लखीमपुर खीरी हिंसा: दहशत और बाहुबल पर खड़ा महाराज अजय मिश्र टेनी का किला

गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी राजनीति में आने से पहले ही बनवीरपुर के 'महाराज' बन गए थे. स्थानीय लोग इनकी पूजा भी करते हैं.

Article image
  • Share this article on whatsapp

50 वर्षीय मोबीन अहमद किसान हैं. उनकी 4 एकड़ ज़मीन है. उनके चार बेटे और एक शादीशुदा बेटी है. उनका कहना है, “अजय मिश्र टेनी ने बनवीरपुर के विकास के लिए बहुत कुछ किया है. उन्होंने राइस मिल खोली जहां किसान अपना गन्ना बेचने जाता है. उनका सबके साथ पारिवारिक नाता है. वो सबकी काम दिलवाने में मदद करते हैं."

तीन ऑक्टूबर के दिन मोबीन दंगल में थे. उन्होंने वहां खाना बनाने और देख-रेख में मदद की थी. उन्होंने हमें बताया, "घटना के बाद से हमारी और सिखों की बातचीत बंद है. हमें डर लगता है वो हम पर हावी हो जाएंगे. सिख इस इलाके में अपना दबदबा बनाना चाहते हैं. ये लोग अमीर हैं. इनके बच्चे विदेश पढ़ने जाना चाहते हैं."

30 वर्षीय दीपक अपने बेटे और पत्नी के साथ बाइक से गुजर रहे थे. हमें देखकर वो रुक गए और कहने लगे, "सिख लोग मोदी की लोकप्रियता से डरते हैं. वो लोग भाजपा समर्थक नहीं हैं. हमें डर है कि अगर फैसला इनके पक्ष में नहीं आया तो ये कुछ भी कर सकते हैं."

गांव में 3 अक्टूबर से पहले कोई विवाद या सांप्रदायिक हिंसा नहीं हुई हैं.

पास में खड़े एक व्यक्ति ने चिल्लाते हुए कहा, "सिख लोग खालिस्तानी होते हैं. हमने एक न्यूज़ में देखा है उस दिन प्रदर्शन कर रहे किसान की शॅर्ट पर खालिस्तान लिखा था. ये लोग आतंकी होते हैं." जब हमने पूछा कि उन्होंने ऐसा कहां देखा या सुना है तो उन्होंने बताया, "सहारा, न्यूज़ 18 और ज़ी न्यूज़ पर उस दिन (3 अक्टूबर) यहीं दिखा रहे थे."

बनवीरपुर में सिखों की स्थिति

गंगानगर बनवीर ग्राम पंचायत का हिस्सा है. यहां सभी सिख परिवारों ने अपने घर खेतों के बीच बनाए हुए हैं. 32 वर्षीय हरविंदर 1993 में पीलीभीत से गंगानगर रहने आ गए. ऐसा इसलिए क्योंकि पीलीभीत में बाढ़ के कारण वहां किसानी करना मुश्किल था.

उन्होंने बताया, "2014 में यहां के सिखों ने भाजपा को वोट दिया था. ना कि अजय मिश्र टेनी को, टेनी ने यहां कोई विकास नहीं कराया है. उस दौरान मोदी लहर थी. सबने 'मोदी' के नाम पर भाजपा को वोट डाला था."

वहीं पास बैठे 50 वर्षीय जरनैल सिंह कहते हैं, "बनवीरपुर के लोग टेनी से डरते हैं. वो कभी उसके खिलाफ नहीं बोलेंगे वरना टेनी का इतिहास रहा है जो उसके खिलाफ जाता है उसे वह बहुत बेरहमी से मरवाता है. आशीष भी अपने पिता जैसा है. वह भी गरीबों को कमरे में बंद कर के पीटता है. लोग उसकी दहशत में रहते हैं." जैरनैल सिंह का कहना है कि इस बार सिख भाजपा को वोट नहीं देंगे.

48 वर्षीय चंद्रभान सिंह पास की एक छोटी सी दुकान के बाहर खड़े थे. वह बताते हैं, “गांव के सिख सभी मामले आपस में सुलझा लेते हैं. हम लोग कभी टेनी की सभा में नहीं जाते. टेनी खुद फैसला लेता है और अकेले में लोगों को मारता है. हम सिख लोग खुद बैठकर आपस के विवाद सुलझा लेते हैं."

एक विराम के बाद चंद्रभान ने हमसे पूछा, "तो क्या आपने अन्य ग्रामीणों से बात की? क्या उन्होंने कहा कि वे टेनी को कितना चाहते हैं?"

जब न्यूज़लॉन्ड्री ने इसकी पुष्टि की, तो उन्होंने कहा, “आपको इस गांव में एक भी व्यक्ति नहीं मिलेगा जो उसके खिलाफ बोलेगा. लोग उनसे और उनके बेटे से डरे हुए हैं."

पास खड़े एक अन्य सिख व्यक्ति ने कहा, "आशीष मिश्र पूरी तरह से दबंग टाइप के नेता हैं."

वहीं गांव में ज्यादातर लोगों ने 2004 में केंद्रीय मंत्री के खिलाफ दर्ज हत्या के मामले की ओर इशारा किया, जो इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबित है.

जरनैल सिंह ने बताया, “यहां ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जहां अजय मिश्र और उनके आदमियों के खिलाफ बोलने वाले ग्रामीणों का अपहरण कर, उन्हें एक कमरे में बंद कर देते थे और उनकी पिटाई करते थे. उनके बेटे आशीष मिश्र भी पिता से बिलकुल अलग नहीं है. आशीष के पास अपने पिता के सभी गुण हैं. वह एक बदमाश है."

यह पूछे जाने पर कि क्या उनकी याद में कोई विशेष घटना सामने आती है, सिखों ने कहा कि ज्यादातर लोग डरे हुए हैं और मिश्र परिवार के बारे में बात नहीं करना चाहेंगे. हमने फिर पूछा तो झिझकते हुए दुकान पर खड़े सिख लोगों ने पड़ोसी गांव गंगानगर की ओर इशारा किया. "वहां जाओ, तुम वहां एक पीड़ित पाओगे. वह अभी भी जीवित है लेकिन टेनी ने उसे लगभग मार डाला,” चंद्रभान सिंह ने कहा.

टेनी का खौफ बनवीरपुर और आसपास के कई गांवों तक फैला हुआ है. न्यूज़लॉन्ड्री ने कई लोगों से बात की जो टेनी के आतंक का शिकार हुए हैं.

एक सिख पीड़ित व्यक्ति ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा, “साल 1990 में अगस्त की एक शाम मैं और मेरा छोटा भाई खेत से नहाकर घर वापिस आ रहे थे. तभी टेनी के आदमियों ने हम दोनों को उठा लिया. मैं विकलांग हूं तब भी मुझ पर उन्होंने कोई रहम नहीं खाया. टेनी के आदमी पूरे रास्ते, जो करीब दो किलोमीटर का है, हमें सड़क पर घसीटते हुए टेनी के घर तक ले गए. वहां टेनी ने हम दोनों को खूब मारा और रात को गांव के बाहर छोड़ दिया.”

“हम दोनों भाइयों ने टेनी और उसके आदमियों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराई लेकिन टेनी ने हमें परेशान कर राजीनामे पर दस्तखत करवा लिए. हमारे पास एफआईआर की कॉपी है लेकिन राजीनामा इन्होंने नहीं दिया.” वह यह सब बताते हुए वह बीच-बीच में अपने शरीर पर उस घटना के जख्म दिखा रहे थे.

गांव में ऐसे बहुत परिवार हैं जिन्हें टेनी और आशीष ने बहुत प्रताड़ित किया. हमने उनसे बात भी की. लेकिन मिश्र परिवार के खौफ के चलते उन्होंने हमें अपना नाम लिखवाने से मना कर दिया.

टेनी महाराज और मोनू भैया का खौफ

तिकुनिया थाना प्रभारी बालेंदु गौतम

बालेंदु गौतम तिकुनिया पुलिस स्टेशन के स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) हैं, जिन्होंने सबसे पहले 3 अक्टूबर को हुई घटना की जांच की थी. “यह पहली बार है जब मैं इतने बड़े मामले को संभाल रहा हूं. इसलिए मैं ईमानदार होकर पूरी बात नहीं बता सकता.” उन्होंने कहा.

एसएचओ के अनुसार, "टेनी महाराज" के खिलाफ कई मामले दर्ज हैं, लेकिन उनके बेटे आशीष मिश्र का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है.”

गांव में मौजूदा चुप्पी के बावजूद सिखों का मानना ​​है कि अगर आशीष मिश्र जमानत पर छूट जाते हैं या उन्हें निर्दोष घोषित कर दिया जाता है और केंद्रीय मंत्री अपने पद से इस्तीफा नहीं देते हैं, तो किसानों द्वारा क्षेत्र में विरोध प्रदर्शन किया जाएगा.

"फिलहाल हम अपना गुस्सा नहीं दिखा सकते क्योंकि हम संख्या में कम हैं. हमें अभी भी यहीं रहना है. अगर हम विरोध करते हैं और मोनू मुक्त होकर वापिस आता है, तो हमारा जीवन नरक बन जाएगा," चंद्रभान सिंह कहते हैं. .

इस बीच, क्षेत्र के हिंदुओं और मुसलमानों ने दावा किया कि वे अपने 'मोनू भैया' और 'टेनी महाराज' का समर्थन करने के लिए जो कुछ भी करना होगा वह करेंगे.

Also see
article imageभाजपा के वो कार्यकर्ता जो लखीमपुर खीरी हिंसा में मारे गए
article imageलखीमपुर खीरी हिंसा में मारे गए सबसे कम उम्र के लवप्रीत और सबसे बुजुर्ग निछत्तर सिंह की कहानी
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like