आर्यन खान बनाम लखीमपुर खीरी: खबरों में क्या रहा?

मन्नत से लेकर एनसीबी के दफ्तर तक‌, टीवी चैनलों ने मुंबई के ड्रग्स छापे को पूरा कवरेज दिया. लेकिन लखीमपुर खीरी का क्या?

WrittenBy:दीक्षा मुंजाल
Date:
Shambhavi Thakur
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खबरों के मामले में पिछले हफ्ते के अंतिम दिन बहुत व्यस्त रहे. शनिवार शाम, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ने मुंबई के समुद्री इलाके में एक क्रूज़ पर चल रही 'रेव पार्टी' पर छापा मारा.

सभी बड़े समाचार चैनल इस खबर में दावा करते हुए कूद पड़े की एक 'ड्रग माफिया' का भंडाफोड़ हुआ है. असल में एनसीबी को 13 ग्राम कोकीन, 21 ग्राम चरस, एमडीएमए की 22 गोलियां और पांच ग्राम एमडी मिलीं, यह सभी "इंटरमीडिएट या मध्यम स्तरीय" मात्रा की श्रेणी में आती हैं. एनसीबी ने इस मामले में आठ लोगों को हिरासत में लिया जिनमें अभिनेता शाहरुख खान का बेटे आर्यन खान भी थे, इसका पता चलते ही हमारे कई "राष्ट्रीय" समाचार चैनलों में हड़कंप मच गया.

वहीं रविवार शाम करीब 4:00 बजे उत्तर प्रदेश में लखीमपुर खीरी से घायल किसान प्रदर्शनकारियों और हिंसा की रक्तरंजित तस्वीरें आईं. जल्द ही पता चला कि चार किसानों की मौत भी हो गई है. दरअसल भाजपा नेता और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी के बेटे आशीष मिश्रा की तीन कारों के काफिले ने प्रदर्शन कर रहे किसानों को रौंद दिया था. इसके बाद हिंसा भड़क उठी और आने वाले दृश्यों में आगजनी और जली हुई गाड़ियां दिखाई दे रही थीं.

अब तक मरने वालों की संख्या बढ़कर आठ पहुंच गई है जिसमें किसान, एक पत्रकार और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता भी शामिल हैं.

हमारे देश में टीवी न्यूज़ की खामियों को उजागर करने के लिए देश के कुछ बड़े समाचार चैनलों ने इन दोनों घटनाओं को जैसे कवर किया, इसकी तुलना से बेहतर कुछ नहीं हो सकता. एक तरफ जहां एंकर आर्यन खान को दोषी घोषित करने के लिए आतुर थे, वहीं दूसरी तरफ लखीमपुर खीरी में दिनदहाड़े हुई जानलेवा हिंसा को वह एक हाथ की दूरी पर रख रहे थे. यह बताने की जरूरत नहीं कि उत्तर प्रदेश में हिंसा और हत्या की खबर 13 ग्राम कोकीन और आर्यन खान की कवरेज के पीछे कहीं खो गई.

इस ड्रग्स के भंडाफोड़ पर सभी बड़े मीडिया संस्थानों ने रिपोर्टरों और संसाधनों की बड़ी-बड़ी टीमें एनसीबी दफ्तर, शाहरुख खान के घर मन्नत इत्यादि जगहों पर लगातार रिपोर्ट करने के लिए भेजीं. लेकिन शायद चैनलों की नज़र में लखीमपुर खीरी अपने रिपोर्टरों की फौज भेजने के लिए बहुत दूर था. घटनास्थल व लोगों के मरने की जगह से नहीं के बराबर खबरें और सूचनाएं आ रही थीं.

टीवी चैनलों के पास अपने स्थानीय रिपोर्टों और स्टिंगरों के होते हुए भी, कई चैनलों को इस खबर को पहली बार दिखाने में देरी हुई और इस घटना की जमीनी रिपोर्टिंग लगभग शून्य थी. आमतौर पर जल्दी खबर प्रकाशित करने वालीं एजेंसियों एएनआई और पीटीआई तक की खबरें नहीं आईं.

किसान < आर्यन खान

टाइम्स नाउ ने अपने प्राइमटाइम के कार्यक्रम द न्यूज़आर पर दो डिबेट रखीं, पहली एनसीबी की रेड के बारे में और दूसरी लखीमपुर में हुई हिंसा पर. एंकर स्वाति जोशी ने 12 मिनट लंबी लखीमपुर पर डिबेट की शुरुआत यह कहकर की, "प्रदर्शन कर रहे किसानों और पुलिस के बीच में बड़ी झड़पें हुईं" जिनमें "किसानों ने हिंसा और आगजनी का सहारा लिया जब पुलिस स्थिति को संभालने की कोशिश कर रही थी."

एंकर के शुरुआती वक्तव्य में घटना में हुई आठ मौतों का जिक्र भी नहीं था लेकिन उन्होंने यह जरूर कहा, "किसान नेता दावा करते हैं कि झड़पों में कुछ प्रदर्शन कर रहे किसानों की जान गई है." ऐसा ट्विटर पर चार किसानों के मरने की खबर के आने के बाद हुआ, वही ट्विटर जहां से टाइम्स नाउ की कई प्राइमटाइम डिबेट जन्म लेती हैं.

एंकर को डिबेट में मौजूद संयुक्त किसान मोर्चा के एक प्रतिनिधि ने उनकी टिप्पणी के लिए कटघरे में खड़ा किया और ध्यान दिलाया कि घटना "प्रदर्शन कर रहे किसानों के बीच झड़पें" नहीं बल्कि "भाजपा के गुंडों और उनका नेतृत्व कर रहे अजय मिश्रा के बेटे ने किसानों पर गाड़ी चढ़ा दी" है.

एनसीबी के छापे वाली दूसरी डिबेट जो 25 मिनट लंबी थी का शीर्षक था "एनसीबी ने शाहरुख खान के बेटे आर्यन को ड्रग्स के मामले में गिरफ्तार किया, क्या बॉलीवुड का संबंध बाहर आएगा?"

जैसा कि शीर्षक से समझ आता है, सुशांत सिंह राजपूत मामले को फिर से थोक के भाव उछाला गया.

लखीमपुर से जहां कोई ग्राउंड रिपोर्ट नहीं थी वहीं टाइम्स नाउ के रिपोर्टर एनसीबी मुख्यालय के बाहर मौजूद थे और दोषियों को ले जा रही गाड़ियों का पीछा कर रहे थे, और हर घंटे मामले में की खबर को "ब्रेक" कर रहे थे- चाहे वह आर्यन खान की गिरफ्तारी में ड्रग्स की मात्रा हो या उसकी जेल यात्रा की अवधि का अंदाज़ा.

चैनलों की चुप्पी

अर्णब गोस्वामी के रिपब्लिक्वर्ल्ड ने लखीमपुर खीरी की घटना को पूरी तरह से नजरअंदाज किया. इस पर न कोई अदद रिपोर्ट और न ही कोई अपडेट या डिबेट रखी गई.

लेकिन एनसीबी ड्रग्स केस के बारे में उसने जमीन से मिनट दर मिनट की अपडेट प्रसारित कीं, यहां तक कि एक रिपोर्टर को मुंबई में शाहरुख खान के घर मन्नत के बाहर खड़ा रहने के लिए भेज दिया. विडंबना यह है कि वह रिपोर्टर घर के बाहर शाहरुख खान के चाहने वालों की कतारें दिखा रहा था.

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एक रिपोर्टर कह रही थीं, "हमने मन्नत से दो गाड़ियों को बाहर आते देखा और उनमें से एक के अंदर हमें बताया जा रहा है कि गौरी खान मौजूद थीं." रिपोर्टर ने इसमें यह भी जोड़ा कि पहले उन्हें एनसीबी दफ्तर जाना था लेकिन वह नहीं गईं क्योंकि शायद वह और शाहरुख खान कई वकीलों से संपर्क कर मिल रहे होंगे.

आखिरकार सोमवार सुबह रिपब्लिक्वर्ल्ड ने लखीमपुर खीरी पर रिपोर्ट की. लेकिन खबर का केंद्र बिन्दु अधिकतर राजनेताओं अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी वाड्रा की गिरफ्तारी पर था, जिसको लेकर एंकर ने कहा, "उत्तर प्रदेश सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह नेताओं को इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना का फायदा उठाने की इजाजत नहीं देगी."

जाहिर तौर पर सारे सवाल लखीमपुर जाने वाले विपक्षी नेताओं के लिए थे, एंकर ने गरज कर कहा कि यह "राजनीतिक पयर्टन" का मामला है. चैनल ने लखीमपुर जिले में "स्थिति पर पूर्ण नियंत्रण" बनाने के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस की प्रशंसा करते हुए इस बात पर ध्यान दिया कि कैसे और किसानों और राजनीतिक नेताओं का घटनास्थल पर जाना सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है.

उधर आज तक पर चित्रा त्रिपाठी के शो में यह कहा जा रहा था, "यह स्पष्ट है कि किसानों के प्रदर्शन के बीच में, घटना से शांतिपूर्ण उत्तर प्रदेश शांत हो गया है और अराजकता का और बढ़ना बाकी है." हिंसा और घायल प्रदर्शन करने वालों के दृश्य स्क्रीन पर चल रहे थे. एंकर ने घटना को "बड़ा बवाल" कह कर संबोधित किया और घटना पर राजनीति करे जाने की उपमाऐं दीं. लखीमपुर की खबरों में अधिकतर विपक्षी दलों पर ध्यान दिया गया, इसके साथ दोनों तरफ से लगाये आरोपों और केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा का अपने बेटे का बचाव करते हुए इंटरव्यू दिखाया गया जिसमें वह प्रदर्शनकारियों को अराजक तत्व कह रहे थे. चैनल ने कई बार इस बात की ओर ध्यान दिलाया कि योगी आदित्यनाथ सरकार ने कितनी जल्दी उत्तर प्रदेश के एडीजीपी को घटनास्थल पर भेज दिया और कानून व्यवस्था संभालने के लिए बड़ी संख्या में सुरक्षा बल तैनात कर दिए.

ड्रग छापे पर कई समाचार बुलेटिनों के अलावा चित्रा त्रिपाठी के 43 मिनट लंबे डिबेट कार्यक्रम हल्ला बोल का शीर्षक, "एक सुपरस्टार का बेटा अपराधी कैसे बना?" था.

उन्होंने घोषणा की, "सबके दिमाग में एक ही सवाल है, आर्यन खान जेल जाएगा या जमानत पर बाहर आएगा?" इसके पैनल पर एक फैशन डिजाइनर एक अभिनेता एक भाजपा प्रतिनिधि एक राजनीतिक विश्लेषक और दर्शकों पर रहम फरमाते हुए दिल्ली के एक पूर्व डीसीपी भी थे. चित्रा ने एक और 40 मिनट के डिबेट कार्यक्रम का संचालन किया इसका शीर्षक था, "बादशाह का बेटा विलेन?"

इंडिया टीवी ने लखीमपुर हिंसा को अपने चुनावों से पहले के बुलेटिन "अबकी बार किसकी सरकार" में कवर किया.

जलती हुई कारों के दृश्य यह कहते हुए दिखाएं कि यह कारें केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा की थीं. खून से सने प्रदर्शनकारियों की तस्वीरें टीवी स्क्रीन पर एक भी बार नहीं दिखाई गईं. एंकर ने कहा, "इन जलती हुई गाड़ियों से निकलता हुआ धुआं इस बात का प्रमाण है कि आज किसानों ने अपना गुस्सा कैसे जाहिर किया, केंद्रीय मंत्री के बेटे की दोनों गाड़ियां किसानों के द्वारा जला दी गईं."

एंकर ने आगे कहा कि राजनीतिक दल तुरंत सक्रिय हो गए हैं क्योंकि मामले में भाजपा के मंत्री का बेटा और किसान शामिल हैं. जिस तरह से यह विपक्ष के नेता भाजपा के खिलाफ सवाल उठा रहे हैं, यह साफ है कि लखीमपुर घटना उत्तर प्रदेश में बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकती है.

एनसीबी मामले पर चैनल का कवरेज बाकी की तरह ही था जिसमें अनेकों जमीनी रिपोर्ट और लगभग सभी हेडलाइनों में शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान का जिक्र था. कई कानूनी जानकारों और पूर्व एनसीबी अधिकारियों के पैनल वाली एक डिबेट का शीर्षक "शाहरुख खान का बेटा फंसेगा या बचेगा?” था. डिबेट में यह समझने की कोशिश की गई कि मिले हुए मादक पदार्थों की मात्रा के अनुसार, क्या कोई "ड्रग्स बेचने" वालों का नेटवर्क शामिल है और क्या आर्यन खान को छोड़ देना चाहिए?

भाड़ में जाए किसान (और विपक्ष)

उधर न्यूज़ 18 इंडिया में एनसीबी मामले पर लगातार अपडेट पूरे दिन चलीं, जिसमें "बीच समुद्र ड्रग्स का बवंडर" और "नशे के समुंदर में अभिनेता का बेटा" जैसी हेडलाइनें स्क्रीन पर चल रही थीं.

अपने चार रिपोर्टर मुंबई में ग्राउंड पर भेजें जो अलग-अलग जगहों से रिपोर्ट कर रहे थे जिनमें से एक समुद्र तट पर भी था. इस दौरान रिपोर्टर ने एक बार सुशांत सिंह मामले का नाम लिया और कैसे बॉलीवुड ड्रग्स लेने में लिप्त है का जिक्र किया.

रविवार के पूरे दिन, चैनल के द्वारा लखीमपुर हिंसा को कवर करने में केवल दो से तीन मिनट लंबे दो-चार बुलेटिन थे, जिसमें एंकरों ने घटना को "किसानों का हंगामा" कहकर संबोधित किया. इसके बाद उन्होंने यह भी कहा कि, "उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी से खबर आ रही है, जहां किसानों ने पूरा बखेड़ा खड़ा कर दिया है और उन पर आगजनी और लूटपाट के आरोप लग रहे हैं," एंकर यह भी कहते हैं कि यह हंगामा "नियंत्रण के बाहर एक गाड़ी से दुर्घटना" के बाद हुआ.

ज़ी न्यूज़ पर जहां एनसीबी मामले का विस्तृत कवरेज किया गया वहीं लखीमपुर खीरी की घटना के केवल तीन बुलेटिन थे जिनमें से एक का शीर्षक था, "लखीमपुर में किसानों ने अराजकता क्यों फैलाई?"

मारे गए प्रदर्शनकारियों का जिक्र न करते हुए एंकर ने कौतूहल जताया, "ऐसा क्या हुआ था कि जिसने किसानों को केंद्रीय मंत्री के बेटे की दो गाड़ियां चलाने पर मजबूर कर दिया?" बाकी के दो शो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के द्वारा एक "उच्च स्तरीय" मीटिंग बुलाने और विपक्षी नेताओं के हिंसा स्थल पर पहुंचने के लिए निकलने के बारे में थे.

सभी चैनलों ने केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र और उनके बेटे के द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण को दिखाया, और उनका उपयोग किसान नेताओं से पलटकर हिंसा भड़काने को लेकर सवाल करने के लिए किया. इन सभी चैनलों ने एनसीबी के प्रमुख एसएन प्रधान के साथ खास इंटरव्यू दिखाया, जिसमें उन्होंने "ड्रग्स छापे" को लेकर ज्ञात जानकारी को ही दोहराया.

इस पर कोई आश्चर्य नहीं कि टीवी पर सरकारी पहलू ही दिखाया गया. लखीमपुर की हिंसा के पीड़ित, चाहें वह किसान हों या भाजपा कार्यकर्ता, कम से कम बड़े समाचार चैनलों पर पहचान विहीन ही रहे.

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