पत्रकारों और राजनेताओं के कंधों पर पैर रख-रखकर कैसे एक शख़्स जग्गी वासुदेव से सद्गुरु बन गया

उनके अवैध कामों में संलिप्त रहने को लेकर लगातार चलती रहने वाली अनेक कानाफूसियों के बावजूद दो दशकों के भीतर आज वो एक बहुत बड़े ब्रांड बन गये हैं.

WrittenBy:प्रतीक गोयल
Date:
Article image

मीडिया की भूमिका

प्रिंट मीडिया और राजनेताओं के बाद टेलीविजन, सद्गुरु की सफलता के मार्ग में उठाया गया एक स्वाभाविक कदम था.

2008 में तमिल एंटरटेनमेंट चैनल स्टार विजय ने विकटन में आने वाले वासुदेव के कॉलम के नाम से ही एक शो शुरू किया, ‘अथाइनाइक्कुम असाइपाडु’. इस शो का प्रसारण रविवार की सुबह आधे घंटे के लिए किया जाता था जिसमें वासुदेव अपनी पसंद के मेहमानों के साथ बैठकर आध्यात्मिकता, सामाजिक मुद्दों, योगा, संस्कृति, ग्लोबल वार्मिंग, प्रेम, तलाक, और यहां तक कि मांसाहारी भोजन खाया जाये या नहीं इस पर भी बात करते थें.

उनके सभी मेहमान अपने क्षेत्र की बहुत बड़ी हस्ती होते फिर चाहे वो संगीत हो, साहित्य हो, या फिर सिनेमा और राजनीति हो. इनमें विवेक, आर पार्थिबन और क्रेज़ी मोहन जैसे अभिनेता, सुधा रघुनाथन जैसी कर्नाटक संगीत की गायिका, और यहां तक कि विदुथालाई चिरूथाइगल कातची तथा थोल थिरुमावलन जैसे राजनेता भी होते थे. वासुदेव मेजबान की भूमिका में होतें और साक्षात्कार कोयम्बटूर के बाहर, आश्रम के मुख्यालय में फ़िल्मायें जाते.

"ये प्रोग्राम अनूठा था", ईशा के एक स्वयंसेवक ने अपना नाम न उजागर होने देने की शर्त पर कहा. "एक आध्यात्मिक गुरु द्वारा मशहूर हस्तियों का साक्षात्कार लिया जाना- ये देखने में बहुत दिलचस्प था. इसने तमिलनाडु में सद्गुरु की स्थिति को और भी मजबूत किया."

नवंबर, 2010 में ईशा फाउंडेशन ने इन कन्वर्सेशन विथ द मिस्टिक के नाम से अथानाइक्कुम असाइपाडु का अपना संस्करण शुरू किया. इसकी पद्धत्ति भी पुराने संस्करण वाली ही रही लेकिन अब इसे लाइव ऑडियंस के आगे फ़िल्माया जाने लगा और ग्लैमर के तड़के को बढ़ाने के लिए मेहमानों के तौर पर जूही चावला, अनुपम खेर, किरण बेदी, किरण मज़ूमदार शॉ, बरखा दत्त और अर्णब गोस्वामी को भी शामिल किया गया. वासुदेव के साथ बैठने वाले पहले मेहमान शेखर कपूर थे.

सालों बाद रणवीर सिंह, कंगना रणौत, जैसे बॉलीवुड के सितारे और क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग सिद्ध पुरुष के साथ बातचीत करने के लिए बैठें. इस प्रोग्राम में बैठने के लिए टिकट लगता था. जल्द ही वासुदेव ने सहयोगी प्रोग्राम्स की भी शुरुआत कर दी, जैसे कि यूथ एंड ट्रूथ जिसमें वो आईआईएम से लेकर लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स जैसे जाने-माने विश्वविद्यालयों के छात्रों से बातचीत करते.

यहां गौर करने वाली बात ये है कि सभी प्रोग्राम बहुत आराम से नहीं चले. 2018 में हैदराबाद के नलसार विश्वविद्यालय में यूथ एंड ट्रूथ के एक एपिसोड के दौरान छात्रों ने सीधे-सीधे ऐसे सवाल पूछ लिए जिससे कि वासुदेव चौंक गये. उदाहरण के लिए एक छात्र ने सवाल कर दिया कि क्या तमिलनाडु के संरक्षित एलीफैंट कॉरिडोर क्षेत्र में ईशा फाउंडेशन के लिए अनुमति ली गयी है, उसने यह भी पूछा कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा कि कुछेक मंदिरों में स्त्रियों को नहीं जाना चाहिए.

उस वक़्त वहां पर मौजूद रहने वाली नालसार की एक पूर्व अस्सिटेंट प्रोफेसर प्रेरणा धूप ने इस घटना के माध्यम से यह दिखाने की कोशिश की कि नालसार के छात्र "बेहद सूक्ष्म स्तर पर भी सोचने-समझने में अभ्यस्त" है.

"जब उन्होंने जटिल मुद्दों पर सवाल करने शुरू किये तो उन्हें बेहद साधारण और एक तरफा जवाब मिलें," उन्होंने कहा. "इस आयोजन से...इसकी भी झलक मिलती है कि किस तरह हमारे नौजवानों को यथार्थ के केवल उसी संस्करण से परिचित कराया जा रहा है जो सद्गुरु के नजरिये के अनुरूप है. प्रिंट और सोशल मीडिया समेत संवाद के प्रमुख उपागमों पर ठीक-ठाक नियंत्रण, और शासक वर्ग के समर्थन के साथ ही उनका सरकार के भीतर भी अच्छा-खासा दबदबा था. सत्ता, प्रतिष्ठा और विशेषाधिकारों का ऐसा दुर्लभ संयोग हमारे उदारवादी लोकतंत्र और विविधताओं से भरे समाज के लिए आफत खड़ी कर सकता है."

फरवरी, 2021 से ही बिग एफएम पर वासुदेव नियमित रूप से धुन बदल के देखो नाम का शो करते हैं जहां वो स्वास्थ्य, आध्यात्म, नौजवानों, संबंधों और धर्म पर अपने विचार रखते हैं. न्यूजलॉन्ड्री उन शर्तों की प्रामाणिकता की जांच नहीं कर पाया है जिनके आधार पर वासुदेव या ईशा फाउंडेशन के साथ बिग एफएम एक सहयोगी की भूमिका निभा रहा है.

लेकिन आज की तारीख़ में वासुदेव को अपने ब्रांड के प्रचार-प्रसार के लिए किसी पत्रिका के कॉलम या टीवी शो की जरूरत नहीं है; वो तो स्वयं ही ये काम कर रहे हैं. अब जबकि इंटरनेट के द्वारा ब्रांड और प्रतिष्ठा का निर्माण किया जा रहा है तो ऐसे में बिना कोई देरी किये सद्गुरु अलग-अलग मंचों के और भाषाओं के अपने लाखों अनुयायियों के साथ इस बहती गंगा में हाथ धोने के लिए दौड़ पड़े. उनके फाउंडेशन के केंद्र पूरे भारत और विश्व में फैले हुए हैं. इसके साथ ही फाउंडेशन के पास 4,600 पूर्णकालिक स्वयंसेवकों और 90 लाख अंशकालिक स्वयंसेवकों का एक नेटवर्क है.

इन स्वयंसेवकों को कोई भुगतान नहीं किया जाता बल्कि वो तो "इनर इंजीनियरिंग" के एक प्रोग्राम से गुजरकर आने के बाद ही ईशा के लिए काम करने के लिए चुने जाते हैं. वो फाउंडेशन के लिए सोशल मीडिया संभालने, आईटी डेवलपमेंट, ब्रांड स्ट्रैटजी, लेखन सामग्री तैयार करने, फ़िल्मांकन करने, वीडियो एडिटिंग, आयोजन करवाने, चंदा इकट्ठा करने और खाना बनाने तथा सफाई के काम के साथ ही आश्रम के दूसरे बहुत से काम से करते हैं.

"सभी स्वयंसेवक मुफ़्त में काम करते हैं," ईशा की एक पूर्व स्वयंसेविका ने बताया जो कि अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण फाउंडेशन को अलविदा कह चुकी हैं लेकिन अक़्सर यहां आती रहती हैं. "उनमें से बहुत सारे लोग अपने कार्यक्षेत्रों में माहिर व्यक्ति हैं पर वो सद्गुरु के प्रसार के लिए अपनी निःशुल्क सेवाएं प्रदान करते हैं."

योगा से जुड़े सवाल

"ईशा योगा" वासुदेव के सबसे बड़े उत्पादों में से एक है जो कथित तौर पर "सद्गुरु द्वारा डिजाइन किया गया है" और इसे एक विस्तृत प्रणाली के तौर पर परिभाषित किया गया है जो आधुनिक मानव के लिए यौगिक विज्ञान के मूल को भी समेटे हुए है."

लेकिन एक ऐसा नाम भी है जिसका जिक्र आपने कभी भी ईशा फाउंडेशन के साथ नहीं सुना होगा और ये नाम है, ऋषि प्रभाकर. ऋषि प्रभाकर ही वो शख़्स हैं जिन्होंने 1984 में योगा का एक रूप सिद्धा समाधि योगा वासुदेव को सिखाया. यदि सूत्रों की मानें तो वासुदेव ने बाद में सिद्धा समाधि योगा को अपना लिया और ईशा योगा के नाम से इसकी रिपैकेजिंग कर दी.

प्रभाकर एक आध्यात्मिक गुरु और योगा के अध्यापक थे जो 1974 में बेंगलुरु में सिद्धा समाधि योगा के प्रणेता थे. उन्होंने भारत लौटने से पहले स्विट्ज़रलैंड में महर्षि महेश योगी के अधीन रहकर अध्ययन किया था. जबकि वासुदेव ने 1984 में प्रभाकर के अधीन रहकर ही मैसूर के नजदीक गोममातागिरि क्षेत्र में अध्ययन किया था.

"जग्गी और मैंने ऋषि प्रभाकर से मैसूर के निकट गोममातागिरी रहकर सिद्धा समाधि योगा सीखा", आंध्र प्रदेश के एक योगा अध्यापक ने बताया जिसने वासुदेव के साथ प्रशिक्षण लिया था." जग्गी 1984 में गुरुजी (प्रभाकर) से जुड़ें… वहां पर उनकी मुलाकात अपनी होने वाली पत्नी से हुई जो कि वहां एक स्वयंसेविका और प्रशिक्षक थी.

वासुदेव बीच पंक्ति में, बाएं से तीसरे स्थान पर
वासुदेव बाएं से तीसरे
वासुदेव जमीन पर बैठे हैं, दायें से तीसरे स्थान पर.

सिद्धा समाधि योग में प्रशिक्षित होने तक वासुदेव का योगा से कोई "पूर्व संबंध नहीं" था. और इसके बाद वो 1986 से 1987 के बीच हैदराबाद, बेंगलुरु और मैसूर में प्रभाकर का योगा सिखाने लगे. "इसके बाद गुरुजी ने जग्गी को कोयम्बटूर में एक और केंद्र स्थापित करने के लिए भेजा," उन्होंने कहा. "लेकिन जब वो वहां गये तो उन्होंने स्वयं को गुरुजी से अलग कर लिया और वहां अपना खुद का ईशा योगा शुरू कर दिया." ईशा फाउंडेशन की स्थापना 1992 में हुई थी.

सुब्रमण्यम रेड्डी जो कि सिद्धा समाधि योगा के एक अध्यापक हैं, का कहना है, "जग्गी वासुदेव सिद्धा समाधि योग के सबसे बेहतरीन अध्यापकों में से एक थे. वो गुरुजी के भी बहुत करीबी थे. लेकिन उन्होंने बहुत जल्द उनसे नाता तोड़ लिया और कोयंबटूर में योगा सीखाना शुरू कर दिया. सद्गुरु जो कुछ भी सिखाते हैं वो सब ऋषि प्रभाकर के पाठ्यक्रम से लिया गया है."

इस संबंध में ईशा फाउंडेशन की टिप्पणी लेने के लिए हम अब तक उनसे संपर्क नहीं कर पाये हैं.

***

तीन पार्ट में प्रकाशित होने वाली रिपोर्ट का यह दूसरा हिस्सा है. पहली रिपोर्ट पढ़ने के लिए क्लिक करें

यह रिपोर्ट हमारी एनएल सेना प्रोजेक्ट का हिस्सा है, जिसमें 155 पाठकों ने योगदान दिया.

इसे सरस उपाध्याय, विशाल रघुवंशी, विपिन शर्मा, किमाया कर्मलकर, शाफिया काज़मी, सौम्या के, तपिश मलिक, सूमो शा, कृष्णन सीएमसी, वैभव जाधव, रचित आचार्य, वरुण कुझिकट्टिल, अनिमेष प्रियदर्शी, विनील सुखरमानी, मधु मुरली, वेदांत पवार, शशांक राजपूत, ओलिवर डेविड, सुमित अरोड़ा, जान्हवी जी, राहुल कोहली, गौरव जैन, शिवम अग्रवाल, नितीश के गनानी , वेंकट के, निखिल मेराला, मोहित चेलानी, उदय, हरमन संधू, आयशा, टीपू, अभिमन्यु चितोशिया, आनंद, हसन कुमार , अभिषेक के गैरोला, अधिराज कोहली, जितेश शिवदासन सीएम, रुद्रभानु पांडे, राजेश समाला, अभिलाष पी, नॉर्मन डीसिल्वा, प्रणीत गुप्ता, अभिजीत साठे, करुणवीर सिंह, अनिमेष चौधरी, अनिरुद्ध श्रीवत्सन, प्रीतम सरमा, विशाल सिंह, मंतोश सिंह, सुशांत चौधरी , रोहित शर्मा, मोहम्मद वसीम, कार्तिक, साई कृष्णा, श्रेया सेथुरमन, दीपा और हमारे अन्य एनएल सेना सदस्यों के योगदान से संभव बनाया गया है.

Also see
article imageकानून की जमीन पर खोखली नजर आती ईशा फाउंडेशन के साम्राज्य की नींव
article image“हम श्मशान के बच्चे हैं”: वाराणसी के घाटों पर कोविड लाशों का क्रिया कर्म कर रहे मासूम
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like