया कि बाजरा खरीद का मामला मंत्री जी के जिम्मे नहीं है. इसके लिए आप खाद्य मंत्री बिसाहू लाल सिंह से बात कीजिए.
हमने खाद्य मंत्री सिंह से बात करने की कोशिश की लेकिन उनका फोन बंद था. इनकी ओएसडी सुकृति सिंह को हमने फोन किया. उन्होंने फोन नहीं उठाया. हमने उन्हें इस रिपोर्ट से जुड़े कुछ सवाल भेजे हैंं, उनकी ओर से कोई भी उत्तर आने पर खबर में जोड़ दिया जाएगा.
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