हाथरस कांड के आगे और पीछे सिर्फ और सिर्फ जाति का खेल है, और कुछ नहीं!

क्या दलितों के खिलाफ होने वाले अपराधों की हमें आदत पड़ चुकी है? सभ्य समाज में दलितों के लिए कोई जगह नहीं है?

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हाथरस में घटित होने वाली घटना वर्तमान सरकार के दावों पर प्रश्नचिह्न लगाती है कि महिला सुरक्षा को लेकर काफी सुधार हुए हैं. इसके बावजूद वे काफी आश्वस्त हैं क्योंकि एनसीआरबी के आंकड़ों ने पहले ही उत्तर प्रदेश सरकार को आगाह कर दिया होगा कि उत्तर प्रदेश अपराधों का प्रदेश बनने जा रहा है. शायद इसीलिए हाथरस में 19 साल की लड़की से 4 दबंगों ने गैंगरेप किया, जुबान काट दी गयी और रीढ़ की हड्डी तोड़ दी, लेकिन पुलिस ने मामले को दबाने की कोशिश की; मीडिया ने कोई आवाज़ नहीं उठायी; सरकार बिल्कुल खामोश रही; महिला आयोग को इस घटना से कोई मतलब नहीं था और हिंदू समाज व उसके संगठनों के लिए यह कोई घटना ही नहीं थी.

सवाल ये है कि केंद्रीय एससी/एसटी आयोग या उत्तर प्रदेश के आयोग से क्या कोई मेंबर इस घटना से अनभिज्ञ था या जान बूझ कर कोई नहीं गया? कंगना रनौत के मामले में महिला आयोग ने स्वत: संज्ञान लिया था! यहां किसी महिला की जान चली गयी, उसके साथ अपराध किया गया, उसके बावजूद महिला आयोग की तरफ से कोई कार्य नहीं किया गया? क्यों? क्योंकि लड़की दलित थी?

या फिर दलितों के खिलाफ होने वाले अपराधों से महिला आयोग, सरकारी संस्थाओं, सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ता? क्योंकि दलितों के खिलाफ होने वाले अपराधों की हमें आदत पड़ चुकी है? सभ्य समाज में दलितों के लिए कोई जगह नहीं है?

यह तथ्‍य एससी एसटी एक्ट का विरोध करने वालों के मुंह पर तमाचा है कि पीड़ित लड़की की एक सप्ताह से ज्यादा समय तक एफआइआर दर्ज नहीं हुई. क्या दलित समाज पीड़िता को न्याय दिला पाएगा?

भारत गणतंत्र बनने के साथ ही महिला और पुरुष की समानता का सिद्धांत स्थापित करता है. सदियों से महिलाएं जिस असमानता की विरासत को ढो रही थीं उनको उससे आजादी का मार्ग प्रशस्त करता है. सदियों से जाति आधारित दमन का सिलसिला जो चला आ रहा था उसको भी वैधानिक रूप से समाप्त करने का आधार निर्मित करता है भारत का संविधान. न समानता स्थापित हो पायी और न ही जातिगत दमन को समाप्त किया जा सका क्योंकि डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने संविधान सभा में कहा था कि संविधान चाहे जितना भी अच्छा हो, अगर उसको संचालित करने वाले लोग अच्छे नहीं होंगे तो उसका प्रभाव शून्य होगा.

इन सब को प्रमाणित करता है राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी). इसके अनुसार 2018 में बलात्कार के 1,56,327 मामलों में मुकदमे की सुनवाई हुई. इनमें से 17,313 मामलों में सुनवाई पूरी हुई और सिर्फ 4,708 मामलों में दोषियों को सजा हुई. आंकड़ों के मुताबिक 11,133 मामलों में आरोपी बरी किये गये जबकि 1,472 मामलों में आरोपितों को आरोपमुक्त किया गया.

एनसीआरबी की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश अपराधों के मामलों में नम्बर वन पर है। अगर आज एनसीआरबी 2020 की रिपोर्ट आ जाये तो उत्तर प्रदेश विश्व में सबसे अधिक अपराध घटित होने वाला प्रदेश होगा. आप इन आंकड़ों से देख सकते हैं कि केस की पूरी सुनवाई करने में न्यायपालिका सक्षम सिद्ध नहीं हो रही है. अपराधों के मामले में उत्तर प्रदेश ने प्रथम स्थान प्राप्त किया है.

हाथरस की घटना दलितों पर होने वाले अत्याचार का आईना मात्र है, लेकिन यह घटना सामूहिक बलात्कार की अन्य घटनाओं से भी आगे बढ़कर है जहां पीड़िता की जीभ को काट दिया गया, रीढ़ की हड्डी को तोड़ दिया गया तथा सामूहिक बलात्कार ने उस लड़की के आत्मसम्मान, स्वाभिमान और मानव गरिमा को धूमिल कर दिया. जहां तक सामाजिक न्याय, सम्मान, विश्वास का सवाल है वह प्रत्येक दिन दलितों के साथ उड़ जाता है.

सवाल इस देश में महिला अधिकारों की बात करने वाले प्रगतिशील भारतीय न्यूज़ चैनलों पर है जो दलित मुद्दों पर अपना मुंह बंद रखते हैं तथा अन्य किसी भी मुद्दे पर मानव विकास की उस सीमा पर पहुंच जाते हैं जहां से आगे बढ़ना नामुमकिन होता है. जातिवादी मीडिया संस्थान और बुद्धिजीवी वर्ग कुछ लोगों के खिलाफ होने वाले अपराधों को ही असली अपराध मानते हैं जबकि बड़े समुदाय के खिलाफ होने वाले अपराधों को वे सिर्फ एक घटना मात्र मानते.

सारा खेल जाति का है। जिस दिन खेल से जाति निकल जाएगी और हमें नागरिक होने का बोध होगा, शायद उस दिन कुछ बदलाव की बयार महसूस होगी.

(जनपथ डॉट कॉम से साभार)

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