आम आदमी पार्टी की हिंदुत्व की रणनीति को लेकर उनका एक काल्पनिक इंटरव्यू

समय आ गया है कि विपक्षी नेताओं और दलों को उनके असली स्वरूप में देखा जाए, और इसकी शुरुआत आम आदमी पार्टी से है.

WrittenBy:वृंदा गोपीनाथ
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क्या आम आदमी पार्टी हिंदू वोट को रिझाने में कामयाब होगी?

आम आदमी पार्टी इस बात को लेकर स्पष्ट है कि दिल्ली के बाहर चुनाव जीतने के लिए, लिबरल और सेक्यूलर धड़े के आगे जाना व भाजपा के साथ जुड़े हिंदू वोटर को रिझाना बहुत ज़रूरी है. केवल घटते हुए कांग्रेस के वोट को पा लेना काफी नहीं होगा.

दिल्ली में आम आदमी पार्टी के विकास के अलावा, प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस संगठन की खस्ता हालत और नेताओं की कमी ने भी उसका साथ दिया. ऐसे में पार्टी का चुनावी चेहरा केजरीवाल एक सुनिश्चित विजेता हैं.

लेकिन हर जगह ऐसी परिस्थिति नहीं है, जैसे कि उत्तर प्रदेश जहां मुख्यमंत्री आदित्यनाथ राज्य में एक बड़ा और दमदार चेहरा हैं. दिल्ली से भिन्न यह एक बड़ी चुनौती है.

तो क्या, आम आदमी पार्टी का अपनी हिंदू पहचान का समर्थन करने वाला, अयोध्या से शुरू हुआ, उत्तर प्रदेश का चुनाव अभियान, अगले वर्ष आने वाले फरवरी-मार्च में आदित्यनाथ के हिंदुत्व को चुनौती देगा?

हां. तीर्थ नगरी अयोध्या से शुरू हुई आम आदमी पार्टी के चुनाव अभियान की शुरुआत करने वाली तिरंगा यात्रा में पार्टी के बड़े नेता मनीष सिसोदिया और राज्य प्रभारी संजय सिंह थे, उन्होंने समर्थकों की रैली से पहले राम जन्मभूमि और हनुमान गढ़ी मंदिर में पूजन किया और कई संतों से मुलाकात की.

क्या आम आदमी पार्टी आरएसएस-भाजपा को उत्तर प्रदेश जैसे जहां सांप्रदायिक भावनाएं उग्र हैं, उनके ही हिंदुत्व के खेल में हरा सकती है?

मनीष सिसोदिया और संजय सिंह ने आप के हिंदू भाव की नीति पर, और इसके साथ-साथ उसमें आरएसएस-भाजपा के हिंदुत्व से महत्वपूर्ण अंतर पर जोर दिया है. जैसा कि वह हर जगह जोर देकर कहते हैं, अंतर साफ है, वह एक मत से कहते हैं कि राम राज्य ही शासन का सबसे अच्छा तरीका है, आम आदमी पार्टी भगवान राम की सच्चे आदर्शों, सांप्रदायिक सद्भाव और भाईचारे से शासन चलाएगी. इसमें जातिगत, मत और सांप्रदायिक भेद नहीं होंगे और वे इस बात के साथ यह बताना नहीं भूलते कि आरएसएस-भाजपा का रामराज्य बंटवारे, आपसी बैर पर आधारित और पृथकतावादी है.

आम आदमी पार्टी के नेताओं ने आरएसएस-भाजपा को झूठा राष्ट्रवादी बताते हुए रामराज्य को ही सच्चा राष्ट्रवाद बताया. उन्होंने इस बात की तरफ ध्यान खींचा कि जहां एक तरफ युवा 'वंदे मातरम' का नारा लगाते हैं, वहीं वे 'इंकलाब जिंदाबाद' का नारा भी लगाते हैं, और सच्चे राष्ट्रवाद का एक मतलब आम आदमी पार्टी के विचार में अच्छी शिक्षा, अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्था, रोजगार के अवसर और एक सुरक्षित समाज भी है जहां अपराधी खुलेआम ना घूम सकें. उन्होंने अयोध्या के पास फैजाबाद में 18वीं सदी के नवाब शुजाउद्दौला के मकबरे से गांधी पार्क तक रैली भी निकाली.

तो क्या इसका मतलब आम आदमी पार्टी की हिंदुओं तक पहुंचने की पहल, आरएसएस-भाजपा के हिंदुत्व के ब्रांड से अलग है?

पार्टी अंतर को दिखा रही है लेकिन एक फार्मूला हर जगह नहीं चलता. उदाहरण के लिए पंजाब में, जहां चुनाव उत्तर प्रदेश के साथ ही होंगे, पोल सर्वे के नतीजों के हिसाब से आम आदमी पार्टी को दौड़ में सबसे आगे देखा जा रहा है लेकिन उसे बहुमत मिलता नहीं दिख रहा. इसके बावजूद पार्टी वहां पर अपनी हिंदू पहचान का इस्तेमाल उतना नहीं करेगी. लेकिन राज्य में उसे अपनी चरमपंथी सिख छवि को सुधारने की जरूरत है, क्योंकि पिछले विधानसभा चुनावों में विरोधियों द्वारा उसे खालिस्तान समर्थक पार्टी कहने की वजह से, कई सीटों का नुकसान हुआ था.

गुजरात में जहां दिसंबर 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं, आम आदमी पार्टी अपने अभियान की शुरुआत सूरत से करना चाहती है जहां उसने नगरपालिका चुनावों में 120 में से 27 सीटें जीतीं. यहां पर आम आदमी पार्टी अपने दिल्ली में सफल विकास के विजयी फार्मूले मुफ्त बिजली, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा के साथ राज्य की सभी 182 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. लेकिन यह एक बहुत बड़ी चुनौती है क्योंकि पिछले चुनावों में आपने 27 सीटों से चुनाव लड़ा था जहां से वह न केवल हारी बल्कि सभी सीटों पर उसकी जमानत तक ज़ब्त हो गई थी.

इसी तरह गोवा में भी जहां अगले साल चुनाव हैं, पिछले चुनावों में आप के 39 उम्मीदवारों में से 38 की जमानत ज़ब्त हो गई थी. दोनों ही राज्यों में जहां पारंपरिक रूप से दो पार्टियों कांग्रेस और भाजपा के बीच मुकाबला होता है, आम आदमी पार्टी को सफलता पाने के लिए बहुत करीने से काम करना होगा. उत्तराखंड एक और ऐसा राज्य है जहां आम आदमी पार्टी को अपना खाता खुलने की उम्मीद है.

क्या चुनावी सफलता का पीछा करते हुए “आप” इस हिंदू हित के खेल में कहीं गहरा तो नहीं उतर जाएगी?

शायद पार्टी के नेता राजीव गांधी के द्वारा दोनों ही तरफ के चरमपंथियों को खुश करने के अनुभवों से सीख लेंगे. जहां एक तरफ उन्होंने शाहबानो मामले में एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला को मुआवजा दिए जाने के उच्चतम न्यायालय को पलटा, वहीं दूसरी तरफ उन्होंने ध्वस्त हुई बाबरी मस्जिद के ताले एक नए राम मंदिर के निर्माण हेतु शिलान्यास पूजन के लिए खुलवाए. एक भ्रमित और अपनी पहचान भूली सेक्यूलर हिंदुत्व पार्टी के रूप में कांग्रेस का हश्र सबके सामने है.

आम आदमी पार्टी का मंत्र समावेशी विकास और सांप्रदायिक सद्भाव वाला मेरा राम राज्य और मेरा राष्ट्रवाद सच्चा है. भाजपा-आरएसएस का नफरत और अलगाव से भरा, झूठा है.

अगर आम आदमी पार्टी जनता को अपनी नीति परायणता का विश्वास दिला पाती है, तो शायद उसे कभी भी एक बहुलतावादी हिंदुत्ववादी समाज में आतंकवाद और सांप्रदायिक अल्पसंख्यकों के विषयों को उठाने से नहीं झिझकना पड़ेगा, और वह गर्व और साहस से संविधान को भी सर्वोपरी रख पाएगी.

इसका उत्तर तो समय ही दे पाएगा.

अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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