प्रसार भारती: जनता का मीडिया या सरकार का मीडिया!

प्रसार भारती के चेयरमैन और सूचना प्रसारण मंत्री के बीच खिंची तलवारें सैद्धांतिक हैं या अहं का टकराव.

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सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी और प्रसार भारती के चेयरमैन ए सूर्य प्रकाश के बीच तनातनी की खबरें अब कोई अफवाह नहीं रहीं. हालांकि, यह उदारवादियों और दक्षिणपंथियों की लड़ाई नहीं है.

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सूर्य प्रकाश ने एक साक्षात्कार में यह स्पष्ट किया है कि वे विचारधारा के स्तर पर भाजपा सरकार के साथ हैं और सत्ताधारी दल के वरिष्ठतम नेताओं से उनकी अच्छी पटती है. उनका यह रिश्ता जून 1975 से जनवरी 1977 के बीच इंदिरा गांधी द्वारा लगाए आपातकाल से चला आ रहा है. इस विवाद को एक प्रसारक और मंत्रालय, या दो व्यक्तियों (सूचना प्रसारण मंत्री और चेयरमैन) के बीच की लड़ाई के रूप में देखकर अप्रासंगिक करार नहीं दिया जा सकता.

लेकिन वे कौन से महत्वपूर्ण मुद्दे दांव पर हैं. क्या यह प्रसार भारती, दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो की स्वतंत्रता को लेकर है. सूर्य प्रकाश एक स्वतंत्र पत्रकार रहे हैं. उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस के संस्थापक रामनाथ गोयनका के साथ काम कर पत्रकारीय विश्वसनीयता अर्जित की है. गोयनका के बारे में कहा जाता है कि वे राजनीतिक विपक्ष के समर्थक थे और इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस के जबरदस्त आलोचक थे.

पुराने समय की गोयनका की सत्ता विरोधी पत्रकारिता वाली छवि 60 और 70 के दशक में कांग्रेस विरोधी छवि धारण कर चुकी थी. इसे इंडियन एक्सप्रेस के तत्कालीन संपादक फ्रैंक मोरिस ने पहले पन्ने पर लिए अपने एक लेख ‘मिथ एंड रियलिटी’ के जरिए जाहिर भी किया था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में वर्तमान भाजपा सरकार जिस आक्रामकता से कांग्रेस का विरोध कर रही है सूर्य प्रकाश भी कांग्रेस को लेकर वैसी ही भावना रखते हैं. ईरानी इसमें नई आईं हैं क्योंकि वह 2004 में पार्टी से जुड़ी हैं. इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस और राजनीतिक विपक्ष का नेतृत्व करने वाले जयप्रकाश नारायण के तल्ख रिश्तों के लगभग 40 साल बाद स्मृति ईरानी राजनीतिक फलक पर आई हैं. इसके बावजूद अगर वे भी बाकी भाजपा नेताओं जैसी ही आक्रामकता से कांग्रेस का विरोध करती हैं या उससे भी ज्यादा, तो ईरानी और प्रकाश के बीच झगड़ा किस बात का है?

यह बात साफ है कि स्मृति ईरानी के हाथ में उनके मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले सभी मामलों में निर्णय लेने का अधिकार है और वे हर हाल में 2019 के चुनावों में पब्लिक ब्रॉडकास्टर का इस्तेमाल सरकार की नीतियों, कार्यक्रमों और उपलब्धियां गिनाने के लिए करना चाहेंगी. यह भी मानने में बहुत दिक्कत नहीं होनी चाहिए कि प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें सूचना और प्रसारण मंत्रालय की जिम्मेदारी इसलिए सौंपी है कि वे पब्लिक ब्रॉडकास्टर को भाजपा की सकारात्मक नीतियों के प्रचार में लगाएंगी.

अपनी तरफ से सूर्य प्रकाश पब्लिक ब्रॉडकास्टर की पूर्ण स्वतंत्रता की मांग नहीं कर रहे हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि वे दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो को मोदी सरकार की उपलब्धियों के साथ-साथ नाकामियों को भी प्रसारित करेंगे. एक पेशेवर पत्रकार के नाते वे न्यूज़ कवरेज की निष्पक्षता बनाए रखना चाहते हैं. साथ ही वे पब्लिक ब्रॉडकास्टर की विश्वसनीयता भी बनाए रखना चाहते हैं. और प्रसार भारती एक्ट के हवाले से, उनके नेतृत्व में, न दूरदर्शन (डीडी) और न ही ऑल इंडिया रेडियो (एआईआर) की मोदी सरकार की आलोचना करने की संभावना दिखती है.

यह तो कतई संभव नहीं दिखता जिस तरीके से बीबीसी ने 1982 में इंग्लैंड की प्रधानमंत्री मार्गेट थैचर की फॉकलैंड वार के दौरान आलोचना की थी, प्रसार भारती वैसा कुछ करेगा.

डीडी और एआईआर ऐसा करने की सोच भी नहीं सकते हैं. लेकिन सूर्य प्रकाश विचारधारा के स्तर पर प्रसार भारती के पब्लिक ब्रॉडकास्टर की छवि से बंधे रहने को प्रतिबद्ध हैं, न कि राज्य समर्थित ब्रॉडकास्टर. हालांकि दोनों में बहुत महीन फर्क है, कई बार तो इस फर्क का अंतर कर पाना मुश्किल होता है. पर अंतर है.

डीडी और एआईआर को राज्य के नियंत्रण से बाहर रखने के विचार पर 1990 के दशक से लगभग सभी विपक्षी दलों ने माथापच्ची की है. हालांकि जनता पार्टी की सरकार ने बीजी वर्गीस कमेटी बनाकर एक स्वायत्त पब्लिक ब्रॉडकास्टर की संभावना पर विचार किया था. तब सूचना व प्रसारण मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी इसे बहुत आगे नहीं ले जा सके थे क्योंकि यह सरकार थोड़े दिन ही चल सकी.

वीपी सिंह की सरकार के दौरान, 1989 में तेलुगु देशम पार्टी के पी उपेन्द्र तब सूचना प्रसारण मंत्री थे, प्रसार भारती बिल पारित किया. अंतत: देवगौड़ा की संयुक्त मोर्चा सरकार के दौरान, जब जयपाल रेड्डी सूचना प्रसारण मंत्री थे, प्रसार भारती एक्ट-1997 पारित हुआ.

यह रोचक राजनीतिक विरोधाभास है कि कुछ दक्षिणपंथियों को इंदिरा गांधी का ताकतवर शासन पसंद आता है. भाजपा नेताओं का ताकतवर राज्य के प्रति प्रेम जगजाहिर है क्योंकि यह दक्षिणपंथी विचारधारा की पोषक है. इनके अनुसार मजबूत राष्ट्र में पर्याप्त सैन्य उपस्थिति होनी चाहिए.

2014 में जब सूर्य प्रकाश को पब्लिक ब्रॉडकास्टर का चीफ बनाया गया, उन्होंने एक साक्षात्कार में इस पत्रकार को साफ किया था कि वर्तमान सरकार और मीडिया में किसी प्रकार की कोई तनातनी नहीं है. 70 के दशक वाली तनातनी का वक्त खत्म हुआ क्योंकि आज दोनों ही एक तरफ हैं. सूर्य प्रकाश ने खुशहाल और मजबूत भारत की उम्मीद जताई थी.

उन्होंने उसी साक्षात्कार में पब्लिक ब्रॉडकास्टर की स्वतंत्रता में आस्था जताई थी क्योंकि वे और उनके भाजपाई शागिर्दों ने आपातकाल के दौर में राज्य नियंत्रित मीडिया का दर्द झेला था. यह जरूर है कि पब्लिक ब्रॉडकास्टर और सरकार के बीच का अंतर एक धागे बराबर होता है, क्योंकि पब्लिक ब्रॉडकास्टर सरकार की नीतियों में विश्वास व्यक्त करता है. ऐसे में पब्लिक ब्रॉडकास्टर का सरकार का हिमायती होने की संभावना बनी रहती है. आज विपक्ष भले 2014 के बाद डीडी और एआईआर की निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर सकता है, लेकिन इस मामले में कांग्रेस के पास आलोचना करने का कोई ठोस नैतिक आधार नहीं है.

फिर भी अगर सूर्य प्रकाश पब्लिक ब्रॉडकास्टर का यह संघर्ष जीतते हैं तो इसे अहम माना जाएगा. कारण कि डीडी और एआईआर (हालांकि सांकेतिक ही सही) स्वतंत्र और पेशेवर संस्थान के रूप में काम कर सकेंगे. कोई सरकारी मंत्री पब्लिक ब्रॉडकास्टर को सरकार के एजेंट की तरह काम करवाने की जुर्रत नहीं करेगा.

यह संभव है कि प्रधानमंत्री मोदी, स्मृति ईरानी का समर्थन करते हों लेकिन कोई भी राजनीतिक संस्थान कभी भी किसी पत्रकार के सामने बुरा दिखना नहीं चाहेगा, भले ही वह पत्रकार सरकार का विरोधी ही न हो.

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