अर्णब के व्हाट्सएप चैट पर बोलना था प्रधानमंत्री को, बोल रहे हैं राहुल गांधी, क्यों?

सुरक्षा के ऐसे संवेदनशील मामलों को बिना किसी चेक के पसरने दिया जा रहा है जबकि अनाप शनाप फेसबुक पोस्ट करने वालों को पीट दिया जाता है और जेल में डाल दिया जाता है.

WrittenBy:रवीश कुमार
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व्हाट्सचैट का जो हिस्सा वायरल है उसका एक छोटा सा अंश दे रहा हूं. आप देख सकते हैं. मूल बातचीत अंग्रेज़ी में है. ये हिन्दी अनुवाद है.

अर्णब गोस्वामी: हां एक और बात, कुछ ब़ड़ा होने वाला है.

पार्थो दासगुप्ता: दाऊद?

अर्णब गोस्वामी: 'नहीं सर, पाकिस्तान, इस बार कुछ बड़ा होने वाला है'.

पार्थो दासगुप्ता: 'ऐसे वक्त में उस बड़े आदमी के लिए अच्छा है, तब वो चुनाव जीत जाएंगे. स्ट्राइक? या उससे भी कुछ बड़ा.

अर्णब गोस्वामी: 'सामान्य स्ट्राइक से काफी बड़ा. और साथ ही इस बार कश्मीर में भी कुछ बड़ा होगा. पाकिस्तान पर स्ट्राइक को लेकर सरकार को विश्वास है कि ऐसा स्ट्राइक होगा जिस से लोगों में जोश आ जाएगा. बिलकुल यही शब्द इस्तेमाल किए गए थे.

यह बेहद संगीन मामला है. सरकार को उसी वक्त एक्शन लेना चाहिए था और इस पर प्रतिक्रिया देनी चाहिए थी. मैं खुद सरकार की प्रतिक्रिया का इंतज़ार करता रहा. ये क्या हो रहा है कि सुरक्षा के ऐसे संवेदनशील मामलों को बिना किसी चेक के पसरने दिया जा रहा है जबकि अनाप शनाप फेसबुक पोस्ट करने वालों को पीट दिया जाता है और जेल में डाल दिया जाता है.

क्या चुनाव जीतने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा को दांव पर लगाया जा सकता है? मान लीजिए पाकिस्तान को यह सूचना किसी तरह से हाथ लग जाती क्योंकि यह पांच लोगों के अलावा बाहर जा चुकी थी. एक एंकर एक ऐसे व्यक्ति के साथ साझा कर रहा है जिससे वह लाभ पा कर करोड़ों कमाना चाहता है. अगर इस रूट से सूचना लीक होती औऱ पाकिस्तान दूसरी तरह से तैयारी कर लेता तो भारत को किस तरह का नुकसान होता इसका सिर्फ अंदाज़ा लगाया जा सकता है. कितने जवानों की ज़िंदगी दांव पर लग जाती इसका भी आप अंदाज़ा लगा सकते हैं. तभी तो ऐसी सूचना गोपनीय रखी जाती है. काम को पूरा करने के बाद देश को बताया जाता है. सुरक्षा मामलों का कोई भी जानकार इसे सही नहीं कह सकता है.

क्या अर्णब गोस्वामी पार्थो दासगुप्ता से गप्प हांक रहे थे? क्या यह संयोग रहा होगा कि वो हमले की बात कह रहे हैं और तीन दिन बाद हमला होता है और चुनावी राजनीति की फिज़ा बदल जाती है? लेकिन इसी चैट से यह भी सामने आया है कि कश्मीर में धारा 370 समाप्त किए जाने के फैसले की जानकारी उनके पास तीन दिन पहले से थी. अगर आप दोनों चैट को आमने-सामने रखकर देखें तो संयोग और गप्प हांकने की थ्योरी कमज़ोर साबित होती है. हम नहीं जानते कि बालाकोट स्ट्राक की जानकारी अर्णब के अलावा और किस किस एंकर को दी गई थी? क्या उसी के हिसाब से न्यू़ज़ चैनलों को तोप बनाकर जनता की तरफ मोड़ दिया गया और जनता देशभक्ति और पाकिस्तान के नाम पर वाह वाह करती हुई अपने मुद्दों को पीछे रख लौट गई थी?

राहुल गांधी कहते हैं कि इस मामले में कुछ नहीं होगा. उनकी बात सही है. ऐसी सूचना प्रधानमंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलहाकार, गृहमंत्री, रक्षा मंत्री और वायुसेना प्रमुख के पास होती है. इनकी जांच कौन करेगा? भारत जैसे देश में मुमकिन ही नहीं है. अमरीका या ब्रिटेन में आप फिर भी उम्मीद कर सकते हैं. ब्रिटेन में प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर के खिलाफ जांच कमेटी बैठी थी कि उन्होंने झूठ बोलकर ब्रिटेन की सेना को इराक युद्ध में झोंक दिया था. ब्लेयर दोषी पाए गए थे और उन्हे देश और सेना से माफी मांगनी पड़ी थी. आप इंटरनेट में चिल्कॉट कमेटी की रिपोर्ट के बारे में पढ़ सकते हैं. इसलिए इन पांचों से तो कोई पूछताछ होगी नहीं और अर्णब को इसलिए बचाया जाएगा क्योंकि इन पांचों में से किसी एक को बचाया जाएगा. प्रधानमंत्री को भी पद की गोपनीयता की शपथ दिलाई जाती है. क्या प्रधानंमत्री ने शपथ का उल्लंघन किया है? यह साधारण मामला नहीं है.

जैसा कि मैंने कहा था कि अर्णब का मामला सिर्फ अर्णब का मामला नहीं है. गोदी मीडिया में सब अर्णब ही हैं. सबके संरक्षक एक ही हैं. कोई भी आपसी प्रतिस्पर्धा में अपने संरक्षक को मुसीबत में नहीं डालेगा. इसलिए राहुल गांधी की प्रेस कांफ्रेंस के बाद जब प्रकाश जावड़ेकर बीजेपी मुख्यालय पहुंचे तो उनकी इस प्रेस कांफ्रेंस में राहुल के जवाब को लेकर या व्हाट्सएप चैट को लेकर गंभीर सवाल जवाब ही नहीं हुए. क्या बीजेपी कवर करने वाले पत्रकार इतना सहम चुके हैं? समझा जा सकता है. आखिर कितने पत्रकार बात-बात में नौकरी गंवा देंगे और सड़क पर आ जाएंगे? यह सवाल तो अब पत्रकार से ज़्यादा जनता का है. और जनता को नोट करना चाहिए कि बीजेपी कवर करने वाले पत्रकार बीजेपी से या केंद्र सरकार के मंत्री से सवाल नहीं पूछ सकते हैं. आईटी सेल को भी काठ मार गया है. वो मेरी एक गलती का पत्र वायरल कराने में लगा है. कमाल है. क्या देश ने तय कर लिया है कि आईटी सेल दो और दो पांच कह देगा तो पांच ही मानेंगे. चार नहीं.

तो क्या दूसरों को देशद्रोही बोलकर ललकारने वाला गोदी मीडिया या अर्णब गोस्वामी खुद देश के साथ समझौता कर सकते हैं? और जब करेंगे तो उन्हें बचाया जाएगा? इस देश में किसानों और पत्रकारों को एनआईए की तरफ से नोटिस भेजा जा रहा है और राष्ट्रीय सुरक्षा की सूचना बाज़ार के एक धंधेबाज़ सीईओ से साझा की जा रही है उस पर चुप्पी है. राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर मुखर होकर बोलने वाले ऐसे फौजी अफसर भी चुप हैं जो रिटायरमेंट के बाद अर्णब के शो में हर दूसरे दिन आ जाते हैं. उन्होंने भी नहीं मांग की कि इस मामले की जांच होनी चाहिए.

गोदी मीडिया इस मामले में चुप है. क्योंकि वह उसी संरक्षक का हिस्सा है जहां से सबको अर्णब बने रहने का प्रसाद मिलता है. जीवनदान मिलता है. क्या आप अपनी आंखों से देख पा रहे हैं कि आपके प्यारे वतन का कितना कुछ ध्वस्त किया जा चुका है? क्या आपको लग रहा है कि गोदी मीडिया के दस एंकरों और सरकार के बीच गिरोह जैसा रिश्ता बन गया है? आपने इस रिश्ते को मंज़ूर किया है. आपने सवाल नहीं उठाए हैं. फर्ज़ कीजिए. ऐसी जानकारी कोई बड़ा अधिकारी मेरे या किसी और के साथ चैट में साझा कर देता तब इस देश में क्या हो रहा होता? मैं आपको शर्मिंदा नहीं करना चाहता हूं. मैं जानता हूं कि जितनी बातें पिछले छह साल में कही हैं वही बातें घट चुकी हैं. वही बातें घट रही हैं. वही बातें घटने वाली हैं.

व्हाट्सचैट का जो हिस्सा वायरल है उसका एक छोटा सा अंश दे रहा हूं. आप देख सकते हैं. मूल बातचीत अंग्रेज़ी में है. ये हिन्दी अनुवाद है.

अर्णब गोस्वामी: हां एक और बात, कुछ ब़ड़ा होने वाला है.

पार्थो दासगुप्ता: दाऊद?

अर्णब गोस्वामी: 'नहीं सर, पाकिस्तान, इस बार कुछ बड़ा होने वाला है'.

पार्थो दासगुप्ता: 'ऐसे वक्त में उस बड़े आदमी के लिए अच्छा है, तब वो चुनाव जीत जाएंगे. स्ट्राइक? या उससे भी कुछ बड़ा.

अर्णब गोस्वामी: 'सामान्य स्ट्राइक से काफी बड़ा. और साथ ही इस बार कश्मीर में भी कुछ बड़ा होगा. पाकिस्तान पर स्ट्राइक को लेकर सरकार को विश्वास है कि ऐसा स्ट्राइक होगा जिस से लोगों में जोश आ जाएगा. बिलकुल यही शब्द इस्तेमाल किए गए थे.

यह बेहद संगीन मामला है. सरकार को उसी वक्त एक्शन लेना चाहिए था और इस पर प्रतिक्रिया देनी चाहिए थी. मैं खुद सरकार की प्रतिक्रिया का इंतज़ार करता रहा. ये क्या हो रहा है कि सुरक्षा के ऐसे संवेदनशील मामलों को बिना किसी चेक के पसरने दिया जा रहा है जबकि अनाप शनाप फेसबुक पोस्ट करने वालों को पीट दिया जाता है और जेल में डाल दिया जाता है.

क्या चुनाव जीतने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा को दांव पर लगाया जा सकता है? मान लीजिए पाकिस्तान को यह सूचना किसी तरह से हाथ लग जाती क्योंकि यह पांच लोगों के अलावा बाहर जा चुकी थी. एक एंकर एक ऐसे व्यक्ति के साथ साझा कर रहा है जिससे वह लाभ पा कर करोड़ों कमाना चाहता है. अगर इस रूट से सूचना लीक होती औऱ पाकिस्तान दूसरी तरह से तैयारी कर लेता तो भारत को किस तरह का नुकसान होता इसका सिर्फ अंदाज़ा लगाया जा सकता है. कितने जवानों की ज़िंदगी दांव पर लग जाती इसका भी आप अंदाज़ा लगा सकते हैं. तभी तो ऐसी सूचना गोपनीय रखी जाती है. काम को पूरा करने के बाद देश को बताया जाता है. सुरक्षा मामलों का कोई भी जानकार इसे सही नहीं कह सकता है.

क्या अर्णब गोस्वामी पार्थो दासगुप्ता से गप्प हांक रहे थे? क्या यह संयोग रहा होगा कि वो हमले की बात कह रहे हैं और तीन दिन बाद हमला होता है और चुनावी राजनीति की फिज़ा बदल जाती है? लेकिन इसी चैट से यह भी सामने आया है कि कश्मीर में धारा 370 समाप्त किए जाने के फैसले की जानकारी उनके पास तीन दिन पहले से थी. अगर आप दोनों चैट को आमने-सामने रखकर देखें तो संयोग और गप्प हांकने की थ्योरी कमज़ोर साबित होती है. हम नहीं जानते कि बालाकोट स्ट्राक की जानकारी अर्णब के अलावा और किस किस एंकर को दी गई थी? क्या उसी के हिसाब से न्यू़ज़ चैनलों को तोप बनाकर जनता की तरफ मोड़ दिया गया और जनता देशभक्ति और पाकिस्तान के नाम पर वाह वाह करती हुई अपने मुद्दों को पीछे रख लौट गई थी?

राहुल गांधी कहते हैं कि इस मामले में कुछ नहीं होगा. उनकी बात सही है. ऐसी सूचना प्रधानमंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलहाकार, गृहमंत्री, रक्षा मंत्री और वायुसेना प्रमुख के पास होती है. इनकी जांच कौन करेगा? भारत जैसे देश में मुमकिन ही नहीं है. अमरीका या ब्रिटेन में आप फिर भी उम्मीद कर सकते हैं. ब्रिटेन में प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर के खिलाफ जांच कमेटी बैठी थी कि उन्होंने झूठ बोलकर ब्रिटेन की सेना को इराक युद्ध में झोंक दिया था. ब्लेयर दोषी पाए गए थे और उन्हे देश और सेना से माफी मांगनी पड़ी थी. आप इंटरनेट में चिल्कॉट कमेटी की रिपोर्ट के बारे में पढ़ सकते हैं. इसलिए इन पांचों से तो कोई पूछताछ होगी नहीं और अर्णब को इसलिए बचाया जाएगा क्योंकि इन पांचों में से किसी एक को बचाया जाएगा. प्रधानमंत्री को भी पद की गोपनीयता की शपथ दिलाई जाती है. क्या प्रधानंमत्री ने शपथ का उल्लंघन किया है? यह साधारण मामला नहीं है.

जैसा कि मैंने कहा था कि अर्णब का मामला सिर्फ अर्णब का मामला नहीं है. गोदी मीडिया में सब अर्णब ही हैं. सबके संरक्षक एक ही हैं. कोई भी आपसी प्रतिस्पर्धा में अपने संरक्षक को मुसीबत में नहीं डालेगा. इसलिए राहुल गांधी की प्रेस कांफ्रेंस के बाद जब प्रकाश जावड़ेकर बीजेपी मुख्यालय पहुंचे तो उनकी इस प्रेस कांफ्रेंस में राहुल के जवाब को लेकर या व्हाट्सएप चैट को लेकर गंभीर सवाल जवाब ही नहीं हुए. क्या बीजेपी कवर करने वाले पत्रकार इतना सहम चुके हैं? समझा जा सकता है. आखिर कितने पत्रकार बात-बात में नौकरी गंवा देंगे और सड़क पर आ जाएंगे? यह सवाल तो अब पत्रकार से ज़्यादा जनता का है. और जनता को नोट करना चाहिए कि बीजेपी कवर करने वाले पत्रकार बीजेपी से या केंद्र सरकार के मंत्री से सवाल नहीं पूछ सकते हैं. आईटी सेल को भी काठ मार गया है. वो मेरी एक गलती का पत्र वायरल कराने में लगा है. कमाल है. क्या देश ने तय कर लिया है कि आईटी सेल दो और दो पांच कह देगा तो पांच ही मानेंगे. चार नहीं.

तो क्या दूसरों को देशद्रोही बोलकर ललकारने वाला गोदी मीडिया या अर्णब गोस्वामी खुद देश के साथ समझौता कर सकते हैं? और जब करेंगे तो उन्हें बचाया जाएगा? इस देश में किसानों और पत्रकारों को एनआईए की तरफ से नोटिस भेजा जा रहा है और राष्ट्रीय सुरक्षा की सूचना बाज़ार के एक धंधेबाज़ सीईओ से साझा की जा रही है उस पर चुप्पी है. राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर मुखर होकर बोलने वाले ऐसे फौजी अफसर भी चुप हैं जो रिटायरमेंट के बाद अर्णब के शो में हर दूसरे दिन आ जाते हैं. उन्होंने भी नहीं मांग की कि इस मामले की जांच होनी चाहिए.

गोदी मीडिया इस मामले में चुप है. क्योंकि वह उसी संरक्षक का हिस्सा है जहां से सबको अर्णब बने रहने का प्रसाद मिलता है. जीवनदान मिलता है. क्या आप अपनी आंखों से देख पा रहे हैं कि आपके प्यारे वतन का कितना कुछ ध्वस्त किया जा चुका है? क्या आपको लग रहा है कि गोदी मीडिया के दस एंकरों और सरकार के बीच गिरोह जैसा रिश्ता बन गया है? आपने इस रिश्ते को मंज़ूर किया है. आपने सवाल नहीं उठाए हैं. फर्ज़ कीजिए. ऐसी जानकारी कोई बड़ा अधिकारी मेरे या किसी और के साथ चैट में साझा कर देता तब इस देश में क्या हो रहा होता? मैं आपको शर्मिंदा नहीं करना चाहता हूं. मैं जानता हूं कि जितनी बातें पिछले छह साल में कही हैं वही बातें घट चुकी हैं. वही बातें घट रही हैं. वही बातें घटने वाली हैं.

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