जिसे निजी एसी चाहिए हो, उसे कम्युनिस्ट पार्टी में घुटन महसूस होना लाजमी है

कांग्रेस में शामिल होते वक्त जो बातें कन्हैया कुमार ने कहीं, वह केवल अपने रास्ता बदलने को जायज ठहराने के लिए गढ़ा गया शब्दजाल है.

Article image

भगत सिंह की जयंती के दिन कांग्रेस में शामिल होते हुए कन्हैया ने देश को भगत सिंह के साहस की आवश्यकता बताई. परंतु भगत सिंह सिर्फ साहस का प्रतीक नहीं हैं, बल्कि वे वैचारिक स्पष्टता का भी प्रतीक हैं. भगत सिंह वो हैं, जिन्होंने आजादी की लड़ाई को भी धार्मिक प्रतीकों के उपयोग से बाहर निकाला और इस मसले पर कांग्रेस की अस्पष्टता के इतर समाजवाद को आजादी का लक्ष्य घोषित किया. गांधी के साथ अपने तीखे मतविरोधों को भगत सिंह और उनके साथियों ने स्पष्ट रूप से प्रकट किया.

गांधी द्वारा यंग इंडिया में लिखे लेख- “बम की पूजा”- के जवाब में भगत सिंह और उनके साथियों द्वारा लिखा गया लेख- “बम का दर्शन”- पढ़ कर उस वैचारिक संघर्ष की तपिश का अंदाजा कोई भी लगा सकता है. लेकिन अपने दल-बदल को जायज ठहराने के लिए गांधी, भगत सिंह और डॉ. अंबेडकर की पंचमेल खिचड़ी बनाने से कन्हैया नहीं चूके. यहां तक कि भगत सिंह के कथन को भी तोड़ने-मरोड़ने में उन्होंने गुरेज नहीं किया. जैसे भगत सिंह के कथन- बम और पिस्तौल इंकलाब नहीं लाते को आधा बोल कर कन्हैया ने कह दिया कि उस साहस की जरूरत है हमको. भगत सिंह का पूरा कथन है- “बम और पिस्तौल इंकलाब नहीं लाते, इंकलाब की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है.” विचारों से किनाराकशी करते हुए स्वाभाविक है कि कन्हैया की जुबान यह कहने को तैयार न हुई होगी!

मीडिया जिनको रातों-रात स्टार बनाता है, उनके सामने सबसे बड़ा संकट उस नायकत्व को बचाना ही बन जाता है. कम्युनिस्ट पार्टी चाहे बड़ी हो, छोटी हो, ताकतवर हो या कमजोर, उसमें निजी नायकत्व यानी individual heroism के लिए बहुत जगह न होती है, न हो सकती है. लगता है कन्हैया और उनकी पूर्व पार्टी में यह अंतरविरोध, गतिरोध के स्तर तक पहुंच गया और उसमें कन्हैया ने अपने निजी नायकत्व को कायम रखने का दूसरा ठौर चुन लिया.

यह उन तमाम लोगों के लिए भी सबक है, जो निजी नायकत्व को विचारधारा पर तरजीह देने की वकालत करते रहते हैं. नायक खड़े करना नहीं, जनता को उसकी राजनीतिक भूमिका में खड़ा करना ही कम्युनिस्ट आंदोलन का कार्यभार, चुनौती और उसकी सफलता की कुंजी है.

लेखक सीपीआई (एमएल) से जुड़े हैं, आइसा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं

(साभार- नुक्ता-ए-नज़र)

Also see
article imageपंजाब-हरियाणा: कैप्टन और चौटाला की राजनीति का भविष्य
article imageजोड़े पर जान का संकट और दलित झेल रहे सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like