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एनएल चर्चा के 181वें अंक में हमारी चर्चा मुख्य रूप से अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे और संघर्ष पर हुई. साथ में अफगान नागरिकों का पलायन, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का अफगानिस्तान के बारे में दिया गया संबोधन, बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा आईटी एक्ट पर रोक, सीबीआई को स्वायत्तता देने को लेकर मद्रास हाईकोर्ट की टिप्पणी, मेघालय में हुई हिंसा, सुनंदा पुष्कर मौत के मामले में बरी हुए शशि थरुर और न्यूज़रुम में एमजे अकबर की वापसी हमारी चर्चा का विषय रहे.
इस बार चर्चा में बतौर मेहमान प्रभात खबर दिल्ली के ब्यूरो प्रमुख प्रकाश के रे शामिल हुए. साथ में न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस और सहसंपादक शार्दूल कात्यायन ने भी चर्चा में हिस्सा लिया. संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
अतुल चर्चा की शुरुआत प्रकाश से एक सवाल पूछ कर की. वह कहते हैं, “तालिबान 2.0 का दावा किया जा रहा है. कहा जा रहा है कि ये पुराने तालिबान जैसा नहीं है. जिसने हाल ही में 15 अगस्त को बंदूक के दम पर सत्ता हासिल की है, उसे सुधरा हुआ बताया जा रहा है, उसे एक मौका देने की दलील दी जा रही है. आप इसे कैसे देखते हैं.”
जवाब में प्रकाश कहते हैं, “हमें तालिबान को आशंका की नज़र से देखना होगा. जैसा कि तालिबान कह रहा है कि वो अफगान नेशनलिस्ट हैं या आतंकवाद की पनाहगाह नहीं बनने देंगे. लेकिन इन बातों पर एकदम से भरोसा न करके इंतज़ार करना होगा. जब सरकार फॉर्मली काम करना शुरू कर देगी तब हम किसी निष्कर्ष पर पहुचेंगे. दूसरी तरफ हम देखते हैं कि जिस तरह बिना एक भी गोली चलाए तालिबान ने काबुल में प्रवेश किया, विदेशियों को जो आश्वासन दिए और अभी सरकार बनाने की प्रक्रिया में जिस तरह से अपने विरोधियों से बात कर रहे हैं, उन सब चीजों को देखते हुए कहा जा सकता है कि कुछ बदलाव हो सकता है.”
प्रकाश आगे बताते हैं कि कोई भी संगठन हो उसमें 25 सालों में कुछ ना कुछ बदलाव तो आते हैं. और तालिबान ने भी स्पष्ट रूप से कहा है कि तालिबान लोकतंत्र अपनाने नहीं जा रहा है, शरिया (इस्लामी कानून) लागू होगा यानी शरिया शासन का आधार होगा. दूसरी चीज जो वो कह रहे हैं कि एडवाइज़री काउंसिल के जरिये ये सरकार चलेगी. संसद की जगह सूरा के जरिए देश चलेगी. अब देखना होगा कि सूरा की संरचना कैसी होगी, अगर इसमें विरोधी ख़ेमे को जगह मिलेगी तो पिछले बार की जगह इस बार सरकार की संरचना में थोड़ा सा बदलाव नज़र आएगा.
अतुल चौरसिया आगे पूछते हैं कि वहां के पुलिस प्रमुख की हत्या का वीडियो उन्हीं आशंकाओं को मजबूत करता है जिसके लिए तालिबान बदनाम है. इसके अलावा महिलाओं और बच्चों को लेकर एक बड़ी चिंता है, जैसा कि हमने एयरपोर्ट पर देखा है, हवाई जहाज से लोगों को गिरते देखा है. लोग डरे हुए हैं, भाग रहे हैं.
अतुल ने मेघनाथ और शार्दूल से सवाल करते हुए पूछा कि हाल ही के दिनों में भारत के लोग तालिबान को बधाई दे रहे हैं. इन लोगों को किस तरह से देखा जाना चाहिए?
मेघनाद कहते हैं, “समाजवादी पार्टी के एक सांसद ने तालिबान को फ्रीडम फाइटर की संज्ञा दी है. उन्होंने कहा कि तालिबान ने अमेरिकी साम्राज्यवाद पर विजय पाई है. वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग इसकी तुलना हिन्दू आतंकवाद कर रहे हैं.”
मेघनाद आगे कहते हैं, “ये दोनों चीजें गलत हैं, तालिबान ने बंदूक के दम पर कब्ज़ा किया है. वह चुनावी प्रक्रिया से नहीं आए हैं. वहीं दूसरी ओर तालिबान का कब्जा, अमेरिकी रणनीति की बहुत बड़ी असफलता है कि उन्होंने अपने जाने की घोषणा पहले से कर दी जिससे तालिबान को पता था कि अमेरिकी कब तक वापस जाएंगे. बस तालिबान ने सही समय का इंतजार किया और अपने मकसद में कामयाब हुए.”
शार्दूल इस घटना के एक और पक्ष पर रोशनी डालते हुए कहते हैं, “बंदूक के दम पर आया आदमी या संगठन मेल मिलाप कितनी देर तक सह सकता है. जो सत्ता के अन्य भागीदार हैं जैसे कि ताजिक, हज़ारा, वॉर लॉर्ड्स आदि के साथ क्या सत्ता का बंटवारा होगा? इन सवालों का जवाब अभी तक मिला नहीं है.”
शार्दुल कहते हैं, “एम्नेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार 4 से 6 जुलाई के बीच तालिबान ने हजारा समुदाय के तमाम लोगों की गज़नी प्रान्त में सरेआम हत्या कर दी. जैसा कि तालिबान कह रहा वो शरिया लागू करेगा लेकिन छठी सदी के कानून की इस समय कोई प्रासंगिकता नहीं है. लोग उनके तौर तरीकों में बदलाव की बात कर रहे हैं. पाकिस्तान बदला हुआ नज़र आ रहा है क्योंकि तालिबान आईएसआई द्वारा ही पोषित संस्था है. अभी तक ये अमेरिकी इशारों पर चलते थे, अब ये चीनी ट्रेनिंग पर काम कर रहे हैं.”
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