74 वर्षीय ललित सुरजन कैंसर से पीड़ित थे. दिल्ली के धर्मशिला अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था.
वरिष्ठ पत्रकार और हिंदी अखबार ‘देशबंधु’ के प्रधान संपादक ललित सुरजन का बुधवार देर शाम दिल्ली के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया है. छत्तीसगढ़ के रहने 74 वर्षीय ललित सुरजन कैंसर से जूझ रहे थे.
मीडिया रिपोर्टर्स के मुताबिक इनके परिजनों ने बताया कि वे कैंसर के इलाज के लिए दिल्ली में थे. सोमवार को ब्रेन स्ट्रोक होने के बाद उन्हें धर्मशिला अस्पताल ले जाया गया जहां इलाज के दौरान बुधवार को उनका निधन हो गया.
ललित सुरजन के निधन पर पत्रकारिता जगत के लोग शोक में हैं. उनके नहीं होने को एक नहीं भरने वाली क्षति के रूप में देख रहे हैं.
बीबीसी हिंदी से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार अलोक पुतुल ने लिखा, ''देशबन्धु पत्र समूह के संपादक और जाने माने पत्रकार ललित सुरजन जी नहीं रहे. वे पिछले कुछ समय से कैंसर से जूझ रहे थे. मैंने एक दशक से भी अधिक समय तक उनके साथ काम किया था. वे हमेशा स्मृतियों में बने रहेंगे.
The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.
Contributeपत्रकार प्रशांत टंडन लिखते हैं, ''क्यों चले गये इतनी जल्दी ललित सुरजन जी. आपकी हम सबको बहुत ज़रूरत है, यही कहा था मैंने जब आप कैंसर से युद्ध जीत कर एयरपोर्ट जा रहे थे. लौटकर मिलता हूं कह कर आप चल पड़े. देशबंधु के संपादक, बेहद सक्रिय पत्रकार, लेखक, कवि और विचारक के तौर पर 50 साल की शानदार पारी. विनम्र श्रद्धांजलि।
बीबीसी हिंदी और न्यूज़ 18 के संपादक रह चुके पत्रकार निधीश त्यागी ललित सुरजन को याद करते हुए लिखते हैं, ''मेरे पहले संपादक और अख़बार मालिक ललित सुरजन का जाना इस न खत्म होते साल की उदासियों को और घना कर रहा है. देशबन्धु घराने से आने वाले मेरे जैसे बहुतों के सफ़रनामों के जरूरी हिस्से और सन्दर्भ बिंदु की तरह. एक नवसाक्षर समाज और मीडिया में बौद्धिक, विचारशील, जमीनी रिपोर्टिंग की जैसी ज़िद देशबन्धु में थी, कम ही जगह देखने को मिली. ललित सुरजन हिंदी के उन अपवाद सम्पादकों में थे, जिनसे किताबों, कविताओं और सरोकारों के बारे में सवाल भी किये जा सकते थे और बहस भी.''
आईआईएमसी के प्रोफेसर आनंद प्रधान ने उन्हें याद करते हुए लिखा, ''छत्तीसगढ के प्रतिष्ठित अख़बार देशबंधु के संपादक ललित सुरजन नहीं रहे. ललित सुरजन जी उस पीढ़ी के पत्रकारों में थे जिन्होंने एक मिशन और सामाजिक सरोकार की पत्रकारिता की. उनके नेतृत्व में देशबंधु ने ग्रामीण पत्रकारिता को एक नई उंचाई पर पहुंचाया. देशबंधु छत्तीसगढ़ का अपना अख़बार बना.''
सिर्फ मीडिया से जुड़े लोगों ने ही नहीं राजनेताओं ने भी ललित सुरजन को याद किया. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने लिखा, ''प्रगतिशील विचारक, लेखक, कवि और पत्रकार ललित सुरजन जी के निधन की सूचना ने स्तब्ध कर दिया है. आज छत्तीसगढ़ ने अपना एक सपूत खो दिया. सांप्रदायिकता और कूपमंडूकता के ख़िलाफ़ देशबंधु के माध्यम से जो लौ मायाराम सुरजन जी ने जलाई थी, उसे ललित भैया ने बखूबी आगे बढ़ाया.''
वहीं छत्तीसगढ़ के लम्बे समय तक मुख्यमंत्री रहे बीजेपी नेता रमन सिंह ललित सुरजन को याद करते हुए लिखते हैं, ''वरिष्ठ पत्रकार श्री ललित सुरजन जी के असामयिक निधन का समाचार बेहद दुःखद है. उनका जाना छत्तीसगढ़ और देश की पत्रकारिता के लिए अपूरणीय क्षति है. सुरजन जी सदैव सिद्धांतों पर अडिग रहे, वह पूरे जीवन आमजन के हक की आवाज़ उठाते रहे. उनका योगदान हमेशा याद रखा जाएगा. विनम्र श्रद्धांजलि!''
ललित सुरजन के परिवार में पत्नी और तीन बेटियां हैं.
वरिष्ठ पत्रकार और हिंदी अखबार ‘देशबंधु’ के प्रधान संपादक ललित सुरजन का बुधवार देर शाम दिल्ली के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया है. छत्तीसगढ़ के रहने 74 वर्षीय ललित सुरजन कैंसर से जूझ रहे थे.
मीडिया रिपोर्टर्स के मुताबिक इनके परिजनों ने बताया कि वे कैंसर के इलाज के लिए दिल्ली में थे. सोमवार को ब्रेन स्ट्रोक होने के बाद उन्हें धर्मशिला अस्पताल ले जाया गया जहां इलाज के दौरान बुधवार को उनका निधन हो गया.
ललित सुरजन के निधन पर पत्रकारिता जगत के लोग शोक में हैं. उनके नहीं होने को एक नहीं भरने वाली क्षति के रूप में देख रहे हैं.
बीबीसी हिंदी से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार अलोक पुतुल ने लिखा, ''देशबन्धु पत्र समूह के संपादक और जाने माने पत्रकार ललित सुरजन जी नहीं रहे. वे पिछले कुछ समय से कैंसर से जूझ रहे थे. मैंने एक दशक से भी अधिक समय तक उनके साथ काम किया था. वे हमेशा स्मृतियों में बने रहेंगे.
पत्रकार प्रशांत टंडन लिखते हैं, ''क्यों चले गये इतनी जल्दी ललित सुरजन जी. आपकी हम सबको बहुत ज़रूरत है, यही कहा था मैंने जब आप कैंसर से युद्ध जीत कर एयरपोर्ट जा रहे थे. लौटकर मिलता हूं कह कर आप चल पड़े. देशबंधु के संपादक, बेहद सक्रिय पत्रकार, लेखक, कवि और विचारक के तौर पर 50 साल की शानदार पारी. विनम्र श्रद्धांजलि।
बीबीसी हिंदी और न्यूज़ 18 के संपादक रह चुके पत्रकार निधीश त्यागी ललित सुरजन को याद करते हुए लिखते हैं, ''मेरे पहले संपादक और अख़बार मालिक ललित सुरजन का जाना इस न खत्म होते साल की उदासियों को और घना कर रहा है. देशबन्धु घराने से आने वाले मेरे जैसे बहुतों के सफ़रनामों के जरूरी हिस्से और सन्दर्भ बिंदु की तरह. एक नवसाक्षर समाज और मीडिया में बौद्धिक, विचारशील, जमीनी रिपोर्टिंग की जैसी ज़िद देशबन्धु में थी, कम ही जगह देखने को मिली. ललित सुरजन हिंदी के उन अपवाद सम्पादकों में थे, जिनसे किताबों, कविताओं और सरोकारों के बारे में सवाल भी किये जा सकते थे और बहस भी.''
आईआईएमसी के प्रोफेसर आनंद प्रधान ने उन्हें याद करते हुए लिखा, ''छत्तीसगढ के प्रतिष्ठित अख़बार देशबंधु के संपादक ललित सुरजन नहीं रहे. ललित सुरजन जी उस पीढ़ी के पत्रकारों में थे जिन्होंने एक मिशन और सामाजिक सरोकार की पत्रकारिता की. उनके नेतृत्व में देशबंधु ने ग्रामीण पत्रकारिता को एक नई उंचाई पर पहुंचाया. देशबंधु छत्तीसगढ़ का अपना अख़बार बना.''
सिर्फ मीडिया से जुड़े लोगों ने ही नहीं राजनेताओं ने भी ललित सुरजन को याद किया. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने लिखा, ''प्रगतिशील विचारक, लेखक, कवि और पत्रकार ललित सुरजन जी के निधन की सूचना ने स्तब्ध कर दिया है. आज छत्तीसगढ़ ने अपना एक सपूत खो दिया. सांप्रदायिकता और कूपमंडूकता के ख़िलाफ़ देशबंधु के माध्यम से जो लौ मायाराम सुरजन जी ने जलाई थी, उसे ललित भैया ने बखूबी आगे बढ़ाया.''
वहीं छत्तीसगढ़ के लम्बे समय तक मुख्यमंत्री रहे बीजेपी नेता रमन सिंह ललित सुरजन को याद करते हुए लिखते हैं, ''वरिष्ठ पत्रकार श्री ललित सुरजन जी के असामयिक निधन का समाचार बेहद दुःखद है. उनका जाना छत्तीसगढ़ और देश की पत्रकारिता के लिए अपूरणीय क्षति है. सुरजन जी सदैव सिद्धांतों पर अडिग रहे, वह पूरे जीवन आमजन के हक की आवाज़ उठाते रहे. उनका योगदान हमेशा याद रखा जाएगा. विनम्र श्रद्धांजलि!''
ललित सुरजन के परिवार में पत्नी और तीन बेटियां हैं.
General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.
Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?