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एनएल चर्चा 150: सुप्रीम कोर्ट की कमेटी, डोनल्ड ट्रंप के खिलाफ महाभियोग और व्हाट्सएप की प्राइवेसी पॉलिसी

हिंदी पॉडकास्ट जहां हम हफ़्ते भर के बवालों और सवालों पर चर्चा करते हैं.

     
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एनएल चर्चा का यह 150वां एपिसोड है. इस एपिसोड में कृषि कानून पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश और उसके द्वारा बनाई गयी समिति पर विशेष तौर पर बातचीत हुई. इसके साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के खिलाफ अमेरिकी संसद के निचली सदन में पास हुआ महाभियोग प्रस्ताव, व्हाट्सएप की नई प्राइवेसी पॉलिसी आदि का भी विशेष जिक्र हुआ.

इस बार चर्चा में क्विंट के लीगल एडिटर वकाशा सचदेव और न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.

किसानों के मुद्दे पर अतुल ने चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा, “कंसल्टेंसी का बहुत बड़ा मसला है सरकार के साथ, अगर हम ये तीनों कृषि क़ानूनों के नज़रिये से भी देखें की जिस कानून को जब लाया गया तब पूरे देश मे महामारी की स्थिति थी और बुलडोजर चला के एक तरह से राज्य सभा में पारित किया गया पूरी तरह से कंसल्टेशन का इसमें अभाव है.”

वह आगे कहते हैं, “डेमोक्रेटिक सलाह मशवरे का अभाव है और जब किसानों ने इसका विरोध शुरू कर दिया तो सरकार बोलती है कि सब कुछ उनके हित के लिए ही था, सब कुछ उनके भले के लिए ही था मतलब अपनी फैंटसी में सबका हित किधर है. सबकी अच्छाई क्या है, बुराई क्या है, खुद ही तय कर लेते है.”

वकाशा से सवाल करते हुए अतुल कहते हैं, “जिस तरीके से सुप्रीम कोर्ट ने इस पर दख़लअंदाज़ी की है, हस्तक्षेप किया है उसके बाद क्या लगता है आपको कि जो राजनीतिक पार्टियों का काम है उसमे सुप्रीम कोर्ट घुस गयी है जिसके बुरे परिणाम हो सकते हैं?.”

वकाशा जवाब देते हुए कहते हैं, “जो सुप्रीम कोर्ट है उनका काम मोर्चे पर बैठे लोगों और प्रदर्शन में शामिल लोगों के मैलिक अधिकारों की रक्षा हो रही है या नही उसका ध्यान रखना.

और सुप्रीम कोर्ट की सबसे अच्छी बात यहां यह रही है कि उसने अपना कोई अंतिम फैसला नहीं सुनाया क्योंकि शाहीन बाग के समय पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक बहुत ही प्रॉब्लमैटिक जजमेंट पास हुआ था.”

यहां अतुल एक बार फिर से सवाल पूछते हुए कहते हैं, “सुप्रीम कोर्ट एक दिन पहले बड़ी-बड़ी बातें करता नजर आया कि बहुत लोग मर रहे हैं, बच्चों को हटाया जाए, बुजुर्गों को हटाया जाए और फिर उसी समय किसानों की तरफ से बात साफ़ आ गयी थी कि वो किसी भी कमेटी से इसको लेकर बात नहीं करेंगे क्योंकि उनकी मांग सरकार से हैं कानून को लेकर हैं तो वो सरकार से डील कर लेंगे.”

“इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने ओवरस्टेपिंग करते हुए अपने कामकाज का जो अधिकार क्षेत्र है उसके ऊपर जाते हुए राजनीतिक पैर रखने की कोशिश की और एक ऐसी कमेटी बनाई जिसका औंधे मुंह गिरना तय है क्योंकि किसान उस कमेटी से बात नहीं करने वाले और दो महीने का उसका टाइम है इस बीच वह क्या करेगी क्या नहीं करेगी इस बांत पर संशय है. सुप्रीम कोर्ट इस देश में ऐसे फैसले लेती है जो लागू नहीं किए जा सकते, फिर ये बात आएगी कि सुप्रीम कोर्ट के किसी निर्णय का महत्व क्या है जब वो लागू ही नहीं होता है और इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने अपने पैर पर ही कुल्हाड़ी मरने का काम किया है.”

इस पर वकाशा कहते हैं, “इसके बारे में बहुत किताब हैं ‘कोरटिंग द पीपल’ उसमें उन्होंने हमारा जो पीआईएल सिस्टम है उसके बारे में लिखा है. उसमें हम देखें तो जहां से पीआईएल सिस्टम की शुरूआत हुई है और अब कहां आ गया है, वह सब समस्याएं हूबहू किताब में बताई गई हैं. पीआईएल का जो सिस्टम है उसका उद्देश्य है कि हम अन्य प्रोसिजर्स को कम कर दें जिससे की सभी लोग कोर्ट तक अपना केस ला सकें. लेकिन अब वैसा होता नहीं दिख रहा है.”

इस विषय पर मेघनाथ कहते हैं, “जो सुप्रीम कोर्ट का काम है क़ानूनों की संवैधानिक जांच करना, वह काम नहीं कर रही है. जैसे कि इलेक्टोरल बांड मामले में केंद्रीय सूचना आयुक्त ने भी कह दिया कि बांड की जानकारी जनहित में नहीं है. तो हमारे संस्थान पहले से ही अपना काम नहीं कर रहे हैं तो कोर्ट पर लोगों की नजर रहती है कि वह अपना काम ईमानदारी से करेगा लेकिन कोर्ट ऐसी जगहों पर अड़ंगा डाल रही है जहां उसकी जरूरत नहीं है. कोर्ट ने जो कानून पर रोक लगाते समय आंदोलन में शामिल बच्चों और महिलाओं को लेकर कहा कि उन्हें शामिल नहीं होना चाहिए, तो यह समझ से परे है कि इसके पीछे क्या लॉजिक है.”

इसके अलावा भी अन्य मुद्दों पर चर्चा की गई साथ ही व्हाट्सएप की नई प्राइवेसी पॉलिसी पर भी पैनल ने विस्तार से अपनी राय रखी. इसे पूरा सुनने के लिए हमारा पॉडकास्ट सुनें और न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना न भूलें.

टाइम कोड

1:30 - प्रस्तावना और हेडलाइन

7:46 - कृषि कानून

42:46- व्हाट्सएप की प्राइवेसी पॉलिसी

56:06-सलाह और सुझाव

क्या देखा पढ़ा और सुना जाए.

मेघनाथ

लव जिहाद एक्सपेलेनर

फिलोसोफाइस दिस पॉडकास्ट

डीप रॉक गैलेक्टिक गेम

वकाशा सचदेव

दिल्ली दंगो से प्रभावित बच्चों पर वीडियो रिपोर्ट

संशोधन सरकार का व्हाट्सएप प्राइवेसी पर लेख

फिफटी टू वेबसाइट पर प्रकाशित रिपोर्ट्स

डिस्कवरी पर प्रकाशित स्टार ट्रेक सीरीज

अतुल चौरसिया

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भानू प्रताप मेहता का लेख

संघम् शरणम् गच्छामि किताब - विजय त्रिवेदी

***

प्रोड्यूसर- आदित्य वारियर

रिकॉर्डिंग - अनिल कुमार

एडिटिंग - सतीश कुमार

ट्रांसक्राइब - अश्वनी कुमार सिंह

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इस बार चर्चा में क्विंट के लीगल एडिटर वकाशा सचदेव और न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.

किसानों के मुद्दे पर अतुल ने चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा, “कंसल्टेंसी का बहुत बड़ा मसला है सरकार के साथ, अगर हम ये तीनों कृषि क़ानूनों के नज़रिये से भी देखें की जिस कानून को जब लाया गया तब पूरे देश मे महामारी की स्थिति थी और बुलडोजर चला के एक तरह से राज्य सभा में पारित किया गया पूरी तरह से कंसल्टेशन का इसमें अभाव है.”

वह आगे कहते हैं, “डेमोक्रेटिक सलाह मशवरे का अभाव है और जब किसानों ने इसका विरोध शुरू कर दिया तो सरकार बोलती है कि सब कुछ उनके हित के लिए ही था, सब कुछ उनके भले के लिए ही था मतलब अपनी फैंटसी में सबका हित किधर है. सबकी अच्छाई क्या है, बुराई क्या है, खुद ही तय कर लेते है.”

वकाशा से सवाल करते हुए अतुल कहते हैं, “जिस तरीके से सुप्रीम कोर्ट ने इस पर दख़लअंदाज़ी की है, हस्तक्षेप किया है उसके बाद क्या लगता है आपको कि जो राजनीतिक पार्टियों का काम है उसमे सुप्रीम कोर्ट घुस गयी है जिसके बुरे परिणाम हो सकते हैं?.”

वकाशा जवाब देते हुए कहते हैं, “जो सुप्रीम कोर्ट है उनका काम मोर्चे पर बैठे लोगों और प्रदर्शन में शामिल लोगों के मैलिक अधिकारों की रक्षा हो रही है या नही उसका ध्यान रखना.

और सुप्रीम कोर्ट की सबसे अच्छी बात यहां यह रही है कि उसने अपना कोई अंतिम फैसला नहीं सुनाया क्योंकि शाहीन बाग के समय पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक बहुत ही प्रॉब्लमैटिक जजमेंट पास हुआ था.”

यहां अतुल एक बार फिर से सवाल पूछते हुए कहते हैं, “सुप्रीम कोर्ट एक दिन पहले बड़ी-बड़ी बातें करता नजर आया कि बहुत लोग मर रहे हैं, बच्चों को हटाया जाए, बुजुर्गों को हटाया जाए और फिर उसी समय किसानों की तरफ से बात साफ़ आ गयी थी कि वो किसी भी कमेटी से इसको लेकर बात नहीं करेंगे क्योंकि उनकी मांग सरकार से हैं कानून को लेकर हैं तो वो सरकार से डील कर लेंगे.”

“इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने ओवरस्टेपिंग करते हुए अपने कामकाज का जो अधिकार क्षेत्र है उसके ऊपर जाते हुए राजनीतिक पैर रखने की कोशिश की और एक ऐसी कमेटी बनाई जिसका औंधे मुंह गिरना तय है क्योंकि किसान उस कमेटी से बात नहीं करने वाले और दो महीने का उसका टाइम है इस बीच वह क्या करेगी क्या नहीं करेगी इस बांत पर संशय है. सुप्रीम कोर्ट इस देश में ऐसे फैसले लेती है जो लागू नहीं किए जा सकते, फिर ये बात आएगी कि सुप्रीम कोर्ट के किसी निर्णय का महत्व क्या है जब वो लागू ही नहीं होता है और इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने अपने पैर पर ही कुल्हाड़ी मरने का काम किया है.”

इस पर वकाशा कहते हैं, “इसके बारे में बहुत किताब हैं ‘कोरटिंग द पीपल’ उसमें उन्होंने हमारा जो पीआईएल सिस्टम है उसके बारे में लिखा है. उसमें हम देखें तो जहां से पीआईएल सिस्टम की शुरूआत हुई है और अब कहां आ गया है, वह सब समस्याएं हूबहू किताब में बताई गई हैं. पीआईएल का जो सिस्टम है उसका उद्देश्य है कि हम अन्य प्रोसिजर्स को कम कर दें जिससे की सभी लोग कोर्ट तक अपना केस ला सकें. लेकिन अब वैसा होता नहीं दिख रहा है.”

इस विषय पर मेघनाथ कहते हैं, “जो सुप्रीम कोर्ट का काम है क़ानूनों की संवैधानिक जांच करना, वह काम नहीं कर रही है. जैसे कि इलेक्टोरल बांड मामले में केंद्रीय सूचना आयुक्त ने भी कह दिया कि बांड की जानकारी जनहित में नहीं है. तो हमारे संस्थान पहले से ही अपना काम नहीं कर रहे हैं तो कोर्ट पर लोगों की नजर रहती है कि वह अपना काम ईमानदारी से करेगा लेकिन कोर्ट ऐसी जगहों पर अड़ंगा डाल रही है जहां उसकी जरूरत नहीं है. कोर्ट ने जो कानून पर रोक लगाते समय आंदोलन में शामिल बच्चों और महिलाओं को लेकर कहा कि उन्हें शामिल नहीं होना चाहिए, तो यह समझ से परे है कि इसके पीछे क्या लॉजिक है.”

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