दैनिक भास्कर: धंधा कोई छोटा नहीं और धंधे से बड़ा कोई धर्म नहीं

दैनिक भास्कर का व्यापारिक साम्राज्य खुद ब खुद उसे सरकारों के हाथ की कठपुतली बनने को मजबूर करता है.

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दिसंबर 1984, भोपाल गैस त्रासदी घट चुकी थी. सिर्फ भोपाल में ही नहीं सारे देश और दुनिया में इस भयानक त्रासदी के चर्चे थे. वैसे तो यूनियन कार्बाइड के खतरों के बारे में त्रासदी के दो साल पहले ही भोपाल के स्थानीय पत्रकार राजकुमार केसवानी ने अपने अखबार 'साप्ताहिक रिपोर्ट' में एक सीरीज चलायी थी लेकिन उस वक़्त किसी भी नेता, प्रशासन या अख़बार ने उनकी खबरों को तरजीह नहीं दी थी.

यूनियन कार्बाइड में हुए गैस रिसाव के बाद सभी अखबार यहां तक की अंतरराष्ट्रीय मीडिया भी त्रासदी से जुडी रिपोर्टिंग में मसरूफ था. उन्ही दिनों दैनिक भास्कर के मालिक रमेश अग्रवाल (2017 में उनका निधन हो गया) और उस वक़्त के अखबार के संपादक महेश श्रीवास्तव को मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह का बुलावा आया. सिंह नहीं चाहते थे कि गैस त्रासदी के बारे में अखबार ज़्यादा छापें. सिंह ने अग्रवाल और श्रीवास्तव को बुलाकर कहा कि "देखिये अगर आपको अखबार चलाना है तो गैस त्रासदी के मामले में ज़्यादा दिलचस्पी मत दिखाइए."

मुख्यमंत्री से मिलने के बाद अग्रवाल और श्रीवास्तव असमंजस में थे. अग्रवाल का मानना था कि अगर हम आज की तारीख में झुक गए तो फिर हमेशा झुके ही रहेंगे. लिहाजा उन्होंने निष्पक्ष तरीके से खड़ा होने का फैसला किया क्योंकि हज़ारों लोगों की मौत हो चुकी थी और लाखों लोग अपाहिज हो चुके थे. उन्होंने तय किया कि उनका अखबार भोपाल गैस त्रासदी की रिपोर्टिंग करता रहेगा. यह भास्कर की पत्रकारिता की एक मिसाल है.

भास्कर में दशकों तक काम कर चुके लोगों का मानना है कि रमेश अग्रवाल के इस फैसले के बाद सही माने में भास्कर की तरक्की शुरू हुयी थी. उन दिनों मध्य प्रदेश में नई दुनिया (जिससे राजेंद्र माथुर और प्रभाष जोशी जैसे पत्रकार जुड़े थे) और नवभारत अपनी अच्छी पत्रकारिता के लिए जाने जाते थे. लेकिन धीरे-धीरे भास्कर आगे बढ़ता चला गया और नब्बे के दशक के अंत तक मध्य प्रदेश का नंबर एक अखबार बन गया.

अखबार बड़ा हुआ तो साथ साथ भास्कर के हाथ दूसरे धंधों में भी घुसने लगे. खनन, रियल इस्टेट, होटल, पॉवर, शिक्षा, कंट्रक्शन, पब्लिशिंग, एडवरटाइजिंग, फूड प्रोसेसिंग आदि उद्योगों में भी यह समूह उतरा पड़ा. दैनिक भास्कर, पाठक बनाने में तो नंबर एक पायदान पर पहुंच गया, लेकिन जानकारों का कहना है कि निष्पक्षता और सरकारों के खिलाफ आवाज़ उठाने की ताकत गिरती चली गई.

हाल के दिनों में जब करोना की दूसरी लहर ने देश को चपेट में ले लिया तब भास्कर ने शानदार पत्रकारिता की. उनकी धारदार रिपोर्टिंग ने सरकारों की अक्षमता और नकारेपन को उजागर करके रख दिया. लेकिन ऐसे लोग भी हैं जिन्हें भास्कर के इस कायाकल्प से अचरज हुआ.

फिर हाल ही में दैनिक भास्कर के देश भर के दफ्तरों पर हुए आयकर विभाग के छापों ने इस बात को और हवा दी कि भास्कर की पत्रकारिता इस छापे की वजह है. खुद भास्कर ने भी इसे इसी तरह से देश के सामने रखा. लेकिन आयकर विभाग द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि भास्कर ने 700 करोड़ की टैक्स चोरी की है. उन्होंने सेबी (सेक्युरिटीज़ एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ़ इंडिया) के नियमों का उल्लंघन कर भास्कर ग्रुप की विभिन्न कंपनियों के बीच 2200 करोड़ रुपए का फर्जी लेन-देन दिखाया है. इसके अलावा उन्होंने पैसों के हेरफेर के लिए अपने कर्मचारियों के नाम पर, उनकी जानकारी के बिना ही कई कंपनियां खोल रखी हैं.

भास्कर पर छापे और उसकी हालिया निर्भीक पत्रकारिता को समझने के लिए हमने थोड़ी बहुत छानबीन की. हमने पाया कि भास्कर कि पत्रकारिता के कई पहलु हैं और सरकार के खिलाफ खुलकर लिखने में भास्कर का हाथ हमेशा इतना खुला नहीं रहा है. लेकिन कोविड की दूसरी लहर में उनकी रिपोर्टिंग काबिले तारीफ थी.

दैनिक भास्कर में शीर्ष संपादकीय पदों पर लगभग दो दशकों तक काम कर चुके वरिष्ठ पत्रकार सोमदत्त शास्त्री हमें बताते हैं, "मूलतः देखा जाए तो भास्कर की कामयाबी का सफर भोपाल गैस त्रासदी के बाद शुरू हुआ. तब भास्कर ने काफी धारधार रिपोर्टिंग की थी. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि भास्कर का मिज़ाज़ ही साहसिक पत्रकारिता का है. असल में निष्पक्षता दिखाने के लिए भास्कर का शीर्ष प्रबंधन कभी-कभी ऐसे काम करता रहा है.”

शास्त्री कहते हैं, "भास्कर की शुरुआत रमेश अग्रवाल के पिता द्वारका प्रसाद अग्रवाल ने की थी. वह झाँसी के रहने वाले थे. पहले वो प्रकाश नाम से अखबार निकालना चाहते लेकिन मामला कुछ जम नहीं पाया था. उन दिनों भास्कर नाम का कॉपीराइट कांग्रेस नेता शम्भुनाथ शुक्ल के पास था. लेकिन शम्भुनाथ शुक्ल को राजनीति करनी थी और द्वारका प्रसाद अग्रवाल को भास्कर नाम चाहिए था तो उन्होंने शम्भुनाथ शुक्ल से 'भास्कर' नाम खरीद लिया.”

गैस त्रासदी के बाद भास्कर ने मार्केटिंग की अच्छी रणनीति बनायी और बाकी अख़बारों से आगे निकलता गया. मध्य प्रदेश में अलग-अलग जगह एडिशन खोलने शुरू कर दिए थे और नब्बे के दशक के बीच राजस्थान जैसे दूसरे प्रदेशों में भी अखबार लांच हो गया था.

शास्त्री छापों और भास्कर की आक्रामक पत्रकारिता को लेकर सशंकित भाव से कहते हैं, "भास्कर पर जो छापे पड़े हैं, वो ऐसे वक़्त पर पड़े हैं कि लोगों को लग रहा है कि वो भास्कर की आक्रामक रिपोर्टिंग के चलते पड़े हैं,लेकिन ऐसा नहीं है. यह कोई व्यावसायिक मामला हो सकता है. इनकी इस तरह की रिपोर्टिंग भी इत्तेफाकन ही हुयी है. ऐसा भी नहीं है कि इन्होंने अकेले कोरोना की रिपोर्टिंग की है. और भी अखबारों ने अच्छी रिपोर्टिंग की है. सरकार की नीतियों पर भास्कर कभी भी कोई स्टैंड नहीं लेता है. वह छापता वही है जो सरकार चाहती है. सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ या मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के खिलाफ यह आक्रामक रूप से कुछ नहीं लिखते."

वो आगे कहते हैं, "भास्कर तो वो अखबार है जो चुनाव के पहले राजनैतिक पार्टियों से खबरें छापने के और खबरें नहीं छापने के पैकेज लेता है. विधायक और सांसदों से अलग पैसे लिए जाते हैं और पार्टी से अलग." शास्त्री का इशारा पेड न्यूज़ की ओर था.

पिछले 37 सालों से भोपाल में पत्रकारिता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार आरिफ मिर्ज़ा कहते हैं, "मैंने पत्रकारिता की शुरुआत दैनिक भास्कर से 1986 में की थी. यह वो दौर था जब मार्केटिंग और विज्ञापन वाले सम्पादकीय में बिल्कुल दखल नहीं देते थे. लेकिन पिछले 18-20 सालों में भास्कर में आर्गनाइज्ड करप्शन सा शुरू हो गया है. अब मार्केटिंग और विज्ञापन वाले पत्रकारों को डांट-फटकार लगा देते हैं. पहले खबरों पर ज़्यादा ज़ोर था आज की तारीख में अगर कोई संपादक विज्ञापन हटा दे तो उसकी नौकरी जा सकती है.”

मिर्ज़ा कहते हैं, "भास्कर में पत्रकारों से ज़्यादा मार्केटिंग और विज्ञापन डिपार्टमेंट को तवज्जो मिलती हैं. किसी रसूखदार व्यक्ति का फोन अगर मालिकों, विज्ञापन वालों या संपादक को आ जाय तो स्टोरी को ड्राप कर दिया जाता है. जब रमेश अग्रवाल थे तब ख़बरों में कोई हस्तक्षेप नहीं था. भास्कर ग्रुप के अन्य धंधों पर किसी स्टोरी की वजह से कोई आंच ना आ जाए इस बात का पूरा ध्यान रखा जाता है. अखबार को दूसरे व्यवसाय चलाने के लिए कवच के रूप में इस्तेमाल करना गलत है.”

भास्कर में इस तरह से खबरों को हटाने के बारे में जब हमने उनके नेशनल अफेयर्स एडिटर ओम गौड़ से बात की तो उन्होंने कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया.

भास्कर में आठ साल तक एडिटर की हैसियत से काम कर चुके एक पत्रकार नाम गोपनीय रखने की शर्त पर कहते हैं, "अख़बार में मुख़्यमंत्री के खिलाफ लिखने की सख्त मनाही रहती थी. जजों के खिलाफ लिखने पर मनाही थी क्योंकि अदालतों में इनके मुक़दमे चल रहे होते थे. हम अगर सरकार की नीतियों के खिलाफ कोई सीरीज लिखते थे तो उसका पहला पार्ट छपने के बाद रोक दिया जाता था क्योंकि इनकी सरकार के साथ डील हो जाती थी. अलग अलग बीट पर काम करने वाले रिपोर्टर्स को भास्कर अपने बाकी धंधों को साधने के लिए काम में लाते हैं.”

भास्कर के अंग्रेजी अखबार डीबी पोस्ट में काम कर चुके एक पत्रकार भास्कर की पत्रकारिता में आक्रामकता को रणनीति के तौर पर देखते हैं. उनके मुताबिक भास्कर अक्सर पहले सरकार पर दबाव बनाने के लिए आक्रामक रिपोर्टिंग करता है, जैसे ही सरकार के साथ डील हो जाती है तो फिर वह अपना रवैया नरम कर लेता है.

वह जानकारी देते हैं, "आज ये इनकम टैक्स के छापों को पत्रकारिता के चलते बता रहे हैं. लेकिन यह भी एक सच है कि व्यापम जैसे घोटाले की खबरों को भास्कर ने नज़रअंदाज़ कर दिया था. भास्कर के मेरे दो पत्रकार साथी व्यापम की खबरे खोजते रहते थे, शाम को ज़ोरदार खबरें लेकर आते थे, लेकिन उन खबरों को पेज पर नहीं लगाया जाता था. घोटाले में शामिल भाजपा नेताओं और अन्य अभियुक्तों की खबरें हमारे पास थीं लेकिन भास्कर ने उन्हें नहीं छापा. भास्कर में व्यापम की छोटी-मोटी खबरें अंदर के पन्नो पर छपती थीं."

एक वाकये के बारे में हमें बताते हैं, "एक बार डीबी पोस्ट में हमने एक मुख़्यमंत्री से जुड़ी खबर छापी. अगले दिन रमेश अग्रवाल ने एडिटोरियल टीम को अपने बंगले पर बुला लिया. उस वक्त वहां मुख्यमंत्री भी मौजूद थे. अगर कोई स्टोरी भास्कर ग्रुप के बिज़नेस को नुकसान पंहुचा सकती थी तो उसे हटा दिया जाता था.”

सरकारी ज़मीनों पर कब्ज़ा

सरकारी ज़मीनों पर अवैध कब्ज़ा करने में भास्कर की छवि बेहद नकारात्मक है. न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद छतीसगढ़ सरकार के सरकारी कागज़ों के मुताबिक दैनिक भास्कर ने रायपुर में सरकार द्वारा अखबार के प्रकाशन के लिए मिली हुई पट्टे की ज़मीन पर सभी नियमों का उल्लंघन कर सात मंज़िला कमर्शियल काम्प्लेक्स बना दिया था. इसके अलावा आस पास की लगभग 10 हज़ार वर्ग फ़ीट सरकारी ज़मीन पर भी कब्ज़ा कर लिया था. इस निर्माण में उसने सात करोड़ इकसठ लाख की सरकारी भू-भाटक फीस भी शासन को नहीं दी है.

दैनिक भास्कर को अविभाजित मध्य प्रदेश के राजस्व विभाग ने साल 1985 में रायपुर के रजबंधा मैदान में लगभग 45000 स्क्वायर फ़ीट भूमि प्रेस खोलने के लिए आवंटित की थी. सरकारी कायदे और कानून के हिसाब से भास्कर इस ज़मीन पर सिर्फ अख़बार की प्रेस के अलावा और कुछ नहीं ख़ोल सकता था. लेकिन उन्होंने वहां सात मंज़िला कमर्शियल काम्प्लेक्स बना दिया हैं जिसका इस्तेमाल अन्य व्यावसायिक कामों के लिए किया जाता है. साथ ही साथ आवंटित की गयी ज़मीन के अलावा भास्कर ने लगभग 10 हजार स्क्वायर फ़ीट ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया था.

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भास्कर द्वारा किये गए इस अवैध काम की जानकारी जब छत्तीसगढ़ सरकार को हुई तब राजस्व विभाग ने 2017 में भास्कर को लीज़ पर दी हुयी इस ज़मीन के आवंटन को निरस्त कर उस पर सरकारी कब्ज़ा करने का आदेश जारी कर दिया. लेकिन वो इमारत आज भी ज्यों की त्यों भास्कर के कब्ज़े में है.

इसी तरह भोपाल में भी भास्कर पर सरकारी ज़मीन पर कब्ज़ा करने के आरोप लगे हैं. संजय नगर झुग्गी बस्ती को हटाने के बाद सरकार से मिली ज़मीन पर भास्कर ने साल 2010 में डीबी माल बनाया था. सरकार ने लगभग पांच एकड़ ज़मीन का आवंटन किया था. 2014 में जब लोकायुक्त के आदेश पर ज़मीन नपवाई गयी थी तब पता चला था कि भास्कर ने आवंटित जमीन के अलावा तकरीबन सवा एकड़ सरकारी ज़मीन पर भी कब्ज़ा कर लिया था. यहां उसने अपने मॉल के लिए पार्किंग बना दी थी. बाद में भास्कर ने यह ज़मीन भोपाल नगर निगम को लौटा दी.

भास्कर के ऊपर भोपाल में जंगल की ज़मीन पर कब्ज़ा कर अपना संस्कार वैली स्कूल बनाने का आरोप भी लगा है. इस मामले में 2017 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की जांच समिति ने पाया था कि मध्य प्रदेश के कैपिटल प्रोजेक्ट एडमिनिस्ट्रेशन ने भास्कर ग्रुप के संस्कार वैली स्कूल को सिर्फ 1.90 एकड़ जमीन पर स्कूल के निर्माण की इजाज़त दी थी लेकिन उन्होंने लगभग 34 एकड़ वन क्षेत्र में स्कूल का निर्माण कर दिया.

गांव के पत्रकार को दैनिक भास्कर पत्रकार ही नहीं मानता

गौरतलब है कि कुछ महीने पहले भास्कर के मैनेजमेंट ने घोषणा की थी कि उनके लिए काम करने वाले कर्मचारियों की अगर कोविड के चलते मृत्यु होती है तो वह उनके परिवार को एक साल तक उनकी तनख्वाह मुहैय्या करवाएंगे और साथ ही साथ उनको सात लाख रुपये का मुआवजा भी देंगे. लेकिन ग्रामीण इलाकों में काम करने वाले पत्रकारों के परिवारों के लिए भास्कर की यह मदद मिलना तो दूर, भास्कर का प्रबंधन उन्हें सरकार से मिलने वाले आर्थिक मदद के लिए अपने दस्तख़त तक देने के लिए राज़ी नहीं है.

छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के ग्रामीण इलाकों में काम करने वाले पत्रकार थानेन्द्र कुमार नागेश नौ महीने पहले भास्कर से जुड़े थे. नागेश धमतरी के ग्रामीण इलाकों में सब एजेंट के रूप में काम कर रहे थे. उनके परिवार के मुताबिक 18 अप्रैल को उनकी कोरोना के चलते मृत्यु हो गयी.

पत्रकार थानेन्द्र कुमार नागेश की पत्नी द्वारा मुख्यमंत्री को लिखा गया पत्र.

उनकी मृत्यु के बाद थानेन्द्र के परिजनों ने सरकारी मुआवजा के लिए छत्तीसगढ़ जनसम्पर्क कार्यालय में आवेदन किया. छत्तीसगढ़ सरकार ने कोविड के शिकार हुए पत्रकारों के परिवारों को पांच लाख रूपये की मदद देने का ऐलान किया था. इस योजना के तहत मदद पाने के लिए पत्रकार जिस अखबार के लिए काम करते हैं उनके सम्पादक या प्रबंधन के दस्तखत चाहिए.

परिजन झानू नागेश कहते हैं, "जब मैंने दैनिक भास्कर वालों से संपादक के दस्तखत लेने के लिए गुजारिश की तो उन्होंने यह कह कर मना कर दिया कि थानेन्द्र सिर्फ एक सब एजेंट थे. यह बात गलत है थानेन्द्र धमतरी के ग्रामीण क्षेत्रों से उनके लिए खबरें करता था. अब उसकी मृत्यु के बाद अखबार वाले उसे अपना पत्रकार कहने तक से मना कर रहे है.”

इस मामले में थानेन्द्र की पत्नी तुलेश्वरी नागेश ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से शिकायत भी की है. भास्कर के संपादक के दस्तखत के अभाव में उन्हें शासन की योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है.

छत्तीसगढ़ श्रमजीवी पत्रकार संघ के प्रदेश अध्यक्ष अरविन्द अवस्थी कहते हैं, "ग्रामीण इलाकों में काम करने वाले यह पत्रकार सिर्फ रिपोर्टिंग ही नहीं करते , बल्कि अखबार के लिए विज्ञापन भी लाते हैं. अखबार वाले उन्हें 15 अगस्त, 26 जनवरी या अन्य त्योहारों पर एक-एक लाख के विज्ञापन लाने का टारगेट देते हैं. भास्कर उनसे दस काम करवाता था और अब उनकी मृत्यु के बाद उसके परिवार को शासन की योजना का लाभ लेने की लिए एक दस्तखत तक नहीं दे रहा. जब गांव के पत्रकारों को ये पत्रकार नहीं मानते तो प्रेस कार्ड क्यों देते हैं. भास्कर की यह हरकत शर्मनाक है."

न्यूज़लॉन्ड्री ने रायपुर में दैनिक भास्कर के संपादक शिव दुबे से बात करने की कोशिश की लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला.

भास्कर और कारोबार

अपने आप को दुनिया का तीसरा और भारत का सबसे ज्यादा सर्कुलेशन वाला अखबार घोषित करने वाला दैनिक भास्कर ग्रुप मीडिया के अलावा भी कई अन्य बिजनेस चलाता है. बिजली उत्पादन, खनन, रियल एस्टेट, कंस्ट्रक्शन (निर्माण), शिक्षा, प्रकाशन, होटल, थोक व्यापार, खाद्य-पेय पदार्थ बनाना, अपरिष्कृत तेल और प्राकृतिक गैस आदि के धंधों में भास्कर ग्रुप शामिल है.

डीबी पावर लिमिटेड

साल 2006 में बनायी गयी यह कंपनी बिजली उत्पादन का काम करती है. यह मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कोयले के ज़रिये बिजली उत्पादन के प्लांट स्थापित करती है. यह कंपनी बिजली उत्पादन और वितरण की श्रेणी में आती है. इसके निदेशको की लिस्ट में अग्रवाल परिवार के सदस्यों गिरीश अग्रवाल, पवन अग्रवाल, ज्योति अग्रवाल (भास्कर के एमडी सुधीर अग्रवाल की पत्नी), नमिता अग्रवाल के अलावा दैनिक भास्कर के खुदरा उद्योग के प्रभारी मनोज बहेती डीबी पॉवर के मुख्य वित्तीय अधिकरी बृजगोपाल रघुनाथ जाजू का नाम शामिल है.

इस कंपनी के कुल मिलाकर दस निदेशक है. इस कंपनी ने बैंको से लगभग 8520.75 करोड़ (सिक्योर्ड लोन्स) का कर्ज लिया है. ये कर्ज डीबी पावर लिमिटेड को आईडीबीआई, बैंक ऑफ़ बड़ौदा, यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया, सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया, बैंक ऑफ़ इंडिया और एसबीकैप ट्रस्टी कंपनी लिमिटेड से मिला है.

डीबी कॉर्प

भास्कर ग्रुप ने इस कंपनी की शुरुआत 1995 में की थी. यह कंपनी भास्कर समूह के अखबार दैनिक भास्कर, दिव्य भास्कर, दिव्य मराठी, सौराष्ट्र समाचार के छपाई और प्रकाशन का काम करती है. भास्कर का रेडियो चैनल माय एफएम और डिजिटल मीडिया भी इसी कंपनी के अधीन आता है. इस कंपनी के एमडी सुधीर अग्रवाल हैं. उनके भाई गिरीश और पवन अग्रवाल भी इस कंपनी में निदेशक हैं. साल 2019-20 में इस कंपनी की कुल कमाई 22,361 करोड़ थी, जिसमें 2,749 करोड़ का मुनाफा हुआ था. डीबी कॉर्प पर 189 करोड़ का क़र्ज़ है जो उन्हें आईडीबीआई बैंक ने दिया था. यह कंपनी बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड है.

डीबी इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड

साल 2006 में स्थापित इस कंपनी का रजिस्टर्ड (पंजीकृत) दफ्तर इंदौर में है. यह कंपनी भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, रायपुर, अहमदाबाद शहरों में रिहायशी और व्यवसायिक इमारतों के साथ टाउनशिप बनाने का काम करती है. रियल एस्टेट के क्षेत्र में काम करने वाली भास्कर ग्रुप की इस कंपनी के निदेशक भास्कर समूह के कर्मचारी अविनाश भटनागर और रवि दत्त सावला हैं. इस कंपनी पर एचडीएफसी बैंक का 94 करोड़ रूपये का कर्ज है.

डीबी माल्स प्राइवेट लिमिटेड

इस कंपनी को भास्कर समूह ने 2006 में खोला था. यह कंपनी भी निर्माण का काम करती है. इसके अलावा यह कंपनी किराए पर दुकाने और दफ्तर भी दिलवाती है. इस कंपनी के मौजूदा निदेशक भास्कर ग्रुप के कर्मचारी सत्येंद्र व्यास और राजेंद्र गुप्ता हैं. इस कंपनी पर 1791 करोड़ रुपये का कर्ज है जो कि एक्सिस बैंक और यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया ने दिया है.

भास्कर पब्लिकेशन एंड अलाइड इंडस्ट्री लिमिटेड

यह कंपनी भी प्रकाशन और छपाई का काम करती है. 1976 में शुरु की गयी इस कंपनी का ऑफिस ग्वालियर में पंजीकृत है. सुधीर अग्रवाल और गिरीश अग्रवाल इसके निदेशक हैं. 2019-20 के वार्षिक रिटर्न्स के अनुसार इस कंपनी पर 458.80 करोड़ रुपये का कर्ज है. यह कर्ज स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया, स्टेट बैंक ऑफ़ इंदौर और महाराष्ट्र बैंक ने दिया है.

डॉल्बी बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड

1994 में स्थापित यह कंपनी भी निर्माण का काम करती है और मुंबई में इसका दफ्तर है. यह कंपनी सिविल इंजीनियरिंग से जुड़े काम भी करती है. पहले इस कंपनी में अग्रवाल परिवार के सदस्य ही निदेशक थे. मौजूदा दौर में सत्येंद्र व्यास और रजनीश त्रिपाठी इसके निदेशक हैं. इस कंपनी ने विस्ट्रा आईटीसीएल से 259.90 करोड़ का कर्ज ले रखा है.

राइटर्स एंड पब्लिशर्स प्राइवेट लिमिटेड

1981 में बनायी गयी इस कंपनी के निदेशक तीनों अग्रवाल बंधु सुधीर, गिरीश और पवन हैं. उनके अलावा राजेंद्र जोशी नामक व्यक्ति भी कंपनी के निदेशक हैं. इस कंपनी का काम भी प्रकाशन और छपाई है. इस कंपनी का दफ्तर अहमदाबाद में है और इस पर 9217.28 करोड़ का कर्ज़ है.

डीबी पावर (मध्य प्रदेश)

यह कंपनी विद्युत उत्पादन और वितरण का काम करती है. इस कंपनी के कार्यकारी निदेशक पवन अग्रवाल हैं और निदेशक गिरीश अग्रवाल हैं. इन दोनों के अलावा और चार लोग इस कंपनी के निदेशक हैं. इस कंपनी पर 249.86 करोड़ का कर्जा है. इसके अलावा भास्कर ग्रुप की डीबी पावर (छत्तीसगढ़) नाम की भी कंपनी है.

भास्कर इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड

भास्कर ग्रुप की इस कंपनी को 1985 में भोपाल में शुरु किया गया था. यह कंपनी वित्तीय मध्यस्था से जुड़े काम करती है. जैसे कि वित्तीय सलाह देना और सुलह करवाना. इस कंपनी के निदेशक तीनों अग्रवाल बंधु हैं. इस कंपनी ने आईडीबीआई और एसबीआई से 727.21 करोड़ का कर्ज़ा ले रखा है.

रीजेंसी एग्रो प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड

यह कंपनी खाद्य और पेय पदार्थों का उत्पादन करती है. वनस्पति घी, तेल का भी उत्पादन किया जाता है. इसके अलावा सब्ज़ी, तेल, मांस, मछली की प्रोसेसेसिंग और प्रिजर्वेशन (प्रसंस्करण और सरंक्षण) भी किया जाता है. इस कंपनी का दफ्तर ग्वालियर में है और इस पर 2.62 करोड़ का कर्ज है. इसके अलावा भास्कर ग्रुप की यही काम करने वाली एक कंपनी विन्ध्या साल्वेंट अहमदाबाद में भी है.

डेकोर एक्सॉइल्स प्राइवेट लिमिटेड

भोपाल स्थित भास्कर ग्रुप की यह कंपनी भी वनस्पति घी, तेल के उत्पादन के साथ सब्ज़ी, तेल, मांस, मछली की प्रोसेसेसिंग और प्रिजर्वेशन का काम करती है. इस कंपनी को 1997 में शुरू किया गया था और इस पर लगभग 78 करोड़ का कर्ज़ा है.

डेकोर थर्मल पावर प्लांट लिमिटेड

इस कंपनी को 2015 में शुरु किया गया था. ये कंपनी बिजली उत्पादन और वितरण का काम करती है. इस कंपनी के निदेशक पवन अग्रवाल, गिरीश अग्रवाल और राजीव कालरा हैं. इस कंपनी ने आदित्य बिरला फाइनेंस से 148 करोड़ का क़र्ज़ लिया है.

डिलीजेंट होटल कारपोरेशन प्राइवेट लिमिटेड

भोपाल स्थित भास्कर ग्रुप की यह कंपनी होटल और रेस्टोरेंट चलाती है. भास्कर ने इस कंपनी के लिए 1464 करोड़ का लोन स्टेट बैंक ऑफ़ पटियाला और आरबीएल और एक्सिस बैंक से लिया और 2019 तक सारा कर्ज़ चुका दिया था.

डीबी कंसॉलिडेटेड प्राइवेट लिमिटेड

अहमदाबाद में रजिस्टर्ड यह कंपनी साल 1985 में शुरु की गयी थी. यह कंपनी थोक और कमीशन का काम करती है. इस कंपनी के लिए भास्कर ने 2017 से 2020 तक 3820.69 करोड़ का कर्ज़ा लिया था जिसमें से अब सिर्फ 185 करोड़ लौटना बचा है.

डीबी माइक्रो फायनेंस

यह कंपनी वित्तीय मध्यस्थता का काम करती है. यह कंपनी दैनिक भास्कर अखबार के भोपाल में एमपी नगर स्तिथ दफ्तर से संचालित होती है.

दिव्या माइनिंग एंड कोल

साल 2006 में बनायी गयी इस कंपनी का काम कोयले के खनन का है. इस कंपनी की प्रदत्त पूंजी (पेड अप कैपिटल) मात्र पांच लाख रुपये है. इस कंपनी का पता भी दैनिक भास्कर अखबार के भोपाल स्तिथ दफ्तर का है.

डीबी मेटल्स

इस कंपनी का काम धातु अयस्क (मेटल ओर) के खनन का है. 2008 में शुरू की गयी इस कंपनी की प्रदत्त पूंजी (पेड अप कैपिटल) मात्र पांच लाख रुपये है.

इन कंपनियों के अलावा दैनिक भास्कर ग्रुप की तमाम और भी कंपनिया हैं. ध्रुव इंफ़्रामाइन एंड पावर प्राइवेट लिमिटेड, डायनामिक इंफ्रावेंचर प्राइवेट लिमिटेड, सर्ज डेवेलपर्स प्राइवेट लिमिटेड, डिज़ाइन सलूशन्स लिमिटेड, विराट पावर एंड माइंस प्राइवेट लिमिटेड, दिव्या एनर्जी एंड फ़ूड प्राइवेट लिमिटेड, धनश्री माइंस प्राइवेट लिमिटेड, दिव्या माइनिंग कॉर्प लिमिटेड, डिवाइन हाउसिंग डेवलपमेंट कंपनी प्राइवेट लिमिटेड, साल्वेंट ट्रेडर्स, शारदा साल्वेंट आदि ऐसी कई कम्पनियां हैं.

गौरतलब है कि आयकर विभाग ने अपने बयान में कहा था कि भास्कर ग्रुप की सौ के ऊपर कम्पनियां हैं. छह से ज्यादा दिन चली छापेमारी की कार्रवाई के बाद आयकर विभाग ने बयान जारी कर कहा था कि समूह में 6 साल में 700 करोड़ रुपए की आय पर टैक्स को लेकर अनियमितता नजर आई है. इसकी आगे जांच की जा रही है. साथ ही विभिन्न कंपनियों में साइक्लिकल ट्रेड, फंड ट्रांसफर और रियल एस्टेट कंपनी में लोन को लेकर भी जांच की जा रही है.

भास्कर ग्रुप के एमडी सुधीर अग्रवाल 48 कंपनियों में निदेशक हैं, उनके दूसरे भाई गिरीश अग्रवाल 69 कंपनियों में निदेशक हैं और उनके तीसरे भाई पवन अग्रवाल 51 कंपनियों में निदेशक है. इसके अलावा सुधीर अग्रवाल की पत्नी ज्योति अग्रवाल लगभग 40 कंपनियों में निदेशक हैं और गिरीश अग्रवाल की पत्नी नमिता अग्रवाल 20 कंपनियों में निदेशक हैं. भास्कर ग्रुप में काम करने वाले कई कर्मचारी भी कई कंपनियों में निदेशक हैं.

आयकर का छापा और साहसी पत्रकारिता के बीच दैनिक भास्कर ने सैंकड़ों कंपनियों का मायाजाल फैला रखा है. इसको डीकोड किए बिना न तो सरकार के छापे समझ में आएंगे न ही भास्कर की साहसी पत्रकारिता.

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