कोविड-19 महामारी: अब एक साल बाद एक सताई हुई पीढ़ी

कोरोना विषाणु से पैदा हुई एक वैश्विक महामारी ने कई अनदेखी महामारियों को जन्म दे दिया है. इसके प्रभाव हमें कई दशकों तक दिखाई देंगे. इस महामारी की सताई हुई पीढ़ी का भविष्य बेहद दुर्गम जान पड़ता है और जिसके बदले हमें भी आंसू बहाने होंगे.

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2008 की आर्थिक मंदी के दौरान गर्भवती माताओं, खास तौर पर गरीब परिवारों में, कम वजन के शिशुओं को जन्म दिया. 1998 में, एल नीनो के चलते इक्वाडोर में विनाशकारी बाढ़ आई. इस दौरान यहां पैदा हुए बच्चे कम वजन वाले थे और उनमें बौनेपन की समस्या 5-7 साल तक जारी रही. संकट जैसी इन सभी घटनाओं के बाद पड़े प्रभावों में एक बात आम है कि माली हालत खराब होने से विभिन्न तरह के दुष्प्रभाव बढ़ जाते हैं. इसलिए, उपरोक्त प्रश्न का जबाव डराने वाला है. और हमारे पास इसके शुरुआती संकेत मौजूद हैं कि इस सदी की महामारी में जन्मी पीढ़ी की हालत पिछली महामारी में जन्मी पीढ़ी के मुकाबले अलग नहीं होगी. हाल ही में जारी विश्व बैंक की ओर से तैयार किया गया दुनिया का मानव पूंजी सूचकांक (एचसीआई) बताता है कि महामारी में जन्म लेने वाली पीढ़ी इससे सबसे ज्यादा पीड़ित होगी. 2040 में वयस्क होने वाली पीढ़ी कम लंबाई की होगी; मानव पूंजी के मामले में पीछे रहेगी और दुनिया के लिए सबसे कठिन विकास चुनौती भी हो सकती है. एचसीआई में “मानव पूंजी का आकलन होता है जो आज जन्म लेने वाला एक बच्चा अपने 18वें जन्मदिन तक पाने की उम्मीद कर सकता है.” इसमें अब नवजात शिशु के स्वास्थ्य और शिक्षा के अधिकार और इससे उसकी भविष्य की उत्पादकता कैसे प्रभावित होगी यह शामिल है.

कोविड-19 पिछली महामारियों की तरह किसी बच्चे या गर्भवती मां की सेहत को प्रभावित नहीं करेगी. लेकिन, महामारी के आर्थिक प्रभाव इस पीढ़ी को तबाह करने वाले होंगे, जिनमें मां के गर्भ में मौजूद बच्चे भी शामिल हैं. इसकी सबसे सरल वजह है कि एक गरीब परिवार स्वास्थ्य, भोजन और शिक्षा पर ज्यादा खर्च नहीं कर पाएगा. बाल मृत्यु दर ऊंची होगी और जो जीवित बच जाएंगे, उनमें बौनेपन की समस्या होगी. इसके अलावा, व्यवस्था बिगड़ने से लाखों बच्चों और गर्भवती माताओं को आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिल रहीं. एचसीआई के अनुमानों के मुताबिक, कम और मध्यम आय वाले 118 देशों में बाल मृत्यु दर 45 फीसदी बढ़ जाएगी. विश्लेषण से साफ है कि प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 10 फीसदी बढ़ोतरी बाल मृत्यु दर में 4.5 फीसदी गिरावट लाती है. अलग-अलग अनुमानों को देखते हुए साफ है कि अधिकांश देश महामारी की वजह से जीडीपी में बड़ी गिरावट का सामना करने जा रहे हैं. यह इशारा करता है कि बाल मृत्यु दर पर क्या प्रभाव पड़ेगा.

अक्टूबर, 2020 में संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियों ने दुनिया भर में मृत बच्चों का जन्म (स्टिलबर्थ्स)- ऐसे बच्चे का जन्म, जिसमें 28 सप्ताह या इससे ज्यादा की गर्भावस्था पर जीवन का कोई संकेत नहीं है- का संयुक्त अनुमान जारी किया. 2019 में दुनिया भर में कुल 19 लाख मृत बच्चों का जन्म हुआ, जिनमें से 3.4 लाख बच्चे भारत में जन्मे थे, जो इस तरह के बोझ के मामले में भारत को सबसे बड़ा देश बना देता है. भारत ने ऊंची संख्या के बावजूद मृत बच्चों के जन्म में कमी लाने में महत्वपूर्ण प्रगति दर्ज की है. लेकिन साझा रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि कोविड-19 महामारी भारत समेत पूरी दुनिया में मृत बच्चों के जन्म की संख्या बढ़ा सकती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में आई दिक्कतों के कारण महामारी महज 12 महीनों के भीतर (2020-21 के दौरान) निम्न और मध्यम आय वाले 117 देशों में 200,000 से ज्यादा मृत बच्चों के जन्म का कारण बन जाएगी.

यह ऐसे वक्त में है, जब दुनिया ने कुपोषण और गरीबी को घटाने के लिए बहुत कुछ किया है. नये सूचकांक ने स्पष्ट रूप से इस सच्चाई को सामने ला दिया है कि भले ही महामारी एक अस्थायी झटका हो, फिर भी यह अपने पीछे नई पीढ़ी के बच्चों पर कमजोर करने वाले प्रभावों को छोड़ने जा रही है.

जुलाई, 2020 में ग्लोबल हेल्थ साइंस जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि कोविड-19 को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन से पैदा खाद्य के झटके भारत में कुपोषण का बोझ बढ़ा सकते हैं. यह अध्ययन भरपूर आहार नहीं मिलने के कारण वजन घटने के नतीजों पर आधारित है. वजन में पांच फीसदी का नुकसान होने की स्थिति में, भारत कम वजन के 4,393,178 और अति दुर्बलता (वास्टिंग) के 5,140,396 अतिरिक्त मामलों का सामना करेगा. अध्ययन के मुताबिक, गंभीर रूप से कम वजन और अति दुर्बलता के मामले भी बढ़ने का अनुमान है. अध्ययन में कहा गया है कि बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे और कम वजन और अतिदुर्बलता के अतिरिक्त मामलों में गरीब परिवारों की हिस्सा सबसे ज्यादा होगा.

जिसने अभी-अभी जन्म लिया है, इस पीढ़ी के लिए दुनिया के गंभीर होने का यही वक्त है. हम पहले से ही विकास की कमी से जूझ रही अपनी वंचित पीढ़ियों में और इजाफा नहीं कर सकते.

2008 की आर्थिक मंदी के दौरान गर्भवती माताओं, खास तौर पर गरीब परिवारों में, कम वजन के शिशुओं को जन्म दिया. 1998 में, एल नीनो के चलते इक्वाडोर में विनाशकारी बाढ़ आई. इस दौरान यहां पैदा हुए बच्चे कम वजन वाले थे और उनमें बौनेपन की समस्या 5-7 साल तक जारी रही. संकट जैसी इन सभी घटनाओं के बाद पड़े प्रभावों में एक बात आम है कि माली हालत खराब होने से विभिन्न तरह के दुष्प्रभाव बढ़ जाते हैं. इसलिए, उपरोक्त प्रश्न का जबाव डराने वाला है. और हमारे पास इसके शुरुआती संकेत मौजूद हैं कि इस सदी की महामारी में जन्मी पीढ़ी की हालत पिछली महामारी में जन्मी पीढ़ी के मुकाबले अलग नहीं होगी. हाल ही में जारी विश्व बैंक की ओर से तैयार किया गया दुनिया का मानव पूंजी सूचकांक (एचसीआई) बताता है कि महामारी में जन्म लेने वाली पीढ़ी इससे सबसे ज्यादा पीड़ित होगी. 2040 में वयस्क होने वाली पीढ़ी कम लंबाई की होगी; मानव पूंजी के मामले में पीछे रहेगी और दुनिया के लिए सबसे कठिन विकास चुनौती भी हो सकती है. एचसीआई में “मानव पूंजी का आकलन होता है जो आज जन्म लेने वाला एक बच्चा अपने 18वें जन्मदिन तक पाने की उम्मीद कर सकता है.” इसमें अब नवजात शिशु के स्वास्थ्य और शिक्षा के अधिकार और इससे उसकी भविष्य की उत्पादकता कैसे प्रभावित होगी यह शामिल है.

कोविड-19 पिछली महामारियों की तरह किसी बच्चे या गर्भवती मां की सेहत को प्रभावित नहीं करेगी. लेकिन, महामारी के आर्थिक प्रभाव इस पीढ़ी को तबाह करने वाले होंगे, जिनमें मां के गर्भ में मौजूद बच्चे भी शामिल हैं. इसकी सबसे सरल वजह है कि एक गरीब परिवार स्वास्थ्य, भोजन और शिक्षा पर ज्यादा खर्च नहीं कर पाएगा. बाल मृत्यु दर ऊंची होगी और जो जीवित बच जाएंगे, उनमें बौनेपन की समस्या होगी. इसके अलावा, व्यवस्था बिगड़ने से लाखों बच्चों और गर्भवती माताओं को आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिल रहीं. एचसीआई के अनुमानों के मुताबिक, कम और मध्यम आय वाले 118 देशों में बाल मृत्यु दर 45 फीसदी बढ़ जाएगी. विश्लेषण से साफ है कि प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 10 फीसदी बढ़ोतरी बाल मृत्यु दर में 4.5 फीसदी गिरावट लाती है. अलग-अलग अनुमानों को देखते हुए साफ है कि अधिकांश देश महामारी की वजह से जीडीपी में बड़ी गिरावट का सामना करने जा रहे हैं. यह इशारा करता है कि बाल मृत्यु दर पर क्या प्रभाव पड़ेगा.

अक्टूबर, 2020 में संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियों ने दुनिया भर में मृत बच्चों का जन्म (स्टिलबर्थ्स)- ऐसे बच्चे का जन्म, जिसमें 28 सप्ताह या इससे ज्यादा की गर्भावस्था पर जीवन का कोई संकेत नहीं है- का संयुक्त अनुमान जारी किया. 2019 में दुनिया भर में कुल 19 लाख मृत बच्चों का जन्म हुआ, जिनमें से 3.4 लाख बच्चे भारत में जन्मे थे, जो इस तरह के बोझ के मामले में भारत को सबसे बड़ा देश बना देता है. भारत ने ऊंची संख्या के बावजूद मृत बच्चों के जन्म में कमी लाने में महत्वपूर्ण प्रगति दर्ज की है. लेकिन साझा रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि कोविड-19 महामारी भारत समेत पूरी दुनिया में मृत बच्चों के जन्म की संख्या बढ़ा सकती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में आई दिक्कतों के कारण महामारी महज 12 महीनों के भीतर (2020-21 के दौरान) निम्न और मध्यम आय वाले 117 देशों में 200,000 से ज्यादा मृत बच्चों के जन्म का कारण बन जाएगी.

यह ऐसे वक्त में है, जब दुनिया ने कुपोषण और गरीबी को घटाने के लिए बहुत कुछ किया है. नये सूचकांक ने स्पष्ट रूप से इस सच्चाई को सामने ला दिया है कि भले ही महामारी एक अस्थायी झटका हो, फिर भी यह अपने पीछे नई पीढ़ी के बच्चों पर कमजोर करने वाले प्रभावों को छोड़ने जा रही है.

जुलाई, 2020 में ग्लोबल हेल्थ साइंस जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि कोविड-19 को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन से पैदा खाद्य के झटके भारत में कुपोषण का बोझ बढ़ा सकते हैं. यह अध्ययन भरपूर आहार नहीं मिलने के कारण वजन घटने के नतीजों पर आधारित है. वजन में पांच फीसदी का नुकसान होने की स्थिति में, भारत कम वजन के 4,393,178 और अति दुर्बलता (वास्टिंग) के 5,140,396 अतिरिक्त मामलों का सामना करेगा. अध्ययन के मुताबिक, गंभीर रूप से कम वजन और अति दुर्बलता के मामले भी बढ़ने का अनुमान है. अध्ययन में कहा गया है कि बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे और कम वजन और अतिदुर्बलता के अतिरिक्त मामलों में गरीब परिवारों की हिस्सा सबसे ज्यादा होगा.

जिसने अभी-अभी जन्म लिया है, इस पीढ़ी के लिए दुनिया के गंभीर होने का यही वक्त है. हम पहले से ही विकास की कमी से जूझ रही अपनी वंचित पीढ़ियों में और इजाफा नहीं कर सकते.

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