‘बाहरी’ लोगों के इलाज पर रोक लगाने वाली केजरीवाल सरकार कितना ‘भीतरी’ है?

बाहरी लोगों का दिल्ली में इलाज रोकने वाले दिल्ली सरकार के फैसले में खामियां.

Article image
  • Share this article on whatsapp

“सब इंसान बराबर हैं, चाहे वो किसी धर्म या जाति के हों. हमें ऐसा भारत बनाना है जहां सभी धर्म और जाति के लोगों में भाईचारा और मोहब्बत हो, न कि नफ़रत और बैर हो.”

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के ट्विटर अकाउंट को देखने पर उनके बायो में यही पंक्तियां लिखी मिलती हैं. पहली नज़र में देखने पर ये पंक्तियां बेहद सुंदर नजर आती हैं जिसमें एक ऐसे भारत की कल्पना है जहां सब इंसान बराबर हों और उनमें कोई भेदभाव न हो.

अब हम दिल्ली सरकार, जिसके मुखिया अरविंद केजरीवाल हैं, द्वारा जारी 7 जून, 2020 का एक आदेश देखते हैं. ये आदेश कहता है- “डेल्ही एपिडेमिक डिजीज, कोविड-19 रेगुलेशन, 2020 जो कि महामारी एक्ट- 1897 के तहत है, यह आदेश दिया जाता है कि दिल्ली में मौजूद सभी अस्पताल, नर्सिंग होम, चाहे एनसीटी दिल्ली सरकार के अंतर्गत हों या फिर निजी, उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि सिर्फ दिल्ली के वैध नागरिक ही इलाज के लिए भर्ती किए जाएं.” यह आदेश कोविड-19 के मरीजों के लिए है.

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute
Order - Treatment for bonafide residents of NCT Delhi in Delhi govt hosp and nursing homes dt. 07-6-2020.pdf
download

अरविंद केजरीवाल के बायो और इस आदेश के बीच एक मूलभूत विरोधाभास है. यह राजनीतिक दांवपेंच और मजबूरियों से निकला आदेश है जिस पर गौर करना जरूरी है. दिल्ली या देश के तमाम हिस्सों में कोरोना से बिगड़ती स्थिति को लेकर राजनीतिक दल अपने-अपने तरीके से कलाबाजियां दिखा रहे हैं. जाहिर है आम आदमी पार्टी की सरकार भी उनसे अलग नहीं हैं. पहला दबाव है बीमारी के आंकड़ों को कम से कम दिखाना, दूसरा दबाव है वोटरों को खुश रखना, उनकी नज़र में जनसेवी बने रहना.

देश में कोरोना वायरस का कहर तेजी से बढ़ रहा है. भारत में अब तक सवा 2 लाख से ज्यादा लोग इससे संक्रमित हो चुके हैं जबकि 6000 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. दुनिया के सबसे ज्यादा कोरोना प्रभावित 10 देशों की सूची में भारत 6 वें स्थान पर पहुंच गया है.

राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्‍ली का हाल और भी बुरा है. पिछले कुछ दिनों में इसमें जबर्दस्त तेजी आई है जिससे दिल्ली, महाराष्‍ट्र और गुजरात के बाद देश में तीसरे नंबर पर पहुंच गया है. अब तक दिल्‍ली में कोरोना वायरस का आंकड़ा 28 हजार को पार कर चुका है. मरने वालों की संख्‍या 700 के पार है. जबकि 27 मई तक यह आंकड़ा 303 था. 3 जून को दिल्ली में 1513 नए मामले सामने आए जो एक दिन में सर्वाधिक मामलों का रिकॉर्ड है. इसके बाद से दिल्ली के हालात तेजी से बदले हैं. साथ ही इस मुद्दे पर कई बार विवाद भी हो चुका है और सरकार पर कोरोना के सही आंकड़े नहीं देने का आरोप भी लग चुका है.

सीएम अरविंद केजरीवाल ने सोमवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा था की लॉकडाउन-5 के तहत दी गई रियायतों के बावजूद दिल्ली से लगे सारे बॉर्डर्स एक हफ़्ते के लिए सील रहेंगे. लेकिन केजरीवाल ने इसके पीछे जो तर्क दिया उससे सब लोग हैरान रह गए और उनकी आलोचना भी शुरू हो हुई.

केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली की स्वास्थ्य सेवाएं सबसे बेहतर हैं और यहां इलाज मुफ्त है इसलिए अगर बॉर्डर खोल दिए गए तो पूरे देश से लोग इलाज कराने यहां आने लगेंगे और यहां के सारे बेड भर जाएंगे. उन्होंने कहा कि दिल्ली में अभी 9,500 बेड है और इन पर 2,300 लोग भर्ती है.

केजरीवाल ने दिल्‍ली की जनता से दो बिंदुओं पर राय भी मांगी और इसके लिए एक व्हाट्सएप नंबर: 8800007722 वॉइसमेल: 1031 और ईमेल: delhicm.suggestions@gmail.com, भी जारी किया.

इनमें एक बिंदु ये था कि क्या दिल्‍ली के बॉर्डर को बंद ही रखा जाए और दूसरा ये कि दिल्‍ली में अन्य राज्‍यों के लोगों के इलाज को रोका जाए या नहीं. केजरीवाल ने कहा कि लोग अपने सुझाव शुक्रवार शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं.

इसके बाद 7 जून को उनकी सरकार ने यह नियम पास कर दिया कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के सभी सरकारी और निजी अस्पतालों में सिर्फ दिल्ली के वैध नागरिकों का ही कोविड संबंधी इलाज होगा.

ऐसे समय में जब पूरे देश को एक होकर इस महामारी से लड़ना चाहिए तब केजरीवाल को ‘बाहरी’ और ‘भीतरी’ का मुद्दा क्यों उठाना पड़ रहा है. और क्यों ऐसा है कि केजरीवाल की राजनीति को एक बलि के बकरे की तलाश रहती है, हमेशा एक नया मोर्चा खोल कर जरूरी मुद्दे से ध्यान भटकाने की कोशिश दिखती है. दिल्ली में ये ‘बाहरी’ कौन हैं. और इन बिंदुओं पर सुझाव मांगने वाले केजरीवाल स्वयं हरियाणा के हिसार जिले के निवासी हैं, लंबे समय तक उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में रहे हैं.

‘बाहरी’ के दायरे में सिर्फ केजरीवाल ही नहीं बल्कि उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया सहित उनके ज्यादातर विधायक भी है. ये बात मार्च में सीएए-एनआरसी के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव पारित करते हुए खुद केजरीवाल ने भी मानी थी. और कहा था कि 70 में से 61 विधायकों के जन्म प्रमाण पत्र नहीं हैं. इस रोशनी में केजरीवाल सरकार के इस निर्णय को समझ पाना मुश्किल नहीं है.

हरियाणा के हिसार से ताल्लुक रखने वाले केजरीवाल इससे पहले यूपी के गाजियाबाद में रहते थे. जबकि उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया यूपी के हापुड़ और संजय सिंह यूपी के सुल्तानपुर के मूल निवासी हैं, गोपाल राय मऊ से ताल्लुक रखते हैं.

केजरीवाल यह भूल गए कि उन्होंने अपना पहला लोकसभा चुनाव प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के सामने दिल्ली से नहीं बल्कि यूपी के बनारस से लड़ा था. अगर वे उस चुनाव में जीत जाते तो क्या आज की स्थिति में वो अपने लोकसभा क्षेत्र के लोगों के साथ भी यही बर्ताव करते. क्या उन्हें भी इलाज के लिए दिल्ली आने की इजाजत नहीं होती. ये एक बड़ा सवाल है.

अगर गौर करें तो हाल ही में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनावों में केजरीवाल ने बिजली, पानी और स्वास्थ्य के मुद्दे पर ही अपना चुनाव लड़ा था. लेकिन फ़िलहाल वह स्वास्थ्य के मुद्दे पर बिलकुल बेबस नज़र आ रहे हैं. यह राजनीतिक दबाव तो उनके ऊपर है ही कि अगर दिल्ली में कोविड के कारण स्थितियां विस्फोटक होती हैं, तो उन्हें भाजपा और कांग्रेस से कड़ी चुनौती और आलोचना का सामना करना पड़ेगा. जानकारों की मानें तो केजरीवाल ने इसे ध्यान में रखते हुए ही दिल्ली की जनता के बीच यह बाहरी-भीतरी का मुद्दा उछाला है.

दिल्ली की अगर बात करें तो 2011 की जनगणना के मुताबिक दिल्ली की कुल आबादी एक करोड़ 67 लाख 87 हजार 941 है. इसमें पुरुषों की संख्या 89 लाख 87 हजार 326 और महिलाओं की संख्या 78 लाख 615 है.

हालांकि संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक व सामाजिक मामलों के विभाग (यूएन डीईएसए) की जनसंख्या विंग की “रिविजन ऑफ वर्ल्ड अरबनाइजेशन प्रॉस्पेक्टस-2018” की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली की आबादी 2.9 करोड़ हैं. जो जापान के टोक्यो के बाद दुनिया में दूसरे नंबर पर है. टोक्यो की आबादी 3.7 करोड़ है.

कौन बाहरी, कौन भीतरी

2011 जनगणना के मुताबिक, दिल्ली देश का दूसरा ऐसा प्रदेश है, जहां सबसे ज्यादा संख्या में दूसरे राज्यों से लोग आते हैं. इसका मुख्य कारण रोजगार और शादी की वजह से आकर बसने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है. इसे एक स्थिति के जरिए समझते हैं.

दिल्ली में ऐसे प्रवासियों की भारी-भरकम आबादी है जो 1990 के बाद पैदा हुई उदारीकरण की परिस्थितियों के चलते नौकरी और रोजी-रोटी की तलाश में दिल्ली पहुंची है. इन्हें हम पहली पीढ़ी के प्रवासी (फर्स्ट जेनरेशऩ माइग्रैंट) कह सकते हैं. इन लोगों की स्थिति ये है कि ये दिल्ली में नौकरी करते हैं, दिल्ली सरकार को अपने वेतन से टैक्स देते हैं, दिल्ली में अपनी कार या मोटरसाइकिल में पेट्रोल भरवाते हैं तो टैक्स दिल्ली सरकार को देते हैं. बिजली-पानी का इस्तेमाल करते हैं तो बिल दिल्ली सरकार को देते हैं. दिल्ली के मकान मालिक को 20 से 25 हजार महीने का किराया देते हैं. लेकिन एक अदद घर का पता इन्होंने अपने पुरखों के गांव से जोड़ रखा है. इनका वोटर कार्ड या राशन कार्ड या आधार कार्ड इनके गांव का है. दिल्ली में घर बनाना इतना आसान नहीं है और पहली ही पीढ़ी के लिए गांव से सारे रिश्ते-नाते तोड़ लेना मुनासिब नहीं है. लेकिन इनके टैक्स के पैसे से दिल्ली सरकार चलती है. पर इन्हें अब जरूरत पड़ी तो दिल्ली में इलाज नहीं मिलेगा.

अरविंद केजरीवाल की इस घोषणा में लोकलुभावन दिखावे तो खूब हैं कि उन्होंने जनता से जनमत लिया है, लेकिन उन लोगों का ख्याल नहीं दिखता जो इस सरकार के इंजन में तेल-पानी बने हुए हैं.

भारत में आतंरिक प्रवास शहरी जनसंख्या का लगभग एक तिहाई है और यह अनुपात बढ़ रहा है. जनगणना के मुताबिक दिल्ली की कुल आबादी के करीब 40 फीसदी लोग बाहर से आए हैं. इसमें 23.6 लाख लोगों ने परिवार सहित दिल्ली को अपना ठिकाना बना लिया है. करीब 19.8 लाख लोग काम-धंधे या नौकरी की तलाश में दिल्ली आए हैं. 12.2 लाख लोग अपनी शादी के सिलसिले में दिल्ली आकर रहने लगे हैं. करीब 1 लाख लोग सिर्फ पढ़ाई-लिखाई के लिए दिल्ली में रहते हैं. जबकि 6.8 लाख लोग अन्य वजहों से दिल्ली में रह रहे हैं. तो केजरीवाल सरकार इस 40% आबादी को सैद्धांतिक रूप से मुफ्त इलाज से वंचित कर चुकी है.

यह सोच कि बाहरी लोग सिर्फ दिल्ली की सुविधाओं का फायदा उठाते हैं तो ये शायद गलत होगा. क्योंकि प्रवासी लोग न सिर्फ दिल्ली के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं बल्कि हर उस राज्य की जीडीपी को बढ़ाने में भी अपना योगदान देते हैं, जहां वे रहते हैं. संयुक्त राष्ट्र की 2013 की एक रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि बाहरी लोग महानगरों पर सिर्फ बोझ नहीं हैं.

संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा भारत में आंतरिक प्रवासियों के सामाजिक समावेशन पर जारी रिपोर्ट के मुताबिक, बाहरी और बोझ के रूप में देखे जाने वाले प्रवासियों ने निर्माण और सेवा क्षेत्र में सस्ता श्रम उपलब्ध कराया है जो कि देश की जीडीपी में योगदान है.

रिपोर्ट इस धारणा को झूठा साबित करती है कि शहरों में बढ़ते प्रवासी इसका बोझ बढ़ा रहे हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि 'बाहरी लोग' निर्माण क्षेत्र के लिए सस्ता श्रम शक्ति उपलब्ध कराकर देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में बड़ा योगदान देने के साथ ही आर्थिक सहायता भी उपलब्ध कराते हैं.

दिल्ली की प्रति व्यक्ति आय भी राष्ट्रीय स्तर की प्रति व्यक्ति आय से लगभग 3 गुना अधिक है. इसमें प्रवासियों का योगदान को नकारा नहीं जा सकता है.

दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है जिसके विकास में पूरे देश का पैसा लगा है. तो फिर उस पर सिर्फ दिल्ली वालों का हक कैसे हो गया.

आम आदमी पार्टी के इस निर्णय पर राय जानने के लिए हमने आप विधायक और प्रवक्ता राघव चड्डा को फोन किया. राघव ने कहा कि अभी टाइम नहीं है जैसे ही टाइम होगा आपको बता दिया जाएगा. जब हमने थोड़ा जोर देकर पूछा कि आप इस पर फीडबैक दे देते कि “दिल्ली के अस्पताल दिल्ली वालों के लिए” तो उन्होंने फिर यही कहा कि मैं बात करके जैसे ही टाइम होगा आपको बता दूंगा.

हालांकि हमारी स्टोरी पब्लिश होने तक राघव या पार्टी की ओर से इस बारे में हमें कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई थी.

Also see
article imageकोरोना वायरस के समय में भी सुस्त क्यों हैं प्रशासन
article imageदिल्ली बीजेपी वाले क्यों नहीं चाहते कि मोदी सरकार दिल्ली को आर्थिक मदद करे
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like