अमेजन ने कर दिया तसलीमा नसरीन की आत्मकथा ‘द्विखंडिता’ को प्रतिबंधित 

ई-कॉमर्स कंपनी अमेजन ने लेखिका तसलीमा नसरीन की हिंदी आत्मकथा द्विखंडिता को 'प्रतिबंधित' किताब बताकर बेचने से इनकार किया.   

WrittenBy:बसंत कुमार
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शुक्रवार की सुबह-सुबह अंतरराष्ट्रीय ई-कॉमर्स कंपनी अमेजन की भारतीय इकाई अमेज़न डॉट इन ने हिंदी के प्रतिष्ठित प्रकाशन समूह वाणी प्रकाशन को एक मेल के जरिए इत्तेला दी कि प्रतिष्ठित बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन की आत्मकथा द्विखंडिता के हिंदी संस्करण को वे अपने यहां से बिक्री से हटा रहे हैं क्योंकि यह किताब प्रतिबंधित है.

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अमेजन ने किताब की बिक्री रोकने के संदर्भ में वाणी प्रकाशन को लिखा है-  “यह किताब (द्विखंडिता) प्रतिबंधित है. इस पर भारत सरकार द्वारा भारत में बिक्री पर रोक है. अमेजन की पॉलिसी के अनुसार हम प्रतिबंधित किताबों को नहीं बेच सकते हैं. इसीलिए हम इसे अपने कैटलॉग से हटा रहे हैं.”

दिलचस्प बात यह है कि अमेज़न अपने यहां से इस किताब का अंग्रेजी संस्करण अभी भी धड़ल्ले से बेच रहा है. किताब की लेखिका तसलीमा ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि हिंदी संस्करण को कभी भी भारत सरकार या भारत की किसी भी अन्य अदालत ने प्रतिबंधित नहीं किया है.

तसलीमा नसरीन की आत्मकथा कई हिस्सों में प्रकाशित हुई है. मूल बांग्ला में लिखी उनकी किताबों का हिंदी, अंग्रेजी समेत तमाम अन्य भाषाओं में अनुवाद हुआ है और उनकी किताबें बेस्टसेलर रही हैं. द्विखंडिता उनकी आत्मकथा का तीसरा हिस्सा है. इसमें उन्होंने लज्जा विवाद के बाद के सालों में निर्वासन के दौरान घटी घटनाओं का ज़िक्र किया है. हिंदी में द्विखंडिता का पहला अंक साल 2004 में वाणी प्रकाशन से प्रकाशित हुआ.

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द्विखंडिता हिंदी के अलावा बांग्ला, अंग्रेजी और तमाम अन्य भारतीय भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी है. ऐसे में अमेजन द्वारा सिर्फ हिंदी संस्करण को प्रतिबंधित बताकर बेचने से इनकार करने की बात समझ से परे हैं.

वाणी प्रकाशन का क्या कहना है 

वाणी प्रकाशन की प्रमुख अदिति माहेश्वरी गोयल ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “मुझे शुक्रवार सुबह अमेजन का मेल मिला. मैं हैरान हूं कि जिस किताब को भारत सरकार या किसी भी अन्य अदालत ने प्रतिबंधित नहीं किया है, उसे अमेजन के लोग प्रतिबंधित बताकर बेचने से इनकार कर रहे हैं. हम इसके खिलाफ अमेजन और मानव संसाधन मंत्रालय को भी पत्र लिख रहे हैं. यह ग़लत हो रहा है. हम इसके खिलाफ कार्रवाई करेंगे.”

अदिति आगे जोड़ती हैं, “ऐसा नहीं है कि अमेजन ने पहली बार ऐसा किया है. तसलीमा नसरीन की ही किताब लज्जा को साल 2015 में प्रतिबंधित बताकर उसे बेचने से मना कर दिया था. उसको लेकर हमने लम्बी लड़ाई लड़ी और लगभग दो महीने की कोशिश के बाद अमेजन ने दोबारा लज्जा बेचना शुरू किया. इस बार भी हम लड़ेंगे.”

गौरतलब है कि तसलीमा नसरीन की हिंदी में ज़्यादातर किताबें वाणी प्रकाशन से प्रकाशित हुई हैं.

अपनी किताब लज्जा के कारण बांग्लादेश से निर्वासित होकर भारत में रह रही लेखिका तसलीमा नसरीन लंबे समय से कट्टरपंथी समूहों के निशाने पर रही हैं. भारत में भी कट्टरपंथी गुटों द्वारा तसलीमा नसरीन पर हमले की घटनाएं हो चुकी हैं. हालांकि भारत सरकार ने उन्हें सुरक्षा दे रखी है.

अमेजन द्वारा अपनी आत्मकथा को प्रतिबंधित किताब बताकर बेचने से इनकार पर तसलीमा कहती हैं, ”बांग्ला भाषा में छपे द्विखंडिता को पश्चिम बंगाल सरकार ने बैन किया था, जिसे बाद में कोलकता हाईकोर्ट ने हटा दिया. हिंदी या किसी अन्य भाषा में छपी द्विखंडिता पर कभी भी प्रतिबंध नहीं लगा है. मुझे समझ नहीं आ रहा कि इतनी छोटी सी बात अमेजन को समझ क्यों नहीं आई.”

तसलीमा आगे कहती हैं, ”यह हैरान करने वाली बात है कि अमेजन इतनी बड़ी कंपनी है, लेकिन फिर भी उन्हें इसकी जानकारी नहीं है. अंग्रेजी में द्विखंडिता का अनुवाद पेंगुइन पब्लिकेशन ने स्प्लिट : ए लाइफ (Split: A Life) नाम से प्रकाशित किया है. अंग्रेजी में किताब अभी भी बिक रही है, लेकिन हिंदी में बेचने से इनकार किया जा रहा है. बेहतर होता कि अमेजन किताब को प्रतिबंधित मानकर बेचने से इनकार करने से पहले किताब के बारे में जानकारी जुटा लेता. ऐसा लगता है कि अमेजन को जानकारी ही नहीं है.”

इस संबंध में न्यूज़लॉन्ड्री ने अमेजन से बात की. अमेजन इण्डिया की मीडिया प्रभारी ने मिशेल कुमार ने इसपर कमेंट करने से इनकार दिया. उन्होंने कहा, हम इसकी जानकारी इकठ्ठा कर रहे हैं और जितनी जल्द मुमकिन हुआ आपको ईमेल के जरिए सूचना देने की कोशिश करेंगे.

जैसे ही अमेजन इंडिया की तरफ से हमें कोई जानकारी मिलती है उसे खबर में जोड़ दिया जाएगा.

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द्विखंडिता को लेकर विवाद 

द्विखंडिता जब पहली बार प्रकाशित हुई तो इसका काफी विरोध हुआ था. तब इसके मूल बांग्ला संस्करण को लेकर मुस्लिम समुदाय के लोगों ने कई जगहों पर प्रदर्शन किया था. इसके बाद साल 2003 में पश्चिम बंगाल की तत्कालीन बुद्धदेव भट्टाचार्य सरकार ने किताब को प्रतिबंधित कर दिया था. सरकार ने प्रतिबंध लगाने के पीछे कारण दिया था कि इसकी वजह पश्चिम बंगाल में सांप्रदायिक हिंसा भड़क सकती है क्योंकि इस किताब में ईशनिंदा की गई है.

दो साल बाद 2005 में कोलकता हाईकोर्ट ने किताब से बैन हटाते हुए ऑर्डर दिया था कि किताब की जो भी कॉपी जब्त की गई है उसे रिलीज कर दिया जाए. कोलकता हाईकोर्ट के जस्टिस दिलीप सेठ, आलोक कुमार बसु और सौमित्र पाल की विशेष बेंच ने किताब से प्रतिबंध हटाने का आर्डर देते हुए कहा था कि 300 पन्नों की किताब में केवल दो पृष्ठ सरकार द्वारा आपत्तिजनक पाए गए थे. किताब की वजह से कोई सांप्रदायिक तनाव आदि भी नहीं पैदा हुआ था.

बांग्लाभाषी तसलीमा नसरीन बांग्लादेश से निर्वासन के बाद भारत में रहने आई तो उनकी पहली पसंद कोलकता थी. अपने कई लेख और इंटरव्यू में वो कहती हैं, मुझे बंगला भाषा और बंगाल से बेहद प्यार हैं. मेरे देश ने मुझे बाहर कर दिया. जब भारत सरकार ने मुझे यहां रहने का मौका दिया तो मैं कोलकता में रहना चाहती थी. लेकिन कट्टरपंथी ताकतों की वजह से ये मुमकिन नहीं हो पाया.

पश्चिम बंगाल की तत्कालीन सीपीआई (एम) सरकार तसलीमा नसरीन को कोलकता में सुरक्षा दे पाने में खुद को असमर्थ बताया. हालांकि इसके पीछे उसकी राजनीतिक मजबूरी ज्यादा थी. साल 2003 में कट्टरपंथी ताकतों के दबाव में पहले द्विखंडिता पर प्रतिबंध लगाया गया बाद में साल 2007 में उन्हें सीपीआई (एम) सरकार ने पश्चिम बंगाल छोड़ने का आदेश दे दिया. सीपीआई (एम) का कहना था कि अगर तसलीमा पश्चिम बंगाल में रहती हैं तो यहां शांति भंग होगी.

भारत में किताबों पर प्रतिबंध का इतिहास 

भारत में किताबों पर प्रतिबंध लगता रहा है. वेंडी डोनिगर की किताब ‘द हिंदूजः एन अल्टरनेटिव हिस्ट्री’, सलमान रश्दी की किताब ‘द सैटनिक वर्सेज’, वीएस नॉयपॉल की किताब ‘एन एरिया ऑफ डार्कनेस’, जवाहरलाल नेहरू पर लिखी गई माइकल ब्रीचर की किताब ‘नेहरूः अ पॉलिटिकल बॉयोग्राफी’, अमेरिकी लेखक स्टैनले वोलपर्ट की किताब‘नाइन ऑवर्स टू रामा’, आर्थर कोस्टलर की किताब ‘द लोटस एंड द रोबोट’ समेत कई किताबों पर समय-समय पर प्रतिबंध लगता रहा है.

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