कोरोना और बेरोज़गारी की दोहरी मार झेल रहे हैं गांवों के लोग

कोरोना के बढ़ते प्रकोप के बीच गांव में काम ख़त्म हो गया है. जो मज़दूर शहर से वापस लौटे थे वो बीमार पड़ गए हैं. इस बीच पीएम मोदी के आदर्श गांव में मनरेगा के अंतर्गत काम भी ठप पड़ा हुआ है.

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पीएम के आदर्श गांव में बिना मनरेगा के बेरोज़गार हैं वनवासी

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पांच साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत अपने लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में गांव, जयापुर को गोद लिया था. वहां 'मोदी जी का अटल नगर' एक आवास कॉलोनी है जो जयापुर के दक्षिण-पश्चिम कोने में बसी है. कॉलोनी मुसहर समुदाय के लोगों के लिए 2015 की शुरुआत में बनाई गई थी. इसमें 14 फ्लैट हैं. यह सभी चमकीले पीले और नीले रंग में रंगे हुए हैं. लेकिन गांव में न काम बचा है न उम्मीद. पिछले पांच सालों में गांव में किसी को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत शामिल नहीं किया गया है. बार-बार प्रधान से अनुरोध के बाद कागज़ी औपचारिकता तो हो गई लेकिन कार्ड नहीं मिला है. फिर लॉकडाउन ने बचे-कुचे अवसर छीन लिए. शहर जाकर जो कुछ कमा लेते थे अब इतना भी नहीं बचा है. सरकार द्वारा कोई पैसा भी खाते में नहीं आया है. गांव के बाहर मनरेगा में कितने लोगों को किस काम के लिए कितना श्रम मूल्य दिया जाएगा इसे एक पत्थर पर उकेरा ज़रूर गया है. लेकिन अटल नगर में रह रहे वनवासी लोग कुछ और ही बताते हैं.

जीतू वनवासी

जीतू वनवासी कहते हैं, “वह ईंट के भट्टे पर ईंट पाटने का काम करते हैं. उन्हें हर दिन की दिहाड़ी. 300 रुपए मिल जाते थे. लेकिन लॉकडाउन के बाद से ही उनके पास काम ख़त्म हो गया है. गांव में मनरेगा बंद है. उनका कहना है कि ईंट की भट्टी भी किसी-किसी महीने चलती है. घर का खर्चा बहुत मुश्किल से चलता है. शहर जाने के लिए भी पैसा चाहिए. गांव में पिछले छह महीने से सब काम बंद पड़ा है. गांव में किसी का भी मनरेगा में पंजीकरण नहीं हुआ है. हमें नहीं पता प्रधान ने हमारा नाम क्यों नहीं पंजीकृत कराया.”

न्यूज़लॉन्ड्री ने गांव के पूर्व ग्राम प्रधान नारायण सिंह पटेल से बात की. वह कहते हैं, “बस्ती के लोग ही मनरेगा में अपना पंजीकरण नहीं कराना चाहते. हमने कई बार कहा है लेकिन अटल नगर के लोग ही मनरेगा में काम नहीं करना चाहते क्योंकि उन्हें इधर-उधर मज़दूरी करने के लिए मनरेगा की तुलना ज़्यादा पैसा मिल जाता है."

जब न्यूज़लॉन्ड्री ने अटल नगर के निवासियों से बात की तो उन्होंने बताया कि ऐसा नहीं है और उन्होंने कई बार प्रधान से शिकायत की है. 30 वर्षीय पार्वती अटल नगर की रहने वाली हैं. उन्होंने बताया, “पिछले पांच सालों से गांव में किसी का भी मनरेगा के अंतर्गत कार्ड नहीं बना है. इसके लिए उन्होंने कई बार प्रधान से शिकायत भी की. हमने कई बार प्रधान को कहा कि हमारा कार्ड बनवा दें. एक बार फॉर्म भरवाया गया था. उसके बाद से कोई खबर नहीं मिली. लॉकडाउन के बाद से ही नहीं बल्कि यहां पिछले पांच सालों से मनरेगा काम नहीं कर रहा है, न हम लोगों के पास इतना पैसा बचा है कि शहर जाकर काम ढूंढ लें. अगर किसी दिन अगल- बगल के खेतों में काम मिल जाता है तो मज़दूरी कर लेते हैं लेकिन अमूमन सारा दिन घर पर ही बीतता है."

गुड्डी

अटल नगर निवासी गुड्डी कहती हैं, “सरकारी राशन में केवल सूखा गेहूं और चावल मिलता है. दाल खरीदने के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं. काम बंद है. मनरेगा बंद है. ऐसे में कोई बीमार पड़ता है तो उनके पास इलाज के लिए पैसे नहीं हैं.”

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गांवों में लौटने वाले प्रवासी श्रमिकों के लिए रोजगार और आजीविका के अवसरों को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने 20 जून 2020 को गरीब कल्याण रोजगार अभियान शुरू किया था. अभियान ग्रामीण बुनियादी ढांचे के विकास और गांव में इंटरनेट जैसी आधुनिक सुविधाएं प्रदान करने पर केंद्रित है. बावजूद इसके कई गांवों में अब भी रोज़गार के अवसर ठप पड़े हैं. सीएमआईई के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी दर 9.7 प्रतिशत पहुंच चुका है. यह अप्रैल में 7.13 प्रतिशत था. हालत यह है कि गांव में मनरेगा काम नहीं करता. किसी को मनरेगा के अंतर्गत पंजीकरण नहीं हुआ है न किसी के पास कार्ड है. बावजूद इसके अटल नगर के गेट के बाहर पत्थर की शिला पर मनरेगा की सभी जानकारी लिखी हुई है. गांव में कोरोना का संक्रमण तेज़ी से फैला हुआ है. लेकिन बेरोज़गारी के चलते लोगों के पास इतना पैसा नहीं बचा है जिस से वो अपना इलाज करा सकें.

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