हकीकत यह है कि सरकार के दावों के बावजूद लोगों को यूरिया समेत अन्य खाद मिलने में समस्या हो रही है. वहीं इसके चलते कई किसानों को अपनी जान गंवानी पड़ी है.
प्रतापगढ़ जिले के बाबू सराय गांव के अतहर अली न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, “मैं जब यूरिया लेने सहकारी समिति लोकापुर (नेवाड़ी) गया तो वहां बताया गया कि यूरिया खत्म हो गया है. हालांकि वहां पर 20 से 25 बोरी खाद रखी हुई थी जबकि मुझे दो ही बोरी कि जरूरत थी. पूछने पर बताया गया कि यह किसी और का खाद है, करीब आधे घंटे बहस के बाद मुझे सिर्फ दो बोरी खाद मिली.”
एक सहकारी समिति के सचिव नाम न छापने की शर्त पर न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, “यूरिया की तो नहीं लेकिन डीएपी की शॉर्टेज जिले में चल रही है.” गांव में किसान यूरिया की भी कमी की शिकायत क्यों कर रहे हैं? इस पर सचिव कहते हैं, “बात ये है कि जिला स्तर पर यूरिया उपलब्ध है जब तक वो सप्लाई नहीं करते हैं तब तक ग्रामीण इलाकों में इसकी कमी बनी रहेगी.” सचिव से बात करते समय उन्हीं के गोदाम में न तो यूरिया थी और ना ही डीएपी, हालांकि वो शॉर्टेज न होने की बात कह रहे थे.
छत्तीसगढ़ में भी सरकारी वेबसाइट पर दिए गए आकड़ों में खाद पर्याप्त मात्रा में है. प्रदेश में अक्टूबर से 27 दिसंबर तक 0.57 लाख एमटी यूरिया की जरूरत थी और सप्लाई 0.98 लाख एमटी हुई है. उसी तरह डीएपी समेत अन्य खाद की भी जरूरत से ज्यादा सप्लाई हुई है.
राज्य के महासमुंद्र जिले के चंडी गोना गांव के 44 वर्षीय कैलाश पटेल कहते हैं, “इस साल यूरिया नहीं मिला. सोसाइटी में 265 रुपए दाम है वहीं जहां बाजार में मिल भी रहा था वह लोग 650 रुपए में बेच रहे थे.”
महासमुंद जिले में सहकारी उर्वरक कंपनी इफको के एक कर्मचारी नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, “छत्तीसगढ़ में यूरिया की इतनी अभी जरूरत नहीं है क्योंकि यहां धान की खेती होती है. धान में डीएपी ज्यादा लगता है. सरकार का फोकस अब नैनो यूरिया तरल पर है, जो यूरिया की किल्लत को कम कर देगा. हम लोग अभी उसी पर ज्यादा काम कर रहे है.”
प्रदेश में यूरिया की कमी को लेकर कांग्रेस सरकार ने केंद्र सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था. कांग्रेस ने दावा किया कि केंद्र की भाजपा सरकार समय पर खाद की सप्लाई नहीं कर रही है. वहीं यूरिया की समस्या को लेकर ही बीजेपी भी कांग्रेस सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर चुकी है.
देश में खाद की कमी या आवंटन में समस्या?
भारतीय किसान यूनियन के मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र मलिक कहते हैं, “जितना खाद हम आयात करते थे उसमें करीब 50 प्रतिशत की कमी आई है. भले ही संसद में सरकार कोई आंकड़े दे, मूल समस्या आयात में कमी होना है. अभी तो केंद्र सरकार जहां चुनाव हैं वहां खाद भेज दे रही है और दूसरे राज्यों में झगड़े चल रहे हैं.”
धर्मेंद्र आगे कहते है, “अगर कमी नहीं है तो फिर किसान खाद की दुकानों के बाहर लाइन में क्यों खड़े है? अगर मिल रहा होता तो किसानों की लाइन में खड़े रहने के कारण मौत नहीं होती. चुनावीं राज्य में कुछ बैलेंस करने की कोशिश कर रहे हैं.”
संसद में यूरिया और अन्य उर्वरकों को लेकर जो सवाल सांसदों ने किए हैं उनमें सबसे ज्यादा सांसद महाराष्ट्र के है. महाराष्ट्र के किसान नेता और स्वाभिमानी शेतकरी संगठन के प्रमुख राजू शेट्टी न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, “महाराष्ट्र में यूरिया समेत अन्य खाद की कमी है. इनके दाम पिछले दो साल में लगभग दोगुने हो गए हैं, जिससे किसान बहुत तंग है.”
राजू शेट्टी आगे कहते हैं, “खाद की समस्या पूरे राज्य में है. खासकर यूरिया का बहुत दुरुपयोग होता है क्योंकि वह सब्सिडी पर मिलता है. यूरिया में जो नाइट्रोजन होता है उसका उपयोग बड़ी फैक्ट्ररियों में होता है. इसलिए कालाबाजारी ज्यादा होती है.”
राजू शेट्टी कहते हैं, “सरकार खपत और सप्लाई के जो आंकड़े बताती है उसमें दोनों का आंकड़ा लगभग बराबर रहता है, लेकिन उसके आवंटन में गड़बड़ी की जाती है, जिसके कारण ही किसानों तक यूरिया समेत दूरे खाद नहीं पहुंच पा रहे हैं.”
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