मध्यप्रदेश: 23 जिंदा लोगों का मृत्यु प्रमाण पत्र जारी कर किया सरकारी मदद का गबन

मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में जिंदा लोगों का मृत्यु सर्टिफिकेट बनाकर किया सरकारी मदद का गबन.

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कैसे हुई हेराफेरी

जिंदा लोगों को मृत बताकर करीब 45 लाख रुपए का गबन किया गया है. यह तो महज साल 2019 से 2021 तक के आंकड़े हैं, उससे पहले क्या हुआ इसको लेकर अभी तक कोई जानकारी सामने नहीं आई है. हालांकि इस मामले के सामने आने के बाद छिंदवाड़ा के प्रभारी मंत्री कमल पटेल जो की कृषि मंत्री भी हैं उन्होंने पूरे जिले में जांच के आदेश दिए हैं.

सर्टिफिकेट जारी होने से लेकर पैसे आने तक की पूरी प्रकिया को एक अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया.

वह कहते हैं, मध्यप्रदेश शासन की सम्बल योजना के तहत पंजीकृत किसी भी व्यक्ति की मौत होने पर पंचायत सचिव, अंतिम संस्कार के लिए छह हजार रूपए नकद देते हैं. यह राशि जिला पंचायत सीईओ ऑफिस से ग्राम पंचायत सचिव के खाते में आती है, जिसके बाद सचिव वह राशि मृतक के परिवार को देते हैं. सामान्य स्थिति में मौत होने पर दो लाख रूपए की सहायता राशि मिलती है वही किसी हादसे में मृत्यु होने पर चार लाख रूपए दिए जाते हैं.

अधिकारी बताते हैं, ‘‘मृत्यु होने के 21 दिनों के अंदर पंचायत को मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करना होता है, यह नियम है. अगर किसी मृतक के परिजन ने 21 दिनों के अंदर आवदेन नहीं किया तो फिर तहसीलदार के आदेश के बाद मृत्यु प्रमाण पत्र जारी किया जाता है. मृतक के परिजन एक साल या दो साल बाद भी सर्टिफिकेट के लिए आवेदन कर सकते हैं, लेकिन तब तहसीलदार की अनुमति चाहिए होगी.”

आर्थिक मदद के लिए मृत्यु सर्टिफिकेट के साथ आधार कार्ड और कई अन्य फॉर्म को भरकर ग्राम पंचायत में दिया जाता है. सभी कागज को जांचने के बाद पंचायत से वह कागज जनपद सीईओ के ऑफिस में जाता है. जहां फिर से इन कागजों की जांच की जाती है.

कागजों की जांच के बाद जनपद समन्वय अधिकारी मृतक के घर पर जाकर ‘वेरिफिकेशन’ करता है और आश्रित परिजन के नाम, खाते की जानकारी को फॉर्म में भरकर जनपद में जमा करता है. वेरिफिकेशन के बाद जनपद सीईओ नोटशीट जारी करते हैं. नोटशीट यानी कि, उस व्यक्ति को पैसे देने के लिए शासन को जानकारी भेज दी जाती है और फिर शासन उसके खाते में मुआवजा राशि ट्रांसफर कर देता है.

इस पूरी प्रकिया में कई लोग शामिल होते हैं. बोहनाखैरी गांव में हुए धोखाधड़ी में पंचायत सचिव, सहायक सचिव, कंप्यूटर ऑपरेटर और समन्वय अधिकारी मिले हुए हैं.

इस बारे में स्थानीय पत्रकार जगदीप पंवार कहते है, ‘‘पंचायत सचिव और अन्य अधिकारी फर्जी तरीके से लोगों का मृत्यु प्रमाण पत्र बना लेते थे. क्योंकि गांव के लोगों का उनपर विश्वास होता है और वह अपने काम के लिए पंचायत में कागज देते हैं उसका इन लोगों ने फायदा उठाया. कोरोना काल का समय इसलिए चुना क्योंकि इस समय काफी लोगों की मौतें हुई हैं, तो इन पर कोई शक नहीं जाएगा.”

“यह लोग मृतक के नाम का फर्जी सर्टिफिकेट बना देते हैं, उसके बाद आश्रित परिजन का नाम और अन्य कागज जमा कर लेते हैं. आश्रित परिजन का नाम तो मृतक के परिवार से ही होता है, लेकिन बैक अकाउंट में वह अपना लिखते थे. इन लोगों के पास तीन-चार अकाउंट हैं, जिसका उपयोग पैसे मंगाने के लिए करते थे. क्योंकि जनपद का जांच अधिकारी भी इनसे मिला हुआ था इसलिए यह लोग बेधड़क यह सब करते रहे.”

जिला पंचायत सीईओ गजेंद्र सिंह नागेश न्यूज़लॉन्ड्री से कहते है, “यह लोग मृतक के आश्रित परिजन के पासबुक पर लिखे नाम को तो वैसे ही रहने देते थे लेकिन उसके अकाउंट नंबर की जगह अपना अकाउंट नंबर लिखकर उसका फोटोकॉपी कर लेते थे. फिर उसी कागजात को जनपद में जमा कर देते थे. पहले क्योंकि बैंक में लिस्ट जाती थी पैसे ट्रांसफर करने के लिए तो वहां नाम और अकाउंट नंबर अलग-अलग होने पर यह पकड़ा जा सकता था. लेकिन अब शासन ने काम में तेजी लाने के लिए एक पोर्टल बनाया है, जहां नाम, अकाउंट नंबर और अन्य कागज जमा करना होता है. जिसके बाद मुआवजा राशि खाते में ट्रांसफर हो जाता है.”

क्या पंचायत से कागज भेजे जाने के बाद कोई जांच नहीं होती? इस पर वह कहते है, “जनपद सीईओ के ऑफिस में इन कागजों की जांच होती है. जनपद सीईओ की जिम्मेदारी होती है कि वह जमा किए गए कागजों का ओरिजिनल डाक्यूमेंट से मिलान कर लें. काम में लापरवाही के लिए जनपद सीईओ को कारण बताओं नोटिस जारी किया गया है.”

पंचायत सीईओ आगे कहते हैं, “धोखाधड़ी का यह मामला अपने आप में नया है. किसी ने सोचा नहीं होगा कि इस तरह से कोई फर्जीवाड़ा हो सकता है. हालांकि इस मामले के उजागर होने के बाद हम साल 2018 से लेकर अबतक जारी सभी मृत्यु प्रमाण पत्रों की जांच पूरे जिले में करवा रहे हैं. यह जांच 15 दिनों में पूरी कर ली जाएगी.”

जिंदा लोगों को जारी सर्टिफिकेट पर वह कहते है, “जो लोग जिंदा हैं उन लोगों का सर्टिफिकेट वापस लिया जा रहा है. इसके लिए जिला सांख्यिकी विभाग काम रह रहा है. जिस पंचायत सचिव को अभी बोहनाखैरी गांव का प्रभार दिया है वह लोगों से मिलकर सभी जरुरी कागजात विभाग को देगें, जिसके बाद सर्टिफिकेट को वापस ले लिया जाएगा.”

सरकारी कागजों में जो मृत बताएं गए उन्हें कैसे मिलता रहा अन्य सुविधाओं का फायदा? इस पर वह कहते है, "अभी कोई इंटीग्रेटेड सिस्टम नहीं है, जिससे की एक जगह मृत्यु प्रमाण पत्र जारी होने के बाद अन्य सरकारी सुविधाओं से उसे हटा दिया जाए. मौजूदा समय में मृत्यु प्रमाण पत्र अलग पोर्टल से जारी होता है, जो केंद्र सरकार के तहत होता है. वहीं अन्य सुविधाओं के अलग-अलग पोर्टल हैं."

छिंदवाड़ा के दैनिक भास्कर अखबार के पत्रकार मनोज मालवी जिन्होंने इस खबर को सबसे पहले कवर किया, वह कहते हैं, “इस मामले में पुलिस ने चार लोगों को गिरफ्तार कर लिया है. साथ ही अब मामले की जांच के लिए एसआईटी भी गठित हो गई है.”

भास्कर की खबर के बाद 28 अगस्त को छिंदवाड़ा के चौरई थाने में पंचायत सचिव राकेश चंदेल, सहायक सचिव संजय चौरे और अन्य लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है.

यह एफआईआर 50 वर्षीय सज्जेलाल यदुंवशी और अन्य लोगों के साथ मिलकर दर्ज कराई है. जिसमें कहा गया हैं कि हमारे जीवित रहते हुए ही फर्जी मृत्य प्रमाण पत्र बना लिया गया और हमारे नाम से पैसे निकालकर गबन किया है. पुलिस ने दोषी लोगों के खिलाफ 7 धाराओं (420, 465, 467, 468, 469, 471, 120-B) के तहत केस दर्ज कर लिया है.

वहीं एफआईआर के बाद पंचायत सचिव राकेश चंदेल, सहायक सचिव संजय चौरे, कंप्यूटर ऑपरेटर और समन्वय अधिकारी सुनिल अंडमान को पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है.

मंत्री ने की थी आरोपी सचिव की तारीफ

पंचायत सचिव राकेश चंदेल जो इस मामले में मुख्य आरोपी हैं, मामले के उजागर होने से कुछ दिन पहले ही जिले के प्रभारी मंत्री कमल पटेल ने पंचायत में 100 प्रतिशत कोरोना वैक्सीनेशन के लिए उनके काम की तारीफ की थी.

इस मामले के उजागर होने के बाद मंत्री ने कहा, महज एक गांव में ही 23 जीवित व्यक्तियों के फर्जी तरीके से मृत्यु प्रमाण-पत्र बनना और उनके नाम पर राशि का गबन करना न केवल चिंताजनक बल्कि नियम विरूद्ध भी है.

प्रभारी मंत्री ने जिला कलेक्टर को इस मामले की जांच के साथ ही पूरे जिले में जांच करवाने और दोषियों के विरूद्ध सख्त कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं.

इस मामले पर पंचायत सचिव संगठन के छिंदवाड़ा अध्यक्ष प्रहलाद उसरेठे कहते हैं, “जब से यह मामला उजागर हुआ है, हम सचिव मुंह दिखाने लायक नहीं बचे हैं. लोग अब हमें भी शक की निगाह से देखने लगे हैं. हमने सोचा नहीं था कभी कि कोई ऐसा काम करेगा. जिंदा लोगों को मृत बताकर भ्रष्टाचार करना गुनाह है.”

पंचायत सचिवों की सैलरी के सवाल पर प्रहलाद कहते हैं, “वैसे तो पंचायत सचिव की सैलरी 35 हजार है, लेकिन कट के खाते में करीब 27 हजार आती है. यह सरकारी नौकरी होती है, लेकिन सहायक सचिव और कंप्यूटर ऑपरेटर संविदा पर होते हैं. सहायक को 10 हजार रूपए महीना मिलता है. वहीं समन्वय अधिकारी की सैलरी 40 से 50 हजार के बीच है. हमने हाल ही में सैलरी बढ़ाने के लिए हड़ताल भी की थी, सातवां वेतनमान लागू करने की मांग भी की है लेकिन अभी शासन उसके लिए राजी नहीं हुआ है.”

क्या हैं कर्मकार कल्याण मंडल योजना

साल 1996 में भारत सरकार ने असंगठित क्षेत्र के भवन निर्माण मजदूरों के कल्याण के लिए यह कानून बनाया था. साल 2005 में मध्यप्रदेश में मप्र भवन एवं संनिर्माण कर्मकार कल्याण मंडल बनाया है. इसका उद्देश्य मजदूरों और उनके परिवारों को शासन की विभिन्न योजनाओं के तहत सामाजिक सुरक्षा पहुंचाना था.

शहरी क्षेत्र में नगर पालिका को नोडल एजेंसी और ग्रामीण इलाकों की जिम्मेदारी जनपद पंचायत को दी गई है. इसके तहत पंजीकृत ठेकेदार की अनुशंसा पर लगातार 120 दिनों तक मजदूरी करने वाले श्रमिकों का कार्ड बनाया जाता है.

मध्यप्रदेश और पंचायत ग्रामीण विकास विभाग की वेबसाइट पर दिए आंकड़ों के मुताबिक इस योजना से अभी तक 8000 लोग जुड़े हैं, जिसमें 5000 पुरुष और 3000 महिलाएं हैं.

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