यह टिप्पणी सिर्फ वयस्कों के लिए हैं, बच्चे और ‘आहत भावना समुदाय’ वाले विवेक का इस्तेमाल करें

दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.

  • Share this article on whatsapp

सबसे पहले एक स्पष्टीकरण. टिप्पणी का यह अंक वयस्कों के लिए है. बच्चे और आहत भावना समुदाय से जुड़े लोग कृपया इससे दूर रहे. मनुष्य का भाषा से जितना पुराना संबंध है उतना ही पुराना संबध उसका अपशब्दों से भी है इसलिए भावनाओं को ताखे पर रखकर इस टिप्पणी का आनंद लें.

जो लोग भाषा में गंदगी, अश्लीलता आदि खोजते हैं उनके लिए काशीनाथ सिंह ने लिखा है परम चूतिया. जिस तरह ब्रिटेन की महारानी के साथ हर मैजेस्टी, भारत के राष्ट्रपति के साथ महामहिम, और सुप्रीमकोर्ट, हाईकोर्ट के जजों के साथ माईलॉर्ड जैसी सम्मानसूचक शब्द जुड़े हैं उसी तरह भाषा में अनायास पवित्रता ढूंढ़ने वालों को काशीनाथ सिंह ने परम चूतिया की उपाधि दी है. बीते हफ्ते कुछ ऐसा हुआ जिस पर बाकी लोगों के साथ पत्रकारिता बिरादरी के बीच भी हू, हा, ये क्या बोल दिया योगीजी ने टाइप उछलकूद होती रही.

संकेत उपाध्याय ठहरे लखनऊ अवध क्षेत्र के निवासी, जहां लोग तहजीब को ताबीज बनाकर पहनते हैं. बड़ी मशहूर कहानी है एक लखनऊवा आदमी की. उन्हें किसी के ऊपर बेहद गुस्सा आ गया तो उन्होंने अपनी गालियों के तमाम अनुभव को समेट कर कहा- अपने दयार में रहिए वरना आपके आम्मीजान की शान में गुस्ताखी हो जाएगी. लेकिन बनारसी होने का अलग फायदा है. यहां गालियों के ऊपर इस तरह चांदी का वर्क लपेटने की मजबूरी नहीं है, बल्कि यहां गालियों के ऊपर वाद-विवाद की बड़ी स्वस्थ परंपरा है. योगी आदित्यनाथजी महाराज ने ऐसा क्या कह दिया कि समाज की नैतिकता, शालीनता, मर्यादा खतरे में पड़ गई और संकेत उपाध्याय को मुंह दबाना पड़ा.

एक समय था जब भारतीय जनता पार्टी को उसके बेहतरीन वक्ताओं के लिए भी जाना जाता था. वाकपटुता और सधी हुई बयानबाजी उनके तमाम नेताओं की खासियत हुआ करती थी. सुषमा स्वराज, प्रमोद महाजन, अरुण जेटली, गोविंदाचार्य और इन सबके ऊपर अटल बिहारी वाजपेयी. लेकिन आज भाजपा के पास ऐसे-ऐसे वक्ता हैं जिनकी फूहड़ आवाज़ सुनकर कानों से रक्तधार फूट फड़े.

आज अटल बिहारी वाजपेयी की परंपरा वाली भाजपा की हालत यह है कि उसका राष्ट्रीय चेहरा एक आयातित नेता गौरव भाटिया हैं. आयातित इसलिए क्योंकि कुछ साल पहले तक भाटिया समाजवादी पार्टी में थे. सत्ता बदली तो भाटिया सत्ता के साथ हो लिए. अब हर दिन अपनी विलक्षण वाकक्षमता का प्रदर्शन टीवी पर करते हैं.

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute

अमित शाह जिस कॉन्फिडेंस से पत्रकारों को हड़काते हैं, उसके बाद पत्रकार जरूरी सवाल पूछना ही भूल जाते हैं. शाह कहते हैं कि जयश्रीराम धार्मिक और राजनीतिक नारा नहीं है. दरअसल जय सियाराम से जै रामजीकी और वहां से जयश्रीराम की यात्रा में धर्म की भयानक विद्रूप राजनीति छिपी है. जय सियाराम और जै रामजीकी अभिवादन की वह शैली है जिसमें शिष्टता, सौम्यता और संयम निहित है. जयश्रीराम एक खास राजनीतिक आंदोलन की उत्पत्ति है. 1990 में लाल कृष्ण आडवाणी की रथयात्रा के बाद इस नारे ने गति पकड़ी. जाहिर है इस नारे की जड़ में राजनीतिक स्वार्थ और एक तबके विशेष से नफरत के बीज छिपे हैं. हिंसा और आक्रामकता इसके अंतरनिहित तत्व हैं. जब अमित शाह कहते हैं कि यह अपीजमेंट यानि तुष्टिकरण के खिलाफ लोगों के गुस्से की अभिव्यक्ति है तब वो यह बात छुपा जाते हैं कि अपीजमेंट क्या सिर्फ मुसलमानों का ही होता है, खुद वो जो राजनीति पूरे देश में कर रहे हैं उससे किसका अपीजमेंट हो रहा है. यह आरएसएस की शिक्षा है कि देश में सिर्फ मुसलमानों का ही अपीजमेंट हो सकता है. यह इसलिए है क्योंकि उनकी संख्या इतनी है जो नतीजों को प्रभावित कर सकती है. वरना इस देश में सिख, इसाई, पारसी भी अल्पसंख्यक हैं उनके खिलाफ अपीजमेंट की शिकायत कभी नहीं होती.

ऐसे ही कुछ और मुद्दों के इर्द-गिर्द इस हफ्ते की टिप्पणी रही. देखिए, अपनी राय दीजिए और न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब कीजिए.

Also see
article imageयोगी के ‘चूतिया’ वाले बयान पर पत्रकारों और दक्षिणपंथी मीडिया संस्थानों का फैक्ट गड़बड़ाया
article imageअर्णब के व्हाट्सएप चैट पर बोलना था प्रधानमंत्री को, बोल रहे हैं राहुल गांधी, क्यों?
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like