अरावली में कैसे गौशालाएं और मंदिर अवैध निर्माण करने का जरिया बने?

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद फरीदाबाद वन विभाग अरावली में बने मैरेज हॉल और फार्म हाउस को तोड़ रहा है, लेकिन गौशालाओं और मंदिरों को छुआ तक नहीं गया.

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इसी तरह के तर्क के साथ नारायण गौशाला के लोग पीएलपीए का किसी भी तरह से उल्लंघन के आरोपों से इंकार कर देते हैं. गौशाला की तरफ से जिस शख्स ने यह जवाब सौंपा है उनका फोन नंबर भी दर्ज है. जब न्यूज़लॉन्ड्री ने उन्हें कुछ सवालों के साथ फोन किया तो उन्होंने बात करने से साफ इंकार कर दिया.

श्री सिद्धदाता आश्रम ने गौशाला को लेकर अपने पक्ष में कहा कि उन्होंने ठोस निर्माण नहीं किया है. सिर्फ टीन शेड लगाए हैं. वहीं मंदिर को लेकर मिले नोटिस में क्या जवाब दिया गया? इस कागजात को आश्रम ने न्यूज़लॉन्ड्री से साझा करने से मना कर दिया.

श्री सिद्धदाता आश्रम का दावा है कि उनका निर्माण "निजी कृषि भूमि" पर है और इसलिए उन्हें वन क्षेत्र के रूप में नहीं माना जाना चाहिए. आश्रम ने फरीदाबाद प्रशासन को लिखे पत्र में कहा, "माननीय सुप्रीम कोर्ट ने बीएस संधू बनाम भारत सरकार और अन्य (2014) 12 एससीसी 172 में अपने आदेश में कहा कि पीएलपीए की धारा 3 से 5 के तहत अधिसूचना निर्णायक रूप से साबित नहीं करती है कि यह भूमि ‘वन भूमि’ है."

जिस 'बीएस संधू बनाम भारत सरकार' का जिक्र मंदिर द्वारा किया गया वो 2018 के बाद से सवालों के घेरे में है. एमसी मेहता बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए माना कि बीएस संधू मामले को अवैध कब्जा करने वालों ने अपने पक्ष में इस्तेमाल किया गया.

तत्कालीन जस्टिस मदन बी लोकुर और दीपक गुप्ता ने स्पष्ट रूप से कहा कि पीएलपीए के तहत भूमि को वन क्षेत्र के रूप में माना जाना चाहिए. उन्होंने कहा, “हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि पीएलपीए अधिनियम के प्रावधानों के तहत हरियाणा राज्य द्वारा अधिसूचित भूमि को 'वन' और 'वन भूमि' माना जाना चाहिए. हरियाणा राज्य ने कई दशकों से ऐसा ही माना है.''

डीसी तंवर, आश्रम कमेटी के जनरल सेकेट्री हैं. नगर निगम फरीदबाद में सीनियर पद पर रह चुके तंवर रिटायरमेंट के बाद मंदिर में 'सेवा' करते हैं. न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में तंवर कहते हैं, ‘‘यह जमीन मंदिर के नाम पर है. इसके भूमि उपयोग में परिवर्तन (सीएलयू) लिया जा चुका है. ऐसे में यहां निर्माण करना अवैध नहीं है. हमने वन विभाग को जवाब दे दिया है.’’

जब हमने तंवर से पूछा कि किस साल में आपने सीएलयू लिया. क्या सीएलयू लेने के बाद वन क्षेत्र में ठोस निर्माण की इजाजत है, साथ ही हमने उनसे मांग की कि क्या वे वन विभाग को दिया गया अपना जवाब हमसे साझा कर सकते हैं? इस सवाल पर वे खफा हो जाते हैं और जवाब देने के बजाय हमसे ही सवाल पूछने लगते हैं.

वर्त्तमान में मंदिर के प्रमुख पुरुषोत्तमाचार्य की कई तस्वीरें बीजेपी नेताओं के साथ नजर आती हैं. साथ ही पुरुषोत्तमाचार्य भाजपा सरकार को समर्थन करते भी नजर आते है. जब जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाई गई तब इन्होंने इसका समर्थन किया था.

वासुदेव रामकृष्ण धाम एवं बाल कृष्ण गौशाला

गोपाल गौशाला के अलावा मेवा महाराजपुर में ही श्रीवासुदेव रामकृष्ण धाम एवं बाल कृष्ण गौशाला है. जेवर के रहने वाले धर्म सिंह यहां लंबे समय से रह रहे हैं. उन्होंने बताया कि यहां मंदिर और गौशाला जनवरी 2004 से है.

बाल कृष्ण गौशाला

मुख्यमार्ग से यह गौशाला महज पांच सौ मीटर की दूरी पर है. यहां जाने का रास्ता बेहद संकरा है. यहां भी एक बड़ा सा गेट लगा हुआ है. जिसके ऊपर ‘श्री वासुदेव रामकृष्ण धाम’ का बोर्ड लगा हुआ है. बोर्ड पर दी गई जानकारी के मुताबिक इसकी स्थापना वासुदेवाचार्य जी महाराज ने की थी और वर्तमान में इसके महंत स्वामी रामकृष्णचार्य महाराज हैं. गेट से अंदर जाने पर वासुदेवाचार्य जी की समाधि बनी है. यहां रहकर शिक्षा हासिल कर रहे युवाओं के लिए कमरा बना है. इसी एक कमरे में रामकृष्णचार्य रहते हैं.

इस गौशाला को भी वन विभाग की तरफ से अवैध मानकर कई बार नोटिस दिया गया है, लेकिन अब तक किसी अधिकारी ने यहां आकर पूछताछ नहीं की है. दो एकड़ में फैले इस गौशाला में 40-50 के करीब गायें हैं. और आठ छात्र रहकर पढ़ाई करते हैं.

रामकृष्णचार्य, न्यूज़लांड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘हमें नोटिस आया था जिसमें पूछा गया कि जब यहां बनाने की इजाजत नहीं है तो आपने बनाया कैसे. इसका तो कोई जवाब नहीं है. हालांकि यह जमीन हमारी है. अभी तक हमें कोई परेशान करने नहीं आया है. सिर्फ फार्म हाउस और गार्डन वालों का तोड़ा जा रहा है. बाकी प्रभु की कृपा. अगर आते हैं तोड़ने तो छोड़कर चले जाएंगे.’’

आश्रम में बिजली की व्यवस्था और पानी के लिए लगवाए गए ट्यूबेल को लेकर प्रशासन की तरफ से अगस्त के पहले सप्ताह में नोटिस दिया गया. क्या आपको इस बात का डर नहीं कि शायद किसी दिन वन विभाग तोड़ने के लिए आ जाएगा? इस सवाल पर आचार्य कहते हैं, ‘‘अब जो होगा वो प्रभु पर निर्भर है. हालांकि हम लोग तो कोई बिजनेस कर नहीं रहे हैं. गो-सेवा कर रहे हैं.’’

रामकृष्णचार्य आगे क्या होगा इसको लेकर अपने वकील चंद्रपाल पारस से बात करने के लिए कहते हैं. हालांकि पारस से बात नहीं हो पाई.

परमहंस आश्रम

पूर्व कैबिनेट मंत्री विपुल गोयल के फार्म हाउस के बगल में ही परमहंस आश्रम है. फरीदाबाद के अधिकारियों ने अवैध निर्माण की जो सूची जारी की है उसमें इस आश्रम का भी नाम है. न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद दस्तावेज के मुताबिक यह आश्रम करीब 4.69 एकड़ में फैला हुआ है.

पीएलपीए के जमीन में बने इस आश्रम को लेकर 2014 और 2016 में नोटिस जारी किया गया. अभी हाल में जब तमाम अवैध कब्जे वाले आश्रमों/फार्म हाउस को वन विभाग ने नोटिस देकर तोड़फोड़ शुरू की तो परमहंस आश्रम को भी नोटिस दिया गया था. हालांकि यहां कोई तोड़फोड़ नहीं की गई.

आश्रम के एक सेवक की माने तो एक दिन वन विभाग के अधिकारी आए जरूर थे, लेकिन तोड़फोड़ के इरादे से नहीं.

मुख्य मार्ग से करीब दो किलोमीटर अंदर जंगल में परमहंस आश्रम बना है. यहां जाने के दो रास्ते हैं. दोनों ही कच्चे. बारिश होने के बाद कच्चे रास्ते पर जगह-जगह पानी भरा दिखता है. आश्रम के बाहर लाइन में कई गाड़ियां नजर आती हैं. जिसमें से एक पर भारत सरकार लिखा हुआ है.

दरअसल ये गाड़ियां दिल्ली और गुरुग्राम से परहमहंस आश्रम के प्रमुख स्वामी अड़गडानंद महराज के दर्शन करने आए लोगों की हैं. जो दो दिन पहले ही मिर्जापुर से यहां आए हुए हैं. महाराज की राजनीतिक ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि गृहमंत्री रहते हुए राजनाथ सिंह इनसे मिलने गए थे. मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो सिंह करीब दो घंटा उनके आश्रम में रुके, इस दौरान दोनों ने संस्कृति और धर्म पर चर्चा की थी.

वहीं जब बीते साल सितंबर 2020 में स्वामी परमहंस कोरोना पॉजिटिव हुए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फोन पर बात कर उनका हाल चाल लिया था. कोरोना होने के बाद वे फरीदाबाद स्थित आश्रम में आए. ठीक होने के बाद वह वापस हेलिकॉफ्टर से मिर्जापुर चले गए.

गुरुग्राम-फरीदाबाद के अरावली क्षेत्र में लंबे समय से काम कर रहे पर्यावरणविद सुनील हरसाना न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए बताते हैं, ‘‘जमीन कब्जाने के लिए यहां दो उपाय सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाते हैं, एक मंदिर बना लो और दूसरा गौशाला बना लो. मंदिर बनेगा तो रोड भी बन जाएगी. रोड बनते ही मंदिर के आसपास की जगहों को लोग कब्जा कर लेते हैं. गौशाला के साथ भी यहीं होता है. यहां नाम के लिए गौशाला चल रही है. गौशाला के नाम पर दस एकड़ में कब्जा किया गया. उसमें से एक एकड़ में दस गायें बांध दी गईं. बाकी में अपने हित में निर्माण करा लेते हैं. मामला धार्मिक होता है इसलिए उसे कोई जल्दी तोड़ भी नहीं सकता है.’’

यह सिलसिला कब से शुरू हुआ. इसको लेकर सुनील कहते हैं, ‘‘हमारे पास 2002-03 तक का गूगल इमेज उपलब्ध है. उसमें अगर देखे तो कोई खास अवैध निर्माण नजर नहीं आता. सबसे पहले यहां मानव रचना यूनिवर्सिटी बनी. उसके बाद सड़क का निर्माण हुआ. सड़क बनते ही लोगों को अरावली के बीच में जाने में आसानी होने लगी. जिसका असर यह हुआ कि अवैध निर्माण बढ़ते गए.’’

अवैध रूप से बने जिन गौशालाओं या मंदिरों को नोटिस दिया गया उनपर क्या कार्रवाई हुई. इसको लेकर जब हमने फरीदाबाद के जिलाधिकारी वन अधिकारी राजकुमार से बात की तो वे कहते हैं, ‘‘अभी तोड़फोड़ पर रोक लगी हुई है क्योंकि कोर्ट में मामले चल रहे हैं.’’ क्या गौशालाओं और मंदिरों का निर्माण जमीन कब्जा करने का एक माध्यम है. इस सवाल पर राजकुमार कहते हैं, ‘‘मेरा काम ओपिनियन देना नहीं है. आप खुद देख सकते हैं.’’

आस्था बनाम पर्यावरण

अवैध निर्माण की जानकरी होने के बावजूद गौशाला और मंदिर प्रशासन की पहुंच से दूर हैं. इस बीच अरावली में जंगलों का अतिक्रमण जारी है और एक बहुमूल्य पारिस्थितिक संपत्ति को लगातार खत्म किया जा रहा है.

प्रशासन द्वारा गौशालाओं के खिलाफ की गई मामूली कार्रवाई का दूरगामी प्रभाव हो सकता है. जैसे की वीएचपी के कोषाध्यक्ष गुप्ता ने दावा किया, “गड्ढों में गोबर से भरने से जमीन अधिक उपजाऊ बन जाएगी. आप देखिए हमारे यहां जो पेड़ हैं वो गोबर की खाद से बढ़े हैं. लोग इन दिनों गाय के गोबर के दीवाने हो रहे हैं.”

हालांकि जल संरक्षणवादी और भारतीय वन सेवा के पूर्व अधिकारी मनोज मिश्रा इसे गलत मानते हैं. उनके मुताबिक गुप्ता के दावे का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. मिश्रा कहते हैं, “यह (गाय का गोबर) केवल पानी में कोलीफॉर्म के स्तर को जोड़ता है, ठीक वैसे ही जैसे मानव मल को पानी में फेंक दिया जाए. कोलीफॉर्म से हानिकारक बैक्टीरिया उत्पन्न होता है. अगर हम उस पानी का सेवन करते हैं, तो कई समस्याएं हो सकती हैं.”

हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि इन सब से गौशाला में रह रही गायों को कितना फायदा हो रहा है. लेकिन इतना तो साफ हैं कि इन गौशालाओं को चलाने वाले वाले पीएलपीए का उल्लंघन कर रहे हैं. गौशालाओं की आड़ में कई नेता और ताकतवर लोग अरावली को बर्बाद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है और प्रशासन नोटिस पर नोटिस जारी कर सिर्फ खानापूर्ति कर रहा है.

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इस एनएल सेना प्रोजेक्ट में हमारे पाठकों ने सहयोग किया है. यह राजदीप अधिकारी, शुभम केशरवानी, कुंजू नायक, अभिमन्यु सिन्हा, हिमांशु बधानी, मसूद हसन खान, तन्मय शर्मा, पुनीत विश्नावत, संदीप रॉय, भारद्वाज, साई कृष्णा, आयशा सिद्दीका, वरुणा जेसी, अनुभूति वार्ष्णेय, लवन वुप्पला, श्रीनिवास रेकापल्ली, अविनाश मौर्य, पवन निषाद, अभिषेक कुमार, सोमसुभ्रो चौधरी, सौरव अग्रवाल, अनिमेष चौधरी, जिम जे, मयंक बरंदा, पल्लवी दास, मयूरी वाके, साइना कथावाला, असीम, दीपक तिवारी, मोहसिन जाबिर, अभिजीत मोरे, निरुपम सिंह, प्रभात उपाध्याय, उमेश चंदर, सोमशेखर सरमा, प्रणव सत्यम, हितेश वेकारिया, सावियो वर्गीस, आशुतोष मौर्य, निमिश दत्त, रेशमा रोशन, सतकर्णी और अन्य एनएल सेना के सदस्यों द्वारा संभव हो पाया है.

इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. पहला पार्ट यहां पढ़ें.

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