एसओई 2021: कहीं डेढ़ गुना तो कहीं दोगुना बढ़ा औद्योगिक प्रदूषण

2009 से 2018 के बीच भारत के औद्योगिक क्षेत्रों में हवा, पानी और जमीन की गुणवत्ता खराब हो चुकी है.

WrittenBy:राजू सजवान
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सीईपीआई 2009 और 2018 के आंकड़ों की तुलना से पता चलता है कि 88 इंडस्ट्रियल क्लस्टर में से 17 में भूमि प्रदूषण बढ़ा है. यहां सबसे खराब प्रदर्शन मनाली का रहा है, जिसका सीईपीआई स्कोर 2009 के 58 से बढ़कर 2018 में 71 हो गया.

समग्र सीईपीआई स्कोर की बात करें, तो 35 इंडस्ट्रियल क्लस्टर ने पर्यावरणीय क्षरण में वृद्धि का संकेत दिया है. तारापुर (महाराष्ट्र में) की स्थिति सबसे अधिक चिंताजनक है, जहां एसओई के मुताबिक 2018 में इसका ओवरऑल सीईपीआई स्कोर 96 से अधिक था और ये उच्चतम स्कोर है.

सीएसई की औद्योगिक प्रदूषण इकाई (इंडस्ट्रियल पॉल्यूशन यूनिट) के कार्यक्रम निदेशक निवित कुमार यादव कहते हैं, "ये निष्कर्ष अपने आप में पूरी कहानी को साफ कर देते हैं. सीईपीआई डेटा स्पष्ट रूप से बताते हैं कि उन क्षेत्रों में भी प्रदूषण को नियंत्रित करने और कम करने के लिए वर्षों से कोई कार्रवाई नहीं हुई है, जिनकी पहचान पहले से ही गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्र के रूप में की जा चुकी थी.”

(साभार- डाउन टू अर्थ)

सीईपीआई 2009 और 2018 के आंकड़ों की तुलना से पता चलता है कि 88 इंडस्ट्रियल क्लस्टर में से 17 में भूमि प्रदूषण बढ़ा है. यहां सबसे खराब प्रदर्शन मनाली का रहा है, जिसका सीईपीआई स्कोर 2009 के 58 से बढ़कर 2018 में 71 हो गया.

समग्र सीईपीआई स्कोर की बात करें, तो 35 इंडस्ट्रियल क्लस्टर ने पर्यावरणीय क्षरण में वृद्धि का संकेत दिया है. तारापुर (महाराष्ट्र में) की स्थिति सबसे अधिक चिंताजनक है, जहां एसओई के मुताबिक 2018 में इसका ओवरऑल सीईपीआई स्कोर 96 से अधिक था और ये उच्चतम स्कोर है.

सीएसई की औद्योगिक प्रदूषण इकाई (इंडस्ट्रियल पॉल्यूशन यूनिट) के कार्यक्रम निदेशक निवित कुमार यादव कहते हैं, "ये निष्कर्ष अपने आप में पूरी कहानी को साफ कर देते हैं. सीईपीआई डेटा स्पष्ट रूप से बताते हैं कि उन क्षेत्रों में भी प्रदूषण को नियंत्रित करने और कम करने के लिए वर्षों से कोई कार्रवाई नहीं हुई है, जिनकी पहचान पहले से ही गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्र के रूप में की जा चुकी थी.”

(साभार- डाउन टू अर्थ)

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