सरकारी वरदहस्त का ताजा नमूना है अर्णब गोस्वामी का एनबीएफ

नेशनल ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन के मुकाबले अर्णब गोस्वामी के नेतृत्व में सरकार के अपरोक्ष समर्थन से नेशनल ब्रॉडकास्टर्स फेडरेशन के गठन ने टीवी मीडिया में रेगुलेशन की पहले से ही कमजोर स्थिति को बदतर कर दिया है.

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टीवी के परदे पर हर रात आग लगाने वाले समाचारवाचक अर्णब गोस्वामी को न्यूज़ ब्रॉडकॉस्टर्स फेडरेशन का अध्यक्ष चुना गया है. यह ख़बर आज हर अहम वेबसाइट पर है और ट्विटर पर ट्रेंड कर रही है. एकबारगी देखने पर लगता है कि यह बहुत अहम पद है और इसे प्रस्तुत भी इस तरह से किया जा रहा है कि देश के 78 से ज्यादा टीवी चैनलों ने मिलकर गोस्वामी को अपना स्वामी चुन लिया है, तो वास्तव में कुछ बड़ा ही होगा. मामला हालांकि वैसा नहीं है जैसा दिखाया जा रहा है.

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गोस्वामी ने अध्यक्ष चुने जाने का स्वागत करते हुए कहा है, “लंबे समय से कुछ मुट्ठी भर दिल्ली स्थित चैनलों ने फर्जी तरीके से भारतीय प्रसारकों की नुमाइंदगी करने का दावा किया है. अब यह बदल जाएगा और बेहतर होगा.”

गोस्वामी जिन मुट्ठी भर चैनलों का ज़िक्र कर रहे हैं, दरअसल गोस्वामी के रिपब्लिक को छोड़ कर उनमें वे तमाम राष्ट्रीय चैनल हैं जिनका न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन पिछले 12 साल से अस्तित्व में है और टीवी समाचारों के प्रसारण में नियम-कायदे तय करता रहा है. फिलहाल एसोसिएशन के अध्यक्ष इंडिया टीवी के रजत शर्मा हैं.

ये जो गोस्वामी का फेडरेशन है, बहुत नयी संस्था है. इस साल जुलाई में न्यूज़ ब्राडकास्टर्स फेडरेशन का गठन हुआ था जब 30 से ज्यादा टीवी चैनलों के शीर्ष अधिकारी एक बैठक में मिले थे. इसके बाद 1 नवंबर को इसे सदस्यता के लिए खोला गया. अब तक इसके जितने भी सदस्य बने हैं, उनमें कायदे से अर्णब गोस्वामी का रिपब्लिक टीवी ही कथित राष्ट्रीय चैनल माना जा सकता है, बाकी छिटपुट क्षेत्रीय और स्थानीय चैनल हैं. अगर टीवी9 भारतवर्ष को राष्ट्रीय चैनल मान लें, तो रिपब्लिक को मिलाकर कुल दो हो जाते हैं.

एनबीएफ की राजनीति को समझने से पहले इसके संस्थापक सदस्यों की सूची देखें:

रिपब्लिक टीवी और रिपब्लिक भारत, वी6 और पुथियाथलमुरइ टीवी (तमिलनाडु), उड़ीसा टीवी, आइबीसी 24 (एमपी और छत्तीसगढ़), एशियानेट और सुवर्ण (केरल−कर्नाटक), टीवी9 भारतवर्ष, न्यूज़लाइव और नॉर्थर्इस्ट लाइव, फर्स्ट इंडिया (राजस्थान), कोलकाता टीवी, सीवीआर न्यूज़ (तेलंगाना और आंध्र), पॉलिमर न्यूज़ (तमिलनाडु), खबर फास्ट (हरियाणा), लिविंग इंडिया(पंजाब), प्राग न्यूज़ (असम), एनटीवी (तेलंगाना और आंध्र), महान्यूज़ (तेलंगाना और आंध्र), टीवी5 न्यूज़ (तेलंगाना और आंध्र), वनिता टीवी (तेलंगाना और आंध्र), एमके टीवी  (तमिलनाडु), डीएनएन और आइएनडी24 (एमपी), श्री शंकर टीवी और आयुष टीवी (कर्नाटक), ए1 टीवी (जयपुर), पावर टीवी (कर्नाटक), राज न्यूज़ (तमिलनाडु), फ्लावर्स टीवी (केरल), सीवीआर न्यूज़ नेटवर्क (तेलंगाना और आंध्र), नेशनल वॉयस (यूपी), निर्माण न्यूज़ (गुजरात), अनादि टीवी (एमपी और छत्तीसगढ़), वीआरएल मीडिया (कर्नाटक), कलकत्ता न्यूज़, न्यूज़7 (तमिलनाडु), डीएनएन और न्यूज़ वर्ल्ड (एमपी छत्तीसगढ़), एमएच वन (हरियाणा), मंतव्य न्यूज़ (गुजरात), गुजरात टीवी, एस न्यूज़ (बंगाल), बंसल टीवी (एमपी) और ओंकट टीवी (बंगाल).

जुलाई में इस मंच के गठन के बाद सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इसका स्वागत करते हुए कहा थाः “मुझे उम्मीद है कि एनबीएफ सरकार को अपनी सिफारिशें देगा और प्रसारण में अनुशासन को सुनिश्चित करेगा ताकि सच की हत्या न होने पाए.”

एनबीएफ के गठन के पीछे की पूरी कहानी इसी बयान में छुपी है. देश में पिछले 12 साल से एनबीए अस्तित्व में है और अब तक इसने 3000 शिकायतों का निपटारा करते हुए कुछ ऐसे दिशानिर्देश जारी किए जिन्हें सरकार सहित चुनाव आयोग तक ने मान्यता दी है. तकरीबन सर्वस्वीकार्य एनबीए के रहते हुए एनबीएफ की ज़रूरत क्यों आन पड़ी?

दरअसल, पिछले कुछ वर्षों के दौरान एनबीए ने टाइम्स नाउ और रिपब्लिक में रहते हुए अर्णब गोस्वामी को जितनी बार नोटिस दिया, अर्णब ने उतनी बार उसका उल्लंघन किया. इसी साल मार्च महीने में अर्णब गोस्वामी ने अपने साथी पैनलिस्ट के साथ मिलकर एक मुस्लिम पैनलिस्ट को जमकर धमकाया और भारत माता की जय बोलने का दबाव डाला. इसे संज्ञान लेते हुए एनबीए ने रिपब्लिक टीवी से 14 अक्टूबर को रात 10 बजे माफी चलाने का निर्देश दिया. लेकिन जैसा कि उम्मीद थी, अर्णब ने ऐसा कुछ नहीं किया.

अर्णब ने कभी भी एनबीए के दिशानिर्देशों को नहीं माना. आज से दो साल जब रिपब्लिक टीवी शुरू हो रहा था तब एनबीए ने उसकी वैधता को चुनौती देते हुए दूरसंचार नियामक प्राधिकरण ट्राइ को पत्र लिखा था. यह अर्णब और एनबीए के बीच जंग की शुरुआत थी.

इसके बाद मुंबई में बुलायी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अर्णब ने एनबीए की चिट्ठी पर पूछे गए सवालों की प्रतिक्रिया में जवाब दिया एनबीए चार पांच लोगों का एक “दंतविहीन” गिरोह है जो अब बेकार हो चुका है. इस बात में एक हद तक सच्चाई भी थी क्योंकि एनबीए के मौजूदा अध्यक्ष रजत शर्मा ही वह शख्स थे जिन्होंने 2009 में एनबीए को खुद ठेंगा दिखाते हुए रायटर्स के एक इंटरव्यू को अपना बताकर प्रसारित कर दिया था. बाद में तिहाड़ जेल रिटर्न सुधीर चौधरी को पदाधिकारी चुनने पर भी एनबीए की भद पिटी थी.

यह दरअसल अर्णब गोस्वामी की निजी महत्वाकांक्षा, रंजिश और प्रसारण के मामलों में अनुशासन लाने संबंधी एनबीए की ढिलाई का मिलाजुला नतीजा रहा कि उन तमाम छोटे-मोटे चैनलों को मिला कर अर्णब ने एनबीएफ का गठन कर दिया जिनका मूल काम वसूली करना, चुनावी मौसम में पैसा कमाना और पत्रकारिता के नाम पर सनसनी फैलाना है. यह एक तरह से मोहल्ले के छिटपुट गुंडों का सर्वमान्य नेता बन जाने जैसी बात है.

अर्णब की एनबीए से रंजिश के अलावा देखें तो एनबीएफ का यह गठन अकारण नहीं है. इसकी टाइमिंग बहुत कुछ कहती है. यह फैसला एक ऐसे वक्त में आया है जब सूचना और प्रसारण मंत्रालय मीडिया को जवाबदेह बनाने के नियम कायदे गढ़ रहा है और ऑनलाइन कंटेंट के लिए एक फ्रेमवर्क तैयार कर रहा है.

अरुण जेटली के अवसान के बाद रजत शर्मा का राजनीतिक रसूख कम हो चुका है. दूसरे, एनबीए के तमाम पदाधिकारी भले ढीले-ढाले हों, लेकिन वे ज्यादातर पत्रकारिता के पुराने स्कूल से वास्ता रखने वाले सीनियर पत्रकार हैं जो अपनी पत्रकारिता में बुनियादी मर्यादाओं का ध्यान निजी स्तर पर ज़रूर रखते हैं.

ऐसे में सरकार से सटने का मौका कौन नहीं हड़पना चाहेगा. जो क्षेत्रीय चैनल एनबीएफ के सदस्य हैं, उन्हें इसका लाभ इस रूप में होगा कि अव्वल तो अर्णब के कंधे पर चढ़कर वे सरकार के कोप से बचे रहेंगे और विज्ञापन के मामले में उन्हें आसानी रहेगी. दूसरे, काम करने के मामले में चूंकि तमाम क्षेत्रीय चैनल राष्ट्रवादी सनसनी को अपना धर्म मानते हैं जिसके पुरोधा खुद अर्णब हैं, तो उन्हें अपने कंटेंट को लेकर एक संगठित वैधता भी मिल जाएगी.

यह सच है कि एनबीए में क्षेत्रीय चैनलों की नुमाइंदगी पर्याप्त नहीं थी. इसी वजह से कुछ साल पहले तमाम क्षेत्रीय चैनलों के मालिकान ने मिलकर एक मंच बनाया था जिसका नाम ऑल इंडिया न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन था. यह मंच केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद 2014 में अस्तित्व में आया था. इसका सीधा सा उद्देश्य था कि तमाम क्षेत्रीय चैनलों ने इस सरकार को बनाने में जैसी भूमिका निभायी है, वे उसकी वसूली कर सकें और माल काट सकें. दिक्कत यह हुई कि अपने बीच कोई बड़ा नाम न होने और विश्वसनीयता न होने के चलते यह मंच बहुत दिन टिक नहीं सका.

अब पांच साल बाद इन्हीं चैनल मालिकों को अर्णब गोस्वामी में अपना एक संकटमोचक दिखा है जो सरकार से निकटता बनाने के काम आ सकता है ताकि वे अपने कुकर्म के फल तोड़ सकें. इसीलिए आनन-फानन में सबने मिलकर अर्णब को अपना नेता चुन लिया और सूचना प्रसारण मंत्री ने भी इन्हें बधाई देकर एक तरह से मान्यता दे डाली. इस घटनाक्रम से घबराए एनबीए के सदस्यों ने एक प्रतिनिधिमंडल लेकर मंत्री जावड़ेकर से जुलाई के अंत में मुलाकात भी की थी, हालांकि बैठक में क्या बात हुई यह पता नहीं लगा है.

इलेक्ट्रॉनिक समाचार प्रसारण की दुनिया में बारह साल पुरानी पहली संस्था एनबीए के बरअक्स छह महीने पुरानी नयी संस्था एनबीएफ का पैदा होना और अर्णब गोस्वामी के हाथ में उसका नेतृत्व आना टीवी समाचार इंडस्ट्री में विशुद्ध दोफाड़ की स्थिति को दिखलाता है. अब इंडस्ट्री में दो खेमे साफ़ साफ बन चुके हैं. इतना तय है कि सरकार उसी समूह को अपने पास आने देगी जो उसके सामने नतमस्तक होगा.

जाहिर है, एबीपी, एनडीटीवी, आजतक, इंडिया टीवी सहित तमाम बड़े और पुराने चैनलों के मंच एनबीए के बजाय वह एनबीएफ को ही पास रखना चाहेगी क्योंकि वहां कुल मिलाकर एक ही राष्ट्रीय चैनल है रिपब्लिक, जिसकी छतरी तले तमाम क्षेत्रीय चैनल इकट्ठा हैं. एनबीएफ में अर्णब का बाकी पर नियंत्रण मुकम्मल है और अर्णब पर इस सरकार का नियंत्रण स्वतःसिद्ध.

आने वाले दिनों में मीडिया से जुड़े दिशानिर्देशों और कंटेंट के फ्रेमवर्क पर सूचना व प्रसारण मंत्रालय किसको न्योता देगा, यह बताने वाली बात नहीं होनी चाहिए. अर्णब के अध्यक्ष चुने जाने के बाद एनबीएफ बनाम एनबीए के रूप में टीवी मीडिया एक नयी जंग के लिए तैयार हो चुका है. आने वाले दिनों में दर्शकों और पत्रकारों के लिए इसके निहितार्थ सामने आ जाएंगे.

(मीडिया विजिल से साभार)

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