दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और विवादों पर संक्षिप्त टिप्पणी.
मशहूर साहित्यकार और व्यंग्यकार हरिशंकर परसायी का एक व्यंग्य है- पेट का दर्द और देश का दर्द. उसका एक छोटा सा अंश सुनिए इस टिप्पणी में और इसके जरिए देश की सियासी जमात की दशा खुद ब खुद आपके समझ में आ जाएगी. उन्होंने लिखा- एक भले आदमी का मेरे प्रति बड़ा प्रेम है. कल जब उनका प्रेम बीच बरसात में बांध तोड़ने लगा तो उन्होंने मुझे भोजन के लिए बुलाया. हमारे सामने बैठ गए और लड़के लड़कियों को परोसने की हिदायत देने लगे. जितना उन्होंने परोसा उसके आधे में पेट भर गया. हम धीरे-धीरे पापड़ चुगने लगे. पापड़ का जिसने भी आविष्कार किया, कमाल किया. इसे चुगते हुए बड़े से बड़े पेटू का साथ दिया जा सकता है. खाने के सिवा यह मुहावरे बनाने के काम भी आता है जैसे पापड़ बेलना और पापड़ तोड़ना. एमएलए बनने के लिए भी बड़े-बड़े पापड़ बेलने पड़ते हैं.
ज्योति पासवान नाम की बच्ची ने गुड़गांव से दरभंगा के बीच 1200 किलोमीटर की यात्रा अपने बीमार पिता को साइकिल पर बिठाकर पूरी की. प्रवासी मजदूरों की तमाम दर्दनाक कहानियों में से एक दुखद कहानी यह भी. दिवालियापन यह कि लड़की ने भले ही मजबूरी में साइकिल चलाई, लेकिन राजनीतिक जमात को लगा कि साइकिल चलाना ही इसकी हॉबी है सो जिससे जितना बन पड़ा उसने उतना उजागर किया, अपना मानसिक दिवालियापन.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ट्रंप भी इस राष्ट्रीय शर्म के विषय में कूद पड़ीं. जी हां, उन्हीं ट्रंप साहब की बेटी जो मोदीजी के ख़ासुल-ख़ास मित्र हैं. इसके बाद तो फर्जी हमदर्दी का सैलाब आ गया पूरी टिप्पणी में देखिए सियासत और मीडिया की ऐसी ही कुछ खट्टी, कड़वी कहानियां.
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